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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

सूर्यगढ़ पैलेस Suryagarh Palace जैसलमेर से सम जाने वाले मार्ग पर स्थित


जैसलमेर से यहाँ सम वाले रेत के टीले देखने के लिये आते समय बीच मार्ग में सीधे हाथ की ओर किसी एक जगह एक किले जैसा कुछ दिखाई दे रहा था। वहाँ एक बडा सा बोर्ड भी लगा हुआ था जिस पर लिखा हुआ था सूर्यगढ़ पैलेस। राजस्थान में तो वैसे भी जहाँ देखो, वहाँ किले या गढ़ ही गढ़ बने हुए मिल जाते है। ज्यादातर थोडा सा ऊँचाई पर स्थित किले को गढ ही कहा जाता है। तो दोस्तों आज के लेख में आपको इसी सूर्यगढ़ की सैर करायी जा रही है।




जब हम कार से वापस जैसलमेर के लिये चले तो कार चालक से चलते ही कह दिया था कि सूर्यगढ़ देखकर चलना है अत: बातों बातों में आगे नहीं निकल जाना, नहीं तो आगे जहाँ भी जाकर याद आया तो वहीं से वापिस आना होगा। इस चेतावनी का यह लाभ हुआ कि कार चालक ने सूर्यगढ आने से पहले ही बता दिया था कि वो देखो सूर्यगढ़ दिखाई देने लगा है।


यह सूर्यगढ पैलेस वैसे तो सम जाने वाली मुख्य सडक पर ही (सीधे हाथ जाते समय) बना हुआ है। पहली नजर में देखने पर यह किसी राजा-महाराजा का महल जैसा दिखाई देता है। हमारे कार चालक ने अपनी कार इस किले के मुख्य प्रवेश मार्ग से अन्दर प्रविष्ट करायी। बाहर सडक से जो पहली झलक यहाँ की दिखती है वही यह अहसास करा देती है कि ईमारत अन्दर से भी बुलन्द मिलेगी। कार रोकने के लिये यहाँ कि पार्किंग की ओर बनाये गये, तीर के निशान की ओर बढते गये।


कार चालक कार को पार्किंग में लगाने चला गया था जबकि हम दोनों कार से उतर कर, इसे अन्दर से देखने के लिये चल पडे। अन्दर प्रवेश करने से पहले एक पहरेदार ने हमारा स्वागत किया और अन्दर स्वागत कक्ष तक पहुँचने का मार्ग बताया। हम स्वागत कक्ष की ओर बढ चले, उससे पहले हमने वहाँ कुछ फ़ोटो लेने शुरु कर दिये। फ़ोटॊ लेने के बाद हम स्वागत कक्ष में दाखिल हुए।


स्वागत कक्ष में प्रवेश करते ही लगा कि जैसे एक अलग तरह की दुनिया में पहुँच गये हो। स्वागत कक्ष में मौजूद कर्मचारी को अपना परिचय देकर, हमने होटल देखने की इच्छा जाहिर की। उन्होंने कुछ देर इन्तजार करने को कहा, तब तक हमारे दोनों के लिये मौसमी का ठन्डा-ठन्डा कूल-कूल शरबत पेश किया गया। हम वहाँ की गर्मी में उस ठन्डे शरबत का लुत्फ़ उठा ही रहे थे कि तभी वहाँ के मैनेजर हमारे सम्मुख हाजिर हो गये। जैसे ही हमने शरबत का गिलास खाली किया तो मैनेजर ने एक सहायक को हमारे साथ जाने को कहा। हम दोनों सूर्यगढ देखने के लिये वहाँ के एक कर्मचारी के साथ हो लिये।


स्वागत कक्ष से बाहर निकलते ही जिस गैलरी में हमने प्रवेश किया था वहाँ आकर ऐसा महसूस हुआ कि जैसे हम किसी होटल में नहीं बल्कि किसी महल में अन्दरुनी निजी इलाके में घुस आये हो। गैलरी तो बेहद शानदार थी ही उसके अलावा चारों ओर इस गैलरी से घिरा हुआ आंगन बेहद ही शानदार दिख रहा था। इस शानदार आंगन में की गयी बारीक कारीगरी को देखकर मन इसका दीवाना हो उठा। किसी तरह मन को कहा चुप बैठा जा ताऊ, नहीं तो सूर्यगढ़ वाले बिदक जायेंगे कि जाटदेवता संदीप पवाँर हमारे गढ़ को लेकर भाग ना जाये।(ऐसा सम्भव नहीं है) इस आंगन के बाद हम आगे बढ चले।


आंगन के बाद आगे बढते हुए यहाँ के तरणताल swimming pool तक पहुँच गये। यहाँ का स्वीमिंग पूल काफ़ी बडा बना हुआ था। यह एक हॉल के अन्दर बना हुआ था, काफ़ी साफ़ सुधरा तो था ही इस बारे में तो कहने को कुछ है नहीं। जिस समय हम यहाँ आये दो विदेशी जोडे यहाँ यहाँ आराम कर रहे थे। हमें उन विदेशियों से तो कुछ लेना देना नहीं था। अत: हम इस पूल में बिना नहाये-धोये आगे बढ चले।  


