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गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

PANWALI KANTHA पवाँली कांठा(बुग्याल)

बुढाकेदार से पैदल यात्रा के लिये दूरी


आज आपको PANWALI KANTHA पवाँली कांठानाम के शानदार बुग्याल के बारे में बता रहा हूँ। इस दिलकश जगह पर मैं दो बार गया हूँ। यहाँ जाने के लिये दिल्ली के मुख्य बस अडडे से उतराखण्ड रोडवेज की बस घनस्याली के लिये मिलती है जो पूरी रात चलकर सुबह घनस्याली पहुँचा देती है। घनस्याली जाने के दो मार्ग है एक चम्बा नई टिहरी होते हुए व दूसरा श्रीनगर से आगे केदारनाथ वाले मार्ग की ओर, तीसरा मार्ग भी है जो कि उतरकाशी से चौरंगीखाल, लम्ब गाँव होते हुए घनस्याली तक ले जाता है। घनस्याली पहाडों के हिसाब से एक काफ़ी बडा शहर है यहाँ हर तरह की सुख सुविधा आसानी से मिल जाती है। यहाँ से आगे घुत्तू जाना होता है जिसके लिये बसे नहीं मिलती है वहाँ जाने के लिये लोकल जीप पर निर्भर रहना होता है, पहाडों में खासकर उतराखण्ड में बसों की सुविधा कम ही है, जीप के भरोसे ही यहाँ का जीवन चलता रहता है। वैसे यहाँ पर आने के लिये एक पैदल मार्ग और है जो आपको बुढाकेदार से यहाँ तक ले आता है उसके लिये पहले बुढाकेदार जाना होता है, वहाँ से बुढाकेदार दर्शन करने के बाद विनयखाल नामक जगह से होते हुए, भैरों चटटी मन्दिर के दर्शन करते हुए घुत्तू तक शाम होने तक आ सकते हो। इस मार्ग में सिर्फ़ तीन-तीन किमी के दो बार चढाई के झटके झेलने पडते है बाकि तो ढलान ही ढलान है।


ये तो आगाज है।


कर लो आप भी दर्शन।



घनस्याली से जीप द्धारा सवा घन्टे में घुत्तू तक जा सकते हो। अगर 10 बजे तक आप घुत्तू आ गये तो आगे जा सकते हो नहीं तो रात यही काट लेने में ही भलाई है क्योंकि `आगे 17 किलोमीटर दूर पवाँली बुग्याल तक जा सकते हो, लेकिन वहाँ पर सावन के महीने में ज्यादा पैदल यात्रियों के कारण (सीमित संख्या में रात को रुकने की व्यवस्था है जिस कारण) अगले दिन सुबह जाने की सोची व आज की रात यहीं घुत्तू में आराम करने के लिये एक जगह बात की व यही रुक गये, पास में एक घर में रहने व खाने लिये भोजन का प्रबंध हो गया था। घुत्तू कोई ज्यादा बडा कस्बा नहीं है। 10-15 मिनट में सारा का सारा घूमा जा सकता है। मेरे एक जानने वाले भी यहाँ पर रहते है। उनका ठिकाना भी तलाश किया, जो आसानी से मिल गया। उन्होंने हमारी दावत की। वे हमें बहुत कहते रहे कि हमारे यहाँ रुको, लेकिन हम कई लोग थे उन्हे छोडकर जाना उचित नहीं लगा। उन्हे नमस्कार किया व जहाँ सब रुके हुए थे, वहाँ पर आकर सो गये। 


बारिश का पानी।
ऐसे ही है यहाँ के मार्ग।


अगली सुबह ठीक 4 बजे उठ गये थे। सब काम निपटाकर पौने पाँच बजे तक आज के कठिन पैदल सफ़र पर चलने को तैयार हो गये थे। यहाँ से 13-14 किमी तक कठिन चढाई ही चढाई थी। इस चढाई के बारे में यहाँ एक कहावत है कि अंग्रेज दो चीजों से डरते थे, एक पवाँली की चढाई व दूजी जर्मनी की लडाई से। ये चढाई जबरदस्त है आप सोच लो कि सुबह 5 बजे से चलकर छ घन्टे बाद 11:30 बजे जाकर हम यहाँ पहुँच पाये थे। ज्यादातर मार्ग घनघोर जंगलों से होकर गुजरता है जिसमें भालू का खतरा बराबर बना रहता है जिस कारण सभी साथ चल रहे थे। बीच में एक जगह पर एक छप्पर नुमा दुकान में रुक कर दो-दो पराठे व दूध का स्वाद भी लिया गया था, परांठे भी सभी ने खाये गये थे क्योंकि सुबह सभी भूखे पेट चले थे, और इस दुकान तक आते-आते दिन के दस बज गये थे, जिससे पूरे पाँच घन्टे पैदल चलने से भूख से सभी का बुरा हाल था। वैसे भी जब खाने की चीज सामने हो तो भूख अपने आप ही बढ जाती है। किसी ने दो किसी ने चार-चार परांठे खाये थे, खा पी कर हम आगे की ओर चले तो देखा की अब ये आगे का मार्ग पीछे के मुकाबले कुछ आसान हो गया है।



