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शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

Kashmir Railway-Banihal-Srinagar-Baramula कश्मीर रेलवे (बनिहाल-श्रीनगर-बारामूला)

श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- दिल्ली से श्रीनगर तक की हवाई यात्रा का वर्णन।
02- श्रीनगर की ड़ल झील में हाऊस बोट में विश्राम किया गया।
03- श्रीनगर के पर्वत पर शंकराचार्य मन्दिर (तख्त ए सुलेमान) 
04- श्रीनगर का चश्माशाही जल धारा बगीचा
05- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-निशात बाग
06- श्रीनगर का मुगल गार्ड़न-शालीमार बाग
07- श्रीनगर हजरतबल दरगाह (पैगम्बर मोहम्मद का एक बाल सुरक्षित है।)
08- श्रीनगर की ड़ल झील में शिकारा राइड़ /सैर
09- अवन्तीपोरा स्थित अवन्ती स्वामी मन्दिर के अवशेष
10- मट्टन- मार्तण्ड़ सूर्य मन्दिर  व ग्रीन टनल
11- पहलगाम की सुन्दर घाटी
12- कश्मीर घाटी में बर्फ़ीली वादियों में चलने वाली ट्रेन की यात्रा, (11 किमी लम्बी सुरंग)
13- श्रीनगर से दिल्ली हवाई यात्रा के साथ यह यात्रा समाप्त

SRINGAR FAMILY TOUR- 12
दिनांक 04-01-2014, आज गुलमर्ग जाने का कार्यक्रम पहले ही निर्धारित था, लेकिन 31 दिसम्बर को दिन भर हुई भारी बर्फ़बारी के चलते फ़्लाइट कैंसिल हो जाने से हम नये साल पर एक दिन की देरी से यहाँ पहुँच पाये। अंतिम दिन हमने कश्मीर रेलवे व खीरभवानी मन्दिर देखने के लिये बचाया हुआ था। सुबह उठे तो देखा कि बाहर का तापमान माइनस में है। सुबह 10 बजे ही हाऊसबोट से बाहर आ पाये। हमारे हाऊसबोट से सम्बंधित शिकारा वाला व कार चालक, रात में स्वर्ग सिधारी पडौस की महिला को कब्रिस्तान लेकर गये हुए थे। तभी एक अन्य शिकारा सड़क की ओर जाता हुआ दिखायी दिया। हमें खडे देखकर उसने कहा, क्या आप सड़क पर जाओगे? हाँ। शिकारा हमें लेकर सड़क पर आ गया। शिकारे वाले ने हमें सड़क किनारे लाने के 30 रु चार्ज लिया।


सड़क पर पहुँचे ही थे कि हाऊसबोट पर काम करने वाला मुददसर दिखायी दिया। उसने कहा कि मैं भी कब्रिस्तान जा रहा हूँ। जाओ, हम तो रेल में घूमने जा रहे है। सड़क पर आते ही सबसे पहले खीर भवानी मन्दिर जाने के लिये 2-3 ऑटो वालों से बात की, लेकिन सभी कह रहे थे कि वहाँ आने-जाने में कम से कम 4 घन्टे लग जायेंगे। खीरभवानी से ज्यादा जरुरी कश्मीर रेलवे की यात्रा करना था। सोचा पहले कश्मीर रेलवे में बनिहाल तक चक्कर लगा कर आते है उसके बाद समय बचा तो खीर भवानी चलेंगे। नहीं बचा तो अपने हाऊसबोट जाकर आराम करेंगे।
स्टेशन जाने के लिये एक ऑटो को रुकवा कर कहा तो उसने श्रीनगर रेलवे स्टेशन तक जाने के 200 रु बता दिये। स्टेशन ड़ल गेट से मात्र 9 किमी दूर ही है। नहीं जाना, ऑटो वाला बोला, आप कितना दोगे? नहीं जाना। दूसरा ऑटो आता दिखायी दिया। ड़ल गेट के आसपास ऑटो की कोई कमी नहीं है। दूसरे ऑटो वाले ने 180 रु बताये। मैंने 100 रु बोल दिये। वह 150 पर उतर आया। बात नहीं बनी।
