चम्बा में गाड़ी वालों ने सही समय पर बता दिया था कि वे दिल्ली वापिस जा रहे है। जिससे हमें अपना यात्रा कार्यक्रम बदलने का समय मिल गया। मैंने और विपिन ने कांगड़ा की छोटी रेल व करसोग घाटी सहित कुछ अन्य स्थल देखने की योजना बना ड़ाली। मनु भी हमारे साथ चलने को कह रहा था लेकिन मनु के पास भारी बैग था जिस कारण हमने मनु को भी दिल्ली भेज दिया। विधान व उसके दोस्त सिर्फ़ मणिमहेश तक के लिये ही आये थे। हमारे यात्रा कार्यक्रम बदलने का सबसे ज्यादा प्रभाव बाइक वालों पर हुआ। लेकिन कहते है जो हुआ अच्छा ही हुआ। मराठे दो बाइक से यहाँ तक चले आये थे। जबकि उनके पास एक बाइक बजाज की मात्र 100 cc की प्लेटिना थी। मैंने पहली बार बाइक देखते ही बोल दिया था कि यह बाइक दो सवारी पर पूरी यात्रा नहीं करवा सकती है। हमारी यात्रा बदलने पर संतोष तिड़के ने कहा अब हम कहाँ जाये? मैंने अपनी तरफ़ से कोई सलाह देने से पहले उनके मन की लेने की सोची थी। मराठे बोले कि उन्हे बद्रीनाथ जाना है। अरे वाह, बद्रीनाथ जाने का जोश मणिमहेश यात्रा के बाद भी बना हुआ था। मैंने संतोष को अम्बाला तक इसी मार्ग से वापिस जाने की सलाह दी। अम्बाला के बाद मराठे सहारनपुर देहरादून होकर बद्रीनाथ के लिये हमारे चलने के कुछ देर बाद ही प्रस्थान कर गये थे।
बस अड़ड़े पहुँच कर कुछ और देखने की फ़ुर्सत भी नहीं हुई थी कि एक बस बस अडड़े से बाहर आती दिखायी दी। अंधेरे में बस के बाहर लिखा हुआ सिर्फ़ इतना ही समझ पाये कि यह बस कांगड़ा की ओर जा रही है। हम दोनों बस में सवार हो गये। सुबह का मुँह अंधेरे का समय और सड़के एकदम खाली थी। इस बात का पूरा फ़ायदा हमारा बस चालक उठा रहा था। बस चालक बस को पूरी तेज गति से भगाता जा रहा था। शुरु के आधे घन्टे तो बस चालक ने सीट पर ढ़ंग से बैठने का मौका नहीं लगने दिया। यह बस ड़लहौजी वाले रुट से होकर कांगड़ा जाने वाली थी। जब दिन निकल आया और हमने बाहर के नजारे देखे तो वे हमें काफ़ी जाने-पहचाने लगे। सड़क किनारे लगे बोर्ड़ से यह पता लग गया था कि हम उसी मार्ग पर चले जा रहे है जिस मार्ग से हम यहाँ तक आये थे। आखिरकार वह पुल भी आ गया जिस पर हमारी बाइक पुलिस वालों ने रोकी थी। पुल पार करने के बाद जब हमारी बस उल्टे हाथ धर्मशाला वाले रुट पर मुड़ी तो समझ आया कि यह किस रुट की बस है। सुबह स्कूल जाने वाले बच्चे व अध्यापक बस में सवार होते जा रहे थे। अभी तक बस खाली ही चली आ रही थी। धीरे-धीरे बच्चों ने पूरी बस को भर दिया।
पुलिस वाले चैक पोस्ट से तीन-चार किमी आगे जाते ही सीधे हाथ वाले पहाड़ पर बरसात के पानी के कारण रहस्मय आकृति बन गयी थी। उन्हे देखकर मन नहीं भरा, जब तक उनका फ़ोटो लेने का ध्यान आया तो वे आँखों से ओझल हो चुकी थी। इस बीच बस में एक फ़ल वाले ने अपना टोकरा भी रख दिया था। बस चालक बस की गति को मौका लगते ही बढ़ा देता था। हमारी बस आगे वाले बस स्टैंड़ पर सवारी चढ़ाने के रुकी तो वहाँ मौजूद लोगों ने बताया कि आगे बारिश से मलबा बहकर सड़क पर आ गया है जिससे बस आगे नहीं जा पायेगी। जहाँ यह सूचना मिली वहाँ बस मोड़ने की जगह भी नहीं थी। बस चालक बस को आगे लेकर चलता रहा। लगभग दो किमी बाद जाकर बस मोड़ने की जगह मिल पायी। यहां से हमारी बस मोड़ कर वापिस उसी मार्ग पर चल पड़ी जहाँ से पुलिस वाली घट्ना घटी थी। पहाड़ों की आकृति के फ़ोटो लेने का मौका हमारे हाथ एक बार फ़िर से आने वाला था। लेकिन अबकी बार भी हम फ़ोटो लेने से चूक गये। यहाँ बस चालक ने बस की गति कम नहीं होने दी थी जिस कारण हम फ़ोटो लेने से वंचित रह गये थे। अब हमारी बस उसी मार्ग पर मुड़ गयी जहाँ से हम आये थे।
