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मंगलवार, 11 जून 2013

Narsingh Temple नरसिंह मन्दिर

EAST COAST TO WEST COAST-11                                                                   SANDEEP PANWAR
अरकू घाटी की बोरा गुफ़ा देखने के बाद इस यात्रा में विशाखापट्टनम की ओर लौटते समय नारायण जी बोले, "अभी हमारे पास एक घन्टा अतिरिक्त है अगर सम्भव हुआ तो नरसिंह भगवान वाला मन्दिर भी देखते हुए घर चलते है। मन्दिर देखने के बाद श्री शैल मल्लिकार्जुन जो कि भगवान भोले नाथ को समर्पित बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है, के लिये प्रस्थान किया जायेगा। विशाखापट्टनम शहर की आबादी में घुसने के बाद उल्टे हाथ पर एक मार्ग पहाड़ के ऊपर चढ़ता जाता है यह मार्ग नरसिंह मन्दिर पहुँचकर ही समाप्त होता है। यह नरसिंह मन्दिर वही मन्दिर है जो हिन्दू धर्म में होलिका दहन और भक्त प्रहलाद के कारण प्रहलाद के पिता को मारने के लिये आधे नर व आधे सिंह वाले अवतार रुप में इस पृथ्वी पर अवतरित हुए और प्रहलाद के पिता हिरण्यकश्यप का साँयकाल के समय संहार किया। हिरण्यकश्यप भी कमाल का प्राणी था जो भगवान से ऐसा वरदान ले आया था कि वह ना दिन में मरेगा, ना रात में, ना आदमी से मरेगा, ना जानवर/पशु से। इस अत्याचारी पिता को मौत के हाथों में सौपने के लिये भगवान को आधा शरीर मानव का व आधा शरीर शेर का धारण करना पड़ा, वरदान अनुसार दिन छिपते समय का चुनाव किया गया था ताकि अंधेरा होने से पहले ही उसका काम तमाम हो सके।



नारायण जी तेजी से कार को मन्दिर की ओर बढ़ाते जा रहे थे, जैसे-जैसे कार पहाड़ पर चढ़ती जा रही थी, वैसे-वैसे घाटी के सुन्दर नजारे दिखायी देने आरम्भ हो गये थे। नारायण जी तो स्थानीय भ्रमणकारी प्राणी होने के कारण कई बार यहाँ का दौरा कर चुके थे, लेकिन मेरे लिये यह पहला और शायद अन्तिम अवसर था। जैसे ही हम मन्दिर के बाहर पहुँचे तो एक सही जगह देख कार पार्क की, उसके बाद मन्दिर देखने के लिये चलना शुरु किया। नाराय़ण जी साथ ही चल रहे थे, जैसे ही मन्दिर के प्रवेश द्धार पर पहुंचे तो हमारे गले सूख गये। मन्दिर के अन्दर जाने के लिये दर्शनार्थियों की बेहद ही लम्बी लाईन लगी थी। दो तीन मिनट खड़ा रहकर विचार विमर्श किया गया कि यदि लाइन में लगे गये तो कम से कम दो घन्टे का समय लगना निश्चित था। इतना समय हम मन्दिर में लगाते तो मेरी ६ बजे वाली श्री शैल वाली बस छूटने की पक्की उम्मीद बढ़ जाती, इसलिये हमने बाहर से ही मन्दिर के अन्दर वाली मूर्ति को राम-राम किया।

हम वहाँ से वापिस चलने लगे कि तभी नारायण जी बोले रुको, संदीप भाई यहाँ पर इस मन्दिर से भी पुराना एक और मन्दिर है उसे देखते हुए चलते है। पुराना मन्दिर देखने के लिये सामने ही कुछ कदम चलना था इसलिये जल्दी ही वहाँ पहुँच गये। पुराने मन्दिर में पहुँचकर वहाँ एकांत बैठे पुजारी महोदय को नमस्कार किया तो उन्होंने भी जब हिन्दी में वार्तालाप करना आरम्भ किया तो मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। नारायण जी के अतिरिक्त हिन्दी बोलने वाला बन्दा यदि आंध्रप्रदेश में मुझे कोई मिला था तो वह पुराने मन्दिर के पुजारी ही थे। मन्दिर के बारे में पुजारी महोदय ने बहुत कुछ बताया था जिसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यही थी कि नरसिंह के नये व भव्य मन्दिर से पहले इसी पुराने मन्दिर की पूजा की जाती थी। आजकल पुराने मन्दिर में बहुत नगण्य संख्या में भक्तजन आते है। इसलिये इस पुराने मन्दिर में पुजारियों की आर्थिक स्थिति भी ड़ावाडोल है।

