बीकानेर लडेरा गाँव व स्टेडियम यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
BIKANER LADERA CAMEL FESTIVAL-03
रात को बीकानेर के करणी सिंह स्टेडियम में लडेरा से
सम्बंधित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम है। मैं और राकेश वहाँ जायेंगे तब राघवेन्द्र भाई
से मुलाकात होगी। फ़ाटक खुल चुका है चलो पहले राकेश भाई के घर चलते है। घर से बाइक
लेकर स्टेडियम जायेंगे। स्टेडियम के कार्यक्रम देखेंगे और वापिस आ जायेंगे। राकेश
घर आकर बोला, जाट भाई मैं कल आपके साथ शायद वापिस नहीं जा पाऊँगा? मैं दो-चार दिन
बाद जाऊँगा। राकेश के पिताजी गाँव में रहते है। हो सकता है राकेश उनके पास जाना
चाहता हो। मेरे व अपना, वापसी का टिकट राकेश ने अपनी आईड़ी से ही बुक किया था।
मैंने राकेश से कहा कि अगर तुम कल नहीं जाना चाहते तो मैं आज रात की ट्रेन से ही
दिल्ली वापिस जाऊँगा।
समय देखा अभी शाम के 6 बजने वाले थे। हमारी टिकट कल रात 10:20
की ट्रेन की थी। जो 24 घन्टे पहले कैंसिल हो सकती है जिससे लगभग पूरी राशि भी
वापिस मिल जायेगी। लेकिन मेरे लिये असली समस्या यह आ गयी कि मुझे आज रात की ट्रेन
से जाने के लिये टिकट बुक करना था जिसका ऑन लाईन बुक करने का समय 06:20 मिनट पर
बन्द हो जायेगा। राकेश और मैं, तुरन्त राकेश के बडे भाई के कार्यालय पहुँचे। वहाँ
पर राकेश ने अपने भाई के लेपटॉप पर मेरा आज की ट्रेन का टिकट बुक कर दिया। बीकानेर
से दिल्ली जाने वाली ट्रेन में आज 135 सीट खाली दिखायी दे रही थी। मात्र 4 घन्टे
पहले इतनी सीट खाली मिलना आश्चर्य की बात थी।
आजकल तत्काल टिकट भी मिलते है लेकिन वे 24 घन्टे पहले मिलते
है। एक अन्य टिकट है जिसे करंट टिकट कहते है। यह टिकट ट्रेन का चार्ट बनने के बाद
कैंसिल होने वाले या सीट बची होने की स्थिति में ही मिल पाता है। अगर कभी ट्रेन
में अचानक यात्रा पर जाना पडे तो हो सके तो एक बार करंट टिकट के बारे में पूछताछ
कर लेनी चाहिए। करंट टिकट के लिये खिड़की भी अलग होती है। इसमें तत्काल टिकट की तरह
ज्यादा कीमत भी नहीं ली जाती। टिकट बुक करते समय राकेश ने मेरा मोबाइल नम्बर मैसेज
के लिये ड़ाला था जिससे टिकट मुझे मैसेज से मिल गया था। अगर मोबाइल साथ नहीं होता
तो टिकट का प्रिंट निकालना पड़ता।
टिकट की टैंशन समाप्त हो गयी तो हम घर पहुँचे। स्टेडियम से
राघवेन्द्र का फ़ोन आ रहा था कि कितनी देर में पहुँच रहे हो? ठीक 7 बजे हम दोनों
बाइक पर सवार होकर स्टेडियम के लिये चल दिये। स्टेडियम वाले चौराहे पर पहुँचकर राघवेन्द्र
को फ़ोन लगाया। कुछ देर में एक बाइक पर तीन लोग सवार होकर पहुँच गये। 100cc की बाइक
पर तीन लोग सवार थे जबकि 500cc की बाइक पर हम केवल दो लोग सवार थे।
स्टेडियम के प्रवेश मार्ग के बाहर बाइक खड़ी कर अन्दर जाना
पड़ा। बीकानेर में रात होते ही ठन्ड़ अपना असर दिखाने लगी थी। स्टेडियम के सामने सड़क