हम पैदल ही आगे बढने लगे। कि तभी तीसरा ऑटो भी आ गया। उसने हमें ऑटो वाले बात करते देख लिया था। उसने कहा कि आप कितना देना चाहते हो? मैंने 100 रु बताये तो यह बोला ठीक है 120 देना। चल भाई। श्रीनगर रेलवे स्टेशन को स्थानीय लोग नौगाँव स्टेशन पुकारते है। यह स्टेशन नौगाँव इलाके में बना है। जब ऑटो वाले ने मुझसे कहा था कि नौ गाँव वाले। नौ गाँव का मुझे नहीं पता। मुझे श्रीनगर रेलवे स्टेशन जाना है। उसने ही बताया था कि हम उसे ही नौगाँव कहते है।
ऑटो चालक हमे लेकर स्टेशन की ओर चल दिया। यहाँ के ऑटो ठन्ड़ से बचने के लिये पूरी तरह पैक किये हुए होते है। बाहर से ठन्ड़ अन्दर नहीं घुस पाती। ऑटो चालक अपने साथ कांगड़ी भी लिये हुए था। जब वह ऑटो लेकर चला तो उसने अपनी कांगड़ी हमें दे दी। मणिका कांगड़ी लेकर बड़ी खुश हुई। कांगड़ी से मिल रही गर्मी से बच्चों को ठन्ड़ में राहत मिली। ड़ल गेट से जम्मू की ओर हाइवे पर चलते हुए, कई किमी दूरी तय करनी पड़ती है। हमें सेना का एक कैम्प भी पार करना होता है जो सड़क के दोनों ओर बना हुआ है।
बाईपास आने के बाद, ऑटो वाले ने अपना ऑटो गुलमर्ग की ओर मोड़ दिया। बाईपास पर लगभग दो किमी जाने के बाद उल्टे हाथ श्रीनगर स्टेशन का मार्ग दिखायी दिया। यहाँ लगे बोर्ड़ से इसकी जानकारी मिल जाती है कि टूरिष्ट रिस्पेसन सेन्टर भी इसी दिशा में है। खीर भवानी मन्दिर के लिये इस ऑटो वाले से बात की तो इसने बताया था कि आप ट्रेन से घूम कर आ जाओ। मुझे फ़ोन कर देना। मैं आपको स्टेशन से ही 500 रु में खीर भवानी लेकर चला जाऊँगा।
ऑटो वाले ने हमें श्रीनगर स्टेशन के बाहर उतार दिया। उसे 120 रु दे दिये। साथ ही उसका मोबाइल नम्बर भी ले लिया, ताकि वापसी में उसे पहले ही सूचित कर दे कि हम स्टेशन आने वाले है। तब तक तुम भी पहुँच जाना। ऑटो वाले ने मेरा मोबाइल नम्बर भी ले लिया। ट्रेन आने का समय हो चुका था। इसलिये हम स्टेशन भवन में प्रवेश कर गये। श्रीनगर से जम्मू की दिशा में बनिहाल अभी तक का अंतिम रेलवे स्टेशन है। इसलिये मैंने वही तक का टिकट ले लिया। श्रीनगर से बनिहाल तक का किराया 20 रुपये है। मैंने 100 रु का नोट देकर 2 बड़े व 2 बच्चों का टिकट कहा तो टिकट बाबू ने 60 रुपये काटकर 40 रुपये वापिस कर दिये। एक टिकट में ही दो बडे व दो छोटे टिकट समाहित कर लिये थे।
मैंने 2010 की अमरनाथ यात्रा के समय श्रीनगर रेलवे लाइन को पहली बार देखा था। आज इसे दुबारा देखकर अच्छा लगा। कश्मीर घाटी में रेल सेवा कई साल से चालू है। बीते वर्ष तक कश्मीर रेल काजीकुन्ड़ तक ही जाती थी। सन 2013 के जून माह में काजीकुन्ड़ से बनिहाल के बीच स्थित पीरपंजाल पहाडियों को चीरते हुए बनायी गयी, भारत की सबसे लम्बी रेलवे सुरंग (11 किमी) के आर-पार रेल सेवा आरम्भ हो चुकी है। बनिहाल से उधमपुर के बीच रेलमार्ग निर्माण कार्य प्रगति पर है। जम्मू से उधमपुर से कटरा तक ट्रेन सेवा दो फ़रवरी को आरम्भ हो चुकी है। जिससे वैष्णों देवी जाने वालों को बहुत राहत मिलेगी। श्रीनगर से उधमपुर तक सीधी ट्रेन चलने के बाद हम जैसे सैलानियों के वारे न्यारे हो जायेंगे।

