करेरी-कांगड़ा-धर्मशाला यात्रा के लिंक नीचे दिये है।
01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
05- धर्मशाला के चाय बागान के बीच यादगार घुमक्कड़ी।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान Back to Delhi
01- आओ करेरी झील धर्मशाला देखने चले।
02- धर्मशाला से करेरी गाँव की ट्रेकिंग भयंकर बारिश के बीच।
03- करेरी गाँव के शानदार नजारे, और भूत बंगला
04- धर्मशाला की ड़ल लेक।
06- कुनाल पत्थरी माता मन्दिर, शक्ति पीठ माता के 52 पीठ में से एक।
07- नगरकोट कांगड़ा का मजबूत दुर्ग / किला
08- मैक्लोड़गंज के भागसूनाग स्विमिंग पुल के ठन्ड़े पानी में स्नान Back to Delhi
KARERI-KANGRA-DHARAMSHALA-03
करेरी गाँव की लड़कियाँ अपनी चिता में स्वाहा हो गयी। हम करेरी गाँव की ओर बढ़ने लगे। इस पुल से करेरी जाने के दो मार्ग है। पहला मार्ग पुरातन पैदल पगड़न्ड़ी वाला मार्ग ही है। जौंक के आतंक के कारण हम पगड़न्ड़ी वाले मार्ग पर जाने से बचना जा रहे थे। पगड़न्ड़ी वाला मार्ग आगे जाकर सड़क वाले मार्ग में मिल जाता है जहाँ एक दर्रे नुमा जगह से दोनों मार्ग फ़िर से अलग हो जाते है। सड़क वाला मार्ग लगभग दो किमी का है जबकि पगड़न्ड़ी वाला मार्ग आधा किमी के आसपास तो होगा ही। सड़क मार्ग पर जौंक मिलने की सम्भावना नहीं के बराबर थी लेकिन हम सड़क पर भी हर थोड़ी दूर में अपने पैरों को देख रहे थे कि कोई चाची चिपकी तो नहीं?
सड़क मार्ग पर आसानी से चलते हुए दो किमी कब पार हुए? पता नहीं चल पाया। इन दो किमी को पार करने में चढ़ाई हल्की-हल्की थी। सड़क किनारे दो तीन घर भी दिखायी दिये। सड़क किनारे एक जगह ऊपर से कुछ लोग आते हुए मिले। वह बरसाती पानी आने वाले मार्ग से नीचे उतर रहे थे उनसे पूछा कि जहाँ से आप आ रहे हो क्या यह पगड़न्ड़ी ऊपर जाकर सड़क में मिल जाती है? उन्होंने हाँ कहा तो मन में लालच आया कि शार्टकट से चलते है जल्दी पहुँच जायेंगे। सबने कहा, क्या जाट भाई सड़क पर चलने में मजा तो आ रहा है? लगता है कि आपको आफ़त लेना ज्यादा पसन्द है, अच्छा भाई चलते रहो।
सड़क मार्ग जब नीचे से आने वाली पगड़न्ड़े में मिला तो नीचे से कुछ तीन-चार बन्दे आकर आगे चलने लगे। हमने उनसे पूछा कि हम आगे करेरी तक इसी सड़क से जाये या पगड़न्ड़ी से जाना बेहतर रहेगा। उन्होंने कहा, पहले आप सामने वाले मोड़ तक पहुँचो। वहाँ जाकर आपको अच्छी तरह समझ आ जायेगा कि करेरी तक कैसे जाना चाहिए? सामने ही मोड़ था मोड़ पर पहुँचते ही देखा कि सड़क वाला मार्ग वहाँ से सीधे हाथ मुड़कर आगे चक्कर काटता हुआ निकल गया है। गांव वालों ने बताया कि पगड़न्ड़ी वाला मार्ग, यहाँ इस दर्रे नुमा मोड़ से नीचे की ओर सामने दिखने वाले गांव से होकर करेरी चला जाता है। अब सामने देखो जो पहाड़ दिख रहा है उसके ठीक ऊपर करेरी रेस्ट हाऊस बना है। ध्यान से देखो तो रेस्ट हाऊस दिख भी जायेगा।
