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रविवार, 3 फ़रवरी 2013

Dudhsagar through railway line and tunnel दूधसागर झरने वाली रेलवे लाइन पर, सुरंग से होते हुए ट्रेकिंग

गोवा यात्रा-15
दूधसागर झरने को देखने के बाद हम लोग इसके और नजदीक जाने के लिये पहाड़ पर ऊपर चढ़ने लगे। इस पहाड़ी पर चढ़ने के लिये जो मार्ग बना हुआ था वह ठीक वहाँ से शुरु होता था, जहाँ से जीप मार्ग समाप्त होकर पैदल इस झरने की ओर बढ़ते है, वही थोड़ा सा ध्यान दिया जाये तो सामने के जंगल में ऊपर की ओर जाती हुई पगड़न्डी दिखायी दे जाती है। इस मार्ग पर चढ़ाई लगातार जरुर है लेकिन घने जंगलों में से होकर जाते समय पता ही नहीं लगता कि कब दस मिनट समाप्त हो गये? हम ऊपर आकर रेलवे लाईन के किनारे बैठ गये। जब तक सब आते, तब तक हमने वहाँ पर अपने मोबाइल से फ़ोटो लेने जारी रखे। जब सभी ऊपर आ गये तो आगे बढ़ चले। यहाँ से हमें उल्टे हाथ की ओर रेलवे लाईन के समांनातर चलते जाना था। रेलवे लाईन के साथ चलते हुए हमें तीन सुरंगे भी पार करनी थी। नीचे वाले फ़ोटो में जो सुरंग है इसका संख्या 13 है। इसके बाद दो सुरंग और आयेंगी लेकिन उससे पहले दूधसागर झरना आ जायेगा।

गोवा आते समय इसी रेलवे ट्रेक से आये थे, अब रेल की जगह ट्रेकिंग करते हुए जा रहे है।




Tunnel no 13,


सुरंग की ओर आती मानव रेल

सुरंग का दूसरा छोर


लो जी सुरंग नम्बर 12 भी आ गयी है।

थोडी दूर चलते ही पहली सुरंग संख्या नम्बर 13 आ गयी थी। यह सुरंग ज्यादा लम्बी व टेडी-मेडी नहीं थी। जिस कारण इसमें अंधेरा बहुत कम था। यह सुरंग आसानी से पार हो गयी जैसे ही यह सुरंग पार हुई तो देखा कि अगली सुरंग भी एकदम तैयार खड़ी थी। पहली से निपटते ही दूसरी सुरंग में घुस गये। इस सुरंग में ऊपर वाले फ़ोटो को देखिये और महसूस करिये कि कैसा अनुभव होता होगा? जब इन्हें पैदल चलते हुए पार करते होंगे। सबसे आगे अपने कैम्प के लीडर (लाल कमीज में) चले जा रहे थे, उनके पीछे हमारी तीस डिब्बे की मानव मालगाडी चली जा रही थी। आज के सफ़र में ही वही स्थल आना था जहाँ पर बैठकर डेटॉल व नारियल तेल (सांडे का तेल ज्यादा बढिया रहता) लगाना था। 12 नम्बरी सुरंग पार करते ही दूधसागर झरने के नजदीक पहुँच गये थे। जिस पुल को अभी तक रेल से व नीच खाई/घाटी में में देखा था अब उसी पुल पर खडे होने की खुशी सबके साथ हमारे चेहरे पर झलक रही थी। यहाँ पर हम काफ़ी देर रुके रहे। कैम्प लीडर आगे चलने को कहते रहे, लेकिन वहाँ पर नयनाभिराम नजारों में खोये-खोये से हम, आगे जाने को तैयार नहीं थे। काफ़ी देर बाद आगे बढे।  
अब देखो ऊपर से नीचे गहरी खाई/घाटी का मंजर

