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सोमवार, 11 नवंबर 2013

Let,s go to Dharamshala आओ धर्मशाला चले

करेरी-कांगड़ा-धर्मशाला यात्रा के लिंक नीचे दिये है।

01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
05- धर्मशाला के चाय बागान के बीच यादगार घुमक्कड़ी।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान  Back to Delhi


KARERI-KANGRA-DHARAMSHALA-01


हिमाचल के शहर धर्मशाला तो मैं पहले भी एक बार अपनी बाइक पर गया हूँ, जब मैं और विशेष मलिक नीली परी पर सन 2007 में हिमाचल के भ्रमण पर गये थे। उस यात्रा के दौरान हम जितनी देर भागसूनाग आने-जाने में लगायी थी, बारिश ने उतने समय हमारा साथ नहीं छोड़ा था। इस वर्ष एक बार फ़िर धर्मशाला के ऊपरी इलाके में ट्रेकिंग करने का कार्यक्रम तय हुआ। इस यात्रा में मेरे साथ एक नया साथी पहली बार यात्रा पर जा रहा था। कुछ दिन पहले ही राकेश बिश्नोई नाम से एक अन्जान बन्दे का फ़ोन आया था कि जाट भाई मैं बीकानेर का रहने वाला राकेश बिश्नोई बोल रहा हूँ। क्या आपका जल्द ही कोई ट्रेकिंग करने का इरादा है? मैंने कहा हाँ, है तो। मैं धर्मशाला के ऊपरी पहाड़ों पर स्थित दर्रों को पार कर दूसरी ओर चम्बा घाटी में उतरना चाहता हूँ। 




कब जाना चाहते हो? भाई अभी तो बारिश अपने पूरे शबाब पर है इस भरपूर जवान बारिश के साथ पंगा लेना बेकार की सिरदर्दी बन जायेगा। कुछ दिनों पहले ही केदारनाथ त्रासदी/विपदा में देखा नहीं कि क्या बुरा हाल हुआ था? राकेश बोला, बारिश रुकते ही चलोगे ना। हाँ बारिश रुकते ही पक्का। राकेश भी ट्रेकिंग करने का दीवाना निकला। मैं बारिश रुकने की प्रतीक्षा कर रहा था इस तरह बारिश की जवानी ढ़लने में कुछ दिन बीत गये। अचानक एक दिन राकेश का फ़ोन आया कि जाट भाई मौसम विभाग की भविष्यवाणी है कि बारिश 10 अगस्त के बाद एक सप्ताह तक बन्द रहेगी। मैंने कहा, एक सप्ताह हमारी यात्रा के लिये बहुत रहेगा। राकेश बोला, फ़िर मैं बस के टिकट बुक कर दूँ। अभी से, अगर बारिश ना रुकी तो? अगर बारिश ना रुकी तो नहीं जायेंगे।

राकेश को एक-दो दिन बाद टिकट बुक करने को कहा। अपने एक अन्य दोस्त है मनु त्यागी, मुरादनगर के रहने वाले है ट्रेकिंग करने का भूत सवार रहता है। मैंने सोचा कि चलो देखते है मनु को इस यात्रा पर चलने को कहता हूँ बन्दा बारिश के मौसम में चलने को तैयार होगा या नहीं। मैं सोच रहा था कि मनु साफ़ मना कर देगा लेकिन लगता था कि मनु भी तैयार ही बैठा था। मेरे कहने की देर थी, उधर से तुरन्त हाँ हो गयी। मैंने कहा कि ठीक है मनु राकेश का फ़ोन आयेगा, बाकि बाते उसके साथ कर लेना। राकेश और मनु की आपस में क्या बातचीत हुई, नहीं पता। 

