भीमताल, नौकुचियाताल, सातताल ये तीनों ताल भीमताल के ओशो आश्रम में रहते हुए आराम से देख डाले थे। पहले दिन में भीमताल व नौकुचियाताल दोनों एक साथ देख लिये गये थे दूसरे दिन सातताल देख लिया गया था। इन तीनों तालों को देखने के लिये मैंने तो पैदल ही भ्रमण किया था। लेकिन सभी लोग ऐसा नहीं कर पाते है अत: जिसे जैसा अच्छा लगे वो उसी प्रकार इन स्थलों पर जरुर घूम कर आये। यह तो मैंने पहले ही बता दिया था कि ओशो आश्रम वालों ने जब यह कहा था कि बिना गाऊन पहने कोई सभा में नहीं आयेगा। अपुन ठहरे घुमक्कड प्रजाति के प्राणी ओशो के भक्त-वक्त तो थे नहीं जिससे कि मेरे ऊपर उनके प्रवचन का तनिक मात्र भी कुछ प्रभाव पडता। ले दे के जाटॊं के एकमात्र देव है महादेव अत: जब कभी मौका मिलता है तो उनके कुछ आसान से (मेरे लिये आसान है सभी के लिये नहीं) ठिकाने पर मैं जयराम जी की करने चला जाता हूँ।
इस यात्रा की शुरुआत देखने के लिये यहाँ चटका लगाये
मार्ग में एक घर की छत के बीच से निकला हुआ पेड है।इस यात्रा की शुरुआत देखने के लिये यहाँ चटका लगाये
इसी मार्ग से होते हुए आया था।
मैंने यह तय कर लिया था कि कल सुबह भीमताल का ठिकाना छोडकर नैनीताल के लिये निकल जाना है। वैसे हमने यहाँ तीन दिन का किराया जिसमें रहना व खाना दोनों शामिल थे पहले ही दे दिया था। लेकिन बिना बात के पूरा एक दिन यू ही पडॆ-पडे बर्बाद कर दिया जाये उससे तो अच्छा है कि कहीं घूम आया जाये। इसलिये मैंने रात को अन्तर सोहिल व उनके दोस्त दाऊद को बता दिया कि मैं तो कल सुबह यहाँ से नैनीताल जा रहा हूँ उन्होंने कहा कि कल नहीं परसों चलेंगे। लेकिन दिल्ली से ही हम पहले से ही तय करके आये थे कि जाट देवता केवल घूमने के लिये व वे दोनों केवल ओशो के आश्रम में मस्ती के साथ प्रवचन सुनने के लिये ही जा रहे है। अत: हमने आपस में एक दूसरे को नहीं रोका-टोका था। सुबह मैंने भीमताल में दैनिक कार्य से निपट वहाँ से नैनीताल के लिये कूच कर दिया था। सुबह 7 बजे मैं भीमताल पुलिस स्टेशन के सामने जीप बस कार आदि की प्रतीक्षा में खडा था दो तीन जीप आयी लेकिन कोई भीमताल से नैनीताल जाने वाला नहीं मिल रहा था। कुछ देर बाद एक जीप और आयी उसने कहा भाई जी आप भुवाली तक चले जाओ वहाँ से आगे की दूसरी जीप मिल जायेगी। मैं उससे पूछा कि क्या तुम भुवाली तक नहीं जा रहे हो तो उसने बताया कि मैं उससे थोडा पहले ही रुक जाऊँगा, नहीं तो जरुर लेकर जाता। खैर उस जीप वाले के जाने के बाद एक जीप और आयी उससे नैनीताल जाने के बारे में कहा तो मना कर दिया लेकिन भुवाली तल वो जा रहा था, अत: मैं भी उसकी जीप में भुवाली तक सवार हो गया। उसकी जीप में मेरे अलावा कोई और सवारी नहीं थी। सुबह का समय पहाडों में से मैदानों की ओर कूच करने का होता है ना कि पहाडों की चढने का, जिस कारण सुबह-सुबह ऊपर जाने वाली जीप खाली रहती है। भुवाली भीमताल से मुश्किल से 10-11 किमी के आसपास ही है थोडी देर में ही उसने मुझे भुवाली ले जाकर छोड दिया था।
पेडों के बीच से होते हुए बना हुआ मार्ग है।बीच में एक जगह से नैनी झील भी दिखाई दे रही है।
