श्रीनगर सपरिवार यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01- हवाई यात्रा की तैयारी, हवाई अड़ड़े पर उड़ान रद्द होने की घोषणा।
02- राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (चाणक्यपुरी)
SRINAGAR BY AIR YATRA-02
01- हवाई यात्रा की तैयारी, हवाई अड़ड़े पर उड़ान रद्द होने की घोषणा।
02- राष्ट्रीय रेल संग्रहालय (चाणक्यपुरी)
SRINAGAR BY AIR YATRA-02
दिल्ली हवाई अड़ड़े पर बनाये गये विशेष काऊंटर पर
कल जाने के लिये अपना टिकट नम्बर लिखवा दिया। दूर से आने वाले यात्रियों को रहने
के लिये एयरलाईन की ओर से होटल में कमरे उपलब्ध करा दिये गये। श्रीनगर जाने वाली
फ़्लाइट में दो विदेशी महिलाएँ भी थी। विदेशी महिलाओं के साथ कर्मचारियों ने काफ़ी
सहानुभूति दिखायी। एयर लाइन्स वाले कर्मचारी एक साथ इतनी भीड़ देखकर हड़बड़ी में थे।
दो महिला कर्मी उन लोगों के टिकट नम्बर नोट करने में लगी थी जिन्होंने कल श्रीनगर
जाने की इच्छा जतायी थी। एक महिला उन यात्रियों के नाम व टिकट नोट करने में लगी थी
जिन्हे होटल में रुकने के लिये मैनेजर लिखता जा रहा था।
मैंने भी सोचा था कि अपना पहचान पत्र लोनी गाजियाबाद का होने के कारण मैनेजर कमरा उपलब्ध
करा देगा, लेकिन जब मैंने मैनेजर को अपनी आई-ड़ी दिखायी तो मैनेजर बोला आप तो NCR के रहने वाले हो आपको दिल्ली की सीमा तक या
उससे आगे जाने वाली काली-पाली प्री-पैड़ टैक्सी का आने-जाने का किराया दिया जायेगा।
मैंने कहा मैनेजर साहब, जरा यह तो बताइय़े, कि यहाँ से तो काली-पीली टैक्सी मिल
जायेगी। जब कल मैं यहाँ पुन: आऊँगा तो काली-पीली टैक्सी कहाँ से मिलेगी? मैनेजर
बोला आपको यहाँ से अग्रिम भुगतान करने पर टैक्सी की जो पर्ची मिलेगी। हम आपको कल
सुबह उसका दुगना किराया दे देंगे। अच्छा जी, फ़िर लिख कर दे दो। इतने में उस मैनेजर
को कोई जरुरी कार्य से बुलाने आ गया। उसकी जगह महिला मैनेजर ने कामकाज सम्भाला तो
मैंने उसके सामने अपना ई टिकट रख दिया। उस महिला मैनेजर ने मेरे ई टिकट पर दिल्ली
सीमा तक आने-जाने के लिये टैक्सी किराया देने के लिये लिख दिया था।
हमारे बोर्डिंग पास पर पहले ही कैंसिल होने का
ठप्पा लग चुका था। हमारा सामान हमारे पास आ चुका था। एक यात्री का बैग सामान वाली
ट्राली में कही अटक गया होगा जिस कारण बैग बुरी तरह घिसने से बैग फ़ट गया था। बैग
के अन्दर रखे ज्यादातर कपड़े फ़ट चुके थे। एयर लाइन्स वालों ने उसके फ़टे हुए कपडों
का नुकसान जोड़कर उसे अदा कर दिया। फ़्लाइट कैंसिल होने में कम्पनी का कोई हाथ नहीं
है लेकिन इसके बदले कम्पनी को यात्रियों को ठहराने का आर्थिक नुकसान भी झेलना पड़ा।
मेरे जैसे स्थानीय यात्री आने-जाने का टैक्सी किराया लिये बिना नहीं माने।
टर्मिनल से बाहर आते ही टैक्सियों की लाइन लगी
होती है। हमें प्रीपैड़ टैक्सी लेने के बारे में कहा गया था। प्री पैड़ टैक्सी सबसे
आखिरी पंक्ति में थी। मैंने प्री पैड़ बूथ से लोनी बार्ड़र तक काली-पीली टैक्सी (रेडियो
टैक्सी नहीं) का किराया पूछा तो उसने 700 रु बताया। 700 रु देकर रसीद प्राप्त कर ली। रसीद लेते ही एक
