श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान)
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त
SRINGAR FAMILY TOUR- 10
दिनांक 03-01-2014 की
घुमक्कड़ी की चर्चा हो रही है। आज सबसे पहले अवन्तीपोरा मन्दिर के अवशेष देखे। इसके बाद फ़िर से अपनी कार में बैठकर आज की मंजिल पहलगाम की ओर चल दिये।
अवन्तीपोरा से कुछ आगे जाते ही सड़के के दोनों किनारे पर पेड़ ही पेड़ दिखाई देने
लगे। सड़क के किनारे ग्रीन टनल का बोर्ड़ भी लगा देखा। ठन्ड़ के मौसम में चारों और
बर्फ़ ही बर्फ़ दिखाई दे रही थी। हरियाली कही नहीं मिली। पेडों पर एक भी पत्ता नहीं
बचा था। पेडों के बीच से निकलती सड़क से गुजरते हुए ऐसा अहसास हो रहा था जैसे हम
किसी सुरंग से निकल रहे हो। इसका पेडों की सुरंग का नाम ट्री टनल होना चाहिए था
क्योंकि इसका नाम “ग्रीन टनल” पूरे वर्ष अपने नाम के अनुसार जम नहीं पाता है।
सड़क के किनारों पर केसर के खेत भी दिखायी दे रहे थे। लेकिन
हमें इस यात्रा में केसर देखने को नहीं मिल सका, क्योंकि केसर की फ़सल बर्फ़ के नीचे
दबी हुई थी। कुछ जगह दुकानों पर पहले से तैयार केसर को डिब्बों मॆं पैक कर बेचा जा
रहा था। हमारी केसर खरीदने की कोई इच्छा नहीं थी। कुछ आगे बढे तो क्रिकेट के बल्ले
की फ़ैक्ट्री दिखायी देने लगी। यहाँ सड़क के दोनों ओर क्रिकेट के बल्ले बनाने में
प्रयोग की जाने वाली लकडी सुखाने के लिये
रखी हुई थी। अधिकतर लकड़ी को बिना हत्थों के बल्ले में बदला हुआ था। अधिकतर लकडियाँ
बर्फ़ से ढकी हुई थी। मौसम खुलेगा तो यह लकडियाँ सुखेगी अन्यथा यह ऐसी ही हालत में
पड़ी रहेगी।
अवन्तीपोरा से
अनंतनाग आते समय, हमारे साथ झेलम नदी कभी नजदीक तो कभी दूरी बनाकर चलती रहती है।
झेलम नदी पहलगाम के किसी पहाड़ से निकलती है। पहलगाम से निकलने वाली लिददर नदी ही
झेलम है। लेकिन अनन्तनाग तक यह लिददर कहलाती है इसके बाद यह झेलम कहलाती है। झेलम
नदी श्रीनगर होते हुए वुलर झील में जा मिलती है जहाँ से यह आगे निकलती हुई
बारामूला की ओर पाकिस्तान में चली जाती है। पहलगाम से जमीन की ढलान श्रीनगर की ओर
आती है जहाँ से बारामूला की ओर ढलान ही ढलान है।
अनन्तनाग तिराहे पर
आते ही बाइक यात्रा वाली एक बात याद आ गयी कि यहाँ मैंने बाइक रोककर संतोष तिड़के
से कहा था। अब तुम आगे चलो। तो संतोष पहलगाम की ओर चल दिया। चूंकि मैं यहाँ पहले आ
चुका था इसलिये मुझे मालूम था कि यहाँ से हमें सीधे हाथ मुड़ना है। सीधे हाथ मुड़कर
कुछ आगे चलते ही फ़िर से दो मार्ग आते है जहाँ से एक बार फ़िर मुड़ना होता है लेकिन
अबकी बार उल्टे हाथ वाले मार्ग पर मुड़कर जम्मू की ओर जाना होता है। अरे लेकिन अब