भुवाली पहुँच कर उसने बताया कि सामने उल्टे हाथ वाली जीप चढाई की ओर नैनीताल जा रही है नैनीताल भुवाली से कोई 12 किमी दूरी पर ही है। मैं उस जीप में नहीं बैठा पहले मैंने भुवाली को थोडा समझने के उस तिराहे के आसपास थोडा सा पैदल भ्रमण कर डाला। तिराहे से एक मार्ग अल्मोडा की ओर चला जाता है। यहाँ तिराहे पर फ़लों की काफ़ी दुकाने लगी हुई थी। एक लडका आडू जैसा कुछ फ़ल बेच रहा था मैंने भी अपने खाने के लिये थोडे से ले लिये। वो फ़ल नाम मुझे याद नहीं आ रहा है देखने में आडू जैसा था खाने में इतना नर्म कि मुँह में डालते ही ऐसा घुल जाता था कि पता ही नहीं चलता था कि कुछ खाया है या कुछ पिया है। उस फ़ल को खा पी कर मैंने नैनीताल जाने वाली जीप में अपना स्थान ग्रहण किया। जीप में 5-6 लोग बैठ चुके थे कि तभी वहाँ एक आल्टो वाला आया जिसके आवाज लगाते ही जीप में जैसे भूचाल आ गया सभी (केवल मुझे छोडकर) दनादन जीप से उतर कर आल्टो कार में घुस गये। एक बार मेरे मन में भी आया था कि जीप तो चलने में अभी समय लगायेगी लेकिन मुझे दिखाई दे रहा था कि आल्टो में अब जगह ही नहीं बची है अत: मैंने वहाँ से उठने की परॆशानी नहीं ली। इसके बाद लगभग दस मिनट बाद एक फ़ल वाला जीप वाले के पास आया और बोला कि बीस पेटी फ़ल नैनी मन्डी में जाने है तो जीप वाला उसके फ़ल ले जाने की मान गया उसके फ़ल जीप में चढाने के बाद तब कही जाकर हमारी जीप भी चलने को तैयार हो गयी थी। अब जीप में सवारी तो सिर्फ़ चार ही थी लेकिन फ़लों का वजन काफ़ी था जिस कारण जीप वाले ने जीप सीधी नैनीताल में नैनी झील के किनारे एक सवारी को उतारने के लिये रोकी थी।
स्नो व्यू स्थल पर बच्चों के खेलने का भी प्रबन्ध है।
जीप वाला जीप सीधा मन्डी की ओर ले गया। इस जीप में आने का फ़ायदा यह हुआ कि मुझे जीप में बैठे हुए ही पूरी झील का भ्रमण हो गया साथ ही नैना पीक जाने के लिये एक किमी की दूरी कम चलनी पडी लेकिन पैदल चलने से अपुन पीछे हटने वालों में से नहीं है। जीप में से उतर कर मैंने फ़लों की मण्डी + सब्जी मण्डी बीचों बीच से पार कर दूसरी ओर एक सडक जो सीधे नैना पीक राजभवन विश्वविधालय आदि की ओर जा रही है मैंने भी उस सडक के साथ-साथ चलना शुरु कर दिया था। इस सडक पर चढाई तो काफ़ी है जिस पर वाहन भी काफ़ी संख्या में आ जा रहे थे। काफ़ी देर चलने के बाद एक चौराहा जैसा आता है जहाँ से उल्टे हाथ राजभवन विश्वविधालय व सीधे हाथ लोकल इलाका व नाक की सीध में एक गली दिखाई देती है। एक दुकान वाले से नैना पीक जाने के पैदल मार्ग के बारे में जानकारी ली तो उसने कहा कि इस गली में सीधे चलते जाओ व पहाड पर चढते रहना आगे जाकर एक सडक मिलेगी जहाँ से एक पैदल मार्ग ऊपर जाता हुआ दिखाई देगा। मैंने उसके बताये मार्ग पर चलना शुरु कर दिया था। जैसे जैसे यह गली आगे जा रही थी इसकी चढाई कठिन होती जा रही थी। घरों के ऊपर से होता हुआ यह मार्ग चढाई पर चढता ही जा रहा था। घरों के बाद अब पेडों ने मार्ग को अपने साये में ले लिया था। काफ़ी साँस फ़ुलाने के बाद वो सडक आ ही गयी जिस का मुझे काफ़ी देर से इन्तजार हो रहा था। इस पैदल मार्ग पर मुझे कोई आता जाता नहीं मिला, कारण मुझे नहीं पता।
जैसा कि मुझे बताया गया था कि सडक पर जाने पर एक पैदल मार्ग ऊपर जाता दिखाई देगा। लेकिन मुझे ना तो पैदल मार्ग ना ही कोई मनुष्य दिखाई दिया जिससे मैं पता कर लेता। मैंने सीधे हाथ की ओर सडक पर चलना शुरु कर दिया जब मुझे चलते हुए कोई एक किमी हो गया तो मुझे दो मानव जाति के प्राणी नजर आये मैंने उनसे पूछा तो जवाब मिला कि नैना देवी वाला पैदल मार्ग तो पीछे ही रह गया है अब तो स्नो व्यू आने वाला है। चलो कोई बात नहीं पहले इस स्नो व्यू को ही देख लेते है। सडक पर एक मोड से मैंने यह सडक छोड्कर स्नो व्यू वाला मार्ग पकड लिया था। इस मार्ग को इतना भयंकर ढलान वाला बनाया हुआ है जिस पर चलते हुए मैं सोचता रहा कि यहाँ पर कौन सिरफ़िरा गाडी पर आता होगा। आप ही सोच लो जहाँ पैदल चलने में फ़िसलने का डर बना रहता हो वहाँ पर बाइक व कार चलाने में क्या हालत