टैक्सी वाला हमारा सामान लेकर अपनी इको टैक्सी कार में रखने लगा। हम टैक्सी में
बैठकर घर की ओर चल पड़े। घर पर मेरी माताजी थी उन्हे मैंने यह नहीं बताया था कि हम
वापिस आ रहे है। टैक्सी वाले ने मुझसे आधी पर्ची लेकर एक गेट पर दे दी। टैक्सी
वाला उसी मार्ग से हमें लेकर धौला कुआँ की ओर लेकर चल पड़ा। जिससे होकर हम सुबह
हवाई अड़ड़े आये थे।
मैंने टैक्सी चालक से पूछा कि लोनी बार्ड़र
पहुँचने के लिये कौन सा मार्ग अपनाओगे? जब उसने कहा कि चाणक्यपुरी, इन्डिया गेट,
आईटीओ, यमुना पुश्ता होकर जाऊँगा तो मैंने सोचा यह टैक्सी चाण्क्यपुरी राष्ट्रीय
रेल संग्रहालय के आगे से होकर जायेगी। क्यों ना रेल संग्रहालय ही देख लिया जाये।
मैंने टैक्सी चालक से कहा, यदि तुम आधा-पौना घन्टा रुको तो हम रेल संग्रहालय देखते
हुए जायेंगे। टैक्सी चालक बोला आपको 50 रुपये ज्यादा देने
होंगे। ठीक है, चलो रेल संग्रहालय रुककर चलना।
कुछ देर बाद चाणक्यपुरी का रेल संग्रहालय हमारे
उल्टे हाथ दिखायी दिया। टैक्सी वाले को इसके अन्दर जाने का मार्ग नहीं मालूम था।
मैं इस संग्रहालय में पहले भी दो बार आ चुका हूँ। एक बार तो गोवा यात्रा के युथ
हास्टल पैकज बुक करने साईकिल पर ही आया था। उस दिन सोमवार होने से यह बन्द मिला
था। इससे पहले यहाँ आखिरी बार कोई 12-13 साल पहले आया था।
जब मैं एक स्कूल में पढाया करता था। वैसे इस संग्रहालय को मैंने कल भी देखा था जब
मैं नई दिल्ली से छतरपुर मैट्रो स्टेशन के बीच चलने वाली बस में सवार होकर इसके
सामने से होकर गया था। वो अलग बात है कि इस संग्रहालय में अन्दर जाने का दरवाजा
थोड़ा अलग हटकर बना है।
रिंग रोड़ व रिंग रेलवे इसके साथ सटा हुआ ही है।
टैक्सी चालक को मैंने उल्टे हाथ आने वाले मार्ग पर मुड़ने के लिये कहा। थोड़ा सा आगे
चलते ही उल्टे हाथ एक मार्ग आ गया था। इस मार्ग पर आगे जाते ही हमें उल्टे हाथ की
ओर इशारा करता हुआ एक नीला बोर्ड़ दिखायी दिया, जिस पर राष्ट्रीय रेल संग्रहालय
लिखा था। यहाँ से आगे जाते ही भूटान देश का दूतावास एकदम सामने दिखायी देता है। जब
मैं साईकिल पर आया था तो मैं इसी दूतावास को रेल संग्रहालय समझ बैठा था। यहाँ
भूटान दूतावास से सटा हुआ रेल संग्रहालय थोड़ा सा आगे है।
संग्रहालय के सामने पार्किंग की सुविधा है जहाँ
स-शुल्क अपने वाहन सुरक्षित खड़े किये जा सकते है। हमारी टैक्सी पार्किंग में पहुँच
गयी। हम लोग टैक्सी से उतर कर अन्दर घूमने चल दिये। गेट के बाहर ही टिकट घर है
यहाँ से अन्दर जाने के लिये टिकट लिये। अन्दर जाने के लिये प्रति बन्दे 10 रु का टिकट लगता है। इस संग्रहालय ने अन्दर एक
छोटी सी रेल भी चलती है जिसमें यात्रा का स्वाद लेने के लिये 20 रु अलग से खर्च करने होते है। मैं इससे पहले
बाल भवन में चलने वाली ट्रेन में यात्रा कर चुका हूँ आज इस ट्रेन में बच्चों के
साथ स्वयं भी यात्रा करनी है इसलिये छोटी ट्रेन के टिकट भी ले लिये।
संग्रहालय में अन्दर जाते ही बच्चों को रेल
दिखायी दी तो बच्चे अपने बाप की शैतानी पर आ गये। मेरा काम फ़ोटो लेने का था इसलिये