कश्मीर रेल परियोजना के अन्तर्गत चेनाब नदी (रोहतांग पार आने वाली चन्द्रभागा नदी) पर रियासी जिले में बक्कल और कोरी के बीच बनने वाला पुल 1315 मीटर लम्बा निर्माणाधीन है। इसकी ऊँचाई 359 मीटर ऊँची है। यह धनुषाकार आकृति में बनने वाला दुनिया का सबसे लम्बा पुल कहलायेगा? इस पुल का निर्माण पूरा होने की अंतिम तिथि मार्च 2016 रखी गयी है। जम्मू से बारामूला तक रेलवे मार्ग बनने के बाद, इसकी कुल लम्बाई 345 किमी हो जायेगी। उधमपुर तक सन 2005 में ही रेलवे लाईन आरम्भ हो चुकी है। इस माह उधमपुर से कटरा (25 किमी) तक भी रेल चलने लगेगी। पीर पंजाल पहाडियों के बीच सुरंग की कुल लम्बाई 10.96 किमी है। जम्मू से सियालकोट के बीच सन 1987 में पहली बार रेल गयी थी। यदि भारत व पाकिस्तान अलग नहीं हुए होते तो यहाँ बहुत पहले पाकिस्तान की ओर से बारामूला वाली साइड़ से झेलम नदी किनारे रेलवे मार्ग बन गया होता? 
टिकट लेकर प्लेटफ़ार्म की ओर जाने लगे तो वहाँ मौजूद सुरक्षा कर्मियों ने हमें तलाशी लेने के बाद ही प्लेटफ़ार्म पर जाने दिया। प्लेटफ़ार्म पर पहुँचकर समय देखा तो दोपहर के 12:05 मिनट हो चुके थे। ट्रेन का समय हो चुका था। जिस ट्रेन से हम बनिहाल जा रहे थे वह बारामूला से आ रही थी। यह ट्रेन बारामूला से ठीक 11 बजे चलती है। बारामूला से श्रीनगर पहुँचने में ट्रेन एक घन्टा लेती है। प्लेटफ़ार्म पर खुली जगह में बर्फ़ की मोटी पर्त बिछी हुई थी। एक मिनट बाद ही प्लेटफ़ार्म पर मौजूद सुरक्षा कर्मी ने सीटी बजा दी।
सामने से ट्रेन आती हुई दिखायी दी। अभी तक सिर्फ़ फ़ोटो में ही कश्मीर रेल देखी थी। आज यह रेल हमारे सामने थी। मन में खुशी के मारे धुकड़-धुकड़ हो रही थी। मैंने सबसे आखिरी के डिब्बे में चढना चाहा, लेकिन वह डिब्बा महिलाओं के लिये आरक्षित था। बच्चों व मैड़म को उस डिब्बे में चढा दिया। जाट भाई, उसके आगे दूसरे डिब्बे में सवार हो गये।
डिब्बे में घुसते ही मैंने देखा कि यह ट्रेन दिल्ली व आसपास चलने वाली डीएमयू DMU की तरह मिलती जुलती लग रही है। सभी डिब्बे आपस में जुड़े हुए है। बच्चों वाला डिब्बा भी अन्दर से जुड़ा हुआ था। जिसमें आया-जाया जा सकता था। ट्रेन एक मिनट बाद ही बनिहाल के लिये चल पड़ी। मैंने इस ट्रेन के डिब्बे को अन्दर से देखना शुरु किया। ट्रेन के डिब्बे में यात्रा करने वाले अधिकांश कश्मीरी थे। कैमरा गले में ही लटका हुआ था जबकि लेपटॉप कन्धे पर लटकाया हुआ था। डिब्बे में सीट खाली पड़ी थी लेकिन मेरी बैठने की इच्छा नहीं हो रही थी।
ट्रेन के गति पकड़ने के बाद, कुछ देर तक खिड़की पर खडे होकर बाहर के नजारे देखता रहा। ट्रेन के डिब्बे के अन्दर से भी मस्त नजारे दिखायी दे रहे थे लेकिन जो बात खिड़की पर खडे होकर आती है वो बात सीट पर बैठकर कहाँ आयेगी? जिस डिब्बे में बच्चे और मैड़म बैठी हुई थी। वह डिब्बा अपने डिब्बे से देखने पर खाली लग रहा था। मैंने सोचा कि चलो उस डिब्बे में भी घूम आया जाये।
