हड़सर से भरमौर कस्बा की सड़क दूरी मात्र 12 किमी ही है इसलिये अपना वाहन हो तो इस दूरी को पार करने में 15-20 मिनट मुश्किल से लगते है। लेकिन यदि अपना वाहन नहीं है तो यही दूरी पार करने में कई घन्टे से ज्यादा भी लग सकते है। भरमौर पहुँचने से पहले ही हड़सर से चलते समय ही मैंने बाइक व गाड़ी वालों को बता दिया था कि भरमौर में एक हजारों साल पुराना मन्दिरों का समूह है जिसमें 84 मन्दिर बताये जाते है। जिसे मन्दिर नहीं देखना हो, वह मन्दिर के बाहर सड़क पर ही खड़ा रह सकता है। जो देखना चाहेगा वो मन्दिर परिसर में जाकर मन्दिर देख आयेगा। मन्दिर देखने के लिये आधे घन्टे का समय मिलेगा। जैसे ही हमारी गाड़ी भरमौर के मुख्य मोड़ पर पहुँची तो वहाँ बने एक प्रवेश द्धार से यह अंदाजा लगाने में आसानी हो गयी कि यही मार्ग भरमौर के चौरासी मन्दिर समूह तक जाता है। यह मन्दिर तो मैंने भी पहले नहीं देखा था। इसलिये गाड़ी से उतरकर पहले एक दुकान वाले से मन्दिर की दूरी मालूम की, दुकान वाले ने बताया था कि मन्दिर यहाँ से लगभग 300-350 मीटर दूर ही होगा। मन्दिर के पास गाड़ी खड़ी होने की जगह नहीं थी इसलिये सबको बताया गया कि मन्दिर आधा किमी दूर भी नहीं है लेकिन वहाँ गाड़ी खड़ी करने की जगह नहीं है इसलिये मन्दिर तक पैदल ही जाना होगा। पैदल जाने के नाम से अथवा थकावट के नाम से गाड़ी वाले तीनों दिलदार अपनी सीट से ऐसे चिपक कर बैठ गये जैसे उन्हे फ़ेविकोल से चिपकाया गया हो। गाड़ी वालों ने मन्दिर देखने से साफ़ मना कर दिया।
बाइक वाले तो अपनी बाइक लेकर मन्दिर की ओर चले गये। बाकि बचे हम चार-पाँच हम पैदल ही मन्दिर की ओर चले गये। तीन चार मिनट पैदल चलते ही मन्दिर दिखायी देने लगा। इस मन्दिर की पहचान भी एक दुकान वाले ने बड़ी जबरदस्त बतायी थी कि आपको इस मार्ग पर जो सबसे ऊँचा पेड़ दिखायी देगा। वही मन्दिर है। जैसे ही हमने मन्दिर के प्रांगण में प्रवेश किया तो सबसे पहले यही विशाल पेड़ सबसे पहले दिखायी दिया। यह देवदार का पेड़ जिसकी ऊँचाई 128 फ़ुट है, चौड़ाई लगभग 24 फ़ुट है। पहले तो इस विशालकाय देवदार के पेड़ के सामने फ़ोटो का एक दौर चला। उसके बाद यहाँ के मन्दिर देखने का सिलसिला आरम्भ हुआ। लगभग 150 वर्ग मी क्षेत्र में यह मन्दिर समूह बनाया गया है। बताया गया कि यहाँ मुख्य मन्दिर तो भगवान भोलेनाथ को समर्पित है लेकिन यहाँ धर्मराज का इकलौता मन्दिर भी है। मन्दिर में एक बन्दे ने हमें बताया कि मरने के बाद सभी आत्मा को इस मन्दिर में अपने पूरे जीवन के कर्मों का लेखा-जोखा जाँचने के लिये आना होता है। पौराणिक कहानियों में एक चित्रगुप्त है जो यमराज के लेखा सहायक है। वे ही यहाँ आने वाले आत्मा से उसका गुणा-भाग पूरा करवाते है।
यह मन्दिर सातवी शताब्दी का बना हुआ है। अत: स्पष्ट है कि यह लगभग 1300 वर्ष पुराना है। लगभग अधिकतर मन्दिरों पर संरक्षित स्मारक वाले बोर्ड भी लगे हुए है। मेरु वंश के राजा साहिल वर्मा के कहने पर शिल्पकार गोगा ने इस मन्दिर समूह का निर्माण कराया था। बताते है कि साहिल वर्मा सन्तान विहीन थे वे संतो की बड़ी सेवा किया करते थे, इसी संन्त आवभक्त में ही एक बार 84 संतो/योगियों ने राजा की आवभगत से प्रसन्न होकर राजा को संतान सुख का आशीर्वाद दिया था। इस मन्दिर की प्राचीनता और स्थापत्य कला ने इसको संरक्षित स्मारक घोषित कराने में मुख्य भूमिका निभायी होगी। अपना मुख्य कार्य मन्दिर को देखने का था इसलिये पेड़ से निपटकर हमने मन्दिर के विशाल प्रांगण में सभी मन्दिर को एक-एक करके देखना आरम्भ कर दिया। यहाँ सबसे पहला व विशाल मन्दिर भगवान भोलेनाथ को अर्पण है इसलिये उनके लिये मन्दिर में एक विशाल शिवलिंग बनाया गया है। इसके बाद हमने अन्य मन्दिर के दर्शन भी किये थे जिसमें हनुमान सहित अन्य देवी देवताओं के मन्दिर बनाये गये है।
