सोनप्रयाग में पुल के पास ही कावँर यात्रियों के लिये एक लंगर/भण्डारा
चल रहा था हमने यहाँ भी दो-दो पूरी का प्रसाद ग्रहण किया व कुछ देर आराम
करने के बाद आगे की यात्रा पर चल दिये। यहाँ सोनप्रयाग के पुल के पास कुछ
देर तक खडे होकर नदी की अनवरत बहती धारा का कभी ना भूलने वाला यादगार पल
बिताया गया था। यहाँ से आगे सडक पर हल्की-हल्की चढाई भी शुरु हो गयी थी
लेकिन हम तो एक सप्ताह से ऐसी-ऐसी खतरनाक पैदल उतराई व चढाई से होकर आये थे
कि अब कैसी भी चढाई से हमारा कुछ नहीं बिगडता था।
मुश्किल से एक किमी ही चले थे कि वो जगह आ गयी जिसकी हमें काफ़ी देर से
प्रतीक्षा थी, जब इस मन्दिर के लिये सडक से ऊपर जाने वाले एक छोटे से मार्ग
पर चलने लगे तो इस सौ मी के मार्ग ने ही साँस फ़ुला दी लेकिन हम भी कहा
मानने वाले थे जब ऊपर जाकर देखा तो हमें यही लगा कि यहाँ शायद ही दिन में
दस-बीस लोग आते होंगे। ना पुजारी मौजूद ना कोई सुविधा, आखिर इतनी
महत्वपूर्ण जगह पर कुछ भी नहीं किया है। और तो और पीन का पानी भी नहीं था
जिसकी जरुरत यहाँ पड ही जाती है। हम लगभग 15 मिनट तक यहाँपर रुके थे और
यहाँ से नीचे झाँक कर देखा तो सडक पर जाने वाले वाहन छोटे से लग रहे थे।
फ़ोटो ले नमस्कार कर चल दिये आगे इन्ही सिरकटे भगवान के पिता के घर की ओर
भगवान गणेश जी का वो मन्दिर जहाँ पर किसी युग में(युग का नाम याद नहीं)
भोले नाथ ने अपने ही छोटे लडके गणेश की गर्दन उसके धड से अलग कर दी थी, बात
भी कोई खास नहीं थी, पार्वती माता ऊपर गौरीकुन्ड में नहाने के लिये गयी
हुई थी और गणेश जी को यहाँ पहरे पर बैठा दिया था ये कह कर की किसी को आगे
मत जाने देना, कहते है कि गणेश को भी ये नहीं मालूम था कि भगवान भोले नाथ
उसके पिताश्री है। बालक भी नादान था अड गया शिव शंकर से और भोलेनाथ भी जब
बालक को ना समझा पाये तो आखिरकार भोलेनाथ ने गुस्से में आकर गणेश की गर्दन
ही उसके धड से अलग कर दी और भगवान की माया देखो गर्दन कटने के बाद पार्वती
माता भी आ गयी। अब सारा माजरा सुन पार्वती माता ने जिद पकड ली कि जब तक आप
गणेश को जीवित नहीं करोगे मैं भी यहाँ से नहीं जाऊँगी। भगवान भोलेनाथ के
त्रिशूल के बारे में कहा जाता है इससे जिस का काम तमाम हो गया वो सिर पुन:
जीवित नहीं हो सकता है अत: सबने यही सुझाव दिया कि किसी भी प्राणी का सिर
जो सबसे पहले मिले तथा वो भोलेनाथ के त्रिशूल से ना कटा हो जल्द से जल्द
लाया जाये ताकि गणेश को पुन: जीवित किया जा सके। अब उस जंगल तो उस समय हाथी
ही ज्यादा होते थे आज तो शायद ही उस इलाके में मिलते हो, एक हाथी के बच्चे
का सिर काट कर लाया गया उस सिर को गणेश के धड पर लगाया गया जिसके बाद जाकर
गणेश जीवित हुए।
भगवान गणेश का सिर शिव शंकर जी ने धड से अलग कर दिया था। |
देख लो पुराणों में इसके बारे में लिखा हुआ है। |
अब कुछ देर तक जंगल के बीचों बीच से होकर मार्ग था, जब इसे पार किया तो
सामने नजर आया वाहन का ठहराव स्थल यानि कि पार्किंग जिसे देखते ही मैं समझ
गया कि अब गौरीकुन्ड आ गया है। मैं जब भी यहाँ गौरीकुन्ड आता हूँ तो जहाँ
सडक समाप्त होती है वही से रुकने खाने के लिये व अपनी बाइक को ठहराने के
