पेज

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

सुरकण्डा देवी surkanda devi की बर्फ़ व उत्तरकाशी से नरेन्द्रनगर तक बारिश bike trip


वर्ष सन 2003 में फरवरी माह के आखिरी सप्ताह की बात है। कुछ दोस्तों ने कहा कि “संदीप भाई चलो महाशिवरात्रि नजदीक आ रही है कही घूम कर आते है”। मैंने कहा ठीक है चलो लेकिन मेरी एक शर्त है कि जहाँ भी जाना है, बाइक पर ही चलेंगे, अगर मानते हो तो मैं तैयार हूँ। उन्होंने कहा अरे भाई आपने तो हमारे मन की बात कह दी है, हम भी तो बाइक पर ही जाना चाहते है, लेकिन कोई साथ जाने वाला मिल ही नहीं रहा है। इसलिये तो हम आपके पास आये है। तो दोस्तों इस तरह यह बाइक यात्रा तैयार हो गयी थी। इस bike trip में कुल तीन बाइक शामिल हुई थी। जिसमें से एक बजाज की, दूसरी एलमएल की, तीसरी अपनी हीरो होंडा।




हम तीन बाइक पर पूरे 6 बंदे, यानि हर बाइक पर दो-दो बन्दे थे। तय समय पर घर से देहरादून-मंसूरी-धनौल्टी सुरकंडा देवी-चम्बा के लिए चल पड़े थे। हमारे समूह में से सिर्फ़ मुझे ही इस रुट के बारे में जानकारी थी क्योंकि यह रुट मैंने बाइक से पहले भी दो साल पहले अपनी माताजी के साथ किया हुआ था। अत: मेरे लिये कुछ नया जैसा नहीं था, जबकि बाकि सबके लिये सब कुछ नया-नया सा था। दिल्ली से सुबह-सुबह चलने की कोशिश करने पर भी, दिल्ली से चलने में ही दोपहर हो गयी थी। मैंने पहले बाइक की सर्विस नहीं करायी थी, उसी दिन करानी पडी थी। एक लडका जो हमारे साथ जा रहा था वह अपने घर इस पूरे रुट के बारे में बताकर नहीं आया था। इसका पता हमें तब लगा, जब शामली पहुँच कर उसके पापा का उसके मोबाइल पर फ़ोन आया था। उसने जब अपने पापा को इस यात्रा के बारे में गोलमाल जवाब दिया तो मैं समझ गया कि यह अपने घर सही बात बता कर नहीं आया है। फ़ोन पर पूरी बात हो जाने के बाद मैंने उससे कहा कि तीन दिन की बाइक यात्रा पर जा रहे हो और घर पर सही बात नहीं बता रहे हो। तब उस लडके ने बताया कि अगर मैं घर सही बात बताता तो घर वाले बाइक पर इतनी लम्बी यात्रा करने नहीं आने देते। मैंने कहा ठीक है मत आते लेकिन सही बात तो घर वालों को जरुर बताते। 

हम मार्ग में अपनी यात्रा का आनन्द लेते हुए चलते रहे। जब हम देहरादून में प्रवेश कर रहे थे। तो हमारे साथ एक मजेदार घटना हुई। हुआ कुछ ऐसे, कि उस समय तक उतराखण्ड प्रदेश बने हुए, ज्यादा समय नहीं हुआ था। देहरादून भी नई-नई राजधानी बनी थी। और जिस प्रकार नई-नई मुल्लानी अल्ला ही अल्ला पुकारती रहती है, ठीक वैसे ही देहरादून की पुलिस भी वाहनों को चैक करने में ज्यादा व्यस्त थी। चूंकि मैं सबसे आगे चल रहा था। मैं कभी भी बिना हेल्मेट के बाइक नहीं चलाता हूँ अब तो आदत भी ऐसी हो गयी है कि बिना हेल्मेट के बाइक चलती ही नहीं है। मैंने और मेरे पीछे बैठने वाले ने तो उस समय भी हेल्मेट लगाया हुआ था। लेकिन बजाज बाइक वालों ने अपने हेल्मेट सिर से उतार कर अपने-अपने हाथ में लिये हुए हीरो बन बाइक चला रहे थे। जैसे ही हमारा काफ़िला देहरादून के पटेल नगर में घुसा तो मैंने देखा कि वहाँ पर पुलिस वाहन चैक कर रही है। अब तक तो सब ठीक था। लेकिन अपने बिना हेल्मेट वाले बाइक वाले साथियो को पुलिस वालों ने रोक लिया। उन्हें रोकते ही दूसरी बाइक वाले भी वहाँ रुक गये। उनके रुकते ही मुझे भी बाइक उनके पास वापिस लानी पड गयी। 