अगले दिन राकेश ने मुझे बताया कि मैंने चार टिकट दिल्ली से धर्मशाला तक बुक कर दिये है। चौथा किसका? राकेश ने बताया कि चौथा बन्दा मनु त्यागी का कोई जानकार है। ठीक है उन्हे कह दिया है ना अगर नहीं चलो तो किराया देना ही पडेगा। तय दिन हम अपने-अपने घर से धर्मशाला के लिये निकल पड़े। इस यात्रा पर जाने से पहले कुछ जरुरी खरीदारी करनी पड़ी। अब तक मैंने जितनी भी यात्राएँ की थी बिना स्लिपिंग बैग व टैन्ट के ही की थी। अब तक की गयी लगभग सभी ट्रेकिंग में रहने व खाने का प्रबन्ध मिल जाया करता था लेकिन अब आगे भविष्य में जितनी भी ट्रेकिंग करने का लक्ष्य है उनमें शायद ही किसी में रहने व खाने का प्रबन्ध मिल सके। सोने व खाने की सामग्री हमें साथ ही लेकर जानी होगी। खाने में तो कोई ज्यादा समस्या नहीं आने वाली, क्योंकि बिस्कुट व मैगी बैग में भरकर मात्र एक छोटे पतीले के सहारे कई दिन बिताये जा सकते है। 

लेकिन ठन्ड़े प्रदेशों में रात बितानी एक कठिन समस्या है इसलिये मैट-स्लिपिंग बैग व टैन्ट लेने का विचार हुआ। कई जगह छानबीन हुई। नेट पर काफ़ी खोजबीन की गयी। इस तलाशी अभियान में कई दुकाने पता लगी जो ट्रेकिंग का सामान उपलब्ध कराती है। इनमें कमला नगर दिल्ली में घरों के बीच दुबकी हुई एक दुकान की जानकारी नेट पर मिली। एक दुकान गोविंदपुरी कालकाजी में मिली। आखिरकार हमने मैट-स्लिपिंग बैग ले लिये। टैन्ट सबसे आखिरी में यात्रा वाले दिन ही लिया गया था। जिस बस में हम जाने वाले थे वह दिल्ली के मजनू टीला से चलने वाली थी। टिकट राकेश ने बुक किये थे। बस मजनू टीला से चलने की बात पता लगी तो मेरा सिर चकराया और मैंने राकेश को फ़ोन खड़खड़ाया कि भाई मजनू टीला से कौन सी बस हिमाचल जाती है? राकेश ने बताया कि निजी बस वाले है लेकिन यह नैनीताल वाले उन बस वालों की तरह तो नहीं है जो आपको कई घन्टे रुलाने के बाद लेकर जायेंगे। नहीं चिन्ता करने वाली बात तो नहीं है।

मनु अपने पडौसी के साथ मुरादनगर से चल चुका था मजनू टीला के सबसे नजदीक मेरा ही घर पड़ता है। मैं सबसे बाद में चलकर भी सबसे पहले बस के पास पहुँच गया। बाकि सभी बस के चलने के समय पर पहुँच पाये थे। मेरा कार्यालय मजनू टीले के काफ़ी नजदीक है अत: स्लिपिंग बैग व टैन्ट मैंने कार्यालय में ही रखा हुआ था। बस की ओर जाते समय स्लिपिंग बैग व टैन्ट भी उठा लिया गया। बस चलने का समय शाम 06:30 बजे का था बस लगभग 20 मिनट की देरी से धर्मशाला के लिये चल पड़ी। बस में अभी तक कई सीटे खाली दिखाई दे रही थी। लेकिन बुराड़ी लाल बत्ती से कुछ सवारियाँ और चढ़ गयी वे शायद मजनू टीला तक जाना नहीं चाह रहे होंगे।  खाली सीट भी फ़ुल हो गयी। अब धीरे-धीरे दिल्ली पीछे छूटती जा रही थी। 

दिल्ली से चले तो मौसम एकदम साफ़-सुहावना था। बस की खिड़की खोलकर बाहर की ठन्ड़ी हवा का जमकर लुत्फ़ लिया गया। खिड़की वाली सीट पर मैं पहले आकर कब्जा जमा चुका था। बस की सीट देखकर मन खुश हुआ। इस बस में जितनी सीटे थी वे पीछे की ओर काफ़ी तिरछी हो जाती है इसलिये रात में नीन्द आने की पूरी सम्भावना रहेगी। पानीपत तक पहुँचते-पहुँचते नीन्द आने लगी। बस चालक एक उचित व सुरक्षित गति से बस दौड़ा रहा था। सरकारी बसे हमारी बस से आगे निकल जाती थी आगे निकलती बसों को देखकर मन में एक टीस सी उभरती थी कि हमारा चालक धीमी बस क्यों चला रहा है? लेकिन दूसरे ही पल सुरक्षा पहलू पर विचार किया तो 60-70 की गति से बस चलाना अच्छी बात थी।