मन्दिर देख व पुजारी से ढेर सारी बाते कर हम वहाँ से चल दिये। कार में बैठकर वापसी के लिये उतरते समय खाई में नगर का नजारा बहुत ही लुभावना दिखायी दे रहा था। इसलिये कार रोककर उस नजारे के कई फ़ोटो ले लिये गये। अब वहाँ ज्यादा देर ना रुकते हुए हम घर की ओर प्रस्थान कर गये। सुबह अरकू जाते समय जिन सड़कों पर कोई दिखायी भी नहीं दे रहा था अब शाम को वापसी में उसी सड़क पर काफ़ी भीड़ भाड़ थी। विशाखापट्टनम से अरकू जाने वाली सड़क पर वाहनों के चलने के लिये एक अच्छी योजना अमल में लायी जा रही है। हम सुबह के समय तो सड़क के बीच से होते हुए चले गये थे, जबकि नारायण जी ने बताया था कि सड़क के बीच में केवल सार्वजनिक वाहनों विशेषकर बस सेवा के चलने के लिये स्थान आरक्षित किया गया है, इस योजना का लाभ यह है कि बस को चलने के लिये खाली सड़के मिलती है जिससे बसे तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ती है। सड़क किनारे निजी वाहनों के चलने का स्थान निर्धारित किया गया है जहाँ अन्य वाहनों की रेलम-पेल है। इस योजना को लागू करने का अभिप्राय यही है कि स्थानीय लोग सड़को पर अपने वाहन लेकर कम से कम बाहर निकले। लेकिन ये हमारा हिन्दुस्तान है यहाँ शायद ही कोई सुधरना चाहता है।

भीड़ भरी सड़कों से होते हुए हम घर की ओर बढ़ रहे थे। नारायण जी के घर पहुँचकर सबसे पहले स्नान किया गया। तरोताजा होकर भोजन करने की तैयारी होने लगी। कल की तरह आज भी साँभर बड़ा खाने की इच्छा हुई, घर का बना हुआ भोजन किया गया। इस बीच नारायण जी ने अपने दोनों कैमरे से दो दिन की विशाखापट्टनम व अरकू वैली यात्रा के चित्र निकाल कर लैपटॉप में ड़ाल दिये थे, वहाँ से मेरे मोबाइल के कार्ड़ में भेज दिये गये। नारायण जी के पास कई कैमरे होने के साथ-साथ मोबाइल चार्ज करने के लिये भी कई तरह के पिन वाला चार्जर भी था। इसके अलावा उनके पास एक यंत्र और भी देखा जिससे मोबाइल चलते फ़िरते भी चार्ज किया जा सकता था। मैंने उस यंत्र के मिलने की दुकान के बारे में पूछा तो कहा कि यह हवाई अड़ड़े पर मिला था स्थानीय बाजार में मिलन के बारे में कोई जानकारी नहीं है। शाम को सवा पाँच बजे नारायण जी का घर छोड़कर श्रीशैल के लिये प्रस्थान करना था चलते समय श्रीमति नारायण जी ने मेरे खाने के लिये साँभर बड़ा दो डिब्बे में पैक कर मुझे दे दिया कि यह आपकी यात्रा के लिये है। श्रीमति नारायण जी को बाय बाय कहकर हम बस पकड़ने के लिये एक बार हाईवे पर आने के लिये गाड़ी में बैठ गये।

बस स्टैंड़ वैसे नारायण जी के घर से कई किमी दूर है, लेकिन लम्बी दूरी वाली बसे स्थानीय स्टॉप से भी अपनी सवारी को बैठा लेती है इसलिये हम नारायण जी के घर के पास वाले स्टैन्ड़ पर अपनी बस की प्रतीक्षा करने लगे। नारायण जी ने यही से मेरे लिये सीट बुक की थी। जब बस आने ही वाली थी तो चलते समय मन कुछ भारी सा हो रहा था। नारायण जी जैसे मानव से पुन: मिलने की उम्मीद में गले मिलकर फ़िर से मिलने का वायदे कर वहाँ से प्रस्थान कर दिया गया। चलते-चलते नारायण जी ने एक छोटा सा स्टील का यादगार औजार मुझे दिया कि संदीप जी आपके काम आने वाला औजार है, मैंने वह छोटा सा स्टील का औजार सम्भाल कर अपनी जेब में रख लिया था। नारायण जी का प्यार देखकर मेरी हिम्मत ही नहीं पड़ रही थी कि मैं उन्हें किस तरह कहूँ कि दो दिन की यात्रा में उनका कितना खर्चा हुआ है, जैसे ही मैं खर्चे का कोई जिक्र करता तो नारायण जी कहते थे कि संदीप भाई यह यात्रा आपको मेरी ओर से है। लेकिन मुझे एक बात बार-बार चुभ रही थी कि यदि इसी प्रकार मैं दोस्तों के खर्चे पर घूमता रहा तो शायद यह अच्छी बात नहीं होगी। मैंने बड़ी मुश्किल से नारायण जी को विशाखापट्टम से श्रीशैल वाली बस के टिकट के पैसे देने के लिये राजी कर पाया। वो भी इस बात पर कि आपका खर्चा सिर्फ़ अपने शहर तक ही सीमित है। अब आपके यहां से जाने का खर्चा आप क्यों वहन करेंगे।

