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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

Manimahesh lake and parvat/mountain मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में डुबकी।

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-15                                                                        SANDEEP PANWAR

रात को सोते समय हमने एक-एक कम्बल ही लिया था, लेकिन जैसे-जैसे समय बीत रहा था तेजी से वहाँ का तापमान भी गिरता जा रहा था। जल्दी ही हमें दूसरा कम्बल भी लेना पड़ गया। रात में ठन्ड़ ज्यादा तंग ना करे, इसलिये दो कम्बल ऊपर व एक कम्बल नीचे बिछा लिया गया था। जहाँ हम सो रहे थे ठीक हमारे सामने ही उसी दुकान में 3-4 लोग और भी बैठे हुए थे। वे सभी दारु पीने में लगे हुए थे। उन्हे दारु पीते देख मुझे राजेश जी की याद आ गयी। अपने राजेश जी भी इनका साथ देने के तैयार हो सकते थे। यदि वे यहाँ होते तो! राजेश जी का पता नहीं चल पाया कि वे रात में कहाँ तक पहुँचे थे यह बात तो निश्चित थी कि वे गौरीकुन्ड़ तक नहीं पहुँच पाये थे। क्योंकि गौरीकुन्ड़ तक आने के बाद मणिमहेश तक पहुँचना बेहद आसान है। विधान अंधेरा होने से पहले हमारे पास झील पर पहुँच चुका था विधान के अनुसार राजेश जी घोड़े वाले की इन्तजार में रुक गये थे। घोड़े वाला उन्हे लेकर आ जायेगा। लेकिन राजेश जी सुबह होने पर ही ऊपर पहुँच पाये थे। रात आराम से कट गयी, कई-कई कम्बल लेने का फ़ायदा यह हुआ कि हमें सोते समय ठन्ड़ ने तंग नहीं किया। मणिमहेश पर्वत की समुन्द्र तल से ऊँचाई 5653 मीटर यानि 18564 फ़ुट है। झील की ऊँचाई 4950 मीटर है। यह पर्वत हिमालय के पीरपंजाल पर्वतमाला में आता है।




सुबह अलार्म लगाने की आवश्यकता नहीं थी इसलिये लगाया भी नहीं था। जब सोते-सोते इन्सान पक जाता है तो बिस्तर पर पड़े-पड़े उकता जाता है। सुबह ठन्ड़ के कारण उठने की इच्छा तो हमारी भी नहीं हो रही थी लेकिन पेट की सफ़ाई करने वाले यन्त्रों ने अपना काम ठीक समय पर आज भी आरम्भ कर दिया था जिस कारण हमें मजबूरन बिस्तर छोड़ना पड़ा। दुकान वाले ने बताया कि आप उस ओर चले जाये जहाँ झील से पानी निकल कर ढ़लान में जा रहा है। यहाँ हमें खुले में शौच के लिये जाना पड़ा, मनु को शायद खुले में करने की आदत नहीं है इसलिये मनु कह रहा था यहाँ शौचालय बनाने का सारा सामान तो पड़ा है फ़िर शौचालय क्यों नहीं बनाया है? लगता है यह शौचालय सिर्फ़ यात्रा के समय ही तैयार किये जाते होंगे। खैर सभी खुले में निपट कर जल्दी ही फ़ारिग हो गये। यहाँ पर जब पानी में हाथ ड़ाला तो जितना हाथ पानी में भीगा उतना हाथ झन्नाटा खा गया। जो शौच गया या हाथ मुँह धोने गया उसकी दयनीय हालत देखने लायक थी। जैसे ही मैंने पानी में हाथ ड़ाला तो मैं भी अपवाद नहीं था। मैंने भी माइनस तापमान के पानी में अपना हाथ ड़ालने के बाद बहुत देर तक झटकता रहा। आखिरकार सब कुछ निपटाकर वापिस अपनी दुकान कम छप्पर में आ गये। कुछ देर बैठने के बाद नहाने के बारे में बात होने लगी।

अभी-अभी कुछ देर पहले लगभग सभी ने झील से बहते पानी में हाथ ड़ाला था इसलिये सब समझ गये थे कि झील के पानी में स्नान करने पर क्या हालत होने वाली है? अपने दिल पर पत्थर रख, नहाने के इरादे से चल दिये। सुबह मौसम बड़ा साफ़ व सुहावना था। हम झील के किनारे-किनारे उस स्थान की ओर बढ़ रहे थे जहाँ नहाने के लिये स्थान बनाया गया है। यहाँ हमने नहाने से पहले झील का जायजा लेना चाहा। झील में ध्यान से देखा तो हमें झील के पानी में ऊपर बर्फ़ की परत दिखायी दी। यह बर्फ़ की परत है या हमारा भ्रम है इसे जाँचने के लिये उस पर हाथ लगाकर देख लिया गया। जब यह पक्का हो गया कि पानी के ऊपर बर्फ़ की परत जमी हुई है तो नहाने से पहले ही एक सुबकी आ गयी। मैं सबसे पहले नहाने वाला नहीं बनना चाह रहा था। मैं कई साल पहले की गयी यहाँ की यात्रा में दोपहर के समय नहाया था लेकिन आज तो सुबह-सुबह ही बलि चढ़ने की नौबत आ पहुँची थी। इतने ठन्ड़े पानी में मैं पहले भी हेमकुन्ठ साहिब के तालाब में स्नान कर चुका हूँ। मैं दो-तीन बार गंगौत्री के जबरदस्त ठन्ड़े पानी में भी स्नान कर चुका हूँ इसलिये मैं यहाँ ड़र तो नहीं रहा था लेकिन पहले अन्य दोस्तों के नहाने के दौरान होने वाली जबरदस्त हास्य घटना वाला वातावरण पैदा होते देखना चाह रहा था। इसलिये मैं चुपचाप एक तरफ़ बैठ गया।

