पेज

रविवार, 25 नवंबर 2012

जैसलमेर किले में राजा की व शहर में पटुवों की हवेली का कोई सानी नहीं


जैसलमेर के किले में एक घुमक्कडी भरा चक्कर लगाते समय हमने देखा कि यह किला कोई खास ज्यादा बडा नहीं है। (दिल्ली के लाल किले जैसा) लोगों से पता लगा कि पहले इस किले से अन्दर ही सारा शहर समाया हुआ था। किले के अन्दर चारों ओर घर ही घर बने हुए है। यहाँ अन्य किलों की तरह बडा सा मैदान तलाशने पर भी नहीं मिल पाया। इसी किले में आम जनता के साथ यहाँ के राजा रहते थे। किले को आवासीय बस्ती कह दूँ तो ज्यादा सही शब्द रहेगा।
राजा का महल हवेली जैसा

राजा की हवेली का एक और फ़ोटो
यहाँ के राजा का निवास स्थान भी ज्यादा बडा इलाका घेरे हुए नहीं मिला। राजा का निवास जिस हवेली नुमा इमारत में बना हुआ था, वह इमारत एक शानदार हवेली कही जा सकती है। हमने हवेली अन्दर से देखनी की कोशिश की, लेकिन पता लगा कि वहाँ पर कुछ निर्माण कार्य होने के कारण अभी यह हवेली दर्शकों के लिये बन्द की हुई है। जिस वजह से यह हवेली हम नहीं देख पाये। यह हवेली उसी मार्ग (गली-सडक) पर स्थित है जहाँ से होते हुए हम इस किले में दाखिल हुए थे।
यह है पटवों की हवेली का दरवाजा

इससे ज्यादा बडा फ़ोटू लेने की गुंजाइस ना थी।
किले का चक्कर लगाकर हम किले से बाहर आने के लिये चल पडे। जिस मार्ग से किले में प्रवेश किया था। निकास के लिये भी, उसी मार्ग का प्रयोग करते हुए हम लोग किले से बाहर आ गये थे। इससे पहले हम किले से ज्यादा दूर निकल जाये और कुछ बात बतानी भूल जाये तो पहले दो-चार बाते बता देनी ठीक रहेंगी। जब हम किले की चारदीवारी के ऊपर खडे थे वहाँ से जो कुछ हमें दिख रहा था वह आपने भी फ़ोटो के जरिये देख ही लिया है। किले के चारों और जहाँ तक नजर देख सकती थी वहाँ तक बहुत गौर करके देखने पर भी हम आगे कही दूर तक कोई गाँव नहीं देख पाये थे। इस बारे में वहाँ के एक बन्दे से पता किया था, उसने बताया था कि रेगिस्तान में पानी की समस्या होने के कारण गाँव काफ़ी दूर-दूर मिलते है।
पटवों की हवेली का पिछवाडे का फ़ोटो।
पटवों की हवेली के नीचे से होकर जाने वाली गली।
इतने दूर दराज होने के कारण गाँव वाले आसानी से एक दूसरे के यहाँ मिलने जुलने भी नहीं आ पाते होंगे। आजकल तो फ़िर भी यातायात के आधुनिक साधन उपलब्ध है पहले के समय में लोगों को कितनी समस्या झेलनी पडती होगी। यहाँ रेगिस्तान का हवाई जहाज कहा जाने वाला प्राणी ऊँट आसानी से दिखाई दे जाता था। हमें लगभग सब जगह इस रेगिस्तानी हवाई जहाज के दर्शन होते रहे। आने वाले लेख में आपको यह भी दिखाया जायेगा कि हमने इस हवाई जहाज की सवाई भी की थी।
तबेला द्धार
किले से बाहर आने के बाद हम जैसलमेर में किले से बाहर बनी हुई पटवों की हवेली देखने के लिये चल दिये। यहाँ जैसलमेर शहर में दुनिया भर में मशहूर पटवों की हवेली देखने के लिये दुनिया भर से लोग आते है। कुछ लोग तो सिर्फ़ इन हवेली को देखने के लिये ही आते है। किले से बाहर आने के बाद, थोडी दूर तक किले के साथ चलने के बाद, सीधे हाथ एक गली इन्हीं पटवों की हवेली की ओर चली जाती है हमने कई जगह लोगों से पता करते रहे कि हम कही गलत मार्ग पर तो नहीं जा रहे है। लेकिन जब तक हम इन पटवों की हवेली के पास नहीं पहुँच गये तब तक हमने कई बार आगे-पीछे कई गलियों में चक्कर लगाना पडा था। सारी गलियाँ टेडी-मेडी है जिस कारण हम आसानी से इन गलियों में नहीं पहुँच पाये थे।