तो हमें पहलगाम जाना है तो फ़िर वही चलते है।
अन्न्तनाग तिराहे
से सीधे चलते हुए पहलगाम की ओर चलते रहे। सड़क पर दोनों ओर जोरदार बर्फ़ थी। सड़कों
पर जमी बर्फ़ को मशीनों से हटा दिया गया था लेकिन सड़क किनारे बर्फ़ का ढेर लग चुका
था। लगभग एक किमी आगे जाने के बाद सडक पर जाम मिला। मैंने सोचा कि बर्फ़ के कारण
कोई गाड़ी अटकी होगी। हमारे कार चालक ने बताया कि यहाँ पहलगाम का बस अड़ड़ा है उसी
कारण यह जाम लगा हुआ है। टुलक-टुलक चलते हुए आधा घन्टा खराब हो गया। पहलगाम से
वापसी में यही-कही बर्फ़ में फ़िसलने के कारण किसी बन्दे का सिर गाड़ी के नीचे आने से
कुचला गया। बर्फ़ के कारण गाड़ी वाला भी ब्रेक लगाने के बावजूद गाड़ी नहीं रोक पाया
था जब तक हम वहाँ आये थे सड़क पर खून ही खून फ़ैला हुआ था। चलो आगे।
अनन्तनाग से पहलगाम
की दूरी करीब 45 किमी है इस दूरी में अधिकतर यात्रा ही लिददर नदी किनारे चलती रहती
है। अनन्तनाग पार करने के बाद कुछ किमी ही पार किये थे कि हमारे कार चालक ने कार
मुख्य सड़क से हटाकर सीधे हाथ की ओर एक छोटी सी सड़क पर मोड़ दी। मैंने कहा इधर कहाँ
जा रहे हो? चालक बोला आपको मटन का मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर नहीं देखना है क्या? दिखा
दे भाई, जो दिखाना है। हमें तो घूमना है जहाँ चाहे, ले चल। कुछ देर बाद हमारी गाड़ी
मार्तण्ड़ मंदिर के सामने पहुँच गयी। मैं कार से उतर कर मन्दिर परिसर में दाखिल
हुआ।
मन्दिर परिसर के
आसपास सेना के जवान मौजूद थे। जिससे पता लगता था कि यहाँ अलगाववादियों का खतरा
मौजूद है। सामने ही गुरुदवारा दिखायी दिया। गुरु जी को बाहर से राम राम किया। इसके
बाद, मैं सीधा जाने लगा तो एक बंकर में मौजूद सैनिक बोला कि आपको मन्दिर देखने
जाना है तो उस ओर से जाईये। इधर बर्फ़ नहीं हटायी गयी है। मैं उल्टे हाथ की ओर चल
दिया। मन्दिर के कुन्ड़ से निकलती जल की धारा को पुल के जरिये पार कर आगे बढ चला।
यहाँ बर्फ़ हटाकर पैदल चलने लायक जगह बनायी गयी थी। मैं मन्दिर पहुँच चुका था। मुझे
देख एक पुजारी वहाँ आये। मैंने पुजारी जी से पूछा कि यहाँ कितने हिन्दू घर बचे हुए
है? उन्होंने कहा कि मुश्किल से 9-10 घर ही है। पहले यहाँ 90% हिन्दू आबादी हुआ
करती थी। आज अधिकतर इस्लाम ग्रहण कर चुकी है। जिन्होंने नहीं किया वे यहाँ से चले
गये या फ़िर मारे जा चुके है।
मैंने पुजारी से
कहा, क्या आप मुझे मूर्ति के दर्शन नहीं कराओगे? क्यों नहीं। पुजारी ने मेरे लिये
मन्दिर के दरवाजे खोल दिये। पुजारी बोले, आओ अन्दर आ जाओ। ना जी, मैं इतना बड़ा
भक्त नहीं हूँ। जूते निकालने पडेंगे। जो मैं नहीं करने वाला। पुजारी समझ गये कि यह
