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रविवार, 21 जुलाई 2013

The Taj Mahal ताज महल/तेजो महालय

AGRA-MATHURA-VRINDAVAN-01                             SANDEEP PANWAR 
भारत को दुनिया में लोग सिर्फ़ दो ही कारणों से जानते है पहला कारण ताजमहल उर्फ़ तेजो महालय (शिवालय) दूसरा कारण बाँस की तेजी से दिन रात बढ़ती हुई भारत की आबादी है जो आगामी कुछ वर्षों में दुनिया में किसी भी देश से ज्यादा होने जा रही है। इन्दौर के पास रहने वाले अपने भ्रमणकारी दोस्त मुकेश भालसे सपरिवार आगरा-मथुरा की यात्रा पर आ रहे थे। आगरा में ही रहने वाले एक अन्य भ्रमणकारी दोस्त रितेश गुप्ता भी कई बार कह चुके थे कि संदीप भाई कभी आगरा आओ ना! तो अपुन का सपरिवार आगरा मथुरा घूमने का कार्यक्रम बन ही गया। मैं अकेला एक बार कोई चार साल पहले भी आगरा का ताजमहल व लालकिला देखकर आ चुका था।




अक्टूबर 2012 की बात है जब यह यात्रा करने का मौका लगा था। दिल्ली से आगरा जाने के लिये वैसे तो ढ़ेर सारी ट्रेन है जो 3-4 घन्टे में ही आगरा पटक देती है। लेकिन दिल्ली से आगरा व ग्वालियर जाने के लिये ताज एक्सप्रेस से बेहतरीन गाड़ी कोई और नहीं है। दिल्ली से आगरा तक मात्र 70 रुपये ही किराया लगता है, वैसे इस ट्रेन में सिर्फ़ सीटिंग वाली सुविधा ही है। अगर कोई आगरा तक भी लेटकर जाने का इच्छुक है तो उसका इस ट्रेन में जाना बेकार है। इस ट्रेन की टिकट बुंकिग सिर्फ़ 30 दिन पहले ही खुलती है। मैंने लगभग 20-22 दिन पहले घर से ही टिकट बुक कर ली थी। वैसे मैंने वापसी के टिकट भी उसी दिन बुक कर दिये थे लेकिन उन्हें बाद में कैंसिल करना पड़ा था क्योंकि वापसी में मथुरा का कार्यक्रम भी बनाना पड़ा।

दिल्ली के निजामुददीन से यह ट्रेन सुबह 07:10 मिनट पर चलती है इसलिये निजामुददीन पहुँचने के लिये घर से घन्टा भर पहले निकलना पड़ता है। सुबह सुबह बस कम ही चलती है इसलिये ऑटो में बैठकर हम स्टेशन पहुँचे। ट्रेन प्लेटफ़ार्म पर खड़ी हुई थी, हम भी अपना डिब्बा (कोच) देखकर अपनी सीट पर विराजमान हो गये। ट्रेन अपने सही समय पर प्लेटफ़ार्म छोड़ कर आगरा के लिये चल पड़ी। मथुरा पार करते ही आगरा में रहने वाले रितेश गुप्ता को फ़ोन कर सूचित कर दिया गया कि हमारी ट्रेन घन्टे भर में आगरा पहुँचने वाली है। रितेश भाई ने बताया कि वह भी खाना खाकर ताजमहल के लिये निकलने वाले है।

आगरा कैन्ट (छावनी) स्टेशन पहुँचते ही हमने ट्रेन को बाय-बाय कह दिया था। स्टेशन से बाहर निकलते ही ऑटो वाले ऐसे पीछे पड़ जाते है जैसे वे मधु मक्खी हो और हमने उनका छत्ता छेड़ दिया हो। पहली वाली यात्रा में मैं सीधा बिजली घर पहुँचा था। बिजलीघर लाल किले के नजदीक वाले स्टैन्ड़ को बोला जाता है। यात्री के मुँह से बिजलीघर निकलते ही ऑटो वाले समझ जाते है कि यह बन्दा स्थानीय है बाहर से घूमने नहीं आया है। हमें इस बार पहले लाल किला नहीं जाना था इसलिये ताज महल जाने के लिये दो-तीन ऑटो वालों से बात की लेकिन वे 80-90 रुपये माँग रहे थे। जबकि मैं उन्हे 50 रुपये बोल रहा था आखिरकार एक ऑटो वाला 60 रुपये में मान गया और हम ताज महल के लिये चल दिये।