मैं अपने कार्य पर लग गया। अन्दर घुसते ही जिस इन्जन को दिखाया गया है उसका इतिहास
उसके बराबर में लिखा हुआ था जिसके अनुसार यह इन्जन का नाम MT R 2 है। सन 1910 में
कराची पोर्ट ट्रस्ट ने इसका निर्माण ब्रिटिश फ़र्म डिक केर एन्ड़ कम्पनी ने किया था।
ऊँची चिमनी के 2.6” गेज के इस इन्जन ने मराला टिम्बर डिपो
में 1917 से 1922 तक कार्य किया था।
उसके बाद उत्तर रेलवे ने इसका उपयोग क्रियोसेटिंग संयत्र ढिलवां में किया था। इस
इन्जन के सामने ही दो बड़े पहिया रखे थे जिनके बीच बच्चों को खड़ा कर एक फ़ोटो लिया
गया था।
इसके
बाद हम राष्ट्रीय रेल संग्रहालय देखने के लिये मुख्य भवन में पहुँच गये। इस भवन की
दीवार पर एक शिलापट लगा है जिसपर लिखा है कि इस रेल परिवहन संग्रहालय का उद्घाटन
तत्कालीन रेल मंन्त्री कमलापति त्रिपाटी ने 01-02-1977 में किया था। रेल संग्रहालय के भवन में घुसते ही एक बड़ा सा पहिया दीवार
पर लगा दिखायी दिया। इसके बाद आगे जाते ही निजाम के दवारा प्रयोग की जाने वाली
बैट्री कार दिखायी दी। इससे आगे एक से एक पुराने से पुराने इन्जन के माड़ल दिखायी
देने लगे। भारत देश में रेल की शुरुआत सन 1849 में हुई थी।
मीटर गेज व नैरो गेज के कई माड़ल वहाँ रखे हुए थे। सन 1770 का
बना गुगनट इन्जन का माड़ल भी वहाँ रखा था।
आगे
जाने पर रेल के सवारी डिब्बे में काम आनी वाली जरुरी सामग्री दर्शायी गयी थी।
पुराने समय की क्रेन, इन्जन चालक का घुमाने वाला पहिया व लोहे की पटरियो के
विभिन्न नमूने वहाँ दिखाये गये थे। ऊटी में तीखी चढाई पर ट्रेन चलने वाली चैन
सिस्टम भी यहाँ दिखाया गया है। आगे जाने पर स्टेशन मास्टर किस प्रकार ट्रेनों के
आवागमन को नियन्त्रित करता है? यह दिखाया गया है।
इन
सब चीजों को देखकर आगे बढे तो एक पुल का जाना पहचाना नमूना दिखायी दिया। जब उसके
सामने जाकर नाम देखा तो आँखे खुशी से चौड़ी हो गयी। पुल के नमूने के नीचे पम्बन पुल
लिखा हुआ था। यह पुल भारत के दक्षिण छोर पर स्थित राज्य तमिलनाडु में रामेश्वरम
दवीप को मुख्य भूमि से जोड़ता है। इस पुल का निर्माण साउथ रेलवे ने 1911-13 में तूतीकोरिन से कोलम्बो की 12 घन्टे 20 मिनट की समुन्द्री यात्रा के समय में कमी
लाने के लिये किया था। इस पुल में 40 फ़ुट के गार्ड़र वाले 145 डेक टाइप के मेहराब है और 214 फ़ुट की मेहराब सहित
थ्रू टाइप की दो पत्तों की एक शरजर रोलिंग लिफ़्ट है। इस पुल की कुल लम्बाई 2.057 किमी है। शरजर मेहराब के उठाये जाने पर जहाज इसके बीच से निकल सकते है।
सन 1964 के 22/23 दिसम्बर को आये समुन्द्री
तूफ़ान में इस पुल के 126 मेहराब बह गये थे। गर्ड़रों को
समुन्द्र में से निकाल लिया गया। बहुत सारी कठिनाईयों को पार पाते हुए दो महीने के
रिकार्ड़ समय में 23 फ़रवरी 1965 को इसे
यातायात के लिये फ़िर से चालू कर दिया गया था।
भारत
के साथ हुई लड़ाई में भी भारतीय रेल सैनिकों के बहुत काम आती है। इसके बारे में भी
यहाँ विस्तार से बताया गया है। आगे चलते ही एक बड़े से प्लेटफ़ार्म पर रेलवे मार्ग
को दर्शाते हुए रेलवे स्टेशन सहित एक बड़ा सा मार्ग दिखाया गया। मुख्य भवन में इसके