सामने दिख रहे पहाड़ पर चढ़ने के लिये एक किमी से ज्यादा की भयंकर चढ़ाई थी। यह चढ़ाई ठीक वैसी ही थी जैसी उतराई हम अभी दो घन्टे पहले उतर कर नीचे नदी किनारे दुकानों तक पहुँचे थे। सड़क वाला मार्ग लगभग 7-8 किमी लम्बा लग रहा था। जबकि पगड़न्ड़ी वाला मार्ग दो किमी के आसपास रहा होगा। हमने चढ़ाई से मुकाबला करने का निर्णय कर लिया। इस मोड़ से आधा किमी तक हल्की-फ़ुल्की ढलान ही थी जिसपर चलने में मजा आ रहा था। अरे हाँ, पुल से पहले रुककर जहाँ हमने अपने शरीर से जौंके हटायी थी वहाँ से टैन्ट मैंने ही उठाया हुआ था। दर्रे नुमा जगह से आगे आधा किमी किमी चलने के बाद एक गाँव आया था। हमारे साथ चल रहे बन्दे इसी गाँव के बन्दे थे, वे अपने घरों में घुस गये। हम आगे चलते रहे।
इस गाँव से आगे निकलते ही बना हुआ एक खाली कमरा दिखायी दिया। बारिश की बून्दे कुछ देर तक कम हो गयी थी लेकिन गाँव पार करते ही बारिश फ़िर तेज हो गयी। खाली कमरा देखकर हम उसके बरामदे में विश्रान करने रुक गये। मैंने कहा यहाँ तक बैग मैं लेकर आया हूँ अब यहाँ से आगे करेरी तक मैं टैन्ट को हाथ भी नहीं लगाऊँगा। अब बची हुई डेढ किमी की दूरी तक तुम तीनों को टैन्ट लेकर जाना पडेगा। मरते क्या ना करते। पिछले तीन किमी से मैं अकेला टैन्ट उठाकर ला रहा था अब उनके एक अकेले के हिस्से मात्र आधा किमी ही टैन्ट उठाना था। वो अलग बात थी कि जोरदार चढाई भी अभी आने वाली थी।
हम उस खाली कमरे के बरामदे में काफ़ी देर तक बैठे रहे। आराम करने के बाद आगे चल दिये आगे जाने पर दो पगड़न्ड़ी मिल गयी। तभी करेरी गाँव की दो लड़कियाँ उधर से निकली। अपने राकेश भाई ने उनसे पूछा कि सामने वाले पहाड़ पर जाने के लिये इनमें से कौन सी पगड़न्ड़ी से जाना उचित रहेगा। दोनों लड़कियाँ बोली, चलो हमारे साथ, हम उस पहाड़ पर ही जा रही है। आप वहाँ जाकर क्या करोगी? हमारा घर है हम अपने घर जा रही है। आप बताओ, आप वहाँ क्यों जा रहे हो? घूमने आये है। उन लडकियों के पीछे-पीछे चलने लगे। राकेश उनके साथ-साथ आगे चल रहा था। मैं मनु व उसके दोस्त/रिश्तेदार के साथ-साथ चल रहा था।
थोड़ा दूर चलते ही सामने एक नदी आ गयी। लडकियाँ उस नदी को पार करने के लिये नदी किनारे की ओर बढ़ने लगी। वहाँ दूर एक पुल भी दिखायी दे रहा था लेकिन लडकियाँ पुल से काफ़ी पहले ही नदी में घुसने का स्थान देखने लगी। भारी बारिश के कारण आज नदी पार करने का स्थान नहीं मिल पाया। लडकियाँ बोली, आज पानी ज्यादा है चलो पुल से होकर ही उस पार जाना होगा। करेरी की दो लड़कियाँ हमारे साथ अपने गाँव तक चलती रही।