उस डिब्बे में जाकर देखा तो वहाँ अपने परिवार के अलावा तीन बुर्के वाली महिलाये भी बैठी हुई थी। उन महिलाओं ने बुर्का पहना तो जरुर था लेकिन उनका चेहरा खुला हुआ था। वे चेहरे से ही कश्मीरी लग रही थी। उन कश्मीरी महिलाओं की उम्र 25-30 के बीच ही होगी। मेरे साथ खिड़की के पास ही दो अन्य युवक और खडे थे। जो हाव-भाव से ही कश्मीरी लग रहे थे। मुझे ट्रेन से फ़ोटो खीचते देख, उन्होंने मुझसे बातचीत करनी शुरु की।
उन्होंने सबसे पहले यही पूछा कि आप कहाँ से आये हो? दिल्ली से। कितने दिन हो गये श्रीनगर आये हुए। चार दिन। कैसा लगा श्रीनगर? मुझे तो हर यात्रा में ही श्रीनगर मस्त लगता है। आप पहले भी आ चुके हो। कई बार। काफ़ी बाते हुई। उन्हे बाइक यात्रा के बारे में भी बताया। अमरनाथ यात्रा के बारे में बताया। मैंने उनसे कहा कि आप लोग इस ट्रेन से कहाँ जा रहे हो? उन्होंने बताया कि हम तो आपकी तरह इस ट्रेन से बनिहाल तक जायेंगे और इसी से वापिस चले आयेंगे। अच्छा, तो आप भी ट्रेन की सैर कर रहे हो। मेरी बात सुनकर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
श्रीनगर से बनिहाल आते समय अवन्तीपोरा, अनन्तनाग व काजीकुन्ड़ नामक तीन मुख्य स्टेशन आते है। इनमें से अनन्तनाग पर काफ़ी सवारियाँ उतरती व चढती है। हमारे डिब्बे में बहुत कम सवारियाँ बैठी हुई थी। अधिकतर सीट खाली पड़ी हुई थी। दोनों बच्चे चलती ट्रेन में इस डिब्बे से उस डिब्बे में आने-जाने लगे तो अनन्तनाग आने के बाद मैंने बच्चों व मैड़म को भी अपने डिब्बे में ही बुलवा लिया। हम सबसे आगे वाली खिड़की पर बैठ गये ताकि उतरने में आसानी रहे। ट्रेन की छत पर भारी बर्फ़ जमा थी। जो ट्रेन चलने के बाद हवा लगने से पिघल रही थी। जब ट्रेन काजीकुन्ड़ से पहले वाले स्टेशन पर रुकने लगी तो ट्रेन की छत से ढेर सारा पानी डिब्बे के अन्दर शीशों पर बहने लगा। यह पानी शीशे के ऊपर से होकर सीट पर गिरने लगा तो हमने वह सीट छोड़कर दूसरे सीट पर कब्जा जमा लिया। डिब्बे में खाली सीट होने का यही लाभ मिलता है।
काजीकुन्ड़ में हमारी ट्रेन आधा घन्टा खड़ी रही। प्लेटफ़ार्म पर हल्की-हल्की ताजा बर्फ़बारी होने लगी तो मुझे चिंता होने लगी कि यदि बर्फ़बारी तेज हो गयी तो ट्रेन को बन्द ना कर दे। शुक्र रहा कि बर्फ़बारी हल्की-हल्की ही होती रही। आधा घन्टा रुकने के बाद ट्रेन बनिहाल के लिये चल दी। रेलवे ट्रेक के आसपास बर्फ़ का समुन्द्र देखने को मिल रहा था। सड़क मार्ग से यात्रा करने में यह नजारा नहीं मिला। ट्रेन में बैठे यात्रियों से बच्चों ने दोस्ती कर ली थी। पास बैठे यात्रियों ने बताया कि अब सुरंग आयेगी। मैं सुरंग देखने के लिये सीट छोड़कर एक बार खिड़की पर आ गया। काजीकुन्ड़ से थोड़ा आगे जाते ही सुरंग दिखायी देने लगी।