अलावा भारत के विभिन्न क्षेत्र के रेल जोन के अपने-अपने चिन्ह दिखाये गये है। मुख्य
भवन में इसके अलावा अन्य बहुत चीजे ऐसी है जिनका वर्णन मैंने नहीं किया है। अब भवन
से बाहर निकल कर बड़े-बड़े असली इन्जन देखते है। भवन के बाहर बड़ा सा आँगन है जिसके
एक तरफ़ एक ढके विशाल कमरे में एक इन्जन के अन्दर के पार्ट दिखाये गये है। चिमनी के
साथ पानी से भाप/स्टीम कैसे पाइपों से होती हुई अपनी ताकत दिखाती थी सब कुछ इस
खुले इन्जन में दिखाया गया है।
बारीक
चीज देखकर छोटी ट्रेन की यात्रा करनी थी। यहाँ आते ही मैंने छोटी रेल के स्टेशन वाली
टिकट खिड़की पर यह पता किया था कि रेल कितनी देर में चलेगी? वैसे हमने रेल का टिकट
बाहर ही ले लिया था लेकिन जो लोग वहाँ टिकट नहीं ले पाते है उनके लिये रेल के
सामने भी टिकट खिड़की बनायी गयी है। बच्चों को खड़ी ट्रेन के इन्जन पर बैठा कर फ़ोटो
लिया। तभी वहाँ लगी घन्टी टन-टन करने लगी, जिसका संकेत था कि ट्रेन चलने वाली है।
हम फ़टाफ़ट ट्रेन में जाकर बैठ गये। ट्रेन में छोटे बड़े सभी यात्रा करने को उत्सुक
थे।
जैसे
ही ट्रेन हमें लेकर आगे बढी तो मैंने कैमरे से फ़ोटो लेने शुरु कर दिये। पुराने
इन्जनों के मध्य से होते हुए हमारी ट्रेन आगे बढती रही। एक जगह रेल का मार्ग एक
पुल जैसी जगह से ढका हुआ है जिससे सुरंग जैसा महसूस करता है। जब हमारी ट्रेन उस सुरंग
से निकली तो अंधेरा हो गया। बच्चों को शोर मचाने के लिये मौका चाहिए था। सुरंग पार
कर हमारी ट्रेन बहुत सारी पुरानी ट्रेन के बीच से होती हुई चलती रही। इन ट्रेनों
में कई ट्रेन इतनी दुलर्भ है कि अब यहाँ इस संग्रहालय के अलावा कही और दिखायी भी
नहीं देती है।
ट्रेन
पूरे संग्रहालय का चक्कर लगाने के बाद घूम कर वापिस अपने स्टेशन पर आ गयी। मैंने
बच्चों को सामने बने झूलों पर खेलने भेज दिया। श्रीमति और मैं पुराने डिब्बे देखने
पहुँच गये। महाराजा गायकवाड़ बडौदा सैलून देखने लायक था। पुराने भाप के इन्जन देखकर
अपना बचपन याद आ गया। मुझे अच्छी तरह याद है कि हमारे रेलवे रुट शाहदरा से शामली
होकर सहारनपुर लाइन पर सन 1989 (सन ठीक
से याद नहीं) तक कोयले वाले इन्जन चला करते थे। जिनमें मैंने खूब सारी यात्राएँ की
है। कोयले वाले इन्जन सीधे ही दौड़ते थे जिन्हे अपनी मंजिल पर पहुँचने के बाद अंतिम
स्टेशन पर इन्जन घुमाने वाले यंत्र पर कोयले के इन्जन को इन्सान धकेल कर घुमाते
थे। मैंने शामली और देहरादून में इन यंत्र नुमा घेरे पर इन्जन घुमाते कर्मचारी
देखे है।
जयपुर
स्टेट रेलवे व ऊटी रेलवे की विशेष चैन वाली गाड़ी देखकर हम वहाँ से वापिस चल दिये।
यदि आप इस जगह जाना चाहते है तो सोमवार के अलावा कभी भी जा सकते है। सुबह 09:30 से शाम के 05:00
बजे तक इसमें प्रवेश कर सकते है। दिल्ली की रिंग रेलवे व रिंग रोड़ इसके एकदम साथ
ही बना है। चाणक्यपुरी का यूथ हास्टल यहाँ से एक किमी दूरी पर है। चलिये टैक्सी
वाला हमारा इन्तजार कर रहा होगा। कही वो हमारा सामान लेकर ना भाग जाये। अगर वो
हमारा सामान लेकर भाग गया तो कल नये साल में श्रीनगर कैसे जा पायेंगे?