पर ही बहुत सारी बाइक पार्क की हुई थी। हमने भी सड़क किनारे अपनी बाइक खड़ी कर दी।
स्टेडियम रंगीन रोशनियों से नहाया हुआ मिला। यहाँ आकर ऐसा लग रहा था जैसे हम किसी
शादी समारोह स्थल पर आये है। स्टेडियम का मुख्य दवार काफ़ी शानदार है। यहाँ पर इस
दवार से विशेष लोगों को ही अन्दर जाने दिया जा रहा था।
हम ठहरे साधारण इन्सान। प्राचीन काल से ही साधारण जनता को
सबसे पीछे वाला ठिकाना मिलता रहा है। हमने सबसे आखिर का किनारा पकड़ा। अन्दर जाते
समय अन्दर आम जनता की अलग लाईन का बोर्ड़ लगा देखा। पास वाले विशेष लोगों के लिये
अलग जगह रखी गयी थी। हमारे पास तो ना पास ना टिकट, हमारे पास था तो केवल बाबाजी का
ठुल्लू। सबसे आखिर में खडे होकर रंगारंग कार्यक्रम देखे गये। यहाँ पर हम कोई आधा
घन्टा रुके थे। इस दौरान राजस्थानी कलाकारों ने शेरों-शायरी हास्य मिश्रित
कार्यक्रम दिखाया।
राजस्थानी सफ़ेद वेशभूषा में कुछ कलाकार मैदान में घूम रहे
थे मैंने अचानक कह दिया कि रावण की सेना कहाँ से आ रही है। बाद में मुझे लगा कि यह
मैंने क्या कह दिया? तीर कमान से निकल चुका था। राकेश बोला जाट भाई क्या कह रहे
हो? लगता है कुछ गड़बड कह दिया। क्या कहा था? मैं राजस्थानी सेना कहना चाहता था
लेकिन जबान फ़िसलने से रावण की सेना निकल गया। सफ़ेद वस्त्र धारण किये लम्बे चौड़े
जवान राजे रजवाडे काल की याद दिला रहे थे।
सबसे आखिर व ऊँचे स्थान पर खडे होकर आसपास के कई फ़ोटो लिये।
लेकिन रात होने के कारण मनपसन्द फ़ोटो नहीं आये। लाईटिंग के कारण कैमरा स्थिर हालत
में रखना था लेकिन कैमरा जरा सा हिलने से भी लाईटे की लाईन बन जाती थी। फ़ोटो लेते
समय बीच में खम्बे व तार आदि आ रहे थे। इस कारण नीचे उतर आना पड़ा। नीचे उतर कर
मैदान में पहुँच गये। लेकिन यहाँ भी मनपसन्द फ़ोटो नहीं मिल पाये। अंगूर खट्टे है
वाली कहावत सिद्ध हो रही थी। हमने भी यह कहकर कि बेकार कार्यक्रम है बाहर निकलना
सही समझा। अगर हमें ढंग का ठिकाना मिला होता तो हो सकता है कि हम वहाँ आधा घन्टा
और रुक जाते।
स्टेडियम से बाहर आकर एक बार फ़िर बाइक पर सवार हो गये। यहाँ
से चलते ही राकेश भाई ने अपनी ताकतवर बाइक जोर से भगायी तो मैंने कहा राकेश भाई,
राघवेन्द्र हमें ढूंढता रह जायेगा? राकेश ने बाइक की गति कम की। राघवेन्द्र भाई
सहित बाकि तीनों दोस्त कुछ देर बाद नजदीक आ पाये। नजदीक आते ही उन्होंने सबसे पहले
यही कहा कि आपकी बाइक तो उड़ती है। जबकि हमारी बाइक तो रेंगती है। मैंने कहा ऐसा
नहीं कहते, 100cc बाइक से मनु लाहौल-स्पीति घूम आया है।
अच्छा दोस्तों, अब क्या करना है? राघवेन्द्र बोला, अब हम
बीकानेर की चौपाटी देखने चलते है। बीकानेर में चौपाटी है। मैंने तो अब तक जुहू
चौपाटी, रामेश्वरम व सोमनाथ चौपाटी ही देखी है। वे तीनों समुन्द्र किनारे है।
लेकिन बीकानेर में तो ना समुन्द्र है और ना कोई बड़ा ताल। यहाँ की चौपाटी कहाँ है?
