KHAJURAHO-ORCHA-JHANSI-02
02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
आज के लेख
में दिनांक 27-04-2014 की यात्रा के बारे में बताया जा रहा है इस दिन सुबह सवेरे
अपुन का खजुराहो पहुँचना हुआ। मध्यप्रदेश के धुर उत्तर दिशा के छतरपुर जिले में
स्थित खजुराहो-ओरछा मध्यप्रदेश का सर्वाधिक गर्म क्षेत्र है। खजुराहो का मुख्य आकर्षण पश्चिम मन्दिर
समूह देखने के लिये टिकट खिडकी से 10 रु का टिकट ले लिया। मेरे पास दस रु खुले रु नहीं थे। ऑटो वाले ने 50 रु उधार दे दिये। टिकट मिलते ही
मैंने खजुराहो के प्राचीन व मध्यकालीन कामसूत्र शिल्प कला मूर्तियों से युक्त पश्चिमी
मन्दिर समूह परिसर में प्रवेश किया। खजुराहो का प्राचीन नाम खजूरपुरा/ खजूर वाहिका
था। जो समय के साथ-साथ खजुराहो हो गया। ताजमहल व गोवा के बाद यहाँ आने वाले
विदेशियों पर्यटक काफ़ी संख्या में होते है। आज के लेख में सिर्फ़ खजुराहो का
पश्चिमी मन्दिर समूह ही दिखाया जा रहा है। खजुराहो में इस मन्दिर समूह के अलावा
जैन मन्दिर सहित बहुत सारे मन्दिर है। जिनके बारे में अगले लेख में बताया जायेगा।
इस यात्रा के सभी लेख के लिंक यहाँ है।01-दिल्ली से खजुराहो तक की यात्रा का वर्णन02-खजुराहो के पश्चिमी समूह के विवादास्पद (sexy) मन्दिर समूह के दर्शन
03-खजुराहो के चतुर्भुज व दूल्हा देव मन्दिर की सैर।
04-खजुराहो के जैन समूह मन्दिर परिसर में पार्श्वनाथ, आदिनाथ मन्दिर के दर्शन।
05-खजुराहो के वामन व ज्वारी मन्दिर
06-खजुराहो से ओरछा तक सवारी रेलगाडी की मजेदार यात्रा।
07-ओरछा-किले में लाईट व साऊंड शो के यादगार पल
08-ओरछा के प्राचीन दरवाजे व बेतवा का कंचना घाट
09-ओरछा का चतुर्भुज मन्दिर व राजा राम मन्दिर
10- ओरछा का जहाँगीर महल मुगल व बुन्देल दोस्ती की निशानी
11- ओरछा राय प्रवीण महल व झांसी किले की ओर प्रस्थान
12- झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का झांसी का किला।
13- झांसी से दिल्ली आते समय प्लेटफ़ार्म पर जोरदार विवाद
मन्दिर परिसर में प्रवेश करते ही मेरे बैग की तलाशी ली गयी।
कैमरा गले में लटका था। कैमरे के बारे में पूछा गया कि क्या इससे वीडियो बनती है?