जब पुल पार कर चढ़ाई शुरु हुई तो हमने आह के साथ एक गहरी साँस ली। अब सामने बेहद तीखी चढ़ाई थी। जिस पर बनी पक्की सीढियों के सहारे हम ऊपर चढ़ते चले गये। गाँव की लडकियाँ काफ़ी मजाकियाँ स्वभाव की थी जो एकदम दोस्ताना माहौल में हमसे बातचीत करती हुई जा रही थी। उन लड़कियों के पिता व भाई करेरी आने-जाने में कुली व गाइड़ का कार्य करते है। उनका नाम याद नहीं है। आधी चढ़ाई पार करने के बाद राकेश को टैन्ट का भार सौंप दिया गया। पहाड़ की चढ़ाई समाप्त होने के करीब थी कि अचानक पहाड़ के उल्टे हाथ गहराई में माता का एक मन्दिर दिखायी दिया। वहाँ ढेर सारे त्रिशूल व झन्ड़े लगाये हुए थे।
यहाँ से आगे जाने पर थोड़ी दूर घने जंगलों से होकर बढ़ना पड़ा। बारिश की बून्दे हमारी चढ़ने की गति के हिसाब से घटती-बढ़ती जाती थी। जब पहाड़ की चढ़ाई समाप्त हुई तो करेरी गाँव दिखायी देने लगा। हमने गाँव में प्रवेश किया। गाँव की दोनों लडकियाँ हमारे साथ ही थी, उन्होंने बताया कि आपका ठिकाना गेस्ट हाऊस गाँव के ऊपरी हिस्से में है। पहाडों में एक गांव बहुत दूर तक फ़ैला हुआ रहता है। वे लडकियाँ हमारे साथ गेस्ट हाऊस तक जाने वाले मार्ग तक आयी, वहाँ से आगे का मार्ग दिखायी दे रहा था। हमें आगे का मार्ग दिखाकर वे दोनों लड़कियाँ अपने घर लौट गयी। कालेज में पढ़ने वाली उन दोनों लड़कियों में अतिथि के लिये इतनी भावना देखकर मन प्रसन्न हुआ कि कम से कम पहाड़ में तो इन्सानियत अभी जिन्दा है। शहरों में लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो, गाँव में ऐसा नही है।
थोड़ी दूर मक्का के खेतों से होकर निकलना पड़ा। मक्का के खेतों को पार करते हुए देखा कि खेतों में मक्का की तैयार फ़सल को जगह-जगह से तहस-नहस किया गया था। यह काम भालू का लग रहा था लेकिन गाँव वालों ने बताया कि यहाँ बन्दर बहुत है उन्होंने ही मक्का की फ़सल का बुरा हाल किया है। कमाल हो गया, गाँव वाले कह रहे थे कि यहाँ बन्दर बहुत है लेकिन मुझे वहाँ एक भी बन्दर दिखायी नहीं दिया था। हो सकता है बन्दर हम लंगूरों की चौकड़ी को देखकर पहले ही भाग गये हो। कच्ची सड़क रेस्ट हाऊस तक बन चुकी थी। निकट भविष्य में यह सड़क पक्की सड़क में भी बदल जायेगी। बाद में हमने देखा कि जिस पहाड़ की ओर से करेरी झील जाया जाता है उस ओर से भी एक कच्ची सड़क बनती हुई इस सड़क में मिलाने के लिये काम जारी था। हो सकता है अब तक कार्य पूरा भी हो गया हो। दूसरी ओर की सड़क हिमाचल के शाहपुर नमक स्थान से शुरु होती है। जबकि करेरी की ओर वाली सड़क धर्मशाला की ओर से शुरु होती है। सड़क बन जाने पर अपने वाहन से यहाँ तक पहुँचना बहुत आसान हो जायेगा।