ऑटो वाले ने हमें ताजमहल के पश्चिम दिशा में बने पार्क वाले स्टैन्ड़ पर उतार दिया। यहाँ से ताजमहल का प्रवेश दरवाजा लगभग 800 मीटर दूर रह जाता है। बच्चे साथ थे इसलिये यह दूरी तय करने के लिये बैट्री से चलने वाले रिक्शा में बैठ गये। ताज महल परिसर से ठीक पहले बैट्री रिक्शा से हम उतर गये। हम सीधा टिकट वाली लाइन में लगने जा पहुँचे। रितेश भाई को फ़ोन करके, अपने ताजमहल पहुँचने की सूचना दी और साथ ही यह भी पता किया कि वे कितने लोग आ रहे है? ताकि जब तक वे आये मैं उनके टिकट लेकर रख लू, नहीं तो वे भी टिकट लेने के लिये लाइन में लगेंगे ही, इससे बेफ़ातू समय ही बर्बाद होगा।

रितेश ने बताया कि वे मुकेश भाई के परिवार में 6 तथा मेरे परिवार से 5 सदस्य आ रहे है। इस तरह मैंने उनके लिये व अपने लिये कुल 13 टिकट ले लिये थे। रितेश की बातों से लग रहा था कि वे अभी कुछ देर से आयेंगे इसलिये मैं पत्नी व बच्चों को पहले ही ताजमहल में अन्दर भेज दिया था ताकि तब तक वे कुछ ना कुछ तो देख ही ले। लगभग घन्टा भर की प्रतीक्षा के बाद दोनों परिवार आते दिखायी दिये। जिसके बाद हम ताज महल देखने चल दिये।

अन्दर प्रवेश करने से पहले ही सबसे मुलाकात व परिचय हुआ सबके टिकट उनके हाथ में सौंप कर हम अपनी तलाशी देते हुए अन्दर चले गये। पिछली बार जब मैं 5-6 साल पहले यहाँ आया था तो उस समय मोबाइल तक अन्दर ले जाना मना था। मैंने बाहर ही एक जगह मोबाइल जमा कराया था, टिकट मिलने का स्थान भी बदल गया था पहले टिकट ताज महल वाली दीवार पर बनी खिड़की से ही मिलता था। अब वहाँ से लाइन लगायी जाती है उसके लिये लोहे के पाइप लगाये हुए है। जिनके बीच से होकर हम अन्दर गये थे।

अन्दर जाते ही देखा कि जाट की/अपुन की श्रीमति जी घन्टा भर प्रतीक्षा करते-करते ऊब चुकी थी, इसलिये सबसे पहले यही बोली कि हो गयी फ़ुर्सत आने की। अब उसे क्या कहता कि मेरे दोस्त इतने आलसी है कि पहले फ़ोन करने पर भी समय से नहीं पहुँचते है। खैर गुस्सा जल्दी ही फ़ुर्र हो गया क्योंकि मुकेश व रितेश का परिवार भी तब तक हमारे पास आ गया था। यहाँ पर एक बात बड़ी जबरदस्त रही कि मेरी पत्नी की लम्बाई लगभग मेरे बराबर ही है मेरी लम्बाई 170 सेमी है। पत्नी भी 169 सेमी से कम नहीं है। जब सभी का फ़ोटो लेने की बात आयी तो रितेश व मुकेश की पत्नियाँ मेरी पत्नी के साथ फ़ोटो खिचवाने में हिचक रही थी। उनका कद मेरी पत्नी के सामने बहुत छोटा दिख रहा था ऐसा नहीं है कि उनका कद बहुत कम है उनका कद भी जहाँ तक मेरा अंदाजा है कि 5 फ़ुट 2/3 इन्च से कम नहीं रहा होगा।

