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रविवार, 8 जून 2014

Khajurao-Chaturbhuj & Dulha Dev temple खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर

KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-03

यह यात्रा इसी साल सन 2014 के अप्रैल माह में की गयी है। मध्यप्रदेश के खजुराहो में पश्चिमी मन्दिर समूह को देखने के बाद खजुराहो रेलवे स्टेशन की ओर चलते हुए चतुर्भुज मन्दिर देखने चल दिया। यह मन्दिर वहाँ से तीन किमी दूर है। रेलवे स्टेशन से आने वाली सडक से इसकी दूरी मात्र दो किमी है। मुख्य सडक से उल्टे हाथ मुडना पडता है। यदि रेलवे स्टेशन से सीधे आना हो तो यह मन्दिर पहले आयेगातब हमें सीधे हाथ मुडना होगा। मुख्य सडक से दो किमी जाने के लिये, एक पतली सी सडक पर चलते हुए चतुर्भुज मन्दिर के सामने पहुँचे। ऑटो वाला बोला, सामने जो मन्दिर है, वही चतुर्भुज मन्दिर है। अरे यह तो छोटा सा मन्दिर है! इसकी हालत देखकर लग रहा है कि इसे देखने बहुत ही कम लोग आते होंगे। 

इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल 
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट 
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद

ऑटो से बाहर आकर मन्दिर परिसर में प्रवेश किया। कैमरा निकाल अपना काम करना शुरु किया ही था कि मेरी नजर एक बोर्ड पर गयी। उस बोर्ड की हालत इतनी बुरी थी कि उस पर लिखा समझ नहीं आ रहा था। एक पत्थर पर इस मन्दिर का नाम अंकित था। उसका फ़ोटो स्पष्ट आया है। सबसे पहले मन्दिर का चक्कर लगाकर जायजा लिया गया। मात्र एक कमरे नुमा मन्दिर का चक्कर लगाने में ज्यादा समय ना लगा। इस मन्दिर की साफ़-सफ़ाई या रख रखाव के लिये एक कर्मचारी नियुक्त किया हुआ था। मुझे मन्दिर परिसर में प्रवेश करते देख वह खडा होकर मुझे घूरने लगा। वह मुझे घूर क्यों रहा था? आज मैंने अपना मुँह भी नहीं धोया था हो सकता है मुँह पर कुछ लगा हो? मैंने अपने मुँह पर हाथ फ़िराकर देखा कि मेरे चेहरे पर ऐसा कुछ नहीं लगा था जिस कारण कोई मुझे घूर सके।
मन्दिर के अन्दर एक बडी सी मूर्ति थी। इस मन्दिर में मुस्लिम हमलावरों ने अपने कारनामों की अमिट छाप छोडी हुई है। अपने काम के फ़ोटो लेने के बाद वहाँ से प्रस्थान करने के अलावा कोई चारा नहीं था। मन्दिर से बाहर आते ही ऑटो वाले से कहा, चल भाई अगली मंजिल की ओर चल। ऑटो वाला मुझे लेकर दूल्हा देव मन्दिर की ओर चल दिया। इस मन्दिर के आसपास छोटी सी बस्ती थी जिसे पार किया ही था कि सडक किनारे महुआ के पेडों से शानदार नजारा बना हुआ दिखायी देने लगा।
ऑटो वाले से कहा, रुक जा भाई जरा एक फ़ोटो लेने दे। मेरे फ़ोटो लेते ही वह पुन: आगे चल दिया। कुछ दूर खेतों के बीच चलने के बाद एक बस्ती आ गयी। यहाँ मकान /घर तो बहुत ज्यादा नहीं थे लेकिन बीच सडक पर व किनारे में कुछ लोग खडे हुए थे। उनके सडक के बीच खडे होने के कारण हमारे ऑटो को आगे निकलने लायक जगह नहीं मिल पायी। ऑटो रुकते ही बाहर देखा कि वहाँ पर सामने वाले घर में खडी एक पचास वर्षीय महिला सडक पर बाइक सवार तीन लोगों के साथ लड झगड रही थी। उनकी लडाई सुनकर सारा मामला समझ में आ गया। महिला बाइक सवार लोगों पर इसलिये चिल्ला रही थी कि उनमें से एक ने उसकी लडकी के साथ छेडखानी की थी। जब बाइक वालों को लगने लगा कि उनकी मरम्मत हो सकती है तो वे वहाँ से भाग गये।
उनके जाते ही वहाँ जमा भीड छँट गयी। थोडी देर चलने के बाद हम भी दूल्हा देव मन्दिर जा पहुँचे। ऑटो वाला गेट के बाहर खडा रहा जबकि मैंने अपना कैमरा सम्भाल लिया। यह मन्दिर थोडा बडा है। मुझे इस मन्दिर के परिसर में हरा भरा मैदान ज्यादा पसन्द आया। यहाँ के अधिकतर मन्दिर खन्डित किये हुए है। इसलिये इनमें पूजा पाठ बहुत कम ही दिखायी देती है। यहाँ कुछ लोग घूमने आये थे। यह मन्दिर शिव को समर्पित है। मन्दिर का गर्भ गृह बन्द था जिसमें अंधेरा भी था जिस कारण ज्यादा कुछ दिखायी नहीं दिया। दर्शक मन्दिर को देखकर इसके पास बने तालाब को भी देख रहे थे।
दो महिलाएँ बैठकर भीख माँग रही थी। मैं मन्दिर देखने के बाद वापिस आने लगा तो वो ललचायी नजरों से मेरी ओर देखनी लगी। लेकिन मेरी नजर में भिखारी को दान देकर भिखमंगों की संख्या को बढावा नहीं देना चाहिए। दिल्ली के भजनपुरा पुलिस स्टेशन के साथ बना एक पुराना मन्दिर है उसके पुजारी ने अपने पूरे जीवन में मन्दिर में आयी दान राशि को अपने जीवन यापन में उपयोग नहीं किया। वह पुजारी अपनी जीविका चलाने के लिये मेहनत करते थे। मैंने लगभग पच्चीस साल तक उन्हे मेहनत की रोटी खाते हुए देखा है।
मेहनत की खाने वाले पुजारी बाबा मेरी नजर में सर्वोत्तम पुजारी है। दूल्हा देव मन्दिर की बनावट छत आदि मुख्य बाते खजुराहो के अन्य मुख्य मन्दिरों से मेल खाती है। इस मन्दिर से बाहर आते ही मैंने ऑटो वाले से कहा कि अब कहाँ चलना है? वह बोला कि अब दिगम्बर जैन मन्दिर समूह, आदिनाथ व पार्श्वनाथ मन्दिर देखने चलते है। इसके बाद कितने मन्दिर बचेंगे? इसके बाद दो और है। ठीक है चलो। (यात्रा जारी है।)














4 टिप्‍पणियां:

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