हम
टैक्सी के पास पहुँचे, टैक्सी के सामने एक आइसक्रीम वाला आइसक्रीम बेच रहा था।
आइसक्रीम देखते ही अपुन का रुकना मुश्किल है, लेकिन यहाँ तो पूरा परिवार ही
आइसक्रीम का दीवाना है। सबके लिये एक-एक आइसक्रीम ले ली गयी। आइसक्रीम लेकर टैक्सी
में बैठ गये। चालक हमें लेकर मंजिल की ओर चल दिया। चाणक्यपुरी का हरा भरा मार्ग
समाप्त होते ही टैक्सी सीधे हाथ सम्राट होटल की ओर मुड़ गयी। प्रधानमन्त्री निवास
के सामने से होते हुए शाहजहाँ रोड़ पहुँच गये। जल्द ही हमारी टैक्सी इन्डिया गेट के
आगे पहुँच गयी। इन्डिया गेट की ओर देखा तो वहाँ लोगों का जमावड़ा देख याद आया कि
अगस्त में यहाँ साधारण जनता के आने पर रोक लगी थी। अब मजमा लगा हुआ था।
इन्डिया
गेट से आईटीओ चौक आते ही टैक्सी वाले ने लक्ष्मी नगर की ओर गाड़ी मोड़ दी। मैं सोच
रहा था कि टैक्सी वाला बस अड़्ड़े वाले पुल से यमुना नदी पार करेगा। लेकिन उसने
आइटीओ पुल से ही यमुना पार कर पुश्ता रोड़ पर चलना शुरु किया। दिल्ली के अधिकतर
मार्ग अपने देखे हुए है इसलिये पता रहता है कि कहाँ निकलेगा? पुराने सीलमपुर रेलवे
लाइन को नीचे से पार करके शास्त्री पार्क चौराहे से होते हुए खजूरी पहुँच गये।
खजूरी से भजनपुरा होकर लोनी मोड़ पहुँचते ही मैंने टैक्सी वाले से कहा हमें यही छोड़
दो।
मोड़
के पास खाने-पीने का काफ़ी इन्तजाम है लेकिन उस दिन कुछ ना मिला। हमने एक पैड़ल
रिक्शा में सवार होकर घर पहुँच गये। घर पहुँचते ही पडौसी चौकन्ने हो गये कि अरे एक
दिन में घूम कर आ गये। पडौसियों को बताया कि श्रीनगर में आज सुबह 31Dec 2013 से बर्फ़ पड़ रही है अब हम कल
जायेंगे। एक ने कहा यदि कल भी बर्फ़ पड़ी तो? परसो जायेंगे। जाना जरुर है। क्योंकि
हमारी वापसी के टिकट 5 jan 2014 तारीख के है। यह इस साल के
आखिरी दिन की यात्रा का विवरण है। अब नये लेख में नये साल की नई यात्रा का विवरण
बताया जायेगा। (यह यात्रा यही समाप्त होती है।)
बहुत बढ़िया वर्णन रहा रेल संग्राहलय का --और बहुत बुरा हुआ हवाई यात्रा का न होना। ख़ेर, कल फिर से प्रयास करना
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