सुबह पाँच बजे का अलार्म लगाया था जिसकी जरुरत ही नहीं पडी थी क्योंकि अलार्म बजने से पहले ही आँख खुल गयी थी। धर्मेन्द्र सांगवान में भी आलसीपन नहीं था। जिससे हम दोनों समय पर नहा धो-कर तैयार हो गये व ठीक पौने छ: बजे होटल वाले को उठाया कि भाई दरवाजा तो खोल दो ताकि हम जा सके, होटल वाले को हमने रात में बता दिया था कि हम सुबह छ: बजने से पहले यहाँ से आगे चले जायेंगे। होटल के बाहर ही हमारी बाइक सडक पर खडी हुई थी, पहाडों में वाहन चोरी होने का डर बहुत ही कम होता है जिस कारण ज्यादातर वाहन रात में सडक पर खडे ही होते है, कुछ शरारती बच्चे बाइक से पेट्रोल निकाल लेते है जिस कारण यहाँ ज्यादातर बाइक में पेट्रोल टंकी पर ताला लगाया हुआ होता है अपना भी पहाड पर आना-जाना लगा रहता है अत: ये ताला मैंने भी लगवाया हुआ है। रात में बाइक पर काफ़ी ओस गिरी हुई थी जिससे कि बाइक काफ़ी भीगी हुई थी, साफ़ सफ़ाई के बाद पुरोला से आगे की यात्रा पर चल दिये।
नैटवाड में वन विभाग चैक-पोस्ट के साथ ये नक्शा बना हुआ था।
देख लो आज भी वहाँ पर सांकुरी से आगे ऐसी सडक है।
आज की यात्रा के बारे में होटल वाले व अन्य से काफ़ी जानकारी ले ली थी उन्होंने हमें बताया था कि आपको मोरी से नैटवाड, सांकुरी होते हुए तालुका तक बाइक ले जा सकते हो उसके बाद पैदल ही जाना पडेगा। जब हम पुरोला से चले थे तो उस समय तक अंधेरा था जो कि तीन-चार किमी बाद जाकर उजाले में बदला। ठीक छ: बजे दिन निकल आया था। यहाँ से आगे का मार्ग घने चीड के पेडों के बीच से होकर जा रहा था। तीन चार स्थानों पर हमें भेड वाले, बकरी वाले, भैंस वाले अपने-अपने मवेशियों के झुण्ड के साथ वापस आते हुए मिले। इन झुण्ड का सडकों पर मिलने का साफ़ इशारा था कि अब सर्दी आने में ज्यादा समय नहीं है। कोई 15-20 किमी बाद जाने के बाद इस मार्ग की सबसे ऊँची जगह पर आ गये थे, नौगाँव से त्यूणी के मध्य सबसे ऊँची जगह जो कि देखने में एक दर्रे जैसी लग रही थी। इस जगह का नाम तो याद नहीं आ रहा है लेकिन यहाँ पर कई दुकाने थी हो सकता है कि कहीं आसपास कोई गाँव भी हो। यहाँ इस दर्रे नुमा जगह से आगे तो ढलान ही ढलान है जो कि पहाडी मार्गों से होती हुई सीधी मोरी तक ले जाती है। पुरोला से मोरी लगभग 35 किमी दूरी पर है बीच में गिने-चुने तीन-चार ही गाँव आते है। हम ठीक सात बजे मोरी के तिराहे पर मौजूद थे। तिराहे पर वन विभाग का चैक पोस्ट व चाय की दुकाने थी। एक दुकान पर रुक कर धर्मेन्द्र सांगवान की चाय की तलब मिटायी गयी। सबसे जरुरी बात जो यहाँ थी वो ये है कि मोबाइल यहाँ मोरी से आगे काम नहीं करते है अत: हम दोनों अपने-अपने घर पर फ़ोन किया व साथ-साथ ही ये भी कहा कि आगे के दो-तीन दिन तक किसी भी प्रकार के फ़ोन काम नहीं करते है, इसलिये चिन्ता मत करना, वापसी में जब यहाँ आयेंगे तभी फ़ोन मिल पायेगा।
ये है तालुका के प्रथम दर्शन।