चल मुसाफ़िर चलता जा।


जब हमने इस चढाई के सबसे ऊपरी भाग को पार कर आगे की दुनिया को देखा तो हमारे तो होश ही गुम हो गये थे। सामने इतना हसीन, प्यारा, दिलकश, मनभावन, लुभावना नजारा था कि मैं तो उसे देखता ही रह गया था। पूरे आधे घन्टे बाद जाकर मैं आगे गया था। आधा घन्टा रुकना थकावट के कारण नहीं बल्कि आगे जाने को मन ही नहीं कर रहा था। अब सामने ही दिखाई दे रहे झोपडीनुमा घरों में ही हमे रुकना था। अत: कोई जल्दी नहीं थी। पहले जाकर एक घर वाले से रात को रुकने की बात की, सभी ने अपना सामान वहाँ रखा दोपहर से शाम तक, मैं तो इस जगह के चारों ओर घूमता ही रहा था। यहाँ एक दिन में मन नहीं भरता है अत: मैं तो एक बार फ़िर परिवार सहित यहाँ जाऊँगा दो-तीन दिन रुक कर आना है, तब कही मेरे मन को चैन आयेगा। ये जगह कोई 10-15 किमी में फ़ैली हुई है। हो सकता है कि ये भारत का सबसे विशाल बुग्याल भी हो। यहाँ पर दस-बारह झोपडीनुमा घर बने हुए है जो कि भैंस पालने वालों के है। गर्मी आते ही ये भैस वाले भी अपनी-अपनी भैंस लेकर पहाड पर ऊपर आ जाते है, बर्फ़ पडनी शुरु होते ही ये पहाड से नीचे की ओर चले जाते है, यहाँ पर इनकी भैसों के लिये खाने-पीने की सामग्री ताजी हरी घास की कोई कमी नहीं है घास भी ऐसी वैसी नहीं असली जडी-बूटी वाली घास है जिसको खाने से आधी बीमारी तो अपने आप ही ठीक हो जाती होंगी। ऊपर से यहाँ का मौसम इतना लुभावना है कि पूछो मत बस वहीं बसने को मन करता है।





ऐसी पगडंडी बनी हुई है कहीं कहीं पर।

यहाँ पर मोबाइल कभी-कभार ही किसी एक कोने में जाकर काम कर पाता है वो भी किसी एक आध कम्पनी का नेटवर्क ही पकड पाता है, यहाँ से किसी भी दिशा में नजदीकी गाँव 12 किमी दूर है। यहाँ आपको शहरी वातावरण नहीं मिलेगा बिल्कुल ग्रामीण माहौल है सब कुछ गाँव जैसा, खाना-पीना भी देशी घी से बनाया जाता है चूल्हे की रोटियाँ, ताजा मक्खन, ताजी छाय, ताजा दूध और क्या चाहिए इंसान को वो सब कुछ तो उपलब्ध है यहाँ पर जो एक आम मानव को जीने के लिये चाहिए होता है। अगर आपको शहरी वातावरण चाहिए तो आपके लिये ये जगह नहीं है और यदि आपको शांत ग्रामीण जैसा माहौल खाना पीना भी वैसा ही चाहिए तो ये जगह आपके लिये स्वर्ग है और आपको बुला रही है, अब बताओ कब जा रहे रहे है इस शानदार जगह? आप यहाँ कम से कम दो-तीन दिन रुकिये सुबह खाना खाकर दोपहर का लेकर किसी भी दिशा में 5-6 किमी दूर तक घूम कर अपना दिन बिता सकते है, लेकिन ध्यान रहे कि अंधेरा होने से पहले ही वापिस आना होगा तथा यहाँ बिजली कम से कम दस किमी दूर है अत: अपना मोबाइल व कैमरा के लिये बैट्री बचाकर रख ले ताकि, हो सके तो अलग से 2-4 सैल कैमरे के लिये ले ले। यहाँ के लोग तो अपना दूध घी मक्खन आदि बेचने के लिये नीचे बाजार में जाते है जहाँ से वे अपने मोबाइल चार्ज कर के लाते है अब तो शायद एक-दो लोगों ने सौर ऊर्जा का प्रबन्ध भी कर लिया है।