फ़ोटो सेसन के बाद ताज के दीदार करने चल दिये। ताज महल की पहली झलक जिस बड़े से दरवाजे से होती है वहाँ से फ़ोटो लेने की होड शुरु हो जाती है दुनिया का तो पता नहीं लेकिन भारत में ताजमहल ऐसी जगह है जहाँ सबसे ज्यादा फ़ोटो लिये जाते है इसके बाद मुम्बई का रेलवे स्टेशन छत्रपति शिवाजी टर्मिनल का स्थान आता है उसके फ़ोटो लेने में भारत में दूसरा स्थाना आता है। ताज महल तक पहुँचने से पहले लगभग आधा किमी लम्बा पार्क भी पार करना होता है। इस पार्क की सुन्दरता देखते हुए यात्री ताज महल को भी निहारते हुए चलते रहते है। ताजमहल के मुख्य भवन में प्रवेश करने से पहले प्रत्येक यात्री को अपने जूते या तो उतारने होते है या जूते पर कवर चढ़ाकर जाना होता है।

पहले तो हम भी जूते पर कवर लगाकर ही जाना चाहते थे लेकिन हमें कवर दिखायी नहीं दिये। आखिरकार हमने एक जगह अपने जूते लावारिश हालत में रख दिये। जूते उतारकर हम आगे बढ़े। काफ़ी घूमाकर यमुना की तरफ़ से ताज का लगभग पूरा चक्कर लगाकर ही मुख्य भवन में प्रवेश कराया जाता है। शुक्र है उस समय बहुत ज्यादा धूप नहीं थी अन्यथा वहाँ नंगे पैर उस फ़र्श पर बुरा हाल हो जाता। ऐसा पिछली यात्रा का सबक है जब मैं अप्रैल माह में यहाँ आया था। ताज महल के नजदीक पहुँचते ही ताज महल की बारीक चित्रकारी दिखायी देने लगती है।

ताजमहल में कोई 5-10 नहीं बल्कि सैंकडों चिन्ह इस बात का जीता जागता उदाहरण है कि ताजमहल इस्लामिक रीति रिवाज से बनायी गयी कब्र नहीं है। ऐसे कई ठोस सबूत अभी तक बचे हुए है जो इसे यह साबित करने के बहुत है कि यह शिव मन्दिर तेजो महालय को जबरन कब्जा कर बनायी गयी कब्र है। ठीक वहाँ जहाँ आज कब्र है एक शिवलिंग हुआ करता था शिव को बूंद-बून्द करके जल टपकाया जाता है यहाँ भी वही कार्य करता हुआ निर्माण किया गया था। हिन्दू धर्म में लगायी जाने वाली कमल व बेल/लताएँ यहाँ आज भी देखी जा सकती है। काशी के प्राचीन मन्दिर में ताज महल से एकदम मिलता जुलता नक्शा बताता है कि इतिहास को आगरा के नाम पर गलत बताया या जानबूझ कर बिगाड़ा गया है।

इतिहास के एक प्रोफ़ेसर/वैज्ञानिक श्री पी एन ओक PN Okh का नाम आपने सुना होगा। उन्होंने ताजमहल पर काफ़ी दिनों तक गहन अध्ययन किया था जिसके बाद उन्होंने फ़ैसला लिया कि ताजमहल मुमताज की कब्र बनाने से सैकडों साल पहले बनाया गया तेजो महालय शिव मन्दिर है। ताजमहल के अन्दर कई तहखाने है जहाँ पर बहुत सारे राज दफ़न किये गये है। आज वे तहखाने बन्द कर दिये है। उन्हे खोलकर/खोदकर देखने से बची-खुची सच्चाई सामने आ सकती है लेकिन प्रो ओक की कई वर्षों की मेहनत के बाद लिखी जाँच पुस्तक को भारत की कथित धर्मनिरपेक्ष कहलाने वाली सरकार ने उसके प्रकाशन पर ही रोक लगवा दी थी। जो किताबे  छापी जा चुकी थी उन्हें जब्त करके गायब कर दिया गया था। जिस तरज त्रिवेन्द्रम के मन्दिर के तहखाने खोले गये है क्या सरकार में हिम्मत है जो यहाँ के तहखाने के दरवाजे खोल सके?