तालुका से आगे ढलान उतर कर देखो कितनी ऊँचाई पर बसा है।
गंगाड गाँव से पहले एक खतरनाक जगह पर।
डर के मारे लंगूर पुल के नीचे छिप गया था।
पहाडों में कुदरती सुन्दरता बिखरी हुई है।
अगर ये लकडी का पुल ना हो तो किसी भी सूरत में आगे नहीं जाया जा सकता है।
अगले भाग में हर की दून के पास तक पहुँचा जायेगा।
हर की दून बाइक यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से विकासनगर होते हुए पुरोला तक।
भाग-02-मोरी-सांकुरी तालुका होते हुए गंगाड़ तक।
भाग-03-ओसला-सीमा होते हुए हर की दून तक।
भाग-04-हर की दून के शानदार नजारे। व भालू का ड़र।
भाग-05-हर की दून से मस्त व टाँग तुडाऊ वापसी।
भाग-06-एशिया के सबसे लम्बा चीड़ के पेड़ की समाधी।
भाग-07-एशिया का सबसे मोटा देवदार का पेड़।
भाग-08-चकराता, देहरादून होते हुए दिल्ली तक की बाइक यात्रा।
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हर की दून बाइक यात्रा-
देख लो आज भी वहाँ पर सांकुरी से आगे ऐसी सडक है।
आज की यात्रा के बारे में होटल वाले व अन्य से काफ़ी जानकारी ले ली थी उन्होंने हमें बताया था कि आपको मोरी से नैटवाड, सांकुरी होते हुए तालुका तक बाइक ले जा सकते हो उसके बाद पैदल ही जाना पडेगा। जब हम पुरोला से चले थे तो उस समय तक अंधेरा था जो कि तीन-चार किमी बाद जाकर उजाले में बदला। ठीक छ: बजे दिन निकल आया था। यहाँ से आगे का मार्ग घने चीड के पेडों के बीच से होकर जा रहा था। तीन चार स्थानों पर हमें भेड वाले, बकरी वाले, भैंस वाले अपने-अपने मवेशियों के झुण्ड के साथ वापस आते हुए मिले। इन झुण्ड का सडकों पर मिलने का साफ़ इशारा था कि अब सर्दी आने में ज्यादा समय नहीं है। कोई 15-20 किमी बाद जाने के बाद इस मार्ग की सबसे ऊँची जगह पर आ गये थे, नौगाँव से त्यूणी के मध्य सबसे ऊँची जगह जो कि देखने में एक दर्रे जैसी लग रही थी। इस जगह का नाम तो याद नहीं आ रहा है लेकिन यहाँ पर कई दुकाने थी हो सकता है कि कहीं आसपास कोई गाँव भी हो। यहाँ इस दर्रे नुमा जगह से आगे तो ढलान ही ढलान है जो कि पहाडी मार्गों से होती हुई सीधी मोरी तक ले जाती है। पुरोला से मोरी लगभग 35 किमी दूरी पर है बीच में गिने-चुने तीन-चार ही गाँव आते है। हम ठीक सात बजे मोरी के तिराहे पर मौजूद थे। तिराहे पर वन विभाग का चैक पोस्ट व चाय की दुकाने थी। एक दुकान पर रुक कर धर्मेन्द्र सांगवान की चाय की तलब मिटायी गयी। सबसे जरुरी बात जो यहाँ थी वो ये है कि मोबाइल यहाँ मोरी से आगे काम नहीं करते है अत: हम दोनों अपने-अपने घर पर फ़ोन किया व साथ-साथ ही ये भी कहा कि आगे के दो-तीन दिन तक किसी भी प्रकार के फ़ोन काम नहीं करते है, इसलिये चिन्ता मत करना, वापसी में जब यहाँ आयेंगे तभी फ़ोन मिल पायेगा।
ये है तालुका के प्रथम दर्शन।
