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आप सब नैनीताल शहर व इसके आसपास के मुख्य स्थलों की सैर कई लेखों से कर ही रहे है, लेकिन जिस खास नाम के कारण उतराखण्ड के कुमाऊँ क्षेत्र में नैनीताल का बहुत नाम है, देश के प्रमुख पहाडी नगरों में नैनीताल की गिनती भी की जाती है। आज मैं आपको उस स्थल की भी सैर करवा रहा हूँ। नैनीताल में हिमालय का प्राकृतिक सौंदर्य तो भरा हुआ है साथ ही यहां झीलों की भरमार भी है, नैनीताल शहर को झीलों की नगरी तो कहा ही जाता है। यहाँ की शान नैनी झील अति प्रतिष्ठित सुन्दर झील है। जी हाँ आप सही समझे आज आपको नैनी झील की सैर करायी जा रही है। यहाँ आने पर हमने पाया कि नैनीताल झील चारों ओर से पहाडियों से घिरी हुई है। सम्पूर्ण नगर भी इस ताल के चारों ओर ही बसा हुआ है। झील के साथ लगता हुआ हॉकी का मैदान है, मैदान के पीछे ही मस्जिद बनी हुई है। नैनीताल इलाके में पहले कभी 60 ताल हुआ करते थे। आज भी नैनीताल जिले में सबसे अधिक ताल हैं। यहाँ पर 'नैनी ताल' नामक झील जो नैनीताल शहर में ही है, यहाँ का यह मुख्य आकर्षण केन्द्र है। कार से उतरने के बाद हम तीनों ने झील की सैर करने की योजना बनायी। जिस जगह से नाव किराये पर मिलती थी हम तीनों उस जगह की ओर चल दिये। मार्ग में एक जगह एक बन्दा जामुन की बिक्री कर रहा था। जब उससे जामुन का रेट पता किया तो उसने बताया कि 300 रु किलो, उसने बीस-बीस रु के कागज के कप जैसे भी बनाये हुए थे जिसमें रख कर वह जामुन बेच रहा था। अगर मैं अकेला होता तो कभी ना लेता, लेकिन हमारे साथ एक पहुँचे हुए महाराज जो थे वो माने ही नहीं उन्होंने एक कप जामुन ले ही ली, जामुन वाले कि बदमाशी देखिये कि उसने जामुन जिस कागज के कप में दी थी वो देखने में तो चाय पर मिलने वाले कांच के गिलास जितने आकार का था, हमारे दोस्त ने सोचा था कि चलो एक गिलास जामुन चखने के लिये बहुत रहेंगी। लेकिन गजब हो गया, जब उस गिलास में से आधा गिलास भी खाली नहीं हो पाया था तो जामुन समाप्त हो गयी। अपने पहुँचे हुए दोस्त ने आश्चर्य के साथ हमारी ओर देखा, हमने कहा क्या हुआ, जब उसने दिखाया कि यह देखो जामुन वाले की चालाकी इस कागज के गिलास में आधे में कागज भरा हुआ है आधा ही जामुन से भरा हुआ था। उस जामुन वाले की चालाकी देख कर मुझे भी अजीब लगा कि दुनिया में कैसे-कैसे लोग भरे पडॆ है। जामुन के बाद बारी आयी भुट्टा बोले तो कुकडी खाने की। मैंने एक भुट्टा लेकर खाना शुरु कर दिया। भुट्टा पेट में जाता रहा, हम धीरे-धीरे पैदल चलते रहे।
ऊँचाई से झील का नजारा
झील के चारों ओर पैदल मार्ग।
कर लो दर्शन।