ताजमहल देखने के बाद आगरे का लाल किला देखने की बारी थी। इसलिये हम सब ताजमहल से बाहर आने के बाद लाल किले की ओर चल दिये। कुछ ही देर में हम ताजमहल के बाहर पहुँच चुके थे। अब लालकिला जाने के किसी वाहन/ साधन की जरुरत थी। जिसके लिये वहाँ चलने वाली बैलगाड़ी/ ऊँटगाड़ी वहाँ मौजूद थी। हमने दो ऊँटगाड़ी वालों से बात की क्यों एक गाड़ी में हम सब नहीं जा सकते थे। (क्रमश:) 





अगली पीढ़ी के संभावित घुमक्कड़













आखिरी फ़ोटो मेरा नहीं है, इस यात्रा के कई फ़ोटो रितेश गुप्ता से लिये गये है।

13 टिप्‍पणियां:

  1. इतिहास और भूगोल की समझ रखने वाले सत्य से परिचित हैं, जब मूढ़नीति के बादल हटेंगे, सत्य चमकेगा।

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  2. एक दिन ताजमहल का सच दुनिया सामने आयेगा डॉ० सुब्रह्मण्यम स्वामी ने हाई कोर्ट मे WRIT PETITION डाली हुई है । हाँ और भाई जी छोटी सी यात्रा अच्छी लगी ।

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  3. अच्छी जानकारी दी है आपने, हम तो अभी तक आगरा गए नहीं हैं अगर कभी जाना हुआ तो ताजमहल को गौर से देखेंगे।

    नये लेख : आखिर किसने कराया कुतुबमीनार का निर्माण?

    "भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक" पर जारी 5 रुपये का सिक्का मिल ही गया!!

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  4. ऐतिहासिक धरोहर का खुबसूरत चित्र -सुन्दर प्रस्तुति
    latest post क्या अर्पण करूँ !
    latest post सुख -दुःख

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  5. संदीप भाई,
    सचमुच बड़ी यादगार यात्रा थी यह, आप तथा आपके परिवार के साथ बिताये वे ख़ूबसूरत लम्हे भुलाए नहीं जा सकते। ताज महल पहुँचने में सचमुच हमने बहुत देरी कर दी थी और आपलोगों को बहुत इंतज़ार करवाया था। आज भी वो वाकया याद आता है तो मुझे बहुत बुरा लगता है, फिर भी जब हमलोग वहां पहुंचे तो आपके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी और आप अपने उसी बिंदास अंदाज़ में हम सबसे मिले थे। सच बात है अपना जाट "यारों का यार है"।
    हमारी पत्नियों की तो क्या बात करें जाटनी जी को देखकर तो हमारे भी होश उड़ गए थे, बड़ी लम्बी काया की मालकीन मिसेज जाट सचमुच जाटनी कहलाने का हक़ रखतीं हैं। जूनियर जाट भी कुछ कम नहीं है शरारत, शैतानी और हुडदंग में सबका बाप धरा है।
    कुल मिला कर आपके परिवार से मिलकर बड़ा आनंद आया।

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  6. संदीप भाई,
    सचमुच बड़ी यादगार यात्रा थी यह, आप तथा आपके परिवार के साथ बिताये वे ख़ूबसूरत लम्हे भुलाए नहीं जा सकते। ताज महल पहुँचने में सचमुच हमने बहुत देरी कर दी थी और आपलोगों को बहुत इंतज़ार करवाया था। आज भी वो वाकया याद आता है तो मुझे बहुत बुरा लगता है, फिर भी जब हमलोग वहां पहुंचे तो आपके चेहरे पर शिकन तक नहीं थी और आप अपने उसी बिंदास अंदाज़ में हम सबसे मिले थे। सच बात है अपना जाट "यारों का यार है"।
    हमारी पत्नियों की तो क्या बात करें जाटनी जी को देखकर तो हमारे भी होश उड़ गए थे, बड़ी लम्बी काया की मालकीन मिसेज जाट सचमुच जाटनी कहलाने का हक़ रखतीं हैं। जूनियर जाट भी कुछ कम नहीं है शरारत, शैतानी और हुडदंग में सबका बाप धरा है।
    कुल मिला कर आपके परिवार से मिलकर बड़ा आनंद आया।

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  7. ताज महल का सच बाहर आये तो तब कुछ पता लगे

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