यहाँ मोरी तिराहे से एक मार्ग पुरोला जाता है, जहाँ से हम आये थे। दूसरा सीधा त्यूनी जाता है जहाँ से चकराता व हिमाचल में रोहडू व शिमला जाया जा सकता है, अब बचा तीसरा मार्ग हर की दून जाने वाला जिस पर हमें जाना था यहाँ एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था सांकुरी 25 किमी व तालुका 35 किमी। चाय-पानी के बाद अब फ़िर से अपनी सवारी तैयार थी, चल दिये आगे के सफ़र पर। मुश्किल से 100 मी जाते ही एक पुल आता है जिसे पार करते ही मोरी कस्बा आ जाता है ये एक ठीक-ठाक पहाडी शहर है, जहाँ आपको हर तरह की सुविधा आसानी से मिल जाती है। हमें यहाँ कोई काम नहीं था अत: बिना रुके चलते रहे। यहाँ से आगे हम एक नदी के साथ-साथ जा रहे थे जिसके बारे में हमें बाद में पता चला कि ये नदी हमारा पीछा हर की दून तक नहीं छोडेगी। हुआ भी वैसे ही हर की दून तो क्या उससे भी आगे तक ये नदी चलती रहती है। इस नदी का नाम टौंस नदी है। मार्ग की हालत कोई 10 किमी बाद जाने पर कुछ खराब थी, लेकिन तीन-चार किमी जाने के बाद सडक फ़िर से अच्छी हालत में आ गयी थी।
तालुका से आगे ढलान उतर कर देखो कितनी ऊँचाई पर बसा है।
धीरे-धीरे हम चले जा रहे थे कि नैटवाड के पास हमें वन विभाग का एक चैक पोस्ट और मिला जहाँ पर एक बोर्ड पर इस इलाके के ट्रेकिंग रूट के नक्शे बने हुए थे। हम तो ऐसे ही मौके की तलाश में थे, ले लिये उन बोर्ड के फ़ोटो भी। हमें फ़ोटो खींचता देख चैक-पोस्ट का एक कर्मचारी हमारे पास आया और बोला "हर की दून जा रहे हो" धर्मेन्द्र सांगवान बोला हाँ जा तो रहे है। इतना सुनते ही वो तपाक से बोला तो चलो अपना-अपना पास बनवा लो पास का मतलब पर्ची, जिसके बारे में पता चला कि यह क्षेत्र गोविन्द वन्य जीव अभयारण के अन्तर्गत आता है जिसमें जाने पर कम से कम तीन दिन के डेढ सौ रुपये एक बन्दे के लगते है तीन दिन के बाद प्रत्येक दिन के हिसाब से 50 रुपये भारतीयों के लिये अलग से लगते है। विदेशियों के लिये तो 150 की जगह 500 रुपये का बहीखाता बनाया हुआ है। अरे हाँ एक बात और रह गयी वो ये कि अगर आपने ये कह दिया कि हमारे पास विडियो कैमरा भी है तो लो जी आपकी फ़ीस हो गयी दुगनी। वैसे हमारे दोनों के तीन सौ रुपये बच सकते थे क्योंकि हमारी बाइक का नम्बर भी उतराखण्ड का ही था। वैसे सांकुरी या तालुका तक जाने पर कोई पर्ची नहीं लगती है। वन विभाग के कर्मचारी भी सिर्फ़ हर की दून में ही इस पास को माँगते है। हमारे से भी माँगा गया था।
गंगाड गाँव से पहले एक खतरनाक जगह पर।
चैकपोस्ट पार करते ही नैटवाड आ जाता है। हमें यहाँ भी कोई काम नहीं था अत: चलते रहे। बीच-बीच में मार्ग की हालत डरावनी थी और हम आपस में कह रहे थे कि क्या ये मार्ग बरसात में आने लायक है, नहीं बिल्कुल नहीं बरसात में तो इधर भूल कर भी नहीं आना। अगर एक बार कहीं फ़ँसे, तो कई दिनों तक अटके रहोगे। दो तीन जगह तो पानी सडक पर काफ़ी मात्रा में बह रहा था। जिस पर काफ़ी सावधानी से बाइक चलानी पडी थी। सांकुरी