गोमुख से केदारनाथ पद यात्रा-3
रात को अंधेरा होते-होते हम लोग झाला गाँव पहुँचे थे। यह गाँव गंगौत्री जाते समय हर्षिल से कई किमी पहले पड़ता है। यहाँ पर एक पुल से गंगा नदी पार करते ही रात में ठहरने के लिये बहुत सारे होटल आदि बने हुए है। मैं कई बार बाइक से यहाँ से होकर गया हूँ लेकिन कभी गंगौत्री से उत्तरकाशी के बीच रात में नहीं रुका था। आज पहला मौका मिल रहा था जो मैं झाला में रुक रहा था। अगर हम गंगौत्री से सुबह जल्दी चले होते तो आज की रात गंगनानी में ठहरने की योजना बना ड़ालते। सुबह उठते ही नहा धोकर चलने की तैयारी करने लगे। हम तो नहा धोकर अपनी सही समय 6 बजे तैयार हो गये थे\ लेकिन हमारे ग्रुप में कुछ दो-तीन बुढ़्ढे थे। वे सुबह चलने में बहुत ढ़ीले थे। जिस कारण पहले दिन गंगौत्री से चलने में दोपहर करायी थी। अब यहाँ से चलने में भी सात से ज्यादा बजा दिये थे। इनके साथ मेरी यह पहली व आखिरी यात्रा थी इनके ऐसे रवैये के बाद मैंने इनके साथ दुबारा कभी यात्रा नहीं की थी।
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इन थके हुए को मत देखो, इनके पीछे गंगा की गहराई देखो |
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गंगा की धार देखो।
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ऊपर आकर दूसरी ओर का नजारा |
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पीछे बलखाती सड़क दिख रही है |
ऊपर के फ़ोटो देखकर आप यहाँ की भयंकर चढ़ाई तो समझ ही गये होंगे। सुबह नहा धोकर चले थे तो एकदम तरोताजा थे जिस कारण यह तीन किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़ गये थे। इस चढ़ाई पर चढ़ने में यदि हम सड़क मार्ग से आते तो हमें 12 किमी चलना पड़ता, लेकिन पैदल मार्ग से मात्र तीन किमी में ही यह चढ़ाई पूरी हो गयी थी। यहाँ चढ़ते समय सबकी साँस धोकनी की तरह चल रही थी। थोडी देर बाद सभी सामान्य हो पाये थे। ऊपर आकर सुक्खी टॉप से चारों और देखने में बहुत अच्छा लग रहा था। कुछ देर रुक कर अपनी शारीरिक मशीनरी को आराम दिया गया था। ऊपर आकर दूसरी ओर नीचे उतरने के लिये मार्ग तलाश कर लिया। अबकी बार फ़िर से हमें कच्चे मार्ग से ही नीचे उतरना था। हमें नीचे जाती हुई एक पगड़न्ड़ी दिखायी दे रही थी।
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एकदम सही बात |
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यह उससे भी बढ़िया बात |
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बिना शार्टकट के उतरते हुए |
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पुल पार करते ही पत्थर का भय |
नीचे उतरते समय कुछ दूर तक तो सड़क के समान्तर चलते रहे उसके बाद नीचे की ओर तेजी से उतरते चले गये। लगभग एक किमी उतरते के बाद एक गाँव में जा पहुँचे। इस गाँव में एक पेड़ पर खाने की कच्ची नाशपाती लगी हुई दिखायी दे रही थी। मन हुआ कि चलो तोड कर खायी जाये। लेकिन साथ वालों ने बताया कि गंगा जल साथ लेकर इस प्रकार खाना पीना मना है। चल भाई आगे से गंगा जल लेकर नहीं आयेंगे। गाँव के बीचोबीच से कच्ची पगड़न्डी बनी हुई थी। इससे होते हुए हम तेजी से नीचे की ओर उतर रहे थे। बीच में एक दो बार सड़क पार करनी पड़ी थी। लेकिन हम सड़क को काटकर फ़िर से नीचे उतर जाते थे जबकि सड़क काफ़ी घूम कर आती थी। चढ़ाई की तरह उतराई में भी हमने कई किमी की बचत कर ली थी। एक जगह आकर सड़क पर चलना पड़ा। अचानक सड़क से नीचे देखा तो एक और मोड़ नजरा आया। हमने यहाँ से भी शोर्टकट मारने की सोची, लेकिन यहाँ पैदल चलने का कोई निशान नहीं दिख रहा था। हमने एक किमी दूरी बचाने के लिये यहाँ जबरदस्ती का शोर्टकट बना दिया था। यहाँ हमें तीखी ढ़लान पर काफ़ी सावधानी से उतरना पड़ रहा था। सभी झिझकते हुए इसे पार कर गये।
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गर्मा गर्म पानी वाह |
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नहा ले भाई नहा ले |
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अब चलो भी |
जब शार्टकट समाप्त हो गये तो सीधी सड़क पर चलते हुए एक पुल पार कर दूसरी ओर आ गये। पुल पार करने के कुछ दूर बार यहाँ पर ऊपर पहाड़ से पत्थर गिरने की भय रहता है इस कारण काफ़ी सावधानी से चलते हुए यह आधा किमी की दूरी पार की थी। जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जा रहे थे वैसे-वैसे गर्म पानी का कुन्ड गंगनानी नजदीक आता जा रहा था। हम सुबह तो नहाये थे ही, फ़िर भी गर्म पानी के कुन्ड में नहाकर एक बार फ़िर से तरोताजा हो लेना चाहते थे। जैसे ही गंगनानी आया तो सबसे पहले तो एक ढ़ाबे में खाना खाने के लिये घुस गये। यह ढ़ाबा भी बड़ी खतरनाक जगह बनाया हुआ था। आधा ढ़ाबा खाई में लटका हुआ था। यहाँ इडली साँभर खाया गया था। इसके बाद गर्म पानी में कूदने के लिये ऊपर कुन्ड मॆं जाकर कूद पडे। यहाँ घन्टा भर पानी में मजे लेते रहे। इसके बाद एक बार अपनी मंजिल के लिये चल दिये। आज की रात हमारी मंजिल भटवाडी से आगे चलकर लाटा नामक गाँव में थी। एक दिन में लगभग 50 किमी से ज्यादा की यात्रा होने वाली थी।
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यहाँ से गिरकर क्या बचेगा? |
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पूरी बस में से यह बचेगा |
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यह तो काम का बोर्ड है |
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रुकने का ठिकाना भी है |
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पचास किमी की यात्रा पूरी |
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यह भी काम का है |
रात को लाटा में रुकने के बाद सुबह बेलक बुग्याल की ओर रवाना होना था जहाँ से बुढ़ाकेदार होते हुए जाना था।
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वहाँ पर नहाने का मन हमारा भी किया था पर क्या करें अनुमति नहीं मिली..
जवाब देंहटाएंदेवता 50 किलोमीटर कैसे हुआ ? समझ नही आया ! एक ही दिन में दो दो बार नहाना ! सारे पाप उतार दिए !!
जवाब देंहटाएंगजब हो सच में☺️
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