थोडी देर बाद हम उस जगह जा पहुँचे जहाँ से नाव किराये पर मिलती थी। पहले तो विचार बना कि पैडल बोट ले ली जाये। लेकिन तीनों की सलाह उस पर नहीं बनी। आखिरकार एक नाव ले ली गयी जिस पर एक चप्पू से चलाने वाला चालक बैठा हुआ था। यहाँ पर नाव के लिये पैसे पहले ही बाहर बनी एक खिडकी पर जमा कराये जाते है। वे बदले में एक पर्ची देते है जिसे लेकर नीचे पानी के पास जाया जाता है, जहाँ पर नाव वाले पर्ची देखकर नाव में बैठाते है। नाव में बैठने से पहले लाइफ़ जैकैट भी पहननी होती है। वो अलग बात है कि ये लाइफ़ जैकेट ढीली ढाली होती है। पानी में डूबने से बचाने के लिये ये जैकैट कई घन्टे तक बन्दे को डूबने नहीं देती है। हमने नाव से झील के चारों ओर पूरा चक्कर लगाने के पैसे दिये थे। हम सोच रहे थे कि पूरा चक्कर लगाने में लगभग आधा घन्टा लग जायेगा। लेकिन जामुन वाले की तरह नाव वाला भी उसका बाप निकला, नाव वाले ने पहला झटका तो इस बात पर दिया कि इस झील को दो हिस्सों में नाव वालों ने बांटा हुआ है। अत: आपके लिये इस झील का आधा चक्कर ही पूरा हो जायेगा। उसने यह बात झील में काफ़ी देर चलने के बाद बतायी थी। यदि उसने यह बात पहले बतायी होती तो शायद मैं उसकी बोट में सवारी नहीं करता। झील में इन नाव वालों की बदमाशी रोकने के लिये चारों किनारों पर खाली ड्रम लगाये गये है ताकि नाव वाले इन ड्रम के पास से होकर जाये। इसलिये अनव वाले इन ड्रम के बाहर से दूर से होकर कह देते है कि देख लो जी ड्रम के पास से होकर आये है अगर हम ज्यादा पास गये तो नाव जमीन से टकरा सकती है। मैंने तो नाव वाले को सुनानी शुरु भी कर दी थी लेकिन अन्तर सोहिल ने मुझे रोक दिया कि छोडो दोस्त जाने दो आगे ध्यान रखेंगे। इसलिये इस लेख को पढने वाले पाठक जरा ध्यान से देख ले ऐसा आपके साथ भी हो स्कता है। आप कोशिश करे कि अपने पैरों से चलाने वाली पैडल बोट लेकर झील में सफ़र करे। ताकि जहाँ जैसा हो अपनी इच्छा से घूमा जा सके। पहाड़ों की तलहटी में बसा नैनीताल समुद्रतल से 1900 मी से ज्यादा की ऊँचाई पर स्थित है। इस ताल की लम्बाई 1400 मीटर, चौड़ाई 460 मीटर और गहराई 150 मीटर के आसपास तक मापी गयी है। करीब दो किमी की परिधि वाली झील को किसी बैरन नामक अंग्रेज ने स्थल की खोज की थी। नैनीताल के जल की विशेषता यह है कि इस ताल में सम्पूर्ण पर्वतमाला और वृक्षों की छाया साफ़ दिखाई देती है। आकाश पर छाये हुए बादलों का प्रतिबिम्ब इस ताल में बेहद सुन्दर दिखता है कि जिसको देखने के लिए सैकड़ो किलोमीटर दूर से प्रकृति प्रेमी नैनीताल आते हैं। इस ताल के जल में तैरती बत्तखों का झुण्ड, रंग बिरंगी नौकाओं तथा रंगीन बोटों का प्यारा सा नजारा नैनीताल के ताल की शोभा बढ़ाने में बहुत असर दिखाता है। बताते है कि इस ताल के पानी की भी अपनी विशेषता है, गर्मियों में इसका पानी हरा, बरसात में मटमैला और सर्दियों में हल्का नीला हो जाता है।
सामने से ही नाव पर बैठना होता है।
चप-चप चप्पू चले।
पानी का रंग देखो।