से दो किमी पहले तो इतना पानी था कि धर्मेन्द्र सांगवान को बाइक से उतारना पडा व अकेले ही वो पानी पार करना पडा था। पानी पार करते ही तेज ढलान थी जिस पर वापसी में एक घटना हमारे साथ घटी थी जिसके बारे में अभी नही बता रहा हूँ नहीं तो वापसी का मजा खराब हो जायेगा, बस आपको उस घटना का इन्तजार करना होगा। कुछ ही देर में हम सांकुरी में थे। यहाँ एक बार सोचा कि कुछ खा लिया जाये। लेकिन सडक काफ़ी अच्छी बनी थी अत: खाना आगे के लिये स्थगित कर दिया गया क्योंकि अभी तो सुबह के साढे आठ ही बजे थे। कोई दो-तीन किमी बाद एक बोर्ड नजर आया जिस पर लिखा था कि P.W.D. पुरोला की सीमा समाप्त। दिमाग तो तभी बोर्ड देखकर खटक गया था कि तालुका अभी सात-आठ किमी बाकि है और सीमा समाप्त, जिसका अंदेशा था वही हुआ, आगे की सडक बाइक तो छोडो, जीप के लिये भी बेहद ही कठिन थी, कार की तो सपने में भी मत सोचना लाने की। अपुन भी ठहरे जाट देवता अगर ऐसे रास्तों से घबरा गया तो हो गया काम, मैंने एक बार भी मन में नहीं सोचा कि आगे जा पायेंगे कि नहीं, बस धीरे-धीरे चलते रहे।
डर के मारे लंगूर पुल के नीचे छिप गया था।
अभी तालुका सात किमी बाकि था कि मार्ग कम नदी से सामना हो गया जिसे देखते ही जोरदार ब्रेक लगायी थी। हम दोनों ने तो अपने जूते भी उतार दिये ये तो पक्का था कि इस पर बिना पैर भिगौये बाइक पार नहीं की जा सकती है, धर्मेन्द्र सांगवान ने जूते हाथ में लेकर ये नदी नुमा मार्ग पार किया था, जबकि धर्मेन्द्र सांगवान पत्थरों के ऊपर-ऊपर जा रहा था। अब बारी मेरी थी जूते तो थे नहीं रही बात पैंट यानि पतलून की तो उसे मोड-तोड के घुटनों से ऊपर कर लिया था ताकि किसी पत्थर में बाइक अटके तो नदी में पैर रखना ही पडेगा, और हुआ भी वैसा ही नदी में पत्थर हिलने डुलने वाले थे जिससे कि बाइक बडी मुश्किल से इस पानी से निकल पायी थी। पानी पार करने पर बिना जूते पहने धर्मेन्द्र सांगवान को बैठा कर आगे की ओर चल दिये, कुछ ही आगे गये थे कि एक जगह छोटे-छोटे पत्थरों के बीच एक कठिन चढाई आ गयी थी जिस पर एक पत्थर पर अगला पहिया चढने से बाइक का संतुलन बिगडा। बाइक सम्भालने के लिये रोकी तो बाइक पीछे की ओर खिसकने लगी, अगला ब्रेक लगाने का भी कोई फ़ायदा नहीं हुआ, पिछला ब्रेक लगाया नहीं जा सका था। बाइक पूरे दस फ़ुट पीछे आकर रुकी धर्मेन्द्र सांगवान को उतारा व सबसे पहले तो चप्पले पहनी थी(चप्पल साथ लेकर गया था) क्योंकि नंगे पैर होने से बाइक नहीं रुक पायी थी। अब चढाई चढने के बाद ही धर्मेन्द्र सांगवान को बैठाया गया था। बीच-बीच में एक दो जगह हल्का फ़ुल्का पानी आया था जिसे आसानी से पार कर लिया था।
पहाडों में कुदरती सुन्दरता बिखरी हुई है।
