EAST COAST TO WEST COAST-22 SANDEEP PANWAR
माथेरान में प्रवेश करने के बाद मैंने विशाल से कहा कैमरे में कितनी बैटरी बची हुई है कैमरा देख विशाल बोला कि बैटरी तो लगभग समाप्त होने को ही है जितनी बैटरी हमने नेरल में चार्ज की थी उतनी तो ट्रेन में बैठकर फ़ोटो लेन में खर्च कर दी है। मेरे पास मोबाइल भी जिससे मैंने पूरी की पूरी गोवा यात्रा के फ़ोटो लिये थे। लेकिन कैमरे की बात ही अलग होती है। सबसे पहले हमें कैमरे को चार्ज करने का जुगाड़ करना था। इसका तरीका यह निकाला कि किसी रेस्टोरेन्ट/भोजनालय में खाने के चला जाये, वही कैमरे की बैटरी चार्जिंग पर लगा दी जाये। वहाँ पर बैटरी चार्ज होनी शुरु हो जाये तो ऐसी चीज बनवाकर खायी जाये जिसके बनने में ज्यादा से ज्यादा समय लगे। एक बार में एक प्लेट बनवायी जाये उसे बेहद ही आराम-आराम से खाया जाये। उसे खाकर पानी पियो और बैठे रहो, जब कोई टोके तो फ़िर से एक प्लेट बनवाने को बोल दिया जाये। इसमें कुल मिलाकर पौने घन्टा का समय मानकर हम चल रहे थे।
सबसे पहले एक ऐसा भोजनालय देखा जहाँ भीड़ लगी थी वहाँ जाकर एक चेले को बुलाया उसे बैटरी देकर चार्जिंग पर लगवा दी। उसे मिशल पाव बनवाने को बोल दिया गया। भीड़ होने के कारण हमारा दिया सामान बनने में दस मिनट से ज्यादा लग गये थे हम भी यही चाहते थे कि ज्यादा से ज्यादा देरी से हमारा काम किया जाये। जब हमारे खाने की प्लेट हमारी मेज पर आ गयी तो एकदम आराम से उसे खाने में दोनों लग गये। हमने भी दस मिनट का समय उसे खाने में लगाया होगा। कई मिनट बैठने के बाद एक प्लेट और बनाने के लिये बोल दिया गया। कई मिनट बाद बनकर वह प्लेट हमारे पास आयी, उसके बाद हमने भी उसे चट करने में समय लगाया इस तरह कुल मिलाकर 50 मिनट का समय हमने वहाँ लगा दिया था। इतना समय कैमरे की बैटरी अचर्ज होने के लिये बहुत था। खाने का बिल अदा करने के बाद अपना बैग उठाकर बाहर लगी कुर्सी मेज पर बैठ गये। पूरे एक घन्टा बैटरी चार्ज होने के बाद हमने वेटर से बैटरी वापिस देन के लिये कहा था। बैटरी लेकर कैमरे में लगायी और वहाँ से आगे की यात्रा आरम्भ की।
माथेरान में वैसे तो देखने लायक बहुत ज्यादा नहीं है असली रोमांच तो यहाँ तक पहुँचाने वाली ट्राय ट्रेन ही है। हमारे मन में माथेरान देखने की तमन्ना थी इसलिये एक चक्कर माथेरान के ऊपरी छोर का लगाने चल दिये। माथेरान में कुल मिलाकर 30-35 बिन्दु ऐसे जो देखने लायक है इनमें से केवल 10 बिन्दु ही ऐसे ही है जो देखने चाहिए बाकि छोड़ भी दे तो कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला है। पैदल चलते ही माथेरान की घनी आबादी व बाजार से होकर आगे बढ़ते रहे। यहाँ बच्चों के खेलने के लिये एक सुन्दर गार्ड़न देखा जिसमें नाना प्रकार के खिलौने लगाये हुए थे। खिलौने देखकर लग रहा था कि ज्यादातर खिलौने शुल्क देने के बाद ही प्रयोग किये जा सकते है। इसके अलावा तीन चार किस्म के खिलौने ऐसे भी थे जो सभी के लिये खोले हुए थे। हमारे साथ कोई बच्चा नहीं था हम उन झूलों लायक रह नहीं गये थे इसलिये फ़ोटो लेकर आगे चल दिये।
आगे चलते हुए उल्टे हाथ एक बहुत पुराना सरकारी भवन दिखायी दिया। भवन में अन्दर जाने का दरवाजा बन्द था लेकिन वहाँ लिखे हुए बोर्ड़ देखकर पता लग रहा था कि यह यहाँ का ड़ाकखाना रहा होगा। जब अंग्रेज यहाँ रहा करते थे तो पत्रों की आवाजाही के लिये यह पोस्ट आफ़िस बनवाया गया होगा। इस भवन में टूट-फ़ूट तो नहीं दिखायी दे रही थी। फ़िर पता नहीं क्यों इसे बन्द कर कबाड़ा बना दिया गया था। माथेरान के बारे में बताते है कि यहाँ बाहर का बन्दा आकर जमीन नहीं ले सकता है। पहले जिसने जगह खरीद ली हो और उसपर बंग्ला घर बनवा लिया हो, वो अलग बात है। वैसे यहाँ आबादी सीमित ही है इसलिये ज्यादा भीड़-भाड़ भी नहीं है। कम होने का लाभ ज्यादा ही है नहीं तो कुछ पर्य़टक स्थल ऐसे भी है जहाँ भीड़ के कारण रुकने का मन भी नहीं करता है।