देखते रहो जी भर के।

सबसे ऊपर वाले बिन्दु से इस जगह का नजारा।


जब आप वापस आना चाहे तो वापस आने के दो मार्ग है पहला तो वो ही जिससे आप यहाँ तक आये हो। यदि आपको इस मार्ग से नहीं जाना है तो दूसरा मार्ग आपको शिव के विवाह स्थल त्रियुगीनारायण, सोन प्रयाग (जहाँ गणेश जी सिर कटा था, मन्दिर भी है उसी जगह पर) तक ले जायेगा। जहाँ से गौरी कुंड के लिये बस मिल जायेगी व आप चाहे तो केदारनाथ भी होकर आ सकते है। यदि आप सोनप्रयाग की ओर जा रहे है तो यहाँ से 18 किमी पर त्रियुगीनारायण तक आने से पहले कई पहाड पार करने होते है लेकिन चढाई बहुत ही मामूली है क्योंकि ये मार्ग पहाड के धार पर बना हुआ है इस मार्ग पर चलते समय ऐसा लगता है कि जैसे हम चल नहीं उड रहे हो। दस किमी बाद पहाड से नीचे उतरना शुरु होता है जो कि फ़िर से घने वनों से होकर गुजरना होता है बीच में एक दो जगह भेड वाले मिल जायेंगे बाकि कोई मुश्किल से ही मिलेगा। ये ध्यान रहे कि त्रियुगीनारायण से पहले कोई दुकान नहीं मिलेगी, अत: सुबह अपना पेट भरकर चले नहीं तो अपना पेट पकडते रहना, क्योंकि त्रियुगीनारायण तक आते आते दोपहर का एक बज कर रहेगा। त्रियुगीनारायण में रात को रुकने की इच्छा हो तो रुकने का भी प्रबन्ध है नहीं तो यहाँ से जीप पकड कर सोनप्रयाग आ जाओ, वैसे पैदल मार्ग 5 किमी ही है। वहाँ से गौरीकुन्ड तक आराम से बस मिल जाती है। अब बताओ वैसे इस साल अब तो यहाँ जाने का ज्यादा समय रहा नहीं है। अगले साल कौन-कौन जा रहा है यहाँ पर बताना ना भूले लेकिन जाने से पहले एक ध्यान रखे कि पहाडों हो सके तो बारिश में जाने से बचना चाहिए, क्योंकि बारिश में पहाड कुछ ज्यादा ही खतरनाक हो जाते है। कही मार्ग बन्द कहीं तो मार्ग ही गायब हो जाता है।   


एक से एक नजारा।

इन झोपडीनुमा घरों में ही हमे रुकना था।
ये है दूध वाली नई फ़सल जो भविष्य में यहाँ दूध देगी?
मीलों तक फ़ैला सुन्दर जहाँ देखा है आपने।


यहाँ भी फ़ूलों की घाटी है।




आज तो हर की दून आज जा रहा हूँ जब तक आप इसे पढ रहे होंगे मेरी बाइक बहुत आगे जा चुकी होगी, वहाँ से आकर बताऊँगा कि इस जगह से हर की दून कितनी अलग मिली।


आज एक नया ब्लॉग      "जाट देवता की वर्षों की मेहनत का फ़ल"          शुरु किया है जिसे आप मेरी प्रोफ़ाइल पर जाकर देख ले।

28 टिप्‍पणियां:

  1. बुग्यालों का नाम तो सुना था आज आप की कृपा से दर्शन भी होगये हैं धन्यवाद|

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  2. बहुत सुन्दर नज़ारे हैं । आनंद आ गया । हर की दून को हमारा सलाम कहना । हम १९९४ में गए थे । अब तो काफी बदल गई होगी ।

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  3. बहुत सुन्दर जगह और वैसा ही वर्णन। मन तो बहुत करता है दोस्त, देखें कब मौका लगता है।

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  4. हमेशा की तरह इस बार भी बहुत सुन्दर चित्र युक्त विवरण दिया है आपने ! आप और प्रकाश कौर धनोए जी बहुत परोपकार का कार्य कर रहे हैं ! लगे रहिये भाई इश्वर आपकी मनोकामना पूरी करे! आभार...............

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  5. यात्रा का आनंद तो आप लूट रहे हैं. हम तो केवल शब्दों और फोटुओं का आनंद ले रहे हैं.
    आपके ये फोटो अगर कॉपीराइट वाले हैं तो इन्हें सार्वजनिक संपत्ति समझिए. अब तक चुरा लिए गए होंगे. ये भारत के दुर्लभ चित्र लग रहे हैं. ऐसे meadows भारत में हैं, विश्वास नहीं हो रहा.