दूजी किस्म का भक्त है उन्होंने मेरे माथे पर टीका लगा दिया। बदले में मैंने 100 रु का दान मन्दिर को दे दिया। मैं अक्सर मन्दिरों व अन्य धार्मिक स्थलों में दान
नहीं किया करता हूँ। लेकिन यहाँ की स्थिति देखकर दान करना लाजमी था। मेरे जैसे
महाकंजूस की तरफ़ से यह बड़ी रकम थी।
मन्दिर से लौटने
समय वहाँ लगे बोर्ड पर मन्दिर के बारे में कुछ जानकारी लिखी हुई थी जिसका संक्षेप
में विवरण यह है कि मार्तन्ड़ मन्दिर सूर्य को समर्पित है। संस्कृत में सूर्य का ही
दूसरा नाम मार्तण्ड़ है। यह मन्दिर 500 AD अडी में बनाया गया था। यह खीरबल में है।
आजकल मन्दिर का जो भवन है। यह नया बना है। असली प्राचीन मन्दिर तो सन 15 वी सदी
में सिकन्दर बुतसिकन ने तुड़वा दिया था। सूर्य महाराज अपनी जान बाचकर भाग खड़े हुए
होंगे, जिस प्रकार गुजरात के सोमनाथ के भगवान मन्दिर से भाग गये थे। ऐसी घटनाएँ
देखकर मेरा मन कहता है कि इमारतों या स्थलों में भगवान आदि निवास करते होते तो
दुनिया में ये स्थल सब से सुरक्षित होते? लेकिन अफ़सोस वे करते नहीं।
सूर्य मन्दिर देखने के बाद मैं कार में सवार होकर पहलगाम की ओर चल दिया। थोड़ा आगे
जाने के बाद सड़क के दोनों ओर बर्फ़ के ऊँचे ढेर से निकल रहे थे कि तभी सामने से एक अन्य
गाड़ी आ गयी। बर्फ़ में फ़सने के चक्कर में कोई भी अपनी गाड़ी बर्फ़ में घुसाना नहीं चाहता
था। इसलिये थोड़ा पीछे आकर बचने लायक जगह मिल सकी। जिसके बाद दोनों गाडियाँ पास हो गयी।
आगे जाने पर बहुत सारे लोग अपने सिर पर सिलेन्ड़र ढोकर ले जाते हुए मिले। यहाँ भी कार
चालक ने हमारी समस्या सुलझायी कि बर्फ़बारी में कई दिनों तक गाडियाँ नहीं आ पाती है।
जिस दिन गैस की गाड़ी आती है। उस दिन लोग गैस लेने के लम्बी लाईन लगा लेते है, जिससे
सड़क पर जाम की स्थिति पैदा हो जाती है। ज्यादातर लोग तो सड़क पर सिलेन्ड़र को लुढका कर
ले जा रहे थे।
दो किमी बाद हमारी कार एक बार फ़िर अनन्तनाग से पहलगाम जाने वाले मुख्य हाईवे पर
पहुँच गयी। यहाँ से सीधे हाथ मुड़ने के बाद आगे बढते रहे। पहलगाम अभी काफ़ी दूर था लेकिन
सड़क किनारे लिददर नदी हमारे साथ-साथ बह रही थी। यह सड़क कई गाँवों के बीच से होकर निकलती
है जिससे वहाँ के लोगों के रहन-रहन देखकर पता लगता है कि पहाड़ के लोग भी अब बहुत स्मार्ट
हो चुके है। इस सड़क पर हर साल हजारों पर्यटक घूमने आते है। सरकार भी यहाँ जमकर संसाधन
जुटाती है, जिससे यहाँ के लोगों के रहन-सहन में प्रगति हो रही है।
पहलगाम अभी 15 किमी दूर था। एक क्वालिस वाला सामने से आ रहा था। जब हमारी गाड़ी
उसके करीब आयी तो उसने हमें रुकने का इशारा करते हुए कहा कि आगे सड़क पर बहुत बर्फ़ है।
जिसमें गाड़ी साँप की तरह बल खा रही थी मैं तो वापिस आ गया हूँ। जान जोखिम में ड़ालने