करेरी गाँव पहुँचकर सबसे पहले गेस्ट हाऊस पहुँचे। गेस्ट हाऊस में उस समय कोई नहीं था गेस्ट हाऊस के हर दरवाजे पर ताला पड़ा हुआ था। शुक्र रहा कि गेस्ट हाऊस की बाहरी दीवार मात्र लकड़ी के इतने ऊँचे फ़ट्टे थे जिनके ऊपर से होकर हम उसके अन्दर प्रवेश पा गये। हमने मुख्य गेस्ट हाऊस के अलावा उसके पीछे बने एक अन्य कमरे को भी देखा, लेकिन वह भी बन्द मिला। अपना एक साथी है विपिन गौर, जो कुछ दिन पहले ही यहाँ आया था। विपिन का मोबाइल नम्बर मेरे पास था मैंने मोबाइल लिया और विपिन को फ़ोन मिलाया। विपिन ने बताया कि यहाँ का संचालक इस गाँव का रहने वाला सुभाष चन्द नाम का प्राणी है उसने उसका मोबाइल नम्बर भी दे दिया। सुभाष को फ़ोन लगाया गया लेकिन उसका फ़ोन बन्द मिला।
अभी शाम के 5 बजे थे इसलिये चिंता वाली बात नहीं थी। धीरे-धीरे घन्टा भर बीत गया लेकिन सुभाष का मोबाइल बन्द ही रहा। अगर ऐसा ही रहा तो रात बाहर ही बितानी होगी इसके लिये हमें टैन्ट लगाना होगा। टैन्ट को कहाँ लगाया जाये। यहाँ तो चारों ओर बारिश के कारण मिट्टी कीचड़ बनी हुई थी। रेस्ट हाऊस के आँगन में अच्छी घास थी लेकिन घास में कीचड़ थी। हमारे पास रेस्ट हाऊस के कमरों के सामने बने चददर के बरामदे में टैन्ट लगाने के अलावा कोई उपाय नहीं था। हमने अपना टैन्ट लगा लिया। रेस्ट हाऊस के बराबर में एक दुकान थी हम उसके पास पहुँच गये। दुकान वाले से रेस्ट हाऊस के बारे में पता करना चाहा, उसने कहा कि उसके पास उसका मोबाइल नम्बर है हमने उसका नम्बर बताया तो दोनों नम्बर एक ही निकले। दुकान वाले ने ट्राई किया लेकिन ससुरा उसका मोबाइल अब भी बन्द मिला।
जब तक सुभाष आता या मिलता, तब तक हमने अगले दिन के लिये हमारे साथ पोर्टर व गाइड़ बनकर जाने वाले स्थानीय बन्दे के बारे में जानकारी ली। दुकान वाले ने एक बन्दे को बुलवा लिया। बाद में सुभाष का मोबाइल भी मिल गया। उसने कहा कि वह थोड़ी देर में पहुँच रहा है। जिस बन्दे ने हमारे साथ करेरी झील, उससे आगे लमड़ल नामक झील होकर चम्बा की ओर हड़सर वाली घाटी में चलने की बात की थी, वह हमसे प्रतिदिन के 500 रु माँग रहा था। हमने उससे टैन्ट और खाने का सामान लेकर जाने तय कर लिया था। टैन्ट व तीन दिन का खाने का सामान मिलाकर 12-13 किलो वजन हो रहा था। पहाड़ी बन्दों के लिये इतना वजन लादकर पहाडों पर चढ़ना साधारण बात है। जबकि हम जैसे बन्दों को इतने वजन के नाम से ही पसीने छूटने लगते है। उस लड़के ने, जो हमारे साथ सुबह आगे की यात्रा पर जाने वाला था उसने अगले तीन दिनों के भोजन करने लायक जरुरी सामान खरीदवा कर हमारे पास रखवा दिया।