यह शुक्र था कि दिल्ली से सभी अपने-अपने कागज पूरे कर चले थे। बाइक में वैसे भी वाहन का रजिस्ट्रेसन प्रमाण पत्र  RC, वाहन बीमा प्रमाण पत्र, व चालक का वाहन चलाने का लाईसेंस DRIVING LICENCE, प्रदूषण प्रमाण पत्र POLLUTION CERTIFICATE, केवल यह चार प्रमाण अपने साथ रखने होते है। कागज सभी के पास पूरे थे लेकिन एक बाइक वालों के बिना हेल्मेट पहन बाइक चलाकर नियम तोडने के कारण हम परॆशानी में फ़ंस गये थे। पुलिस वाला हमारे साथियों का चालान काटने पर अडा हुआ था। मैंने उसे कहा दीवानजी स्टाफ़ की बात है अगर आपको चालान ही काटना है तो नगद काट दीजिए, क्योंकि अगर आपने नगद चालान नहीं काटा तो हमारा कल का पूरा दिन इस चालान को दूर करने में क्षेत्राधिकारी कार्यालय में ही खराब हो जायेगा। जब उसने बाइक के सभी कागज देखे तो पाया कि सच में ये तो दिल्ली के रहने वाले है। तब वह बोला कि दरोगा जी से बात कर लो अगर वह कहेंगे तो मैं जाने दूँगा। मैंने दारोगा से बात की उन्हे पूरी समस्या बतायी। देहरादून में उस समय तक नगद चालान भुगतने की शुरुआत नहीं हुई थी। मैंने दारोगा से कहा कि मैं उतरकाशी जा रहा हूँ जहाँ मेरा छोटा भाई आपके विभाग में ही कार्य करता है। दारोगा को जब मैंने भाई का नाम बताया तो दारोगा भाई का नाम सुन जान गया कि यह सही कह रहे है। लेकिन दारोगा बोला कि अगर इन्हे ऐसे ही जाने दिया गया तो यह फ़िर से नियम तोडेंगे। मैंने कहा आप इन्हें कोई ऐसी सजा दे जिससे कि इन्हे अपनी गलती का अहसास हो सके। दारोगा ने दोनों को कान पकड कर 10-10 उठक-बैठक लगाने को कहा, उस समय तक वहाँ काफ़ी भीड लग गयी थी। जिससे हमारे साथियों को शर्म आ रही थी। लेकिन एक दिन बचाने के लिये एक मिनट की शर्म उन्हें झेलनी पडी। दोनों ने फ़टाफ़ट उठक-बैठक लगा डाली।