का क्या लाभ? हमारी कार का चालक बोला। आगे एक पुल है, अगर उसे पार कर गये तो फ़िर निकल
जायेंगे अगर पुल पर ही अटक गये तो फ़िर वही से वापिस आना पडेगा। देखते है, चलते रहो।
पुल पर जाते ही एक मोड़ आता है। यहाँ से आगे सड़क दिखायी नहीं दे रही थी सड़क पर बर्फ़
ही बर्फ़ थी। जैसे ही हमारी कार पक्की सड़क छोडकर बर्फ़ में घुसी तो बर्फ़ पर गाड़ी चलते
समय क्या होता है? पता लग गया। हमारी कार बर्फ़ में सीधी रखने की पुरजोर कोशिश के बावजूद
बलखाती हुई चली जा रही थी। जब तक सड़क पर सिर्फ़ हमारी कार ही होती तो कोई चिन्ता नहीं
होती थी लेकिन जब सामने से कोई अन्य गाड़ी आती दिखायी देती तो दिल धुक-धुक करने लगता
था कि बलखाती गाडियाँ सीधी निकलेगी या फ़िर एक दूसरे के गले मिलकर धूम-धड़ाला करने लग
जायेगी।
आमने-सामने की गाडियों में टक्कर ना होने पाये। इस बात का पूरा ध्यान् रखा गया
था इसलिये जब सामने वाली गाड़ी नजदीक आती थी तो गाड़ी की गति इतनी धीमी कर देते थे कि
पैदल चलने वाला भी आगे निकल जायेगा। सड़क किनारे काफ़ी बर्फ़ जमा थी, जिससे गाड़ी के फ़िसलकर
खाई में गिरने का खतरा नहीं के बराबर था। सावधानी से चलते मंजिल के नजदीक पहुँच गये।
आखिरकार पहलगाम दिखायी देने लगा। एक जगह फ़ोटो लेने के लिये कार रुकवायी। फ़ोटो लिये
और गाड़ी में बैठ गया। लेकिन यह क्या हुआ? गाड़ी चलने के बजाय स्लिप कर रही थी। नीचे
उतर कर गाड़ी को धक्का लगाना पड़ा। जैसे ही गाड़ी आगे चली तो चलती गाड़ी में भागकर बैठ
गया। अब बीच में फ़ोटो लेने के नहीं दुबारा नहीं रुका। सीधे पहलगाम पहुँचे। यहाँ एक
जगह अमरनाथ यात्रियों की चैकिंग करने वाले इन्तजाम देखे, जो आजकल बर्फ़ से दबे हुए थे।
अगले लेख में
पहलगाम घाटी के बर्फ़ीले नजारे दिखाये जायेंगे। (यात्रा अभी जारी है।)
SANDEEPJI mandir k kund ka barfeela pani dekh k nahane ka khayaal nahi aya kya????
जवाब देंहटाएंpahadon ki barf tho khoob dekhi lekin sadak per barf dekh k samjh aa raha ki car me baithne per kya haalat hoti hogi..
Shaandaar Tasveeren hain barfeeli vadiyon ki.. Khoobsoorat.
जवाब देंहटाएंसफेद चादर ओढे कश्मीर की वादियॉ जाट देवता को सलामी दे रही है
जवाब देंहटाएंफोटो गजब के आए है भाई ओर फोटो भी अपलोड कर देते
नीचे से चौथा और पांचवा फोटो गजब है और नजारे तो सारे ही
जवाब देंहटाएंकश्मीर में गुरुद्वारा देखकर ख़ुशी हुई ----- कश्मीर है या बर्फ का रेगिस्तान ---बर्फ बर्फ बर्फ ---
जवाब देंहटाएंसूर्यमंदिर पूरे देश में फैले है, आकाशीय गणनाओं की महान परम्परा थी अपने देश में।
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