घन्टे भर बाद सुभाष भी आ गया। सुभाष को अपनी कल की योजना के बारे में बताया। उसने कहा कि आपके साथ जाने वाले बन्दे का प्रबन्ध मैं करवा देता हूँ। सुभाष जी कल जाने वाले बन्दे का व भोजन सामग्री का प्रबन्ध हो चुका है। आप यह बताईये कि आज रात का खाना व कल सुबह के लिये 8 पराँठे बनवा सकते हो कि नहीं। सुभाष ने कहा कि अब का खाना तो मैं बना दूँगा लेकिन कल सुबह आप लोग जल्दी जाने के लिये कह रहे है इतनी जल्दी पराँठे तो मेरे घर पर ही बन सकते है। घर पर ही बनवा देना। हम सुबह 6 बजे यहाँ से निकल जायेंगे। ठीक है आपको सुबह 6 बजे पराँठे मिल जायेंगे। सुभाष ने रात का खाना बना दिया था। रात का खाना खाकर हम सोने के लिये अपने टैन्ट में घुस गये।
अभी नीन्द आयी नहीं थी रात के लगभग 10 बजे होंगे कि मेरे मोबाइल पर उसी लड़के के मोबाइल से कॉल आयी जिसने कल सुबह हमारे साथ जाने की बात की थी। फ़ोन सुना तो लड़के की जगह उसके बापू का फ़ोन था। बापू किसी का भी हो अपनी औलाद की चिन्ता में रहता है। उसके बापू ने कहा कि आपने यहाँ आने में देखा ही है कि यहाँ तक बारिश में पहुँचना कितना मुश्किल रहा है। हाँ, मैं समझ गया कि उसका बाप असली बात कहने से पहले भूमिका बना रहा है। मैंने कहा, जो बात कहनी है साफ़-साफ़ कह दो। उसके बापू ने कहा कि ऊपर मौसम नीचे से भी खराब है। बीच में बरसाती नाले पडेंगे। उन्हे पार करना खतरे से खाली नहीं है। दो दिन पहले बरसात के कारण मुख्य पगड़न्ड़ी खिसक गयी है जिस कारण थोड़ा सा मार्ग जंगल में से होकर जाना पडेगा। यदि आपको करेरी तक ही जाना है तो मेरा लड़का चल सकता है उससे आगे बारिश के मौसम में मैं लड़क्र को नहीं जाने देना चाहता। अच्छा ठीक है, यदि हम करेरी जायेंगे तो फ़ोन कर देंगे।
मेरी बात सुनकर बाकि साथी बोले अब क्या होगा? मैंने कहा, होगा क्या, यदि कोई स्थानीय बन्दा हड़सर तक जाने को तैयार होगा तो मैं करेरी जाऊँगा, अन्यथा मैं यही से वापिस जा रहा हूँ। मनु व राकेश बोले जाट भाई कम से कम करेरी तक तो चलो जब यहाँ तक आये है तो, मैंने कहा, नहीं मैं केवल करेरी के चक्कर में नहीं आया हूँ। मैं आप लोगों की यहाँ प्रतीक्षा कर लूँगा। आप लोग जाओ। मैं जाऊंगा तो चम्बा की तरफ़ से, नहीं तो यहीं से वापसी। मुझे करेरी गाँव में छोड़कर वे करेरी झील जाने को तैयार नहीं थे। आखिरकार निर्णय हुआ कि सुबह मौसम देखेंगे उसके बाद मौसम साफ़ हुआ तो ऊपर नहीं तो सभी वापिस चलेंगे।