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  6. श्रीमान् सन्दीप जी ईश्वर करे कि आप निरन्तर यायावरी वृत्ति के नायक नहीं महानायक बने। मैंने आपसे आपके परिचय सहित सारे यात्रा-वृत्तों का लेखा मांगा था जिससे उसे शोध-प्रबन्ध में शामिल कर सकूं। आपने अभी तक नहीं भेजा जबकि नीरज भाई और अन्य लोगों ने भेज दिया है। विश्वास है कि आप अविलम्ब जन्मतिथि और परिचय सहित पूरा लेखा और प्रकाशित यात्रा-वृत्तों का URL भेज देंगे।-सादर

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  7. एक कहानी ख़तम तो दूजी शुरू हो गयी मामू...खूबसूरत सफ़र...बुग्याल का...

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  8. बहुत ही रोमांचक विवरण ! चित्र देखकर उस असीम आनंद और रोमांच का अनुभव तो नहीं किया जा सकता पर आपने विस्तार से बताकर कै लोगों के लिए उम्मीदें पैदा कर दी हैं !
    नए ब्लॉग की बधाई !

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  9. बहुत बढ़िया लिखा है आपने! सुन्दर चित्र के साथ वर्णन किया है आपने ! लाजवाब प्रस्तुती!
    आपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !

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  10. यात्रा का सुन्दर वर्णन.,... लगे रहो ।

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  11. Aapke ghoomne ke shauk ka mai prashansa karta hun. Ghoomna darasal gyanvardhan ka bhi ek tarika hai. Prakriti ke god mein hin asli gyan ki prapti ho sakti hai.

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  12. चल मुसाफिर चल...

    दुनिया की परवाह न कर..

    तु चल बस.. चल.

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  13. बहुत सुन्दर दृश्य खूबसूरत चित्र....शु्भकामनायं

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  14. शानदार तस्वीरें...मस्त पोस्ट!!

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  15. मस्त जाट देवता !! किस्मत लिखा के लाये हो !! दिसंबर या उसके बाद देखते हैं आपके साथ कोई प्रोग्राम बनाते हैं चलने का!! नीरज को भी,,,,!!

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  16. Achchh hai. Main to Uttarkashi tak hi gaya hoon. Yamunotri jate-jate bach gaya aur Radhi Ghati bhi dekhi hai.

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  17. विधान भाई,
    सन्दीप जी ने तो मेरे साथ ना जाने की कसम ले रखी है जब तक मैं बाइक चलानी ना सीख लूं। और अभी अपना नजदीकी भविष्य में यह हुनर अर्जित करने का मौका दिख भी नहीं रहा। तो जी, उनके साथ यात्रा करने की आपको अग्रिम मुबारकवाद।

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  18. पताली जी, संजय जी एक बार खुद जाकर दर्शन कर आओ,
    प्रवीन जी बुग्याल में पैदल चलने का अपना मजा है,
    दराल साहब अभी नहीं बदला कुछ खास वैसा ही डरावना मार्ग है,
    दवे जी जरुर चलना आप भी,
    भूषण जी चुरा लेने दो तभी तो उन्हे भी चस्का लगेगा मेरी तरह,

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  19. गाफ़िल जी मैं भी जल्द ही भेज रहा हूँ,
    हाँ वाणभट्ट मामू चलते रहना है ये सिलसिला,
    संतोष जी सच कहा आपने चित्र से दिल नहीं भरता है,
    गोपाल जी घूमने के फ़ायदे ही फ़ायदे है,
    दीपक जी सच कहा आपने मैं किसी की परवाह नहीं करता,

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  20. विधान भाई अब अगले साल आपके यहाँ का नम्बर लगने वाला है,
    कानेरी जी कल आपके शहर में ही था,
    हरिशंकर जी देख आओ,
    नीरज भाई को लेकर नहीं जाना बल्कि अबकी बार नीरज के साथ बाइक पर पीछे बैठकर जाना है, चाहे दस साल क्यों ना लग जाये,

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  21. सैर सपाटे के लिए उकसाती एक रोचक पोस्ट .मजेदार प्रेरक .आवत देती हुई .

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  22. नीरज को ले चलेंगे और रस्ते में ही सिखायेंगे !!

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  23. विहंगम दृश्य .....
    शुभकामनायें !

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  24. संदीप भाई सबसे पहले तो आपके नए ब्लॉग का स्वागत करता हूँ | अब बारी आई इस पोस्ट की बहुत ही खुबसूरतहै|
    भाई इतने शानदार नज़ारे की फोटुयें बहुत ही कम देखने को मिलती हैं | सीनरी देखकर ऐसा लगता है जैसे स्वर्ग ये ही होता होगा | आपका बहुत -बहुत धन्यवाद् |

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  25. नयनाभिराम तस्वीरें....सुन्दर वर्णन....आईये हर की दून घूम कर...फिर किस्सा सुनेंगे.

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