मार्ग बन्द होने के कारण लगभग 22-23 किमी की यात्रा बेकार में करनी पड़ी लेकिन उसका लाभ यह भी हुआ कि हमें कुदरत के बनाये हुए अजूबे भी देखने को मिल गये। अगर फ़िर कभी बाइक पर इस मार्ग पर आने का मौका लगा तो उसके फ़ोटो ले लिये जायेंगे। पठानकोट मन्ड़ी हाईवे तक पहुँचने में कोई ऐसी घटना नहीं घटी जिसका यहाँ वर्णन किया जा सके। मन्ड़ी हाईवे आते ही हमारी बस की गति एक बार बढ़ जाती है। बस चालक ने बहुत कम स्थानों पर बस को रोका था जिस कारण हमें जल्दी कांगड़ा पहुँचने की उम्मीद हो चली थी। चम्बा से कांगड़ा लगभग 175 किमी दूर है। पहाड़ी मार्ग होने के कारण मैदान वाली गति से यहाँ गाड़ी चलाना खतरे से खाली नहीं है फ़िर भी पठानकोट मन्ड़ी मार्ग अन्य पहाड़ी मार्गों से बेहद आसान व सीधा मार्ग है। हम सबसे आखिर वाली सीट पर जमकर बैठे थे बस की आखिरी सीटे खाली पड़ी हुई थी। जिससे हम पूरे पैर फ़ैला कर बस यात्रा का आनन्द लिये जा रहे थे। जब बस दौड़ी जा रही थी तो सीधे हाथ जाने वाले मार्ग पर लगे एक बोर्ड़ से पता लगा कि शैल मन्दिर मशरुर इस सीधे हाथ वाले मार्ग पर है। हमने तुरन्त बस से उतरने का निश्चय किया। बस चालक को कहकर बस रुकवायी। जब तक बस रुकी थी तब तक वह मोड़ आधा किमी पीछे जा चुका था।
मार्ग बन्द होने के कारण लगभग 22-23 किमी की यात्रा बेकार में करनी पड़ी लेकिन उसका लाभ यह भी हुआ कि हमें कुदरत के बनाये हुए अजूबे भी देखने को मिल गये। अगर फ़िर कभी बाइक पर इस मार्ग पर आने का मौका लगा तो उसके फ़ोटो ले लिये जायेंगे। पठानकोट मन्ड़ी हाईवे तक पहुँचने में कोई ऐसी घटना नहीं घटी जिसका यहाँ वर्णन किया जा सके। मन्ड़ी हाईवे आते ही हमारी बस की गति एक बार बढ़ जाती है। बस चालक ने बहुत कम स्थानों पर बस को रोका था जिस कारण हमें जल्दी कांगड़ा पहुँचने की उम्मीद हो चली थी। चम्बा से कांगड़ा लगभग 175 किमी दूर है। पहाड़ी मार्ग होने के कारण मैदान वाली गति से यहाँ गाड़ी चलाना खतरे से खाली नहीं है फ़िर भी पठानकोट मन्ड़ी मार्ग अन्य पहाड़ी मार्गों से बेहद आसान व सीधा मार्ग है। हम सबसे आखिर वाली सीट पर जमकर बैठे थे बस की आखिरी सीटे खाली पड़ी हुई थी। जिससे हम पूरे पैर फ़ैला कर बस यात्रा का आनन्द लिये जा रहे थे। जब बस दौड़ी जा रही थी तो सीधे हाथ जाने वाले मार्ग पर लगे एक बोर्ड़ से पता लगा कि शैल मन्दिर मशरुर इस सीधे हाथ वाले मार्ग पर है। हमने तुरन्त बस से उतरने का निश्चय किया। बस चालक को कहकर बस रुकवायी। जब तक बस रुकी थी तब तक वह मोड़ आधा किमी पीछे जा चुका था।
सबसे पहले पैदल ही उस मोड़ तक पहुँचे। उसके बाद वहाँ एक दुकान वाले से मशरुर मन्दिर पहुँचने के लिये मिलने वाले साधन के बारे में मालूम किया। दुकान वाले ने बताया कि एक बस कुछ देर पहले ही गयी है अगली बस घन्टा भर बाद आयेगी। एक घन्टा वहाँ खड़े-खड़े पक कर पके आम बन जाते इसलिये वहाँ से मशरुर की ओर पैदल चलने का निर्णय हुआ। हम लगभग तीन किमी आगे तक चले गये। आगे चलकर एक गाँव आया वहाँ बस स्टैन्ड़ पर कुछ लोग बस की प्रतीक्षा करते हुए दिखायी दिये। हमने भी वही खड़े होकर पीर-बिन्दली जाने वाली बस की प्रतीक्षा करने लगे। यह मार्ग पठानकोट जोगीन्द्रनगर छॊटी रेलवे लाइन पर आने वाले नगरोटा सूरियाँ स्टेशन तक जाता है। जाना तो हमें उसी छोटी रेल के लिये ही था लेकिन उससे पहले हमें मशरुर जाना था। मशरुरु जाने के लिये हमें पहले पीर बिन्दली नामक गांव में उतरना था वहाँ से दूसरी बस पकड़ कर मशरुर जाना था पीर बिन्दली से मशरुर लगभग तीन किमी दूरी पर है। कांगड़ा से पीर बिन्दली तक छोटे-छोटे पहाड़ी से होकर मार्ग गया है। नदी नाले दिखायी नहीं देते है। यह सारा इलाका हमें सूखा ग्रस्त दिखायी दिया था। पीर बिन्दली में कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद हमें मशरुर जाने वाली बस मिल गयी। इस बस ने हमें कुछ देर में ही मशरुर उतार दिया। (क्रमश:)
हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है। सबसे नीचे स्कारपियो वाली यात्रा के लिंक दिये है।
एक खेत में चावल की फ़सल यह फ़ोटो विधान ने दिल्ली जाते समय लिया था |
पीर बिन्दली मोड़ |
पीर बिन्दली की ऊँचाई |
यह देखो हम मशरुर मन्दिर पहुँच चुके है। टिकट वाला बच्चा |
मशरुर मन्दिर के पास एक दुकान |
इसका नाम बताओ। |
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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