जब तालुका तीन किमी दूर था तो एक जगह मार्ग कम कीचड ज्यादा था जिस पर बाइक से मुझे भी उतरना पडा था व बाइक को पैदल स्टार्ट करके वो तीस फ़ुट कीचड पार किया था। सबसे बडा गजब तो तालुका से सिर्फ़ एक किमी पहले मिला था। मार्ग में एक पेड गिरा पडा था, जिस पर से सिर्फ़ पैदल पार किया जा सकता था। पहले सोचा कि बाइक यहाँ छोड दी जाये, व पैदल आगे जाया जाये तभी सोचा कि आगे का मार्ग देख लिया जाये तभी कोई फ़ैसला करेंगे, आगे का मार्ग ठीक था। हमने पहले तो पेड के ऊपर से बाइक उठा कर पार करने की सोची लेकिन पेड भी दो फ़ुट ऊँचा था, अंत: पहले पेड के दोनों ओर पत्थर लगाकर ढलान बना ली गयी जिससे कि बाइक का वजन हमारे ऊपर ना आये, उसके बाद बाइक का अगला पहिया उठाकर पेड पर चढा दिया गया व धर्मेन्द्र सांगवान ने आगे जाकर बाइक सम्भाली उसके बाद मैंने पीछे से बाइक उठायी जिससे कि बाइक हमारे द्धारा लगाये गये बडे-बडे पत्थरों पर से होती हुई आसानी से लेकिन बेहद ही सावधानी से पेड के दूसरी ओर उतार दी गयी थी। इसके बाद कोई सौ मीटर आगे जाने पर देखा कि आगे तो आधी सडक खिसक कर खाई में गिरी हुई है लेकिन हमें कोई परेशानी नहीं क्योंकि हमारी बाइक के निकलने के लिये दो फ़ुट जगह बहुत थी जो कि उस समय हमें मिल गयी थी। जब हम बाइक के साथ तालुका पहुँचे तो लोग हमें ऐसे आँख फ़ाड-फ़ाड कर देख रहे थे जैसे कि तालुका में पहली बार बाइक आयी हो। बाइक का सफ़र सीधा वन विभाग के बिश्राम भवन में जाकर रुका। समय देखा तो ठीक सवा नौ बजे थे। यहाँ से आगे बाइक लायक मार्ग नहीं था। नहीं तो दो तीन किमी और जाया जा सकता था।
एक नाले पर बने लकडी के पुल से होकर जाना होता है।
तालुका में जहाँ हमने बाइक रोकी थी उसके साथ ही एक जगह भोजन की दुकान थी जो कि उसी गाँव वाले ने अपने घर में ही खोल रखी थी। भूख कुछ तो लगी थी लेकिन जब ये पता चला कि आगे अब 14 किमी बाद ओसला/सीमा जाकर ही खाने को मिलेगा तो भूख कुछ ज्यादा लग गयी थी। दुकान वाले को अपने हैलमेट दे दिये थे साथ ही कह दिया था कि वापसी में ले लेंगे। दो सब्जी के साथ जिसमें आलू व राजमा की दाल यहाँ पहाडों पर जरुर मिलती है हमने यहाँ भी वही खाया था साथ में कुछ भात/चावल का स्वाद भी लिया गया। खाने-पीने में आधा घन्टा हो गया था। जब तालुका से चले तो समय देखा दस बजने वाले थे। चल दिये दे-दनादन पैदल यात्रा पर जिसे मैं दो दिन की मान कर चल रहा था। तालुका से हर की दून 26-27 किमी है व सीमा/ओसला 14 किमी जाने पर ही पहला रात्रि निवास मिल पाता है। तालुका से चलते ही 100 मी की जबरदस्त ढलान थी, इसे जब पैदल चले तब देखा था, खाना-खाने से पहले इधर नहीं देखा था, लेकिन जो भी इधर से आ रहा था उसकी साँस फ़ुली हुई होती थी। इस ढलान के बाद आगे का मार्ग कई किमी तक समतल सा ही है, कोई परेशानी नहीं आती है, सात-आठ किमी के बाद बीच में एक गाँव आता है जिसका नाम है गन्गाड लेकिन यहाँ सिर्फ़ एक चाय की दुकान के अलावा और कोई सुविधा नहीं मिलती है। अब बीच-बीच में पैदल मार्ग कहीं कहीं तो बहुत ही डरावना था। डरावना इसलिये कि कई जगह हमें नीचे देखने के साथ-साथ ऊपर भी देखकर निकलना पड रहा था। यहाँ तो कई पुल भी अभी तक लकडियों के भरोसे ही चल रहे है, वैसे ज्यादातर पुल सीमेंट के बन चुके है। नदी कहीं पास आ जाती तो कहीं दूर हो जाती थी।