खैर किसी तरह इन हवेली तक पहुँच तो गये। लेकिन जिस उम्मीद से इन हवेली तक गये थे वहाँ जाते ही सारी उम्मीद पर कई बाल्टी पानी फ़िर गया। हवेली देखने में बहुत शानदार बनी हुई है लेकिन असली समस्या यहाँ के फ़ोटो लेने की है अन्दर फ़ोटो लेने नहीं दिया गया। बाहर आवारा जानवर तसल्ली से चहल कदमी कर रहे थे। ऐसा लग रहा था कि यह आवारा जानवरों का तबेला बनाया हुआ है। असली व जरुरी सबसे बडी समस्या थी बाहर से हवेली का फ़ोटो लेने के लिये, गली में इतनी जगह नहीं थी जिससे कि पूरी हवेली का फ़ोटो एक क्लिक करने से ही आ सके। आखिरकार दो-चार फ़ोटो-सोटो ले लाकर हम वहाँ से निकल गये।
मन्दिर पैलेस अन्दर से
जैसलमेर में सबसे बढिया चीज है यहाँ सैम का रेत sam dunes के टीले। ये टीले इस शहर से लगभग 80 किमी दूर है जिस कारण दिन के दिन आना-जाना बहुत मुश्किल सा कार्य है। यहाँ जाने से पहले हम तो सोच रहे थे कि वहाँ जाने के लिये बस आदि आसानी से मिल जायेंगी। लेकिन वहाँ के लोगों ने बताया कि सैम जाने के लिये पहले आपको प्रिंस चौक जाना होगा जहाँ से आपको सैम जाने के कोई साधन मिल सकता है। यह प्रिंस चौक क्या बला है पहले इसी पर चर्चा हो जाये। एक अच्छे से होटल के एक चौक पर होने के कारण इसे प्रिंस चौक कहा जाता है।
यह भी मन्दिर पैलेस का है
यहाँ की हवेली देखने के बाद एक सीधी गली इसी चौक पर आकर समाप्त होती है जिस कारण इस चौक को तलाशने में ज्यादा मगजमारी नहीं करनी करनी पडी थी। जब हम इस चौक की और आ रहे थे तो बीच में हमें एक नाम दिखाया दिया जिसे देखकर कमल भाई बोले चलो जाट देवता इसे भी देखकर आते है। किले नुमा दिखने वाला मन्दिर पैलेस नाम का एक होटल वहाँ बना हुआ था कमल भाई बोले यह बहुत प्रसिद्ध होटल है। लेकिन वहाँ जाकर मालूम हुआ कि होटल तो बन्द है लेकिन वहाँ एक संग्रहालय है जिसे देखने के लिये दो घन्टे बाद आना होगा। दो घन्टे कौन इन्तजार करता! हम वहाँ से आगे के लिये चल पडे। इस मन्दिर पैलेस होटल में एक घोडे का अस्तबल भी बना हुआ था।
यह घोडों का अस्तबल है।
यहाँ से आगे जाते ही हम प्रिंस चौक पर जा पहुँचे, यहाँ हमने सम रेत के टीले देखने जाने के लिये यह पता किया कि सम/सैम के लिये बस कहाँ से मिलती है। लेकिन किसी ने नहीं बताया कि वहाँ के लिये बस जाती है। आखिरकार बस ना मिलने पर हमने कार या जीप से वहाँ जाने का फ़ैसला कर लिया था। कार लेने के लिये पता किया। मालूम हुआ कि प्रिंस होटल वाले ही आपको कार करवा देंगे आप उनके पास चले जाइये। हम पास में प्रिंस होटल पहुँच गये। वहाँ जाकर हमने सम जाने के लिये एक कार किराये पर लेने की बात करने लगे।

अगले लेख में आपको सम के रेत के टीले दिखाये जायेंगे। लगे हाथ ऊँट की सवारी भी करायी जायेगी।



8 टिप्‍पणियां:

  1. संदीप जी आपकी जैशलमेर यात्रा बहुत अच्छी चल रही हैं, मज़ा आ रहा हैं..पटवो की हवेली बहुत ही शानदार लगी, ऐसी हवेलिया और महल राजस्थान के कोने कोने में बिखरे हुए हैं, विशेषकर शेखावटी इलाके में. वंहा के सेठो ने जिन्हें मारवाड़ी भी कंहा जाता हैं और राजपूतो ने एक से बढ़कर महल, किले, और हवेलिया बनवाए हैं.एक यात्रा शेखावटी की भी कर लो, आपके जरिये वंहा के भी दर्शन हो जायेगे...राम राम...

    जवाब देंहटाएं
  2. मस्त चल रहा है सफ़र।
    एक मूवी देखी थी HINDALGO, रेगिस्तान के गज़ब के दृश्य थे उसमें। अगली बार और भी अच्छी तस्वीरों के इंतजार में रहेंगे।

    जवाब देंहटाएं
  3. कहीं आप और हम 'मक्खी' तो नहीं - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    जवाब देंहटाएं
  4. बचपन मे सत्यजीत रे की फिल्म 'सोनार केल्ला' देखी थी ... सब से पहली बार जैसलमेर और यहाँ के किले के बारे मे उस फिल्म से ही जानकारी मिली थी ! आज तक देखा कभी नहीं ... आपके माध्यम से कम से कम ऐसे ही घूमना हो गया ... आभार !

    जवाब देंहटाएं
  5. सजीव छायांकन के साथ साथ आँखों देखा हाल सा वृत्तांत भी रंगों का चयन छाया चित्रों को सजीव कर रहा

    है छायांकन का वक्त उसे ज़िंदा शख्शियत दे रहा है .बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  6. एक ही किले में सारा शहर. सही बात क्या है कि राजा पूरी कि पूरी प्रजा का सुख दुःख देख सकता था और उनसे मिलकर उनके साथ वार्तालाप भी हो सकती थी . लेकिन हमारे राजा प्रणब जी और उनके प्रधान मंत्री एम्. एम्. सिंह को तो फुर्सत ही कहा है देश के किसी आम आदमी के दुःख दर्द की .आम आदमी और खास तौर पर नारी जाती की सुरक्षा से ज्यादा खुदकी सुरक्षा ज्यादा प्रिय है . जरा इन रजा महाराजाओं से सीखो . खैर यह लोग क्या सीखेंगे . अब तो क्रान्ति लानी ही होगी. माहौल तो बन रहा है . एक और सुन्दर जगह औ सुन्दर पोस्ट जाट जी.

    जवाब देंहटाएं

Thank you for giving time to read post comment on Jat Devta Ka Safar.
Your comments are the real source of motivation. If you arer require any further information about any place or this post please,
feel free to contact me by mail/phone or comment.