यहाँ एक मजेदार घटना हमारे साथ घटी थी कि जब हम मुख्य मन्दिर के फ़ोटो ले रहे थे तो उस समय वहाँ का पुजारी बाहर धूप में बैठा हुआ था। जैसे ही हम फ़ोटो खींच कर वहाँ से हटे तो पुजारी भागा-भागा मन्दिर के अन्दर गया। लेकिन लगता है कि उसे वहाँ कुछ नकद-नारायण नहीं मिला। पुजारी ने इस बात को अपने साथी से कहा ये तो फ़ोटो लेने वाले है। कश्मीर की अमरनाथ यात्रा की तरह यहाँ भी छड़ी वाली परम्परा है। यहाँ की यात्रा चम्बा से आरम्भ होती है। यात्रा इस मन्दिर के दर्शन किये बिना आगे नहीं बढ़ती है। मणिमहेश यात्रा पर जाने वाले हर श्रद्धालु को इस मन्दिर के दर्शन अवश्य करने चाहिए। हम तो यहाँ भगवान की भक्ति के चक्कर में कम घूमने के इरादे से ज्यादा गये थे। मन्दिर में चारों और मन्दिर ही मन्दिर बने हुए है। ज्यादातर मन्दिर छोटे-छॊटे ही है। बड़े मन्दिर तो तीन-चार की संख्या में ही है। यहाँ मन्दिर से सटा हुआ एक स्कूल भी चल रहा था। मन्दिर के आरों ओर घर व कार्यालय भी बने हुए है।
मन्दिर को देखकर हम वापिस गाड़ी की ओर चले आये। गाड़ी में बैठकर पता लगा कि विपिन वहाँ नहीं है। विपिन की आदत कुछ ऐसी है कि यह पैदल ही किधर भी निकल जाता है। उसका मोबाइल मिलाने की असफ़ल कोशिश भी हुई। आखिरकार उसका इन्तजार करना पड़ा। बाइक वाले बन्दे अपनी बाइक सहित भरमाणी माता के मन्दिर तक हो आये थे। अपनी बाइक का यही तो सबसे बड़ा लाभ है जो लाभ हमें गाड़ी या बस से नहीं मिल सकता वो लाभ बाइक से ही मिल सकता है। लेकिन बाइक में एक समस्या भी है कि इसमें थकावट भी बहुत होती है अत: शारीरिक रुप से कमजोर लोग इस प्रकार की लम्बी बाइक यात्रा करने की भूल कर भी ना सोचे। आपको कुछ 15-20 साल के युवक बाइक पर स्टंट करते हुए मिल जायेंगे। लेकिन ऐसी लम्बी यात्रा करना उन स्टंटबाजों के बसकी बात नहीं है। ऐसी लम्बी बाइक यात्राओं के लिये जोश-होश के साथ कलेजा व सबसे बड़ी बात हिम्मत और हौसला भी होना चाहिए। हजारों किमी लम्बी बाइक यात्राएँ बच्चों का खेल नहीं होती। आखिरकार विपिन भी कुछ देर बाद आ पहुँचा। हमारा काफ़िला अपने अंतिम घन्टे की यात्रा पर चल दिया। (क्रमश:)
हिमाचल की इस यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
01. मणिमहेश यात्रा की तैयारी और नैना देवी तक पहुँचने की विवरण।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
02. नैना देवी मन्दिर के दर्शन और भाखड़ा नांगल डैम/बाँध के लिये प्रस्थान।
03. भाखड़ा नांगल बांध देखकर ज्वालामुखी मन्दिर पहुँचना।
04. माँ ज्वाला जी/ज्वाला मुखी के बारे में विस्तार से दर्शन व जानकारी।
05. ज्वाला जी मन्दिर कांगड़ा से ड़लहौजी तक सड़क पर बिखरे मिले पके-पके आम।
06. डलहौजी के पंजपुला ने दिल खुश कर दिया।
07. डलहौजी से आगे काला टोप एक सुन्दरतम प्राकृतिक हरियाली से भरपूर स्थल।
08. कालाटोप से वापसी में एक विशाल पेड़ पर सभी की धमाल चौकड़ी।
09. ड़लहौजी का खजियार उर्फ़ भारत का स्विटजरलैंड़ एक हरा-भरा विशाल मैदान
10. ड़लहौजी के मैदान में आकाश मार्ग से अवतरित होना। पैराग्लाईंडिंग करना।
11. ड़लहौजी से चम्बा होते हुए भरमौर-हड़सर तक की यात्रा का विवरण।
12. हड़सर से धन्छो तक मणिमहेश की कठिन ट्रेकिंग।
13. धन्छो से भैरों घाटी तक की जानलेवा ट्रेकिंग।
14. गौरीकुन्ड़ के पवित्र कुन्ड़ के दर्शन।
15. मणिमहेश पर्वत व पवित्र झील में के दर्शन व झील के मस्त पानी में स्नान।
16. मणिमहेश से सुन्दरासी तक की वापसी यात्रा।
17. सुन्दरासी - धन्छो - हड़सर - भरमौर तक की यात्रा।
18. भरमौर की 84 मन्दिर समूह के दर्शन के साथ मणिमहेश की यात्रा का समापन।
19. चम्बा का चौगान देखने व विवाद के बाद आगे की यात्रा बस से।
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हिमाचल की इस बस व रेल यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
मन्दिर प्रांगण में भीमकाय देवदार |
मुख्य मन्दिर |
घन्टा व ढ़ोल यंत्र |
अभ्यास जारी है। |
मंदिरों का स्थापत्य चमत्कृत करता है।
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