माथेरान की आबादी समाप्त होने के बाद वहाँ के देखने लायक स्थल का पहला बोर्ड़ दिखायी दिया। हम पहली बार और अन्तिम बार यहाँ आया था इसलिये सोचा कि चलो छोटा मोटा या नजदीक के पोइन्ट जरुर देखने है। पहला स्थल जिसे देखने हम गये उसका नाम याद नहीं आ रहा है। यहाँ तक पहुँचने के लिये हमें लगभग 300 मीटर गहराई में उतरना पड़ा। नीचे जाकर हमें वैसी ही खाईयाँ दिखायी दी जैसी खाई हम ट्रेन में आते हुए देख रहे थे। इसे देखकर वापिस आये, चढ़ाई चढ़ते-चढ़ते साँस फ़ूलने लगा। एक बार फ़िर मुख्य मार्ग पर चलते हुए आगे बढ़ते रहे। अब एलेक्जेंड़र पॉइन्ट स्थल की ओर हम बढ़ रहे थे वहाँ पहुँचने के लिये गहराई में नहीं जाना था। इस एलेक्जेंड़र पॉइन्ट बिन्दु को देखने के लिये जहाँ से होकर हम गये थे वहाँ एक चाय वाला दुकानदार बैठा हुआ था। विशाल ने उसके पास जाकर पता किया था कि यहाँ देखने लायक अच्छॆ स्थल कौन से है।
माथेरान में सबसे लम्बी दूरी वाला बिन्दु देखने के लिये हमें दो किमी लम्बी पगड़न्ड़ी पर चलना पड़ा। इस लम्बी पगड़न्ड़ी पर आने से हम बच रहे थे क्योंकि इस बिन्दु को देखकर फ़िर से दो किमी उसी मार्ग पर वापिस जाना था। यहाँ आकर हमारी दो किमी चलने की मेहनत बेकार नहीं गयी। इस बिन्दु तक लोग पहुँच नहीं पा रहे थे क्योंकि यह बिन्दु पेड़ों की आड़ में दुबका हुआ था मुख्य पगड़न्ड़ी से अलग हटकर कुछ नीचे उतरकर यहाँ तक पहुँचना होता है। यहाँ आकर हमें जो नजारा सामने दिखायी दिया उसे देखकर हम दंग रह गये। हम पहाड़ के ऊपर खड़े हुए थे नीचे खाई/घाटी में 15-20 घरों का एक गाँव दिखायी दे रहा था। यह गाँव उस सीधी खड़ी पहाड़ी के एकदम नीचे था। ऊपर से हमें घरों की छत के अलावा और कुछ दिखायी नहीं दे रहा था। अब हम वन ट्री हिल देखने निकल पड़े। (क्रमश:)
माथेरान में सबसे लम्बी दूरी वाला बिन्दु देखने के लिये हमें दो किमी लम्बी पगड़न्ड़ी पर चलना पड़ा। इस लम्बी पगड़न्ड़ी पर आने से हम बच रहे थे क्योंकि इस बिन्दु को देखकर फ़िर से दो किमी उसी मार्ग पर वापिस जाना था। यहाँ आकर हमारी दो किमी चलने की मेहनत बेकार नहीं गयी। इस बिन्दु तक लोग पहुँच नहीं पा रहे थे क्योंकि यह बिन्दु पेड़ों की आड़ में दुबका हुआ था मुख्य पगड़न्ड़ी से अलग हटकर कुछ नीचे उतरकर यहाँ तक पहुँचना होता है। यहाँ आकर हमें जो नजारा सामने दिखायी दिया उसे देखकर हम दंग रह गये। हम पहाड़ के ऊपर खड़े हुए थे नीचे खाई/घाटी में 15-20 घरों का एक गाँव दिखायी दे रहा था। यह गाँव उस सीधी खड़ी पहाड़ी के एकदम नीचे था। ऊपर से हमें घरों की छत के अलावा और कुछ दिखायी नहीं दे रहा था। अब हम वन ट्री हिल देखने निकल पड़े। (क्रमश:)
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के आंध्रप्रदेश इलाके की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
04. विशाखापट्टनम का कब्रगाह, और भीम-बकासुर युद्ध स्थल।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के महाराष्ट्र यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
विशाखापटनम-श्रीशैल-नान्देड़-बोम्बे-माथेरान यात्रा के बोम्बे शहर की यात्रा के क्रमवार लिंक नीचे दिये गये है।
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