इसके बाद वहाँ से थोडी दूर स्थित मेरे मौसी के घर पर जाकर हम रुक गये। जबकि हमारे दो साथी वहाँ से कुछ आगे जाकर अपने मामा के यहाँ रुक गये थे। रात आराम से गुजारने के बाद अगली सुबह हम मसूरी के लिये चल दिये थे। देहरादून पार करने के बाद शिव मन्दिर के सामने सभी एक बार फ़िर से मिल गये थे। यहाँ से हम लोग मसूरी (यहाँ के बारे में कुछ चर्चा नहीं क्योंकि यहाँ के बारे में पहले ही कई बार बता चुका हूँ) घूमते हुए धनौल्टी की ओर बढ चले। धनौल्टी में तब तक कुछ भी होटल दुकान आदि का निर्माण कार्य नहीं हुआ था। वहाँ ठीक उस जगह जहाँ आजकल इकोपार्क बनाया गया है हमने लगभग आधे घन्टे खूब मौजमस्ती की थी। मौजमस्ती करने के बाद हम आगे चम्बा की ओर बढ चले। चम्बा से पहले कददू खाल नामक जगह से सुरकण्डा देवी जाने के लिये एक पैदल मार्ग पहाड पर ऊपर की ओर जाता है। हम सब अपनी-अपनी बाइक सडक किनारे बनी दुकान के पास छोड पैदल ही ऊपर मन्दिर की ओर बढ चले। यह पैदल दूरी वैसे तो मात्र डेढ किमी की ही है लेकिन है बडी जबरदस्त चढाई जिससे अच्छे-अच्छे को पसीने आ जाते है। जब हम ऊपर पहुँचे तो देखा कि वहाँ तो बर्फ़ का ढेर लगा हुआ है नीचे सडक पर हमें कही भी बर्फ़ दिखाई नहीं दी थी जबकि यहाँ सुरकंडा देवी मन्दिर में चारों ओर बर्फ़ ही बर्फ़ दिखाई दे रही थी। दो घन्टे यहाँ बर्फ़ में मन-भर कूदने के बाद, हम आगे की यात्रा पर चम्बा की ओर बढ चले। चम्बा में रुककर सभी ने दोपहर का भोजन किया था। 

यहाँ चम्बा से आगे पुराने टिहरी शहर जाने वाले मार्ग पर अपनी-अपनी बाइक से चलते रहे, जहाँ से टिहरी दिखाई देता था। वहाँ तक जाने के बाद हमारे साथ की दोनों बाइक वापिस जानी थी क्योंकि उन्हें महाशिवरात्रि पर नीलकंठ महादेव मन्दिर में जल चढाना था। जबकि मुझे उत्तरकाशी जाना था। अत: हमारे साथ वाली दो बाइक यहाँ से ऋषिकेश की ओर वापिस चम्बा होते हुए चली गयी थी। जहाँ से नीलकंठ होते हुए वे लोग दिल्ली की ओर चले गये। जबकि मेरी बाइक यहाँ से आगे चलती रही और शाम तक उत्तर काशी पहुँच गयी। हमारा कार्यक्रम अगले दो दिनों तक आसपास की कई जगह घूमने का था। लेकिन भगवान ने भी ठाना हुआ था कि इन्हें घर से बाहर नहीं निकलने देना है।

जिस दिन हमें उत्तरकाशी व आसपास घूमने जाना था उस दिन सुबह-सुबह हल्की-हल्की बारिश शुरु हो गयी। पहले हमने सोचा कि एक-दो घन्टे में बारिश रुक जायेगी। लेकिन बारिश दोपहर तो क्या शाम तक भी नहीं रुकी। रात को हम इस उम्मीद में आराम से सो गये कि चलो सुबह तक मौसम साफ़ हो ही जायेगा। लेकिन जब सुबह सोकर उठे तो देखा कि बारिश कल से थोडी सी तेज ही है। अगला दिन भी हमने पहले वाले दिन की तरह बारिश रुकने के इन्तजार में इन्द्र को कोसते हुए बिताया था। जब दूसरे दिन शाम तक भी बारिश नहीं रुकी तो अपनी खोपडी घूमने लगी। अपने दूसरे साथियों को फ़ोन लगाया तो पता लगा कि ऋषिकेश व उससे आगे दिल्ली तक मौसम एकदम साफ़ है। तीसरे दिन जब सोकर उठे तो देखा कि आज बारिश की रफ़्तार काफ़ी कम है। लेकिन आज हमारा मन वहाँ कही जाने की बजाय वहाँ से दिल्ली की ओर भागने का बन चुका था। आज हमने हल्की-हल्की बारिश में ही अपनी बाइक यात्रा शुरु कर दी थी। कुछ पचास किमी तक तो बारिश हल्की ही थी लेकिन अगले पचास किमी तक जोरदार बारिश हमें झेलनी पड गयी थी। लेकिन हम बारिश से घबराये बिना लगातार छ: घन्टे बारिश में चलते रहे।