अगर ये लकडी का पुल ना हो तो किसी भी सूरत में आगे नहीं जाया जा सकता है।
अगले भाग में हर की दून के पास तक पहुँचा जायेगा।
हर की दून बाइक यात्रा के सभी लेखों के लिंक नीचे दिये गये है।
भाग-01-दिल्ली से विकासनगर होते हुए पुरोला तक।
भाग-02-मोरी-सांकुरी तालुका होते हुए गंगाड़ तक।
भाग-03-ओसला-सीमा होते हुए हर की दून तक।
भाग-04-हर की दून के शानदार नजारे। व भालू का ड़र।
भाग-05-हर की दून से मस्त व टाँग तुडाऊ वापसी।
भाग-06-एशिया के सबसे लम्बा चीड़ के पेड़ की समाधी।
भाग-07-एशिया का सबसे मोटा देवदार का पेड़।
भाग-08-चकराता, देहरादून होते हुए दिल्ली तक की बाइक यात्रा।
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हर की दून बाइक यात्रा-
बड़ी रोमांचक रही आगे की यात्रा !
जवाब देंहटाएंदिवाली की असीम शुभकामनाएँ !!
पुलों की हालत इसके कठिन रास्ते को ब्यान करती है. बरसात क्या, हम तो नही ही जाएँगे. यहाँ जाना आपको मुबारक जाट देवता.
जवाब देंहटाएंप्रकृति के अनछुये पहलू।
जवाब देंहटाएंभूषण जी, एक बार इस शानदार जगह पर जरुर जाना, लेकिन बरसात से पहले मई/जून में उस समय यहाँ सब कुछ ठीक रहता है।
जवाब देंहटाएंदीये की लौ की भाँति
जवाब देंहटाएंकरें हर मुसीबत का सामना
खुश रहकर खुशी बिखेरें
यही है मेरी शुभकामना।
अरे भगवान, गज़ब की यात्रा है। चित्र देख के ही रोमांच होने लगा।
जवाब देंहटाएंboht acha laga aapka post padh ke, arey jaat ji diwali aa rahi hai ab to aapko ghar pe hona chaiye yahi rahoge kya?
जवाब देंहटाएंaapko or aapke pure pariwar ko diwali ki shubhkamnaye
गीता जी घर पर ही हूँ, अभी दो महीने कहीं नहीं जाना है। आप सबको भी दीवाली की शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार के सभी सदस्य को दिवाली की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंवाह! एक से एक सुंदर चित्र.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंशानदार चित्रों से मन अभिभूत हो गया है.
बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ आपको.
आपसे कुछ दिन पहले हम भी ऐसे ही रास्तों से गुजर रहे थे। बडा आनन्द आता है इन पर चलने में।
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई ये यात्रा तो मुझे बहुत ही खतरनाक लग रही है| कहीं पर लकड़ी के पुल, कहीं पर कीचड़, कहीं पर पानी,कही पर टूटी हुई सड़क, पूरी यात्रा रोमांच से भरी लगती है |
जवाब देंहटाएंबहुत हिम्मत रखते हो भाई |
रोमांचक ||
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
शुभ-दीपावली ||
Very scary but interesting ...