किले के सामने शाम को खाने-पीने की दुकाने लगती है जिसे बीकानेर की चौपाटी कहते
है। मैंने कहा, चलो घर चलते है। राघवेन्द्र बोला नहीं जाट भाई आपको खिलाये-पिलाये
बिना जाने नहीं देंगे।
किले के सामने पहुँच कर चौपटी का जायजा लिया। हम पाँचों ने
चौपाटी में पाव भाजी खायी। राघवेन्द्र व उसके दोस्तों ने बताया था कि यहाँ से थोड़ी
दूर पर एक अन्य दुकान है जहाँ स्वादिष्ट पाव भाजी मिलती है। मैंने कहा, नहीं
राघवेन्द्र भाई, पाव भाजी खायेंगे तो चौपाटी में ही। अगर यहाँ पाव भाजी नहीं खायी
तो फ़िर चौपाटी आने का क्या फ़ायदा? पाव भाजी खाने के बाद समय देखा, अभी 08:30 मिनट
हो रहे है।
चौपाटी से घर लौटते समय वापसी में राघवेन्द्र के अन्य
दोस्तों से लाल बाग स्टेशन के पास वाली मन्ड़ी से मिलवाते हुए घर लौट आये। फ़ाटक पार
करने के बाद सुनसान सड़क पर बाइक पर चलते हुए काफ़ी ठन्ड़ लगी। मैं राकेश के पीछे
बैठा था जिससे मुझे ज्यादा ठन्ड़ नहीं लग रही थी। घर आकर कड़ी चावल खाये गये।
स्टेडियम जाते समय राकेश ने अपनी बड़ी भाभी से कह दिया था कि वापसी में कड़ी चावल
खायेंगे। आप बनाकर तैयार रखना। कडी चावल खाकर मैंने राकेश से कहा चलो भाई मुझे
स्टेशन छोड आओ।
मैंने सोचा था कि राकेश मुझे बाइक पर लेकर स्टेशन जायेगा।
लेकिन घर से बाहर आने के बाद जब राकेश बाइक की जगह कार में बैठा तो मैंने कहा,
क्या हुआ? बाइक से नहीं चल रहे। राकेश बोला जाट भाई, बाइक पर जाकर अपनी कुल्फ़ी
थोड़े ही ना बनवानी है। कार से स्टेशन पहुँचे। ट्रेन सामने खड़ी थी। ट्रेन के दोनों
ओर के टिकट राकेश ने ही बुक किये थे। इसलिये राकेश को टिकट की राशि दे दी गयी।
मैंने कहा राकेश भाई लडेरा आने-जाने में कार का कई सौ रुपये
का पैट्रोल मेरी वजह से खर्च हुआ है। उसका कितना हुआ? राकेश बोला जाट भाई कार राइड़
हमारे घर आने पर आपके लिये हमारे ओर से थी। राकेश अपने घर लौट गया। स्टेशन में
प्रवेश करने के लिये मशीन के अन्दर अपना सामान चैक कराकर प्लेटफ़ार्म पर गया। मेरी
सीट जिस डिब्बे में थी वह सामने ही था। अन्दर घुसते ही सबसे पहले अपनी सीट देखी।
सीट साफ़ थी, शुक्र रहा कि दिल्ली से आते समय आशाराम बापू का सहारा नहीं लेना पड़ा।
स्लीपिंग बैग बिछाया और सो गया। सुबह दिल्ली पहुँचने पर डिब्बे की हलचल से आँख खुल
गयी। ट्रेन समय से पहले पहुँची थी।
सराय रोहिल्ला स्टेशन के बाहर आने के बाद बस की इन्तजार में
कुछ देर रुकना पड़ा। वहाँ से गुलाबी बाग के लिये एक बस ली। जिसके बाद लोनी मोड़ गोल
चक्कर के लिये सीधी बस मिल गयी। घर पहुँचते ही नहाने धोने के उपराँत अपनी साईकिल
पर सवार होकर समय पर कार्यालय पहुँच गया। (यह यात्रा यहाँ समाप्त होती है)
naye naye logon ka kuch parichay bhi tho dete jat bhai. hum log tho kisi ko jante he nahi ek aap aur rakeshji k siva.
जवाब देंहटाएंपूर्ण चन्द्रमा और सांस्कृतिक उत्सव, सुन्दर वर्णन
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत...
जवाब देंहटाएंबीकानेर में कुछ भी मजेदार चीज़ देखने को नहीं मिली --
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन
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