सुरंग में घुसने से पहले ट्रेन की गति काफ़ी कम थी। लेकिन जब ट्रेन सुरंग में चल रही थी तो उसकी गति काफ़ी तेज (100 की गति) हो गयी थी। हो सकता है खुले में सुरक्षा के लिहाज से ट्रेन की गति कम रखी गयी हो। सुरंग के अन्दर खिड़की पर खड़े होकर ऐसा लगता था जैसे हम गोली की गति से दौड़े चले जा रहे है। धड़ाधड़ करती ट्रेन सुरंग से बाहर निकलने के लिये उतावली हो रही थी। यह 11 किमी लम्बी सुरंग है लेकिन इसमें साँस लेने में भी कोई परेशानी नहीं होती है। इतनी लम्बी सुरंग पहली बार पार की थी इससे पहले मैने सन 2009 में राजधानी ट्रेन की यात्रा करते समय कोंकण रेलवे की 8 किमी लम्बी सुरंग पार की थी। सुरंग पार करते ही बनिहाल स्टेशन आ गया।
बनिहाल तक पहुँचने में हमारी ट्रेन 35 मिनट देरी से आयी थी। हम व हमारे जैसी अन्य यात्रियों को (जो ट्रेन में यहाँ तक घूमने आये थे) बनिहाल से वापसी की टिकट भी लेनी थी। बच्चों को उसी डिब्बे में बैठे रहने दिया। मैं स्टेशन के बाहर आकर वापिस जाने की टिकट ले आया। स्टेशन के बाहर निकलकर वहाँ के कई फ़ोटो भी लिये। स्टेशन से सामने सड़क दिखायी दे रही थी। जम्मू हाइवे रेलवे लाइन से कुछ ऊँचाई पर दिखाई दे रहा था। स्टेशन के बाहर बसों की काफ़ी संख्या देखी। यहाँ बनिहाल स्टेशन से उधमपुर स्टेशन के बीच रेलवे की ओर से काफ़ी बसे अनुबन्ध आधार पर चलायी गयी है। यात्री इन बसों में बैठकर दोनों स्टेशनों के बीच लगभग 130 किमी की दूरी इन बसों से तय करते है। ये बसे दोनों स्टेशनों से ट्रेनों के समय अनुसार चलती रहती है।
श्रीनगर से बनिहाल पहुँचने में हमारी ट्रेन ने पौने 2 घन्टे का समय लिया था। यदि हम सड़क मार्ग का उपयोग कर श्रीनगर से बनिहाल आये तो स्थानीय निवासियों अनुसार इसमें कम से कम 4-5 घन्टे का समय लग जाता है। अब आती है बात किराये के अन्तर की। रेल से यह दूरी तय करने में 20 रु लगते है जबकि जीप वाले इस दूरी के लिये 250 रु ले लेते है। बस में भी इसका किराया 200 रु से कम नहीं होगा। इस ट्रेन के बनने से साधारण जनता व सैनिकों को बहुत आराम हुआ है। बर्फ़बारी के चलते जवाहर टनल पर लम्बा जाम हो जाता है जबकि ट्रेन में कोई खास रुकावट नहीं आती है। हमारे से एक सप्ताह पहले दो पडौसी अपने परिवार सहित सड़क मार्ग से श्रीनगर गये थे। उन्होंने बताया था कि हमें भारी बर्फ़बारी के चलते 2 किमी की जवाहर सुरंग पार करने में ही 5 घन्टे लग गये थे।
बनिहाल स्टेशन से श्रीनगर के टिकट लेकर अपने आखिरी वाले डिब्बे तक पहुँचा। अब यह डिब्बा, सबसे पहला डिब्बा बन गया था। ट्रेन के सामने खडे होकर फ़ोटो लिये गये। बच्चों को भी खिड़की पर खडे कर फ़ोटो लिये गये। आते समय अधिकतर यात्रा ट्रेन की खिड़की पर खडे होकर तय की थी। वापसी में अधिकतर यात्रा सीट पर बैठकर की गयी थी। वापसी में अनन्तनाग से काफ़ी सवारियाँ हमारे डिब्बे में आ गयी। उनमें से हमारे पास बैठे बन्दों से बातचीत में पता लगा कि वे कश्मीर घाटी में ट्रेन चलने से रोज अपनी घर चले जाते है जबकि पहले वे सप्ताह में सिर्फ़ एक दिन अपने घर जाते थे।