जब हम चम्बा पार कर गये तो बारिश बहुत ही कम हो गयी थी। जिसके बाद नरेन्द्रनगर आते-आते बारिश एकदम बन्द हो चुकी थी। अब तक हमारा बारिश व ठन्ड से बुरा हाल हो गया था। यहाँ ऋषिकेश आते-आते हमारे सारे कपडे भी सूख गये थे। यहाँ हमने राम झूला व लक्ष्मण झूला बाइक में बैठे-बैठे ही पार किये तथा इसके बाद दिल्ली की ओर चल पडे हरिद्वार में हमें कुछ काम नहीं था अत: वहाँ हम बाई पास होते हुए निकल गये थे। रात होने के बाद हम दिल्ली पहुँच गये। तो दोस्तों यह थी हमारी छोटी सी बाइक यात्रा, मिलते है फ़िर किसी नई बाइक यात्रा के साथ, तब तक राम-राम।

14 टिप्‍पणियां:

  1. बारिस की रिश भी ना सकी, वेग जाट का थाम ।

    देवी दर्शन के बिना, कहाँ उसे विश्राम ।

    कहाँ उसे विश्राम, यात्रा पूर्ण अखंडा ।

    पार करे व्यवधान, दर्श देवी सुरकंडा ।

    रविकर की हे जाट, करो तो तनिक सिफारिस ।

    माँ की होवे कृपा, स्नेह की हरदम बारिस ।।

    जवाब देंहटाएं
  2. पुरानी यात्रा के साथ इन पुराने फोटोज को देखना ही गजब का अनुभव है

    जवाब देंहटाएं
  3. बारिस की रिश ना सकी, वेग जाट का थाम ।
    देवी दर्शन के बिना, कहाँ उसे विश्राम ।

    जवाब देंहटाएं
  4. १० १० उठक बैठक करके उन्हें अकाल आई या नहीं . के अभी भी क़ानून तोड़ते है. मुहे बाइक पर हेलमेट बिलकुल अच्छी नहीं लगती है. अच्छी यात्रा थी. मजा आ गया.

    जवाब देंहटाएं
  5. दस उठक बैठक की बजाए १०० का चालान कटवा लेते वो ही सही था. बढ़िया घुमाई कराई .......... राम राम

    जवाब देंहटाएं
  6. एज़ युजुअल...हमेशा की तरह बिंदास पोस्ट...

    जवाब देंहटाएं
  7. ललित भाई हम भी पहले यही चाह रहे थे लेकिन उस समय उनके पास नकद चालान उपलब्ध नहीं था।

    जवाब देंहटाएं
  8. रुकता नहीं है काफिला जाँ बाजों का हिम्मत वालों का ,आएं कितने तूफ़ान ....निकल पड़े तो निकल पड़े ......ये हिंडोला हिम्मती .

    जवाब देंहटाएं
  9. रुकता नहीं है काफिला जाँ बाजों का हिम्मत वालों का ,आएं कितने तूफ़ान ....निकल पड़े तो निकल पड़े ......ये हिंडोला हिम्मती .

    है कौन जो सके कदम इनके थाम .

    ये जीवट है उद्दाम .

    जवाब देंहटाएं
  10. लगे रहिये जाट देवता जी ....सुन्दर यात्रा वृतांत......

    जवाब देंहटाएं

Thank you for giving time to read post comment on Jat Devta Ka Safar.
Your comments are the real source of motivation. If you arer require any further information about any place or this post please,
feel free to contact me by mail/phone or comment.