लिए सीधे हाथ पर बने एक होटल में जाता रहा हूँ जो आसानी से सौ रुपये में
मुझे व मेरी बाइक दोनों को रुकवा लेते है। लेकिन इस बार तो हम अपने साथ आये
लोगों के बताये ठिकाने पर रुकना था जोकि थोडा बाजार में जाने पर आया था,
हम दोनों पवाँली के मार्ग से आये थे जिस कारण एक दिन पहले आ गये थे अब
हमारे पास पूरा एक दिन का समय था गौरीकुन्ड में बिताने के लिये, जिसे हमें
बडॆ मजे से बिताया था गौरीकुन्ड के दोनों मुख्य स्थल मन्दिर व नहाने का
कुन्ड बडे आराम से दर्शन किये, स्नान भी गौरीकुन्ड के गर्मागर्म पानी में
ही किया था। लगातार कई दिन तक। हमने गौरीकुन्ड में उनके बतायी होटल में
कमरा लिया व आराम किया अगले दिन आराम से ऊठे आज कहीं नहीं जाना था अत: कोई
जल्दी भी नहीं थी। खाने के लिए कुन्ड के पास एक बंगाली ढाबे वाला मशहूर है
वहीं पर खाना खाते रहे। हमारे साथ वाले कुछ साथियों ने तो मुरादनगर से अपने
परिवार को भी वही बुलवा लिया था वे सब भी सबके साथ ही केदारनाथ के लिये
गये थे।
हमारे कुछ नजदीक वाले साथी सडक वाले मार्ग से आये थे जो एक दिन बाद आये
थे, जब हमने उन्हें बताया कि हम तो कल ही आ गये थे व मार्ग में कोई खास
परेशानी नहीं आयी थी व एक से एक शानदार नजारे थे तो हमारी ये बात सुनकर
हमारे दो बुजुर्ग सदस्य ने बुरा मुँह बना लिया था क्योंकि जो तीन नये लडके
पहली बार मेरे कहने पर गये थे लेकिन उन बुजुर्ग सदस्यों के डराने पर पवाँली
से ना जाकर उनके साथ सडक मार्ग से चमियाला होते हुए गये थे अब देखिये उनके
साथ जाने से उन्हे कितना घाटा उठाना पडा पहला 95 किमी ज्यादा चलना पडा,
भले ही सडक मार्ग था आसान वो भी नहीं था, दूसरा एक दिन ज्यादा लगा, तीसरा
हम सिर्फ़ आधा दिन चलते थे वो पूरा दिन, चौथा सबसे बडा नुकसान पवाँली
बुग्याल जैसी जगह जाने का मौका चूकना जो शायद दुबारा आसानी से मिल पाये।
हमारी पवाँली यात्रा के चर्चे सुनकर तो तीनों नये लडकों के मन में आग लग
गयी थी उन्होंने उन बुजुर्ग को खूब सुनायी कि क्यों हमें जानबूझ कर डराया।
अब अगली सुबह हमें तो जल्दी केदारनाथ जाना था क्योंकि हमें दोनों को रात
में वहाँ केदारनाथ रात में नहीं रुकना था।
अत: आखिरी रात व दिन की नौंक झौंक व मस्त सफ़र गौरीकुन्ड से केदारनाथ आना-जाना आखिरी किस्त में बताया जायेगा उसी में केदारबाबा के दर्शन भी होंगे, तब तक जय भोलेनाथ सबके साथ……………
अत: आखिरी रात व दिन की नौंक झौंक व मस्त सफ़र गौरीकुन्ड से केदारनाथ आना-जाना आखिरी किस्त में बताया जायेगा उसी में केदारबाबा के दर्शन भी होंगे, तब तक जय भोलेनाथ सबके साथ……………
गोमुख से केदारनाथ पद यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे दिये गये है।
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जय भोलेनाथ.
जवाब देंहटाएंपर्यटन के साथ ज्ञान भी..
जवाब देंहटाएंyaar aap to adbhut ho. aapke dershan kerne ka man ker raha hai.
जवाब देंहटाएंजाट देवता साब आपकी ये पूरी सीरीज मैंने तीन बार पड़ी है। अक्सर सोचा करता हूँ की एक बार मैं ये रास्ता करूँगा पर साल दर साल गुजरते रहे ......
जवाब देंहटाएंआपका बहुत धन्यवाद् की मैं कभी जाऊं या ना जाऊं पर आपकी नज़र से यह देख लिया।