बन तो सकती है लेकिन मुझे वीडियो बनाने का शौक नहीं है। मेरा जवाब सुनकर चैकिंग
करने वाला बन्दा बोला। अगर आप वीडियो बनायेंगे तो आपको उसका शुल्क अलग से चुकाना
होगा। मैंने आपको कहा ना मैं वीडियो नहीं बनाता। अगर आपको यकीन नहीं हो तो वापसी
में मेरा कैमरा चैक कर लेना। यदि वीडियों मिल जाये तो दुगनी फ़ीस ले लेना। मेरी बात
से संतुष्ट होने के बाद आगे जाने का इशारा कर दिया गया। परिसर में घुसते ही शानदार
हरियाली देखकर आँखों को बडा सुकून मिला। यहाँ पर मात्र 50 रु में आडियो गाइड भी मिलता है लेकिन
उसके लिये 500 की जमानत राशि जमा करवानी
होती है।
जिसे कानों पर लगाकर सुनते हुए सारे मन्दिर देखे व उनके बारे में जानकारी सहित
जाना जा सकता है। यहाँ के लगभग सभी मन्दिरों के आगे शिलापठ पर उनके बारे में
संक्षिप्त जानकारी लिखी हुई है।
थोडा सा आगे जाते ही पहला मन्दिर दिखाई दिया। इस जगह आने से
पहले मैंने यह सुना था कि खजुराहो के मन्दिर में कामसूत्र ज्ञान / संभोग कलाओं का
ज्ञान देने वाली बहुत सारी मूर्तियाँ है। मेरा यहाँ आने का मुख्य कारण कामसूत्र
कला की मूर्तियाँ ही थी। इस मन्दिर के सामने पहुँचते ही मेरी नजर उल्टे हाथ पत्थर
की बनी एक विशाल मूर्ती पर गयी। इसके सामने जाकर पता लगा कि यह वराह का मन्दिर है।
चलो पहले इसे ही देखते है।
वराह के मन्दिर में वराह की मूर्ती पर इतनी शिल्पकारी उकेरी
गयी है कि उस पर हाथ रखने लायक जगह भी नहीं बच पायी है। वराह की एक ही पत्थर से
बनी मूर्ति बलुवा पत्थर से बनायी गयी है।
यह मन्दिर चौदह स्तम्भों पर टिका है। दो बन्दे वहाँ पहले से ही मौजूद थे जो इस मूर्ती के बहुत
सारे फ़ोटो लेने के बाद भी लगे पडे थे। मैंने अपने मतलब के तीन फ़ोटो लिये और इसे
देखकर वापिस आ गया। यहाँ के खण्डित किये गये मन्दिरों में पूजा पाठ भले ही ना होता
हो लेकिन इनमें जूते पहनकर जाना आज भी मना है। इस यात्रा में मैं अपनी वो वाली
नीली चप्पले पहनकर गया था जिन्हे पहनकर मैंने भीमाशंकर सीढीघाट वाला खतरनाक ट्रेक
विशाल के साथ मजे-मजे में पार कर लिया था।
अब दूसरे मन्दिर की ओर चलते है। उससे पहले खजुराहो के
इतिहास की कुछ बाते हो जाये। खजुराहो के बारे में लगभग हजार साल से जानकारी उपलब्ध
है। चंदेल वंश के संस्थापक चन्द्रवर्मन थे। चंदेल वंश के राजाओं ने इसको अपनी पहली
राजधानी बनाया था। इन्ही चन्द्रवंशी राजपूत राजाओं ने बुंदेलखण्ड में अपने दो सौ
साल के शासन के दौरान इन मन्दिरों का निर्माण 950 से 1050 के बीच कराया था। इन मन्दिरों के निर्माण
के समय कुछ गडबड हुई या अन्य कोई बात जरुर हुई होगी, जिस कारण मन्दिर निर्माण पूरा
होते ही इस वंश के राजाओं ने अपनी राजधानी खजुराहो के स्थान पर महोबा बना दी। कहते
है कि इन राजाओं ने खजुराहों में 85 मन्दिरों का निर्माण कराया था। इन्ही राजाओं ने कालिंजर का किला भी बनवाया
था। अबकी बार कालिंजर का किला चित्रकूट के साथ देखकर आना है।