ऊपर से दूध सागर की झलक, अबे पेड़ आगे से हट जा





यह यहाँ का (स्टेशन नहीं ) हाल्ट है।

दूधसागर झरने को देखकर आगे बढे ही थे कि हमें वहाँ पर इसके स्टेशन जैसे होने के बोर्ड लगे हुए दिखाई दिये। चूंकि वहाँ कोई टिकट खिडकी आदि नहीं थी इसलिये स्टेशन कहना तो उचित नहीं है, हाँ यह जरुर था कि ट्रेन वहाँ पर लगभग रुकती हुई सी आगे बढती है यह हमने गोवा एक्सप्रेस से यहाँ आते समय देखा था। मैंने नेट पर इसके बारे में काफ़ी खोजबीन की लेकिन मडगाव से यहाँ तक चलने वाली लोकल रेल की जानकारी नहीं मिल सकी। इस झरने से पहले गोवा की ओर एक स्टेशन पर सभी तरह की रेल जरुर रुककर चलती है जहाँ से (कुलेम) हमने पैदल यात्रा शुरु की थी।  जैसे ही हम सुरंग संख्या 11 में घुसे तो हमें पता लग गया कि यह तीनों सुरंग में सबसे लम्बी सुरंग है। इसे पार करने में कई मिनट लगे थे। हमारे ग्रुप में कई बन्दों के पास टार्च नहीं थी, कई ने अपने मोबाईल वाली लाईट से काम चलाया था। मैंने और मेरे जैसे कई सिरफ़िरो ने बिना लाइट/रोशनी के ही इस सुरंग को पार कर लिया था। इस सुरंग की लम्बाई तीन सौ मीटर से ज्यादा थी। इस अन्तिम सुरंग को पार करते ही कैम्प लीड़र ने बताया कि अब हमे रेलवे ट्रेक छॊड़ कर नीचे खाई मे घाटी की ओर उतरते जाना होगा, इसलिये पहले सब यहाँ आ जाये उसके बाद ही यहाँ से नीचे जायेंगे।



सुरंग पार करने के बाद आगे देखो, एक मालगाडी आ रही है।


कितने इंजन लगाओगे।

नीचे झरने के पास हम रेल का इन्तजार करते ही रहे लेकिन रेल नहीं आयी, और आयी भी तो कहाँ, जहाँ से हमें यह ट्रेक छोड कर नीचे उतरना था। ट्रेन की आवाज सुनकर सभी ट्रेन का इन्तजार करने लगे, लेकिन ट्रेन थी कि आ ही नहीं रही थी। हम सोच ही रहे थे कि ट्रेन वहाँ क्यों खडी है? इसी बीच हमारे दो साथी सुरंग से आते दिखाये दिये। हमने अंदाजा लगाया कि हो सकता है कि सुरंग में सैंसर आदि कुछ यंत्र लगाया गया हो जिस कारण ट्रेन को सिंगनल नहीं मिल रहा हो। जैसे ही हमारे दोनों साथी सुरंग से बाहर आये, ट्रेन ने अपनी सीटी से बता दिया कि वह आ रही है। धीरे-धीरे ट्रेन हमारे पास आयी तो हमने देखा कि इसमें तो चार-चार इन्जन लगे हुए है, और यह रेलगाडी भी नहीं है मालगाडी है। उधर ट्रेन सुरंग में ओझल हो रही थी इधर हम घाटी में घने जंगलों में गुम होने के लिये चल पडे।



अगले लेख से आपको एक बार फ़िर गोवा के जंगल की ट्रेकिंग करायी जायेगी।




गोवा यात्रा के सभी लेख के लिंक नीचे क्रमवार दिये गये है। आप अपनी पसन्द वाले लिंक पर जाकर देख सकते है।

भाग-10-Benaulim beach-Colva beach  बेनाउलिम बीच कोलवा बीच पर जमकर धमाल
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11 टिप्‍पणियां:

  1. यहाँ पर इतना अधिक चढ़ाई है कि एक इंजन से काम चलता ही नहीं..

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  2. सैर का आनंद आ रहा है।
    दो सुरंगों वाला फोटो बहुत बढ़िया लगा . इसे एडिट करके दिखाइए , और भी बढ़िया लगेगा।

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  3. घुमक्कड़ी का बिंदासपन लेखन में भी छाया हुआ है। मस्त, टेंशनफ़्री, दिलचस्प।

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  4. और हाँ, बार्डर फ़्रेम से तस्वीरें और भी शानदार दिख रही हैं :)

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  5. या रब मेरे वजूद को वो इख़्तियार दे
    जो जिन्दगी को धूप में हंसकर गुजार दे

    बे जौक़ चल पड़े जो हर इक जुल्म के खिलाफ
    जुर्रत मेरे कलम को वो परवर दीगार दे

    वाह जाट जी क्या बात है बहुत सुन्दर रोमांच पूर्ण वर्णन किया है आपने ..

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  6. गजब सै, ट्रेकिंग में भी सांडे का तेल। जाट जो कर दे वो कम ही सै। :)

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  7. अरे भाई झरने के दर्शन भी करादो ना...सुरंग के चित्र बहुत सुन्दर हैं...

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  8. "यह रेलगाडी नहीं है, मालगाडी है।"
    क्या मालगाडी रेलगाडी नहीं होती? रेल का मतलब होता है लोहे की पटरियां और इनके ऊपर जो भी चले, वही रेलगाडी है।

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