बरसात कराने वाले देवता ने मेरी बात मानी, रात भर बारिश होती रही। सुबह टैन्ट से बाहर निकल कर मौसम का हालचाल पूछा। मौसम ने कहा जाट देवता की बात मानने में ही भलाई है। यही से वापिस चले जाओ। सकुशल रहोगे तो फ़िर आ जाओगे। मुझे छोड़कर किसी के चेहरे पर खुशी नहीं थी। सुबह 6 बजे सुभाष का लड़का हमारे लिये पराँठे लेकर आ गया। हमने बिना अचार व सब्जी के वे पराँठे सटक लिये। हमारे पास खाने का जो सामान था (1 kg प्याज छोड़कर) उसे सुभाष को दे दिया। सुभाष का रात के खाने व सुबह के पराँठे का हिसाब कर दिया गया। सुभाष ने वापिस जाने का कारण पूछा। कुछ नहीं। मौसम ठीक नहीं है व करेरी गाँव के बन्दों में हिम्मत नहीं है।
सुबह चलने से पहले आसपास के काफ़ी फ़ोटो लिये गये। जब वहाँ से चलने लगे तो मौसम एकदम साफ़ था बून्दाबान्दी भी नहीं हो रही थी। गेस्ट हाऊस से चलते ही घास पर उतरते हुए मनु धड़ाम से गिरा। मैंने सोचा किसी का सामान गिरा है। मुड़कर देखा कि मनु खड़ा होने की कोशिश कर रहा है अभी मनु पूरा खड़ा भी नहीं हो पाया था कि फ़िर से फ़िसल गया। दूसरी बार सम्भल कर उठना चाहा तो अबकी बार हाथ भी फ़िसल गया। मनु ढलान वाली घास पर फ़िसल कर 7-8 फ़ुट सरक चुका था। जहाँ से मनु निकल रहा था उसे फ़िसलता देख हमने घूम कर आना ही बेहतर समझा। फ़िसलने से मनु की छतरी को गम्भीर आघात पहुँचा उसने खुलने से मना कर दिया। मनु का पिछवाड़ा तीन बार गिरने से भी ज्यादा मिट्टी से लथपथ नहीं हुआ था कारण मनु घास पर फ़िसला था श्रीखन्ड़ यात्रा में दर्शन करके वापसी में नीरज भी ऐसी ही घास पर धड़ाम से फ़िसला था।
करेरी गाँव से नीचे उतरते समय पक्की सीढियों पर भी सभी बेहद सावधानी से उतर रहे थे। सुबह-सुबह मनु गिरा जरुर था लेकिन शुक्र रहा कि उसे कोई खरोच तक ना आयी। करेरी गाँव से नदी वाले बड़े पुल तक पहुँचने में बारिश ने ज्यादा तंग नहीं किया था। लेकिन बड़े पुल के बाद पक्की सड़क तक बारिश ने हमसे जमकर बदला लिया था। कल जिन दो लड़कियों की चिता जलाई गयी थी आज उनकी जगह सिर्फ़ राख बची दिखायी दी। हमें जोर की प्यास लगी थी पानी पीने के लिये स्कूल में घुस गये। (यात्रा के आगामी लेख में ड़ललेक की सैर करायी जायेगी।)
सामने वाले पहाड़ के ऊपर करेरी बसा हुआ है। |
करेरी बंग्ला। रेस्ट हाऊस |
करेरी गाँव से दिखती सामने वाली घाटी |
चिता राख में बदल चुकी है। |
अच्छा निर्णय लिया आपने
जवाब देंहटाएंखूबसूरत...यात्रा वृतांत...
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत...यात्रा वृतांत
जवाब देंहटाएंबरसात के कारण प्रकृति अपने भरपूर जवानी पर थी और चारो तरफ हरियाली थी फोटू देखकर मजा आ गया।
जवाब देंहटाएंwo girna bhi kya girna tha
जवाब देंहटाएंpani ne sara maza hi kharab kar diya ...:(
जवाब देंहटाएंओर कभी करेरी झील
जवाब देंहटाएंसुंदर वृतांत
ओर कभी करेरी झील
जवाब देंहटाएंसुंदर वृतांत