नैनीताल झील के दोनों ओर सड़के हैं। झील का ऊपरी भाग मल्लीताल और निचला भाग तल्लीताल कहलाता है। जहाँ मल्लीताल में समतल खुला मैदान है। मल्लीताल के मैदान पर शाम होते ही मैदानी क्षेत्रों से यहाँ आए हुए पर्यटक जमा हो जाते हैं। शाम के समय तो नैनीताल झील में देखने में ऐसा लगता है कि मानो सारी नगरी बस यही तालाब समेट में सिमट गयी हो। शाम के समय तल्लीताल से मल्लीताल को आने वाले सैलानियों का बाजार सा लग जाता है। यहाँ पर देखने को भी नैनी ताल शहर में इस ताल के अलावा बहुत कुछ है। जैसे कि नैना पीक, स्नो व्यू, टिफिन टॉप, जहाँ से नगर एवं मैदानी क्षेत्रों के नजारे लिए जाते हैं। मौसम साफ हो तो 365 किमी लम्बी हिमालय पर्वत श्रृंखला का नजारा एक नज़र में देखा जा सकता है। तीन किमी की पैदल ट्रेकिंग कर नैना पीक/चाइना पीक से हिमालय के दर्शन करना यादगार अनुभव देता है। किलबरी में प्रकृति का उसके असली रूप में दर्शन, मां नैना देवी मन्दिर, गुरुद्धारा श्री गुरुसिंह सभा, उत्तरी एशिया के पहली मैथोडिस्ट गिरजाघर, नैनीताल चिड़ियाघर (2100 मी.), रोमांचकारी केव गार्डन, 18 होल वाला गोल्फ ग्राउण्ड, रोप-वे की सवारी, लेक व्यू प्वाइंट, सहित बहुत कुछ है। नैनीताल नगरी उत्तराखण्ड प्रदेश बनने के बाद राजपाल निवास यहाँ होने के कारण सरकारी महत्व भी रखती है। 120 एकड़ भूमि पर फैला ब्रिटेन के बकिंघम पैलेस की वैसी ही नकल राजभवन अलग राज्य बनने से पहले उत्तर प्रदेश के राज्यपाल का ग्रीष्मकालीन आवास भी इसी नगर में हुआ करता था। जिसमें आजकल उतराखण्ड राज्य सरकार के राज्यपाल निवास करते है। आजकल बहुत से नवविवाहित जोडियाँ अपनी 'मधु यामिनी' बोले तो हनीमून मनाने हेतु नैनीताल आते हैं। नैनीताल आने के लिये रेल से काठगोदाम (34 किमी) तक आना होता है जो देश के विभिन्न शहरों से जुड़ा है, यहाँ से बस या टैक्सी से आया-जाया जा सकता है। यह पहाडी नगर देश की राजधानी दिल्ली से मात्र 304 किमी दूर है। दिल्ली के आन्नद विहार बस अडडे से यहाँ के लिये सीधी बस सेवा उपलब्ध है।
अन्तर सोहिल नाव की सैर का आनन्द उठाते हुए।
संदीप पवाँर व पहुँचे हुए महाराज (दाऊद)
हमारे अलावा वहाँ बहुत सारे लोग थे।
नैनीताल, मैदानी लोगों, पर्यटकों, सैलानियों का पसंदीदा नगर है जिसे देखने हर वर्ष हजारों-लाखों लोग यहाँ आते-रहते हैं। उनमें से कुछ ऐसे भी यात्री होते हैं जो केवल नैनीताल की "नैनी देवी" के दर्शन करने और उस देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने की इच्छा से आते हैं। यह देवी कोई और न होकर स्वयं 'शिव पत्नी' नंदा (पार्वती) हैं। यह तालाब उन्हीं की स्मृति का प्रतीक है। इस सम्बन्ध में पौराणिक कथा कही गयी है। पौराणिक कथा के अनुसार दक्ष प्रजापति की पुत्री उमा (सती) का विवाह शिव से हुआ था। शिव को दक्ष प्रजापति पसन्द नहीं करते थे, एक बार दक्ष प्रजापति ने सभी देवताओं को अपने यहाँ यज्ञ में बुलाया, परन्तु अपने दामाद शिव और बेटी उमा को निमन्त्रण तक नहीं दिया। उमा हठ कर इस यज्ञ में पहुँची। जब उसने हरिद्धार स्थित कनखल में अपने पिता के यज्ञ में सभी देवताओं का सम्मान और अपने पति और अपना निरादर होते हुए देखा तो वह अत्यन्त दु:खी हो गयी। यज्ञ के हवनकुण्ड में यह कहते हुए कूद पड़ी कि "मैं अगले जन्म में भी शिव को ही अपना पति बनाऊँगी"। आपने मेरा और मेरे पति का जो निरादर किया इसके प्रतिफल-स्वरुप