LTC- SOUTH INDIA TOUR 01 SANDEEP PANWAR
यह यात्रा सन 2009 के
दिसम्बर माह में की थी। सरकारी कर्मचारी को चार वर्ष में एक बार पूरे भारते में से
किसी एक जगह सपरिवार आने-जाने का किराया मिलता है। अपने जैसे सिरफ़िरे यदि इन
सरकारी योजनाओं के चक्कर में पड़ने लगे तो फ़िर तो हो ली घुमक्कड़ी। सरकारी यात्रा
चार साल में एक बार हो सकती है जबकि हम जैसे तो साल में कम से कम 6/7 यात्रा तो कर ही ड़ालते है कुछ ऐसे भी मिल जायेंगे जो हर माह किसी ना किसी
यात्रा पर निकल पड़ते है। बस या रेल में किसी जगह होकर आना ही यात्रा नहीं कहलाता
है किसी स्थान पर जाकर वाहन चाहे कोई भी हो (बस, रेल आदि) यदि उस स्थान के स्थल
नहीं देखे तो क्या खाक यात्रा की गयी? ऐसी यात्रा तो दैनिक यात्रा करने वाले वेतन
भोगी कर्मचारी व सामान बेचने वाले भी कर लेते है।
मुझे सन 2009 में नौकरी करते हुए दस वर्ष हो चुके थे
लेकिन मैंने अभी तक सरकारी यात्रा LTC की सुविधा का लाभ अभी तक एक बार भी नहीं उठाया था।
इसलिये सोचा कि चलो अबकी बार सरकारी खर्चे से यात्रा करने का मौका हाथ से जाने क्यों दिया जाये?
सरकारी यात्रा पर जाने पर सबसे बड़ी पाबन्दी यह होती है कि आपको आते समय या जाते
समय किसी एक दिशा से एकदम सीधी वाहन सेवा का लाभ लेना अनिवार्य है। जहाँ तक रेल जाती है
वहाँ तक रेल उसके बाद आगे की यात्रा सरकारी बस से ही करनी पडेगी। अगर निजी वाहन से
यात्रा की तो वह राशि बेकार चली जायेगी। एक दिशा से सीधी यात्रा करने के उपराँत वापसी में भले ही 50 वाहन बदल लो उससे कोई फ़र्क नहीं पडेगा।
चार साल में मिलने वाली इस यात्रा में यह
प्रावधान भी दिया हुआ है कि यदि कर्मचारी के पास यात्रा में टिकट लेने के पैसे
अग्रिम चाहिए तो कुल टिकट का 90% यात्रा से पहले ही टिकट खरीदने के लिये
मिल जाता है। हम दोनों दोस्तों ने टिकट लेने के लिये अग्रिम राशि लेने की सुविधा
का भी लाभ उठाया था। हमें उस समय की टिकट 2410 प्रति सवारी
के हिसाब से आने-जाने के मिलाकर 4820 की राशि एक बन्दे की
मिलाकर सभी यात्रियों का कुल खर्च का 90% पहले ही मिल चुका
था।
LTC सुविधा में एक खास बात और भी है कि यदि
सरकारी कर्मचारी LTC पर जाने का पत्र लिखते समय उसमें 10
days leave encashment लेने की इच्छा का लिखित उल्लेख कर दे तो यात्रा के
बाद कर्मचारी को उसकी जमा EL अवकाश में से 10 दिन काटकर उसका नगद भुगतान कर दिया जाता है हमने यह लाभ भी लिया था। यह लाभ
कुल सरकारी नौकरी में केवल 6 बार ही मिलता है, इस तरह कुल
मिलाकर सरकारी नौकर को रिटायरमेंट तक 360 दिन की छुट्टी का पैसा
मिल जाता है। क्योंकि 300 दिन की EL यदि
कर्मचारी ने जोड़ रखी हो तो (मैंने तो जोड़ रखी है) उसे रिटायरमेन्ट के समय की गणना
के अनुसार वेतन मिल जाता है।
मैंने यात्रा कार्यक्रम बनते समय जाट खोपड़ी खर्च करनी आरम्भ कर दी कि