आज जिस
मन्दिर को देख रहे है इसके नाम के पीछे भी मस्त कहानी है। एक अंग्रेज टी एस बर्ट
ने खजुराहो के मन्दिरों की खोज की थी। जिस कारण इन्हे पश्चिमी मन्दिर समूह कहा
जाता है। यह स्थल युनेस्को के विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल है। खजुराहो में
घूमने के लिये साईकिल किराये पर मिलती है। यहाँ लगे एक बोर्ड से यह जानकारी मिली।
लेकिन मुझे साईकिल की कोई दुकान दिखायी नहीं दी। अगर साईकिल की दुकान पहले दिख
जाती तो मैं ऑटो में बैठकर नहीं घूमता। साईकिल का किराया बीस रु घन्टा है यदि
तीन/चार घन्टे लग गये तो सौ रुपये किराया हो जाता उस लिहाज से तो ऑटो में घूमना ही
ठीक रहा। खजुराहो में इस मन्दिर समूह के अलावा अन्य मन्दिर ना भी देखे जाये तो
आपको ज्यादा मलाल नहीं होगा। इस समूह के अलावा अन्य मन्दिर ज्यादा खास नहीं लगे।
या यू कहे कि इनके सामने ठहर नहीं पाये।
वराह मन्दिर
के बाद लक्ष्मण मन्दिर सामने ही दिखता है। अधिकांश मन्दिरों में शिव या विष्णु
सबसे ऊपर स्थान पाते है लेकिन यहाँ पर लक्ष्मण मन्दिर को सबसे ऊँचा स्थान दिया गया
है। यह एक ऊँचे चबूतरे पर स्थापित पंचायतन शैली का संधार मन्दिर है। इसमें अर्ध
मण्डप, मण्डप, गर्भगृह आदि सभी है। इसमें मध्य की शाखा में विष्णु अवतार है।
गर्भगृह में स्थापित भगवान विष्णु की चार फ़ुटी चतुर्भुजी मूर्ति में तीन सिर है।
ये सिर मानव, सिंह और वराह के रुप में है। इस मन्दिर का संबंध तांत्रिक संप्रदाय
से जुडा हुआ है। इन मन्दिरों की बाहरी दीवारों पर दैनिक कार्य करते हुए दर्शायी
गयी शानदार शिल्पकारी मन मोह लेती है। इन्हे देखकर ऐसा लगता है जैसे कोई चित्र कथा
देख रहे हो। हमला करने के लिये जाती सेना हो या सामान्य जीवन की कहानी दिखाती
शिल्पकारी बडी शानदार है। इनके साथ मन्दिर के बाहरी दीवारों के मध्य में मिथुन व
आलिंगन करती शिल्पकारी दिखायी गयी है। मुझे इन मन्दिरों में मूर्तियों पर की गयी
शिल्पकारी देखकर शिल्पकार की मेहनत पर वाह-वाह करने का मन करता है।
लक्ष्मण
मन्दिर देखने के बाद आगे चलते है। अभी इस मन्दिर के पीछे ही गया था कि इसके बराबर
में एक अन्य मन्दिर भी दिखायी दिया लेकिन उसमें जाने के लिये परिसर के बाहर से
मार्ग था। मन्दिर के ठीक पीछे जाने पर वहाँ मौजूद पेडों का रुप देखकर भानगढ भूतों
के किले में स्थित डरावने पेड याद हो आये। इन पेडों के झुरमुड से कुछ आगे जाते ही
कंदरिया महादेव मन्दिर दिखाई देने लगता है। इस परिसर में कंदरिया महादेव मंदिर
सबसे विशाल है। यह मन्दिर भी अन्य मन्दिरों की तरह एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है।
मैं अपनी आदत अनुसार किसी भी मन्दिर के अन्दर घुसने से पहले उसको बाहर से अच्छी
तरह देख लेता हूँ। इस मन्दिर का एक चक्कर लगाता हुआ इसके पीछे पहुँचा तो पता चला
तो एक अन्य मन्दिर भी इसके चबूतरे से संलग्न है। इन दोनों मन्दिरों के पीछे कैक्टस