यज्ञ के हवन-कुण्ड में स्वयं जलकर आपके यज्ञ को असफल करती हूँ"। जब शिव को यह ज्ञात हुआ कि उमा सती हो गयी है, तो उनके क्रोध का ठिकाना न रहा। उन्होंने अपने गणों से दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट करवा डाला। सभी देवी-देवता शिव के इस रौद्र-रुप को देखकर सोच में पड़ गए कि शिव प्रलय न कर ड़ालें। इसलिए देवी-देवताओं ने महादेव शिव से प्रार्थना की और उनके क्रोध को शान्त किया। दक्ष प्रजापति ने भी क्षमा माँगी। शिव ने उसको भी आशीर्वाद दिया। परन्तु सती के जले हुए शरीर को देखकर उनका वैराग्य उमड़ पड़ा। उन्होंने सती के जले हुए शरीर को कन्धे पर डालकर भ्रमण करना शुरु कर दिया। विष्णु ने अपने चक्र से सती के शरीर के टुकडे कर दिये। ऐसी स्थिति में जहाँ-जहाँ पर शरीर के अंग गिरे, वहाँ-वहाँ पर शक्ति पीठ स्थापित हो गए। जहाँ सती के नयन गिरे, वहीं पर नैनादेवी के रुप में उमा अर्थात नन्दा देवी मन्दिर बनाया गया। आज का नैनीताल वही स्थान है, जहाँ पर उस देवी के नैन गिरे थे। तबसे निरन्तर यहाँ पर शिवपत्नी नन्दा (पार्वती) की पूजा नैनादेवी के रुप में होती है। नैना देवी नाम से एक अन्य मन्दिर हिमाचल प्रदेश के उना जिले में भी है जहाँ सती की दांयी आँख गिरी थी। हिमाचल वाला मन्दिर नैनीताल वाले मन्दिर के मुकाबले ज्यादा जाना पहचाना जाता है।
देखते रहो।
पहाड की परछाई के कारण पानी भी हरा दिख रहा है।
अमर उजाला अखबार का बोर्ड।
झील में घूम घाम कर हम तीनों पानी से बाहर निकल आये। झील से बाहर आकर मैंने मोबाइल में समय देखा तो पाँच बजने वाले थे। अब यहाँ हमे और तो कुछ देखना नहीं था केवल घर वापिस ही जाना था।
आगे की यात्रा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करे
भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-08-नैनीताल का स्नो व्यू पॉइन्ट।
भाग-09-नैनीताल की सबसे ऊँची चाइना पीक/नैना पीक की ट्रेकिंग।
भाग-10-नैनीताल से आगे किलबरी का घना जंगल।
भाग-11-नैनीताल झील में नाव की सवारी।
भाग-12-नैनीताल से दिल्ली तक टैम्पो-ट्रेन यात्रा विवरण।
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ताल ही ताल।
बढिया नजारे, प्यारे प्यारे।
जवाब देंहटाएंबाकी तो सब ठीक है प्यारे, ये पाँच के चार कैसे बजते हैं? पड़ौसी भाई पर पडौसियों की मस्ती का सुरूर चढ़ गया दीखे है:)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी तस्वीरे हैं भाई, वाकई नैनीताल दूसरा स्वित्ज़रलैंड हैं,
जवाब देंहटाएंआनन्दम् इति आनन्दम्
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंनिवेदन --
आजकल नए ब्लॉग की खोज में लगा हूँ ।
आप से कुछ अच्छे ब्लॉग के लिंक की आशा रखता हूँ ।
चर्चा मंच के लिए ।
सुन्दर, अति सुन्दर,
जवाब देंहटाएंसराहनीय पोस्ट, आभार.
संदीप जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेख | पर एक बात समझ नहीं आयी "झील से बाहर आकर मैंने मोबाइल में समय देखा तो पाँच के चार बजने वाले थे। " यह कैसा समय है ?