रात को कुरुक्षेत्र पार करने के बाद हमारी बस किसी ढाबे पर यात्रियों को भोजन कराने के लिये रुकी थी। मैं घर से खा-पीकर चला था। राकेश को भूख लगी थी इसलिये राकेश खाना खाने के लिये गाड़ी से नीचे चला गया। मैं अपनी सीट पर जबरदस्ती नीन्द लाने के चक्कर में पड़ा रहा। हमारी बस वाले ने एक अच्छा काम किया था कि दिल्ली से चलते ही ठन्ड़े पानी की एक-एक बोतल सभी यात्रियों को दे दी गयी थी। मुझे वैसे भी ज्यादा पानी पीने की आदत है मैं घर से भी पानी की एक बोतल भर कर लाया था। धर्मशाला पहुँचते-पहुँचते दोनों बोतले खाली हो चुकी थी। सुबह कोई 4 बजे हमारी बस अम्बाला, रुपनगर/रोपड़, गनौली, भरतगढ़, कीरतपुर, आन्नदपुर साहिब, नंगल, उना, अम्ब, जैसे शहरों से होती हुई चिन्तपूर्णी माता मन्दिर वाले मार्ग पर जा पहुँची। 

चिन्तपूर्णी मन्दिर मुख्य सड़क से करीब तीन किमी हटकर है यहाँ मुख्य सड़क पर दोनों ओर दो-दो किमी तक आबादी बस चुकी है। सुबह का समय था मन्दिर आने-जाने वाले लोगों के लिये भन्ड़ारे चालू थे। हमारी बस भी इसी आबादी के समाप्त होते-होते रुक गयी। बस चालक बोला कि बस आधे बाद जायेगी जिसे चाय अदि पीनी-पानी हो तो पी ले। मुझे जोर सी सू-सू लगी थी। अंधेरे का लाभ उठाकर सड़क किनारे सारा तनाव उतार दिया। बसों में यात्रा करने में यही पंगा है कि अपनी मर्जी से हम कही रुक नहीं सकते, कुछ देख नहीं सकते। 

आधे घन्टे बाद बस आगे चल पड़ी। अधिकतर लोगों ने चाय पी ली थी लेकिन कुछ लोग अपने चाय के प्लास्टिक वाले प्याले लेकर ही बस में सवार हो गये। यहाँ से आगे-आगे इस सड़क में काफ़ी तीखे मोड़ आरम्भ हो जाते है। जिसको अभी तक नीन्द आ भी रही थी तीखे मोड़ों पर तेजी से बस घूमने के कारण सोते हुए लोग इधर-उधर लुढकना शुरु हो गये। आखिरकार पहाड़ी सड़कों ने सभी यात्रियों को नीन्द से उठा कर ही दम लिया। यही मार्ग आगे चलकर ज्वाला जी/मुखी के लिये डेरा गोपीपुर से सीधे हाथ अलग निकल जाता है। यहाँ से सीधे चलते हुए कई किमी बाद फ़िर से ज्वालामुखी से आने वाला मार्ग मिल जाता है। 

यदि किसी को ज्वालामुखी जाकर धर्मशाला जाना हो गोपीपुर से अलग होकर फ़िर इस जगह इसी मार्ग में मिलना होगा। जहाँ यह दोनों मार्ग मिलते है उस मोड़ से आगे कुछ किमी चलते ही उल्टे हाथ पठानकोट जोगिन्द्रनगर रेलवे लाइन दिखाई देने लगती है। यहाँ पर ज्वालामुखी रोड़ नामक रेलवे स्टेशन भी है। अगर पठानकोट से इस रेल में बैठकर आ रहे है तो यहाँ उतरना होगा यहाँ से ज्वालामुखी पहुँचने के लिये मात्र 20 किमी की दूरी बस में तय करनी होगी। आगे चलकर काँगड़ा रेलवे स्टेशन के करीब से होकर निकलना पड़ा। यह सड़क आगे बढ़ते हुए मटौर नामक स्थल पर पहुँचती है मटौर पठानकोट-मन्ड़ी हाइवे पर स्थित है। यहाँ कुछ दूर इस हाइवे पर चलने के बाद हमारी बस धर्मशाला के लिये सीधे हाथ मुड़ जाती है। राकेश ने बताया कि हमें धर्मशाला से मात्र 6 किमी पहले सकोह अपर में उतरना है। 