होती होगी? यदि मैं कभी बाइक लेकर यहाँ आया तो इस मार्ग पर बाइक लेकर जरुर जाऊँगा। कार लेकर गया तो भूलकर भी नहीं चढाऊँगा। कुछ देर बाद मैं स्नो व्यू स्थल पर आ चुका था। लेकिन यह क्या? यहाँ तो बादलों के घने कोहरे के कारण कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था। कुछ दिखाई ना देने के कारण यहाँ रुकना भी बेकार था जिस कारण मैंने यहाँ से चलने में ही भलाई समझी। यहाँ से नैना पीक का पैदल मार्ग ज्यादा दूरी पर नहीं था। मैंने पैदल मार्ग के लिये उसी सडक पर वापिस चलना शुरु कर दिया जिससे होता हुआ मैं यहाँ तक आया था। यहाँ से वो जगह मुश्किल से दो किमी ही होगी जहाँ से नैना देवी का पैदल मार्ग शुरु होता है।
अगले लेख में नैना पीक...................आगे पढने के लिये यहाँ क्लिक करे।
भीमताल-सातताल-नौकुचियाताल-नैनीताल की यात्रा के सभी लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-04-भीमताल झील की सैर।
भाग-08-नैनीताल का स्नो व्यू पॉइन्ट।
भाग-09-नैनीताल की सबसे ऊँची चाइना पीक/नैना पीक की ट्रेकिंग।
भाग-10-नैनीताल से आगे किलबरी का घना जंगल।
भाग-11-नैनीताल झील में नाव की सवारी।
भाग-12-नैनीताल से दिल्ली तक टैम्पो-ट्रेन यात्रा विवरण।
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ताल ही ताल।
आपके निकलने के बाद हम भी खुद को रोक नहीं पाये और उसी दिन नैनीताल के लिये निकल लिये थे हा-हा-हा
जवाब देंहटाएंनैनी नैनीताल का, पढ़ सुन्दर वृतान्त ।
जवाब देंहटाएंजीप भुवाली से चली, सफ़र खुशनुमा शाँत ।
सफ़र खुशनुमा शाँत, खाय फल आडू जैसा ।
कहिये किन्तु हिसाब, खर्च कर कितना पैसा ?
छत पर देखा पेड़, निगाहें बेहद पैनी ।
वाह जाट की ऐड़, अकेले घूमा नैनी ।।
दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक
dineshkidillagi.blogspot.com
चरैवेति चरैवेति..
जवाब देंहटाएंयह दृश्य विहंगम होते हैं..
जवाब देंहटाएंये भी खूब रही...चले थे नैना देवी पहुँच गये स्नो व्यू...स्नो व्यू के लिए तो रोप वे भी है...वहीँ से एक पैदल रास्ता भी है...ज्यादा कठिन नहीं है...पैदल यात्रा के लिए...
जवाब देंहटाएंनैनीताल तो हमने भी अच्छे से देख लिया है ,वाकई अच्छी जगह है ...रोचक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंछत पर पेड़ पर्यावरण सचेत दृष्टि का ही परिचायक है .कई मंदिरों में भी यह अवकाश वृक्षों के लिए छोड़ा गया है ,बाकी सब कंक्रीट है .कुछ महानगर सड़कों को चौड़ा करने के चक्कर में बलि ले रहें हैं वृक्षों की कतार की ,जबकि ये प्रकृति के कुदरती छनने हैं प्रदूष्ट हवा के .
जवाब देंहटाएंविहंगम दृश्य की रोचक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंनैनीताल जाने की तमन्ना तो पता नहीं कब पूरी होगी
जवाब देंहटाएंपर आप के साथ तो हमने भी अच्छे से देख लिया है जाट देवता जी
आने में विलंब हुआ उसके लिए क्षमा चाहता हूं ...
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंकल 14/03/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .. धन्यवाद!
सार्थक ब्लॉगिंग की ओर ...
आनन्द आ गया घूमने का...अगली बार नैनीताल जरुर जाऊँगा..यह तय रहा!!
जवाब देंहटाएंNainital ki khoobsurti aapki kalam aur khoobsurat jhalkiyon ke sath aur bhi khoobsurat ban pada hai...
जवाब देंहटाएंsundar prastuti hetu dhanyavad!
नैनीताल तो उत्तराखड़ की जान है..रोचक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंहमारे तो शहर के पास है
जवाब देंहटाएंहम कम ही जा पाते हैं
अच्छा करते हैं आप
कभी कभी आ जाते हैं !