बातचीत में उन्होंने कहा कि आपको यहाँ घूमते हुए एक बार भी ऐसा लगा कि यहाँ के लोग नफ़रत फ़ैलाना चाहते है। मैंने कहा, “आपकी बात का जवाब देने के लिये मुझे अमरनाथ यात्रा के समय दुबारा आना होगा क्योंकि 2010 में बाइक यात्रा के समय हम अलगाववादियों की पत्थरबाजी से बचते हुए निकलना पड़ा था। उन लोगों ने कहा कि अलगाववादियों के साथ मुश्किल से 20-25 % जनता जुडी हुई होगी। अधिकतर जनता अमन चैन चाहती है जो कि भारत के साथ रहकर ही सम्भव है। उनकी यह बात ठीक लगी, लेकिन मन में ख्याल भी रहा कि मैंने अमरनाथ यात्रा वाला जिक्र कर दिया है कही उसके जवाब में ये भारत वाली बात तो नहीं कह रहे है।
असलियत में देखा जाये तो अलगाववादी तो हर राज्य में मौजूद है। इस देश में सुभाषचन्द्र बोस जैसे महान नेता के साथ नफ़रत करने वाले लोग भी है तो कथित राष्ट्रपिता को सिर पर बैठाने वाले लोग भी मिल जायेंगे। राजनीति को मारो गोली। अब चलते है ट्रेन से बाहर, क्योंकि शीशे से दिखाई दे रहा है कि श्रीनगर आ चुका है। हमें ट्रेन से उतरना होगा, नहीं तो बारामूला पहुँच जायेंगे। स्टेशन से बाहर आकर एक सूमो वाला “ड़ल गेट” की आवाज लगाता हुआ मिला। हम उस सूमो के बीच वाली सीट पर बैठ गये। सूमो की पिछली सीट पर भी चार बन्दे आ गये।
पिछली सीट पर बैठने वाले चारों बन्दे जब आपस में बातचीत करने लगे तो मैंने कहा, दिल्ली से हो या हरियाणा से। उन्होंने कहा कि रहने वाले तो हम सोनीपत के है लेकिन नौकरी दिल्ली में ही करते है। सरकारी यात्रा पर हवाई जहाज से LTC पर कश्मीर घूमने आये है। सूमो वाला हमें लेकर ड़ल गेट चला आया। ड़ल गेट से स्टेशन के लिये सूमों व ऑटो मिल जाते है। सूमो वाले ने प्रति सवारी के हिसाब से 20 रु किराया लिया। उसे 80 रु देकर हम पैदल घूमते-घामते चल दिये। मैड़म बोली छोले-भटूरे का जी कर रहा है। चलो खाओ।
भटूरे खाकर अपने हाऊस के लिये चल दिये। ऑटो वाले का दो बार फ़ोन आया था कि खीर भवानी चलना है कि नहीं। नहीं, ट्रेन में देर हो जाने से हम खीर भवानी नहीं जा पाये। अगर चले भी जाते तो अंधेरा होने की सम्भावना हो जाती। अंधेरे में मैं अन्जान इलाके में नहीं जाया करता। श्रीनगर तो वैसे भी आतंकवादियों का गढ माना जाता है। ऑटो वाले को कहा कि तुम्हारा नम्बर मेरे पास है। यहाँ जब भी घूमने आया तो तुझे याद करुँगा। हाऊसबोट पहुँचकर आराम किया। श्रीनगर से जम्मू की दूरी लगभग 290 किमी है। यहां से लेह की दूरी 434 किमी के करीब है। जबकि कारगिल 204 किमी रह जाता है।

अगले लेख में श्रीनगर से दिल्ली की हवाई यात्रा का विवरण के साथ इस बर्फ़ीली यात्रा का समापन कर दिया जायेगा। (यात्रा अभी जारी है।)































6 टिप्‍पणियां:

  1. ११ किमी तो सच में बहुत बड़ी सुरंग है।

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  2. आज कि पोस्ट बहुत ही बढ़िया लगी-- एइसा लगता है कि हम किसी विदेशी शहर में घूम रहे है

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