जैसे ही बस आयी तो नारायण जी से विदा लेकर बस में अपनी सीट संख्या एक पर जाकर अपना डेरा जमा लिया। एक घन्टे की यात्रा के बाद अंधेरा होने लगा उसके बाद बाहर से सिर्फ़ ठन्ड़ी हवा के झोंके के अलावा और कुछ दिखायी नहीं दिया। रात में थोड़ी बहुत झपकी आयी होगी। जैसे ही उजाला हुआ तो फ़िर से बाहर के नजारे देखने में व्यस्त हो गया। श्रीशैल से कोई अस्सी किमी पहले से ही पहाड़ी इलाका आरम्भ हो जाता है पहाड़ी आरम्भ होने से कुछ किमी पहले एक कस्बे में हमारी बस के चालक ने घन्टे भर के बस रोकी थी सभी सवारियों को बोला था कि भोजन आदि कर आये। मेरे पास घर से लाया गया भोजन था मैंने वही किया था। यहाँ से बस पहाड़ी मार्ग पर दौड़ते हुए आगे बढ़ती जा रही थी। आखिरकार हमारी बस एक जगह पहुँचकर उल्टी मुड़ने लगी तो मुझे लगा कि यही श्रीशैल है इसलिये मैं बस से उतर गया। लेकिन जैसे ही मैं बस अड्ड़े पर मन्दिर का मार्ग पता करने गया तो एक बन्दा बोला मन्दिर तो अभी कई किमी दूर है, शुक्र रहा कि बस अभी वही खड़ी थी इसलिये मैं फ़टाफ़ट बस में जा घुसा। अबकी बार मैंने बस चालक से कहा कि जब मन्दिर आये तो बता देना। मेरी बात सुनकर मेरे पास बैठा एक व्यक्ति बोला कि मैं भी मन्दिर जा रहा हूँ। चलिये फ़िर से किसी से कुछ मालूम करने की आवश्यकता ही नहीं है। (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
15. महाराष्ट्र के एक गाँव में शादी की तैयारियाँ।
16. महाराष्ट्र की ग्रामीण शादी का आँखों देखा वर्णन।
17. महाराष्ट्र के एक गाँव के खेत-खलिहान की यात्रा।
18. महाराष्ट्र के गाँव में संतरे के बाग की यात्रा।
19. नान्देड़ का श्रीसचखन्ड़ गुरुद्धारा
20. नान्देड़ से बोम्बे/नेरल तक की रेल यात्रा।
21. नेरल से माथेरान तक छोटी रेल (जिसे टॉय ट्रेन भी कहते है) की यात्रा।
22. माथेरान का खन्ड़ाला व एलेक्जेन्ड़र पॉइन्ट।
23. माथेरान की खतरनाक वन ट्री हिल पहाड़ी पर चढ़ने का रोमांच।
24. माथेरान का पिसरनाथ मन्दिर व सेरलेक झील।
25. माथेरान का इको पॉइन्ट व वापसी यात्रा।
26. माथेरान से बोम्बे वाया वसई रोड़ मुम्बई लोकल की भीड़भरी यात्रा।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
27. सिद्धी विनायक मन्दिर व हाजी अली की कब्र/दरगाह
28. महालक्ष्मी मन्दिर व धकलेश्वर मन्दिर, पाताली हनुमान।
29. मुम्बई का बाबुलनाथ मन्दिर
30. मुम्बई का सुन्दरतम हैंगिग गार्ड़न जिसे फ़िरोजशाह पार्क भी कहते है।
31. कमला नेहरु पार्क व बोम्बे की बस सेवा बेस्ट की सवारी
32. गिरगाँव चौपाटी, मरीन ड्राइव व नरीमन पॉइन्ट बीच
33. बोम्बे का महल जैसा रेलवे का छत्रपति शिवाजी टर्मिनल
34. बोम्बे का गेटवे ऑफ़ इन्डिया व ताज होटल।
35. मुम्बई लोकल ट्रेन की पूरी जानकारी सहित यात्रा।
36. बोम्बे से दिल्ली तक की यात्रा का वर्णन























2 टिप्‍पणियां:

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