संदीप जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेख | पर एक बात समझ नहीं आयी "झील से बाहर आकर मैंने मोबाइल में समय देखा तो पाँच के चार बजने वाले थे। " यह कैसा समय है ?
मृगया करते फिर रहा, मृग नयनी के नैन ।
जवाब देंहटाएंनैनी नोनी नयन ने, किया जाट बेचैन ।
किया जाट बेचैन, छलें अति-महंगे जामुन ।
नाविक पंडा सरिस, दिखाए अपने अवगुन ।
लेकर पैडल बोट, ताकिये नीले बादल ।
नीला हरित सफ़ेद, बदलता ऋतु से यह जल ।।
अति उत्तम वर्णन संदीप भाई ......यह तो बताओ नैनताल कब घूमने गए थे | आपका मोबाईल तो बहुत अच्छा हैं जो कि पांच के चार बजाता हैं |
जवाब देंहटाएंनैनीताल की सुहानी सैर ।
जवाब देंहटाएंकाफी दिन हो गए यहाँ गए हुए ।
bahut khoobsurat safar... badti garmi mein man nainital ke or bhagne laga hai...
जवाब देंहटाएंनैनीताल की सैर कराने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंखूब घुमवाया महाराज ... जय हो आपकी !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - कब तक अस्तिनो में सांप पालते रहेंगे ?? - ब्लॉग बुलेटिन
अपने साथ दाऊ डा की फोटू खींच कर परेशानी मोल ले ली विष्णु का चक्र ही शायद बचा पाए
जवाब देंहटाएंSUNDAR CHITRON KE SATH BADHYA JANKARI .AABHAR
जवाब देंहटाएंLIKE THIS PAGE ON FACEBOOK AND WISH OUR INDIAN HOCKEY TEAM ALL THE BEST FOR LONDON OLYMPIC ...DO IT !
नैनी झील का जो वर्णन आपने कर दिया...संभव है देखने पर भी वैसा ना हो सके...
जवाब देंहटाएंjaldi hi hum waha ki ser karne wale hei ....lajwab post ...
जवाब देंहटाएं.....संदीप भाई राम -राम .........
जवाब देंहटाएंहै चारों तरफ हरियाली और हैं मनमोहक नज़ारे,
जाट देवता के साथ -साथ हम भी घूम रहें हैं सारे|
हम तो घर बैठे -बैठे ,कर रहें हैं पहाड़ो के दर्शन,
हर चीज देखकर हो जाता है, मन अत्यधिक प्रश्न |
दिल तो बहुत करता है घुमने का, जाट देवता केसंग
मजबूर हैं हम,प्राईवेट नौकरी ने कर रखें हैं तंग |
मस्त विवरण मस्त फोटो मस्त जानकारी.
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी जानकारी और दिलभावन फोटो ,
जवाब देंहटाएंसचमुच मज़ा आ गया संदीप भाई |
यह सफर भी बढ़िया रहा, रंगीन और मज़ेदार.
जवाब देंहटाएंwaah bahut khoob.....
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई नैनी ताल की खूबसूरती को चार चाँद लगा दिए हैं कैमरे की आँख ने आपकी सौन्दर्य पारखी दृष्टि ने .
जवाब देंहटाएंSandip bhai .corn caps are avaialable at medical stores .Apply these like a baind aid at the effected part .
जवाब देंहटाएंगोखरू (गांठ ),कोर्न के साथ अपनी मेधा का स्तेमाल न करें .कैंची ब्लेड बिलकुल न चलायें .कोई दवा नहीं सिर्फ कोर्न केप्स काफी हैं .माफिक न आयें स्तेमाल रोक दें .अपने आप भीग कर दिन चार छ :में चिटक कर अलग हो जाती है .
जवाब देंहटाएंcorn caps can be used like band aids.(It is not baind aid ,pl.).