का एक झुन्ड दिखाई दिया जिसकी ऊँचाई कोई 20-25 फ़ुट तो रही होगी। दोनों मन्दिर एक साथ जुडे हुए है जरुर कुछ तालमेल होगा।
घूम फ़िर कर इसके आगे पहुँचा।
इस परिसर का
सबसे ऊँचा मन्दिर कंदरिया महादेव है यह शैव मन्दिर 107 फ़ीट ऊँचा है। चन्देल राजा विदयाधर ने इस मन्दिर का निर्माण महमूद गजनवी पर
विजय मिलने की खुशी में किया था। इस मन्दिर के बनने में भी तांत्रिक सम्प्रदाय का
मुख्य योगदान रहा है। इस मन्दिर में सबसे ज्यादा कामसूत्र शिल्पकारी वाली
मूर्तियाँ है। एक अंग्रेज ने इस मन्दिर के बाहर 646 व इसके अन्दर
246 शिल्प की गणना की थी। इस मन्दिर का शिवलिंग संगमरमर का है। मुस्लिम
हमलावरों ने इस मन्दिर परिसर की अधिकांश मूर्तियों को खण्डित किया हुआ है। यह शिवलिंग
भी एक किनारे से टूटा हुआ है। विदेशी हमलावरों ने कामसूत्र वाली मूर्तियों को भी
नहीं बक्शा है। कंदरिया महादेव के एकदम बराबर में देवी जगदम्बा/ जगदम्बी का मन्दिर है। कहते है कि देवी मन्दिर से पहले यह विष्णु मन्दिर हुआ
करता था। छतरपुर के महाराजा ने यहाँ देवी प्रतिमा लगवायी तो यह देवी जगदम्बा मन्दिर
कहलाया। इस मन्दिर के बाहर शार्दूल का चित्रण किया गया है। यह शार्दूल शिल्पकारी में
शेर के शरीर लिये हुए लेकिन सिर किसी अन्य जानवर वाला पशु का नाम है।
कंदरिया महादेव
मन्दिर के सामने बहुत बडा हरा भरा मैदान दिखायी देता है। अगर मौसम खुशनुमा हो तो वहाँ
से हटने का मन नहीं करेगा। यह मन्दिर तो देख लिया अब सामने कोने में एक अन्य
मन्दिर दिख रहा है चलो उसे देखने चलता हूँ। दो लडके मेरे आगे-आगे जा रहे थे। उन्हे
कैमरा देकर अपने फ़ोटो लेने को कहा। अपना फ़ोटो खिचवाने के बाद उनके साथ-साथ सामने
वाले मन्दिर के सामने पहुँच गया। इसका नाम चित्रगुप्त मन्दिर है। इस चन्द्रगुप्त मन्दिर
को सूर्य मन्दिर भी कहते है। इसका विशाल चबूतरा देखकर कोणार्क का सूर्य मन्दिर याद
हो आया। कोणार्क की तरह यहाँ भी सूर्य महाराज सात घोडों पर सवार है। यह मन्दिर
सबसे आखिरी में है अत: वापसी के लिये चलना होगा। खजुराहो में महुआ के पेड बहुतायत
में है। पहले वाले लेख में इस पेड के फ़ूल आपको दिखाये गये थे। जिन्हे मैंने खाकर
भी देखा था। यहाँ भी महुआ के काफ़ी पेड थे। एक पेड ने नीचे से महुआ के कुछ फ़ूल
उठाये और खाता हुआ बाहर की ओर चलने लगा।
वापसी में
नन्दी मण्डप के सामने पहुँचा। नन्दी मन्डप में भगवान शिव के वाहन नन्दी की विशाल
प्रतिमा है। यह चौकोर मण्डप बारह स्तभों पर टिका हुआ है। सबसे अन्त में विश्वनाथ
मन्दिर आता है। इसे खजुराहो का सर्वोत्तम मन्दिर माना जाता है। यह पंचातयन शैली
में बना चार छोटे मन्दिरों से युक्त होकर बना था। यह मन्दिर राजा धंग ने सन 1002 में बनवाया था। यहाँ लगे एक पुराने
शिलालेख में इसका नाम मर्कटेश्वर बताया गया है। इस मन्दिर के साथ ही खजुराहो
मन्दिर परिसर के मन्दिरों की झांकी स्माप्त हो जाती है। अब बाहर चलते है। बाहर