वहाँ क्यो? वहाँ राकेश ने एक कमरा किराये पर लिया हुआ है जो साल में लगभग 333 दिन बन्द रहता है। कुछ देर रुककर धर्मशाला की ओर चलेंगे। मकान मालिक को कई महीने से रुका हुआ कमरे का किराया भी दे देंगे। अरे हाँ जब हमारी बस ने कांगड़ा में प्रवेश किया था तो उस समय एक जरुरी बात बतानी तो याद ही नहीं रही। जब हमारी बस ने कांगड़ा में प्रवेश किया था तो उस समय बारिश शुरु हो गयी। दिल्ली से हमें बारिश नहीं मिली। लेकिन मंजिल नजदीक आते ही बारिश भी शुरु हो गयी।

बारिश अभी हल्की-हल्की ही थी इसलिये राकेश के कमरे में पहुँचकर कुछ देर बैठे रहे। अगर बारिश तेज हो गयी तो यही अटक जायेंगे। राकेश के कमरे पर फ़्रेश होकर हमने एक बार फ़िर अपना सामान उठाया और इस उम्मीद में कमरा छोड़ा कि यदि ऊपर वाला कही है तो बारिश जरुर रुकेगी।  धर्मशाला के लोकल बन्दों ने बताया कि यहाँ बारिश कई दिनों से लगातार जारी है थोड़ी बहुत देर रुक कर फ़िर चालू हो जाती है। हमें पूरी उम्मीद थी कि मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही साबित होगी। कमरे से बाहर आते ही सामने सड़क है यहाँ खड़े भी नही हुए थे कि धर्मशाला जाने वाली बस आ गयी, अभी धर्मशाला केवल 6 किमी दूर रह गया था। बस में घुसते ही जोरदार बारिश शुरु हो गयी। यह अच्छा हुआ कि धर्मशाला में जहाँ बस से सभी सवारियाँ उतरती है वहाँ पूरी सड़क एक लेंटर से ढक दी गयी है। अगर लेंटर नहीं होता तो किसी का भी बिना भीगे बस से बाहर आना सम्भव नहीं होता। (यात्रा अभी तो शुरु ही हुई है।) 



8 टिप्‍पणियां:

  1. राम राम जी, चलो एक और यात्रा की शुरुआत हुई. एक से एक नज़ारे देखने को मिलेंगे. धन्यवाद.

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  2. नए लैपटॉप की बहुत बहुत बधाई. संदीप जी आप के पास कैमरा कौन सा हैं...

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  3. संदीप जी कालकाजी और कमलानगर की ट्रैकिंग के सामान की दुकानों के नाम व पते बताये तथा आपने किस दुकान से सामान लिया ये भी बताने की किरपया करे | क्या सामान की क्वालिटी व दाम वाजिब थे|

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  4. चल पडो एक नई यात्रा पर जाट देवता व मनु भाई के साथ ओर सन्दीप भाई ये राकेश जी वोही हे जो आपके साथ किन्नौर कैलाश की यात्रा मे सगं गए थे.

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  5. Chaudhary sahab Nili pari ko 7 year ho gaye, aaj pata laga.....bhai budhi hoo gayi hogi.. ab to apne chugal se azad kar dou,bechari ko..Dharamshala se karrari gaun post kaa intzaar hai.todha jaldi post karna,,Dhanyabaad...

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  6. Bike boodhi ho gai tho kya hua uska DIL tho abhi bhi jawaan hai sanjdeep bhai ki taraha....

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  7. धर्मशाला में तो बिन मौसम बारिश होती है और लगातार होती है जब हम गए थे तो बारिश के दिन भी नहीं थे फिर भी इतनी तेज बारिश थी कि सामने कार वाले को कुछ नज़र नहीं आ रहा था फिर आप लोग तो बारिश के मौसम में गए थे भला बारिश कैसे नहीं होती।

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