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गुरुवार, 18 अप्रैल 2013

Khajiar to Hadsar खजियार से हड़सर तक (मणिमहेश का बेस कैम्प)

हिमाचल की स्कार्पियो वाली यात्रा-11                                                                        SANDEEP PANWAR

खजियार के मैदान से बाहर आते ही सड़क पर एक बोर्ड़ लगा हुआ है जिस पर चम्बा की दूरी मात्र 24 किमी व भरमौर (मणिमहेश का बेस कैम्प) की दूरी 90 किमी दर्शायी हुई है। अभी दोपहर बाद 3 साढ़े तीन का समय हुआ था। हमें भरमौर तक पहुँचने में मुश्किल से दो घन्टे लगने वाले थे। खजियार से बाहर आने के बाद कुछ दूर चलते ही उल्टे हाथ भोले नाथ की एक विशाल मूर्ति दिखायी दे रही थी। हम तो वैसे भी भोलेनाथ के असली निवास पाँच कैलाश में से एक मणिमहेश कैलाश पर ही जा रहे थे इसलिये इस मानव निर्मित मूर्ति को देखने के लिये गाड़ी से नीचे नहीं उतरे। गाड़ी में बैठे-बैठे ही उस विशाल मूर्ति के फ़ोटो लिये और वहाँ से आगे चम्बा की ओर बढ़ लिये। यहाँ से चम्बा तक लगातार हल्की सी उतराई का मार्ग था। चम्बा तक बिना रुके लगातार चलते रहे। जब हम चम्बा पहुँचे तो शाम के 5 बजने वाले थे। चम्बा में हमें रात में रुकना नहीं था इसलिये यहाँ से भरमौर के लिये बढ़ते रहे। यहाँ मनु ने एक मेड़िकल स्टोर से अपनी पैदल यात्रा के लिये काम आने वाली जरुरी वस्तुएँ दवाई आदि खरीद ली थी। चम्बा में प्रवेश करते ही हमने एक नदी का पुल पार कर उसके दूसरे किनारे पर आगे की यात्रा जारी रखी थी।

खजियार को राम राम




खजियार से चलते ही यह मूर्ति आती है।




चम्बा के बाजार से सभी जरुरी चीजे आसानी से मिल जाती है जबकि आगे चलकर भरमौर में बेहद जरुरी वस्तुएँ ही उपलब्ध हो पाती है। बाइक वाले साथी भी अपने मतलब की कुछ जरुरी दवाई आदि लेकर आगे चलते रहे। हमने भी जल्दी ही चम्बा को पीछे छोड़ दिया। पहाड़ में आबादी सिर्फ़ शहर गाँव या कस्बों में ही नजर आती है। जैसे ही आबादी समाप्त हुई वैसे ही सड़क भी सुनसान दिखायी देने लगती है। वैसे भी चम्बा से आगे भरमौर वाले मार्ग पर सिर्फ़ मणिमहेश यात्रा के दौरान ही गाड़ियों के काफ़िले दिखायी पड़ते है अन्य दिनों में यहाँ घन्टों बाद किसी गाड़ी के दर्शन होते है। अगर बीच में जगह-जगह सड़क या अन्य निर्माण कार्य ना चल रहा हो तो मानव प्रजाति के अंश भी कई किमी बाद जाकर ही दिखायी देंगे। हमें बाइक से लेह जाते समय 100 किमी तक भी मानव न मानव की जात जैसे कुछ दिखायी दिये थे। इस रुट पर लेह जितना बुरा हाल तो नहीं है फ़िर भी यहाँ पर बहुत शांति दिखायी देती है। चम्बा के बाद सड़क की हालत बहुत ठीक-ठाक अवस्था में मिल रही थी। जब मैं कई साल पहले पहली बार यहाँ आया था तो उस यात्रा में 65 किमी की सड़क में से सिर्फ़ 15 किमी सड़क ही सड़क जैसी दिखाई देती थी। बाकि सड़क ने नाम पत्थर ही बिखरे हुए थे।

चम्बा से आगे।

चलती गाड़ी से लिया गया फ़ोटो।

चम्बा से भरमौर के मध्य सुरंग

भरमौर की ओर चलते हुए एक जगह सड़क के नाम पर केवल आधे फ़ुट मोटाई तक पत्थर ही पत्थर थे। किसी तरह इनसे गाड़ी व बाइक पार लगायी गयी थी। इन पत्थरों पर पैदल चलने में परेशानी आ रही थी। आगे जाने पर हमें एक छोटी से सुरंग से होकर जाना पड़ा। मेरी पिछली यात्रा के समय यह सुरंग नहीं बनी थी। भरमौर अभी 30-35 किमी बाकि था हमें रावी नदी पर एक झूला पुल दिखायी दिया। अरे हाँ यह तो बताना भूल ही गया कि चम्बा में आते ही हम रावी नदी के किनारे पहुँच जाते है। रावी नदी पर बने लम्बे व नये पुल से हमने रावी पार की उसके बाद हम रावी के उल्टे हाथ वाले किनारे पर हो गये। चम्बा में प्रवेश करते समय रावी उल्टे हाथ थी पुल पार करने के बाद रावी नदी सीधे हाथ पर आ गयी थी। जैसे ही झूला पुल दिखायी दिया तो हमने इस झूले पुल के फ़ोटो लेने के इरादे से गाड़ी यहाँ रुकवा दी। इस बोर्ड़ पर बहुत ही ज्ञान की बात लिखी हुई थी। मैं अपनी सभी यात्राओं में वे चाहे बाइक से हो, रेल से, साईकिल से, पैदल या फ़िर बस व कार से क्यों न हो, मैं हमेशा इस बोर्ड़ पर लिखी बात पर पहले से ही अमल करता आ रहा हूँ। कई बार ब्लॉग व हकीकत की दुनिया में ऐसे लोग भी मिले है जिसके बस में उखडू बैठने के बाद, बिना गोड़े (घुटने) पर हाथ रखे बिना उठना मुश्किल है ऐसे पैसे में रईस लोग, दिमाग से पूरे टटपूंजियाँ ही नजर आते है, जब ऐसे कामचोर लोग फ़ालतू फ़न्ड़ की बे सिर पैर की चुनौती देने लगते है। तो इन पर जोर की हंसी आ जाती है। एक बार ऐसा ही एक पिछलग्गू मेरी तुलना किसी से करते हुए मुझे चुनौती दे रहा था तब मैंने कहा था जा भाई अगर तेरे खुद के शरीर में इतना कलेजा है तो बात कर, नहीं तो अपने घर जा के मूत के सो जा, नहीं तो रात को पैंट में सू-सू आ जायेगा। हा हा, भड़काऊ ड़ायलॉग गिरी करने वाले लोगों से गन्दा मुझे दूसरा कोई इन्सान नहीं लगता है। 