नहाने के लिये कुल चार लोग तैयार हुए, सबसे पहले नहाने वाले विधान के जयपुर वाले दोस्त थे। इन्होंने नहाते समय ज्यादा धमाल-चौकड़ी नहीं की, फ़टाफ़ट नहाकर कपड़े पहन लिये। फ़िल्म का पहला सीन देखा लेकिन जिस आनन्द की उम्मीद में बैठा था वो प्राप्त नहीं हुआ लेकिन फ़िल्म में अभी कई सीन बाकि थे। इसलिये अगले सीन देखने की तैयारी होने लगी। यहाँ मराठा गैंग के सबसे कमजोर शरीर में दिखने वाला लेकिन सबसे बड़ा हिम्मत वाला पहलवान नहाने के लिये मैदान में आ पहुँचा। इस पहलवान को नहाते देखने के लिये अन्य सभी साथी स्नान घाटपर देखने के लिये खड़े हो गये। इस सबसे हल्के साथी ने पानी की एक बाल्टी लेकर दे दना-दन अपने सिर पर ड़ालनी शुरु की ही थी कि मुश्किल से 4-5 बाल्टी पानी ड़ालने के बाद यह दोस्त अपना संतुलन खोने लगा तो पानी से दूर भाग आया। इसने तौलिया लेकर अपना सिर रगड़ना शुरु किया। तौलिया से शरीर पौछने के दौरान इसका शरीर बिल्कुल उसी तरह हिल रहा था जैसे मिथुन चक्रवर्ती का शरीर आई एम एक डिस्को डांसर के गाने में थिरकता था। हमारी नहाने वाली फ़िल्म का यह सबसे जोरदार सीन था। इसके बाद विधान नहाने आया, विधान ने भी नहाते समय ज्यादा उछल-कूद नहीं की लेकिन लेटकर फ़ोटो खिचवाने के चक्कर में पानी में लेट गया। लेकिन जब तक फ़ोटॊ के लिये क्लिक हो पाता तब तक विधान की सहन शक्ति ने जवाब दे दिया था कि बेटा भाग ले नहीं तो हाईपरथ्रमिया हो जायेगा। सबसे बाद नहाने वाला जाट देवता संदीप पवाँर  था। मैं ठन्ड़े पानी में ज्यादा देर नहाने को आफ़त समझता हूँ ठन्डे पानी में ज्यादा देर नहाने से शरीर डिस्को करने लग जाता है, इसलिये मैंने एक बाल्टी लेकर दे दना-दन अपने सिर पर ड़ालनी शुरु की 5-6 बाल्टी ड़ालकर मुझे भी बाहर भागना पड़ा। अन्य लोग हमारी हिम्मत को देखकर अपनी बोलती बन्द किये हुए चुपचाप खड़े हुए थे।

नहाने के बाद वहाँ पर झील का एक चक्कर लगाया जिससे शरीर में थोड़ी सी गर्मी आ गयी। ठन्ड़े पानी में नहाने के बाद ज्यादा ठन्ड़ महसूस नहीं हो रही थी। यहाँ नहाने वाले स्थान के पास ही पूजा पाठ करने के लिये खुला मन्दिर बनाया गया है जहाँ पर हिमाचली लोग भेड़ की बलि देने के लिये भी आते है। यहाँ सैकड़ों की संख्या में त्रिशूल रखे गये है यहाँ पर आने वाले बहुत से भक्त त्रिशूल चढ़ाते है। जो लोग नहाये थे उन्होंने पूजा-पाठ किया, लेकिन जो लोग नहाये नहीं थे उन्होंने भी पूजा-पाठ किया और भोलेनाथ से ना नहाने की माफ़ी भी माँगी। सुबह जब हम स्नान कर वापिस जाने की तैयारी कर रहे थे तो राजेश जी घोड़े पर सवार होकर आते दिखायी दिये। सुबह 7 बजे का समय होने वाला था। अब कुछ देर राजेश जी के इन्तजार में रुकना पड़ा वापसी जाने में किसी को समस्या नहीं आती है।

यहाँ नहाने वालों में एक नाम और जुड़ गया, गाड़ी चालक बलवान भी इस पवित्र झील में नहाकर अपना नाम अमर कर गया। कहते है इस झील में किस्मत वाला ही स्नान कर पाता है। इस बात में कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता, सब बनी बनायी बाते मालूम पड़ती है, लेकिन मुझे किसी चैलेंज से ड़र नहीं लगता है बल्कि कोई चैलेज सामने दिखायी देता है, तो उसके सामने उससे बड़ा चैलेज तुरन्त सोच लेता हूँ। जिससे हर चैलेंजे मेरे लिये आसान हो जाता है। जब सबका सब काम निपट गया तो हमने वहाँ से चलने में देर नहीं की। लेकिन एक बात तो भूल ही गया कि जो सरदार जी वहाँ लगातार 8 साल से आ रहे है। वे अपने साथ भोलेनाथ की एक मूर्ति लाये थे, अपने साथ एक पण्ड़ित/पुजारी=ठग=भिखारी भी लाये थे। उन्होंने कहा कि आप मूर्ति स्थापना के अवसर पर रुकेंगे या जायेंगे। मैं ठहरा आर्य समाजी अपना मूर्ति पूजा से क्या काम? अपनी तो दूर से राम-राम। (क्रमश:)    


हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।

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5 टिप्‍पणियां:

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