भारत में सबसे लम्बी राजधानी से दिल्ली से कहाँ तक की यात्रा की जा सकती है? इसके दो हल मिले,
पहला हल दिल्ली से असम के डिब्रूगढ़ तक व दूसरा केरल के तिरुवन्नतपुरम/तिवेन्द्रम
तक ही दिल्ली से सबसे लम्बी राजधानी रेल चलती है। अधिकारी लोगों को तो हवाई जहाज
की सुविधा भी मिलती है जबकि ग्रुप C व D के कर्मचारियों
को रेल सेवा के थर्ड़ वातानुकुलित की यात्रा करने की छूट प्राप्त है। ग्रुप B
के कर्मचारी सेकन्ड़ वातानुकुलित की यात्रा का लाभ लेते है।
मैंने असम व केरल में से केरल वाली
राजधानी से सपिवार यात्रा करने का निश्चय कर, अपने व घरवाली के टिकट बुक कराने का निर्णय लिया।
सन 2009 तक मुझे अन्तर्जाल/नेट के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं थी इसलिये
मैने अपनी केरल से आगे की यात्राओं के टिकट बुक करने के लिये रेलवे समय सारणी पुस्तिका का
लाभ लिया था। मेरे पास जो समय सारणी पुस्तिका उपलब्ध थी वह सन 2007 में
इन्दौर की यात्रा के समय खरीदी गयी थी। उस पुस्तक के कुछ पृष्ट अपने स्थान से गायब
हो गये थे। इसलिये नई समय सारणी लेनी पड़ी।
नई समय सारणी लेने की भी बड़ी मजेदार घटना
हुई कि मेरे साथ काम करने वाले दो तीन बन्दे रेल से कार्यालय आया जाया करते थे
उनमें से एक मनोज दहिया हरियाणा से नरेला स्टेशन से पुरानी दिल्ली तक आया करता था।
उस समय मेरी डयूटी सिविल लाईन क्षेत्र में हुआ करती थी, मैंने मनोज को 100 रुपये
देकर रेलवे समय सारणी लेने के बारे में कह दिया था। लेकिन मनोज जब कई दिन तक समय
सारणी नहीं लाया तो मैं खुद पुरानी दिल्ली स्टेशन के पास किसी कार्य से गया हुआ
था। मुझे वहाँ रेलवे समय सारणी वाली बात याद आ गयी तो मैंने झट से एक समय सारणी
खरीद ली। उस दिन मनोज कार्यालय नहीं आया था अगले दिन जैसे ही मनोज आया तो मैंने
उसे कहा ला भाई मेरे 100 रुपये वापिस दे, मैं रेलवे समय
सारिणी ले आया हूँ। मनोज ने मेरी बात सुनकर पर्स निकालने की जगह अपने बैग से समय
सारिणी निकाल कर मेरे हाथ में थमा दी। अब चुपचाप मुझे वह वाली समय सारिणी भी लेनी
पड़ गयी।
रेलवे समय सारिणी मिलने के बाद मैं
त्रिवेन्द्रम से आगे की यात्रा के टिकट के तालमेल बनाने में जुट गया। मुझे रददी
कागज पर उधेड़-बुन में उलझा देख साथी सोचते थे कि यह बन्दा पागल हो गया है जो
लगातार कई दिन से इस किताब व सादे कागजों में उलझा हुआ रहता है। मैंने कई दिन की
मेहनत का अच्छा परिणाम निकाला। घर से चलने से लेकर घर पहुँचने तक की सभी रेल गाडियों के टिकट लेने की सूची तैयार कर ली।
पहला टिकट- रविवार को दिल्ली से चलकर राजधानी मंगलवार
सुबह 6 बजे त्रिवेन्द्रम पहुँचा देने वाली रेल के नाम हुआ। पूरा दिन वहाँ बिताकर अगला दिन
कन्याकुमारी के नाम कर दिया। कन्याकुमारी से रामेश्वरम तक बस यात्रा करने का फ़ैसला