मैं इस बोर्ड़ की बात से सहमत हूँ।


बिजली उत्पादन

झूला पुल

पुल पर खड़े होकर महसूस हो रहा था कि इसे झूला पुल क्यों कहते है? जैसे हम लोग झूले में झूलते है इसमें झूले के मुकाबले में थोड़ा कम गति तो होती है लेकिन रोमांच में यह झूले पर कई गुणा भारी पड़ता है। इसी झूले वाले पुल से खड़े होकर ऊपर वाले फ़ोटो में दिखाया गया झरना भी दिखायी दे रहा था। यह देखने में भले ही एक झरने जैसा लग रहा हो असलियत में यह बिजली बनाने वाली सुरंग से निकलता हुआ पानी है। पहाड़ों में इस प्रकार की सुरंगे आजकल बहुत बनायी जाने लगी है। उतराखन्ड़ में उतरकाशी से आगे मनेरी बांध की ओर जाने पर मनेरी से पहले भी इसी प्रकार की सुरंग में पानी घूमाकर बिजली बनायी जाती है। वहाँ पर पानी भारगीरथी नदी के बीचो बीच गिरता है जबकि यहाँ पर बहकर रावी नदी में गिरता है। यहाँ कुछ समय बिताने के बाद हमारी यात्रा आगे प्रस्थान कर गयी। आगे जाने पर भरमौर से काफ़ी पहले हमें रावी नदी में वाहन पड़ा हुआ दिखायी दिया था। अपनी गाड़ी रुकवाकर देखा तो पता लगा कि यह गाड़ी काफ़ी दिनों पर इस नदी में गिरी होगी। यहाँ हमने एक बार फ़िर रावी नदी पार कर नदी के सीधे हाथ चल रहे थे। 

रावी नदी

गाड़ी अपनी सुरक्षित गति से आगे बढ़ती जा रही थी। बीच-बीच में बढ़िया-बढ़िया नजारे देख बिना गाड़ी रुकवाये फ़ोटो लेते जा रहे थे। हमारे साथ बैठे राजेश जी बार-बार अगली सीट पर बैठ अपने लड़के को फ़ोटो लेने पर टोक रहे थे राजेश जी ने कई बार मोहित को टोकते हुई कहा कि मोहित तू रहन दे, जब उन्होंने कई बार कहा तो विधान ने अगली बार मोहित को फ़ोटो लेने के लिये मोबाईल निकालते ही टोक दिया, "मोहित तू रहन दे" विधान के इतना बोलते ही गाड़ी में सभी जोर-जोर से हँसने लगे, यह बात सुन राजेश जी जुबान पर जैसे ताला लग गया था। नजारे आने पर गाड़ी चालक भी नजारे देखने से अपने को रोक नहीं पा रहा था, ऐसा ही दो-तीन बार राजेश जी ने गाड़ी चालक बलवान से भी कहा था कि बलवान तू आगे देख। अब आगे की बची हुई यात्रा में हमने एक बार भी यह नहीं कहा कि वो देखो नजारा, बल्कि हम हर बार कहते थे कि मोहित तू रहन दे, बलवान तू आगे देख। इतना कहते ही गाड़ी में जोर से हसँने की आवाज आती थी। आगे के सफ़र में हमने राजेश जी को मोहित व बलवान को सचेत करने के लिये कष्ट नहीं करने दिया था।  इस बात को मैं हर बार राजेश जी के मिलने पर जरुर दोहराता हूँ कि मोहित रहन दे, बलवान आगे देख। अभी अंधेरा होने ही वाला था हम अभी तक भरमौर तक ही पहुँच पाये थे। हमारी आज की मंजिल हड़सर नाम की जगह थी जहाँ से मणिमहेश यात्रा के लिये पद यात्रा की शुरुआत होती है। भरमौर से हड़सर 11-12 किमी दूर रह जाता है। आखिरी का 3-4 किमी का सफ़र हमने अंधेरे में ही तय किया था। आखिरकार हमने हड़सर पहुँचकर ही विश्राम किया था। बाकि का विवरण अगले लेख में बताया गया है। (क्रमश:)

रावी नदी की लहरों में समाया वाहन

बाँध के पास शांत जल
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया। 
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान 
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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3 टिप्‍पणियां:

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