जवाब देंहटाएंमैं आजकल बेंगलुरु में अपने एक विज्ञ जिगरी दोश्त के पास हूँ .आप जल्दी ही इनके साथ एक लम्बी बातचीत पर आधारित एक आलेख पढेंगे -कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -आप ही हैं इसके संस्थापक निदेशक .तमाम लाइलाज बीमारियों का इलाज़ यहाँ उपलब्ध है .
जवाब देंहटाएंआपके यात्रा वृत्तांत एक ताजगी से भर देते हैं हरियाली अब शहर में नहीं है आपके ब्लॉग पे सिमट आई है .
Wow nice place..Nice to be such a cool place..
जवाब देंहटाएंStunning images...Tnks for sharing:-)
संदीप भाई वह नै खाल है .चाहें तो खुला छोड़ दें .सादा बैंड ऐड भी एक बार लगाके रख सकतें हैं ताकि धुल मिटटी न लगे नै चरम पर .सोते वक्त पैर धोएं ,घी लगाकर मालिश करें हलके से , सूती मौजे पहनें .
जवाब देंहटाएंआवाज़ के बैठने गला खराश और हलकी दुखन के लिए इसे आजमा सकतें हैं -एक चाय का चम्मच भरके त्रिफला चूर्ण ,आधा चम्मच मुलेठी पाउडर , तुलसी पत्ते पीसकर आधा चम्मच इसकी पेस्ट अब तीनों को शहद में मिलाकर चाटें .फायदा होगा .ठंडी चीज़ें ठंडा पानी फ्रिज का ,बर्फ आदि ,कोल्ड ड्रिंक्स बिलकुल नहीं .सादा गुण गुना /गर्म पानी भी फायदा देगा .
@पहाड की परछाई के कारण पानी भी हरा दिख रहा है।
जवाब देंहटाएंयहाँ विज्ञान की पढ़ाई की कमी झलक रही है ऐसा पहाड़ों की हरियाली की परछाई के कारण नहीं है
नैनीताल की सैर कराने का शुक्रिया। टूरिस्ट स्थलों पर धोखाधड़ी एक बड़ी समस्या है जिस पर प्रशासन को ध्यान देने की ज़रूरत है।
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग का जिक्र यहाँ पर किया गया है - मिलिए घुमक्कड ब्लॉगर मनु प्रकाश त्यागी जी से
जवाब देंहटाएंआपकी उतारी इन तस्वीरों में नित नूतनता एक ताजगी है सद्य स्नाता यौवना सी .क्या इत्तेफाक है :जाट को याद करो जाट हाज़िर है .आज ही आपको याद किया और आप आगये ,ब्लॉग पे छा गए .आभार .
जवाब देंहटाएंहे जाट देवता, किस्मत से गूगल पर आप मिल गए. मैं दिल्ली में रहता हूँ और मेरे पैरों में वृहस्पति का वास है, तो ये एक जगह रुकते ही नहीं हैं. आपकी नील परी की तरह मेरे पास भी एक नीली चिड़िया है, जिसको मैं ब्लू बर्ड बोलता हूँ. अगली बार कही निकले तो मुझे भी बताईयेगा. नौकरी से इजाजत मिली तो आपके साथ घूमने में अत्यंत ख़ुशी होगी.
जवाब देंहटाएंhi sandeepji
जवाब देंहटाएंbeautiful photos
thanks for sharing
My Nainitaal trip:
जवाब देंहटाएंhttp://mynetarhat.blogspot.in/2012/05/corbett-nainital-trip.html
ये फ़र्र्क होता है. क्या लाजवाब चित्र हैं.
जवाब देंहटाएंthis is awesome Sandeep. Mujhe bhi kafi din ho gaye Nainital gaye and tumhari post ne andar ki feeling jaga di :)
जवाब देंहटाएंमन तो करता है की संदीप जी यहीं बस जाएँ और गर्मी में डुबकी लगा के शीतल और पवित्र हो जाएँ कुटिया रमा लें .......आप का स्वागत है हमारे सभी ब्लॉग पर ....
जवाब देंहटाएंआभार -भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
Very nice article, thanks to share this valuable article with us. People are also visit Ranikhet after Nainital. The Distance Between Nainital to Ranikhet is 55 kilometre and expected travel time is 1 hour and 45 minute by road.
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