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जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar vivran diya hai apni yatra ka sandeep ji apne. Mujhko to aisa lagta hai jaise main bhi aap ke sath hi yatra kar raha hun.
जवाब देंहटाएंसंदीप भाई ये यात्रा तो मुझे बहुत ही खतरनाक लग रही है| कहीं पर लकड़ी के पुल, कहीं पर कीचड़, कहीं पर पानी,कही पर टूटी हुई सड़क, पूरी यात्रा रोमांच से भरी लगती है |
जवाब देंहटाएंबहुत हिम्मत रखते हो भाई |
दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन ..........
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये ....
दीपवली पर गिफ्ट कार्ड बनाये माइक्रोसोफ्ट पेंट से...
रोमांच के मामले में हमें तो श्रीखंड यात्रा से कहीं भी उन्नीस नहीं लगी। संदीप भाई, सच में एडवेंचरस आदमी हो यार, सैल्यूट।
जवाब देंहटाएंसही कहा संजय भाई श्रीखण्ड की बराबरी की तो है रोमांच भी कम नहीं है।
जवाब देंहटाएंसुरेश भाई बडी ही मजेदार यात्रा है एक बार मेरे कहने से हो कर आना जरुर, पूरी पोस्ट देखने के बाद कोई परेशानी भी नहीं आनी है।
जवाब देंहटाएंनीरज भाई, ऐसे मार्ग मुझे बार-बार ललचाते है, बुलाते है, कहते है कि कहाँ रह गये हो मैं उनकी पुकार सुन दौडा-दौडा चला जाता हूँ।
जवाब देंहटाएंसांकरी वाली सड़क पहले तो सही थी ।
जवाब देंहटाएंबरसात के दिनों में जाना तो सच में दुस्साहस है ।
हर की दून घटी के फोटो देखना का बेसब्री से इंतजार है ।
बहुत ही सुंदर फोटो हैं..... दिवाली की शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंमनमोहक स्थान है,कैम्पफ़ायर हो सकता है बढिया, फ़ेर बल्ले बल्ले। :)
जवाब देंहटाएंदीपावली पर आपको और परिवार को सस्नेह हार्दिक मंगल कामनाएं !
जवाब देंहटाएंसादर !
दीपावली पर्व अवसर पर आपको और आपके परिवारजनों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं....
जवाब देंहटाएंधन्य हो प्रभु,
जवाब देंहटाएंभगवान् ऐसे ही सुन्दर सुन्दर यात्राएं करवाता रहे
दीपावली कि हार्दिक शुभकामनाए
बच्चो के साथ रह कर ही पटाखे चलवाईयेगा
संदीप पवाँर जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार,
दीपावली मुबारक
आप के लिए "दिवाली मुबारक" का एक सन्देश अलग तरीके से "टिप्स हिंदी में" ब्लॉग पर तिथि 26 अक्टूबर 2011 को सुबह के ठीक 8.00 बजे प्रकट होगा | इस पेज का टाइटल "आप सब को "टिप्स हिंदी में ब्लॉग की तरफ दीवाली के पावन अवसर पर शुभकामनाएं" होगा पर अपना सन्देश पाने के लिए आप के लिए एक बटन दिखाई देगा | आप उस बटन पर कलिक करेंगे तो आपके लिए सन्देश उभरेगा | आपसे गुजारिश है कि आप इस बधाई सन्देश को प्राप्त करने के लिए मेरे ब्लॉग पर जरूर दर्शन दें |
धन्यवाद |
विनीत नागपाल
संदीप जी,
जवाब देंहटाएंमाडरेशन को विकल्प हटा कर कैप्चा का विकल्प आन कीजिए | कृपया इसे अन्यथा न लें | फैसला आपका है | आप इसके लिए बाध्य नहीं हैं | धन्यवाद
सभी ब्लागर्स को दीप-पर्व पर अनंत शुभकामनाएं. आप ऐसे ही ब्लागिंग में नित रचनात्मक दीये जलाते रहें !!