निकलने से पहले एक छतरी स्मारक दिखाई दिया। यह मन्दिर परिसर के अन्दर ही बना हुआ
है। यह छतरी इस परिसर में बने अन्य मन्दिरों के शिल्प से मेल नहीं खाती है इसका
पत्थर भी उनसे अलग है।
इन मन्दिरों
में बनायी गयी कामसूत्र शिल्पकला की मिथुन मूर्तियाँ क्यों बनायी गयी है? इसके
बारे में कहा गया है कि मानव को भगवान से मिलने से पहले संभोग जैसे गुप्त कार्य के
विचार तक मन्दिर से बाहर ही छोड देने चाहिए। यदि भगवान से मिलने जाना है मन एकदम
पावन होना चाहिए। यहाँ पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक आया जा सकता है लेकिन इसे
देखने के लिये घन्टा भर का समय अवश्य निकालना चाहिए। परिसर काफ़ी बडा है जिसमें
घूमते समय कम से कम एक किमी पैदल चलना ही पडता है। बडों का टिकट मात्र दस रुपये का
है जबकि 15 साल तक के बच्चे का कोई शुल्क नहीं लिया
जाता है। अगर आप वीडियो बनाना चाहते है तो मात्र 25 रु का
दाम अलग से चुकाना पडेगा।
अगले लेख
में इस यात्रा के दौरान खजुराहो के देखे गये अन्य मन्दिरों में चतुर्भुज मन्दिर,
दूल्हा देव मन्दिर, जैन मन्दिर, पार्श्वनाथ मन्दिर, आदिनाथ मन्दिर, वामन मन्दिर,
जवारी मन्दिर, में से कुछ मन्दिर दिखाये जायेंगे। ( खजुराहो यात्रा अभी जारी है।)
(यात्रा जारी है।)
आपके यात्रा वृतांत को पढ़ कर मज़ा आ जाता है...पूरे डिटेल के साथ जानकारी मिलती है...दृश्य-चित्र साथ में मुफ्त...
जवाब देंहटाएंBahut badhiya chitra hai. sunder ati sunder. Sony ne kamaal kiya hai
जवाब देंहटाएंब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन अक्ल का इक्वेशन - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबढिया यात्रा व चित्र.
जवाब देंहटाएंभाई यह तो कमाल है हमारे देश मे भी कभी ऐसी विचारधारा थी यह देखकर पता चलता है,
क्या यहा पर औरतो का जाना मना था पहले?
हाल ही में खजुराहो यात्रा हमने भी की थी पर उद्देश कुछ और ही था हमारे रिश्ते में एक शादी थी हम न भी जाते तो भी चलता, पर छतरपूर एक बार देखने की इच्छा थी क्यूं कि मेरा जन्मस्थान है और हमारा पुश्तैनी गांव भी। तो वहां गये पता चला कि शादी तो खजुराहो में है। तो पहले छतरपूर का और फिर खजुराहो का सैर सपाटा भी हो गया पर अभी कुछ लिखने की बारी नही आई। आपके चित्र और वर्णन पढ कर फिर से घूम आये वहाँ।
जवाब देंहटाएंखजुराहो के बारे मे अच्छी जानकारी मिली फोटो भी बढिया है
जवाब देंहटाएंआपके चित्र शालीनता भरे है जो मुझे पसंद आये -- क्या यहाँ औरते भी जाती है ताकि जाने का प्रोग्राम बना सकू
जवाब देंहटाएंदर्शन जी यहाँ औरते भी काफ़ी संख्या में जाती है कोई दिक्कत नहीं है।
हटाएंVery good
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर वर्णन
जवाब देंहटाएंNyc click too
जवाब देंहटाएंNyc click too
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