हुआ। रामेश्वरम से त्रिरुपति तक ओखा एक्सप्रेस के टिकट बुक कराये गये। त्रिरुपति
से बंगलौर होकर कोपरगाँव (शिर्ड़ी) के टिकट बुक कराये, वहाँ से नान्देड़ के टिकट,
नान्देड़ से दिल्ली के टिकट बुक कराकर सम्पूर्ण यात्रा का समाधान निकाला गया था।
मेरे साथ एक पहाड़ी दोस्त सुनील रावत भी
यात्रा पर जाने का इच्छुक दिखायी दिया था। टिकट बुक करने से पहले उसे सूचित कर
दिया गया था। सुनील रावत भी मेरे साथ ही टिकट बुक करने पहुँच गया था। आजकल तो मैं घर से ही टिकट बुक कर देता हूँ लेकिन उस समय टिकट खिड़की पर जाकर ही टिकट बुक करनी
पडती थी। तीस हजारी कोर्ट में बना हुआ रेलवे टिकट बुंकिग काउन्टर मेरे लिये सबसे
नजदीक का केन्द्र था। हमने वहाँ से दो-दो ट्रेन के टिकट बुक करा दिये। जब तीसरे
टिकट के लिये फ़ार्म अन्दर दिया तो टिकट क्लर्क बोला एक बार में एक बन्दे से दो ही
टिकट दिये जाते है। सुसरे दल्लों से दस टिकट भी ले लेते है। तब उनके नियम तेल लेने
चले जाते है।
जब टिकट क्लर्क ने टिकट देने से मना कर
दिया तो हम सीधे पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के काउन्टर पर पहुँचे, वहाँ कई सारे टिकट काउन्टर
बने हुए है। हम दोनों अलग-अलग टिकट काउन्टर पर लगकर, उसी दिन बचे हुए बाकि के सभी टिकट भी बुक करा कर ही
माने। यहाँ लाईन में हमारे पास कई दलाल आये और बोले कि आपको सीट आरक्षित करवा
देंगे। आपके थोड़े से पैसे ज्यादा लगेंगे। हमारे टिकट बंगलौर से कोपरगाँव (शिर्ड़ी)
व कोपरगाँव से दिल्ली का एक टिकट वेटिंग का रह गया था। हमारी यात्रा में अभी 73 दिन
बचे हुए थे हमारी वेटिंग मात्र 7-8 ही थी। क्या हमारी वेटिंग
कन्फ़र्म हुई? यह दर्दनाक घटना आपको यात्रा के आगामी लेखों में पता चल जायेगी।
जब सब टिकट हो गये तो यात्रा वाले दिन की
प्रतीक्षा होने लगी। इसी दौरान कार्यालय में काम करने वाली एक महिला कर्मी एक दिन बोली कि टिकट बुक करते समय किसी को बताया भी नहीं। मैं भी अपने परिवार को लेकर आपके साथ चल देती। मैंने कहा ठीक है अगली यात्रा में आपको अवश्य सूचित करुँगा कहकर अपना पीछा छुड़ाया। धीरे-धीरे करके वह दिन 13 दिसम्बर 2009 भी आ ही गया जब हम दिल्ली के
निजामुददीन रेलवे पर त्रिवेन्द्रम राजधानी में बैठने के लिये पहुँच गये। यहाँ से
राजधानी के चलने का समय सुबह 11 बजे का निर्धारित है हम लगभग 10 बजे ही रेलवे स्टेशन पहुँच चुके थे। (क्रमश:)
दिल्ली-त्रिवेन्द्रम-कन्याकुमारी-मदुरै-रामेश्वरम-त्रिरुपति बालाजी-शिर्ड़ी-दिल्ली की पहली LTC यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
इसे मैं लाया था। |
इसे मनोज लाया था। |
एल टी सी तो घुमक्कड़ों के लिए बोनस होता है। इसलिए हम कभी नहीं छोड़ते। लीव एन्केश्मेंट अभी शुरू हुआ है। इसलिए एक ही बार ले पाए हैं।
जवाब देंहटाएं