आगे बढने पर हमें एक और शानदार हॉल में देखने को मिला जिसमें प्रवेश करते ही वहाँ का माहौल देखकर खेलने को मन ललचा उठा कि चल जाट भाई हो जा शुरु, लेकिन समय इस बात की इजाजत नहीं दे रहा था कि हम वहाँ धमाल चौकडी मचा पाते। वैसे तो कई फ़ोटो खेल वाले कक्ष के लिये थे लेकिन सबसे बेहतरीन फ़ोटो बिलियर्ड वाले बोर्ड का आया था अत: यहाँ वही फ़ोटो लगाया है। इसे देखकर ही अंदाजा लगा लेना कि इमारत कितनी बुलन्द रही होगी।


खेल विभाग से आगे बढते ही एक अलग अंदाज देखने को मिल गया था यहाँ सूर्यगढ़ का अपना खुद का आधुनिक जिम बनाया हुआ था। जिम में दौडने वाले ट्रेड मील से लेकर, वेट मशीन आदि-आदि कई तरह की मशीन, यहाँ पर आपकी शारीरिक क्षमता नापने को तैयार थी। इस दौडने वाली मशीन पर जरुर एक हाथ आजमाया गया था। काफ़ी देर से कार में बैठे हुए थे जिस कारण यहाँ दो मिनट दौडने में साँसे बता रही थी कि अभी तो मैं 37 साल का मस्त जवान हूँ।


इतना कुछ देखने के बाद यहाँ के रुम देखने की बारी आ गयी थी। जैसे ही हम एक रुम में घुसे थे कमरे का माहौल भी अन्य सभी स्थलों की तरह आलीशान दिखाई दिया। एक के बाद एक कई कमरे देखे, लगभग सभी, एक से बढकर एक दिखाई दिये। होटल के कमरों में सभी प्रकार की आधुनिक सुख सुविधा प्रदान की गयी थी। यहाँ का एक दिन का कम से कम किराया पाँच से आठ हजार रुपये के बीच है। पब्लिक की यहाँ ज्यादा मारामारी नहीं है अत: आराम से इस होटल में कमरा मिल जायेगा।

जब लगभग सारा होटल देख लिया गया तो यहाँ से चलने की बारी आ ही गयी। हम एक बार फ़िर अपनी कार में सवार होकर आगे जैसलमेर की ओर चल पडे। कार चालक से हम वहाँ के बारे में बारे करते जा रहे थे कि जैसलमेर से पहले भी कुछ देखने लायक जगह है कि नहीं। कार चालक ने बताया कि यहाँ जैसलमेर में कई और देखने लायक स्थान है। जैसे जैसलमेर किला जो देख लिया था, सोनार किला, हवेलियाँ, गडसीसर जलाशय, टीला की पोल, बादल विलास, जवाहर विलास, अमरसागर, मूल सागर, गजरु सागर, सम के रेत के टीले, मरुभूमि राष्ट्रीय उद्यान उनमें मुख्य है।

जब जैसममेर आने वाला था तभी एक सडक उल्टे हाथ जाती दिखाई दी जिस पर किसी जलाशय व जैन मन्दिर के बारे में लिखा हुआ था। हमने कार चालक से कहा कि इस जैन मन्दिर की ओर कार मोड चलो। कार चालक ने कहा कि यह मन्दिर कई किमी दूर है और वहाँ फ़ोटो भी नहीं लेने देते है। ठीक है ताऊ तु चल तो सही, फ़ोटो ना लेने दे कम से कम उसे देख तो लेंगे ही की कैसा मन्दिर है।

तो दोस्तों अगले लेख में आपको हजार साल पुराना जैन मन्दिर व मन्दिर के साथ का एक सूखा जलाशय दिखाया जायेगा। यह मत कहना कि पानी का क्यों नहीं दिखाया, पानी का देखना है तो बरसात के सीजन में जाना। लगे हाथ आपको यहाँ का सती स्थल भी, अगली पोस्ट में ही दिखाया जायेगा।








5 टिप्‍पणियां:

  1. संदीप जी राम राम, बहुत ही सुन्दर, और शानदार किला कम महल, लगता हैं ये महल आजकल के ही समय में बना हुआ हैं. बहुत ही खूबसूरत. धन्यवाद, वन्देमातरम....जय श्रीराम

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  2. वाकई सब राजसी ठाठ बाठ हैं। भव्य प्रदेश, बुलंद ईमारतें, मनमौजी घुमक्कड - एकदम मस्त।

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  3. संदीप भाई आपकी राजस्थांन यात्रा में मुझे अब तक की यह सबसे सुन्दर इमारत लग रही है कम से कम फोटो में तो . अति सुन्दर और भव्य राजवाडा जैसा होटल है .

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