जवाब देंहटाएंVery interesting post.
जवाब देंहटाएंApko Deewali ki shubhkaamnayen!
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंआपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
Bilkul hi alag peshkash hoti hai aapki.. Magar aapke saath ghumna bahut mushkil hai..
जवाब देंहटाएंHappy Diwali
Bahut romanchak lekh ! dipavali ki shubkamnaye...
जवाब देंहटाएंदीपावली की हार्दिक शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंप्रकाश पर्व दीपावली की हार्दिक शुभकामनाये ..मेरी और से भी बधाहिया सवीकार कीजिये
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंदिवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
happy deepawali
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ! दीपावली के शुभ बेला पर --दीपावली की शुभ कामनाएं !
जवाब देंहटाएंभाई संदीप जी आप की यात्रा से तो मेरा मन भी इसी तरह के रोमांच से भर उठता है , आपका बहुत बहुत नमन
जवाब देंहटाएंबडा अडवेंचर कर रहे हो। लगे रहो ...दीपावली की शुभकामनाएं॥
जवाब देंहटाएंHappy diwali
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआपका जबाब नहीं ..
जवाब देंहटाएं.. आपको दीपपर्व की शुभकामनाएं !!
रोचक यात्रा संस्मरण .....
जवाब देंहटाएंसंगीता जी
जवाब देंहटाएंप्रश्न नहीं
स्वयं में
उत्तर हैं ये
उत्तरों के
नहीं होते हैं
प्रश्न
न प्रश्नचिन्ह
पर जो चिन्ह
छोड़ते हैं ये
बन जाते हैं
यादगार
जिससे सबको
मिलती है राह
नेक राह
देख राह
विलोक राह
आपको गोवर्धन अथवा अन्नकूट पर्व की हार्दिक मंगल कामनाएं,
जवाब देंहटाएंबहुत खतरनाक जगह घूमते हो संदीप .! देखकर ही रूह काँप जाती हैं ..पर इस रोमांच के क्या कहने ? मजा तो आता ही हैं ऐसी जगह पर घुमने में ...अगली किस्त का इन्तजार रहेगा
जवाब देंहटाएंYe hasin wadiyan, ye khula aasmaan..wah! Kitni rochak yatra hai!
जवाब देंहटाएंShubh Deepavali :-)
सैदव की तरह सचेत करता रोचक वृत्तांत .आभार संदीप भाई .
जवाब देंहटाएंमहोदय जैसा कि आपको पहले ही माननीय श्री चन्द्र भूषण मिश्र 'ग़ाफ़िल' द्वारा सूचित किया जा चुका कि आपके यात्रा-वृत्त एक शोध के लिए सन्दर्भित किए गये हैं उसको जिस रूप में प्रस्तुत किया गया है वह ब्लॉग ‘हिन्दी भाषा और साहित्य’ http://shalinikikalamse.blogspot.com/2011/10/blog-post.html पर प्रकाशित किया जा रहा है। आपसे अनुरोध है कि आप इस ब्लॉग पर तशरीफ़ लाएं और अपनी महत्तवपूर्ण टिप्पणी दें। हाँ टिप्पणी में आभार मत जताइएगा वरन् यात्रा-साहित्य और ब्लॉगों पर प्रकाशित यात्रा-वृत्तों के बारे में अपनी अमूल्य राय दीजिएगा क्योंकि यहीं से प्रिंट निकालकर उसे शोध प्रबन्ध में आपकी टिप्पणी के साथ शामिल करना है। सादर-
जवाब देंहटाएं-शालिनी पाण्डेय
रोमांचपूर्ण पहाडी यात्रा -ये टौंस नदी कहाँ कहाँ हैं ? एक तो आजमगढ़ उत्तर प्रदेश में भी है !
जवाब देंहटाएंमै तो इस सफर मे बहुत पीछे रह गयी\ कई जगह घूम नही पाई। सुन्दर विवरण। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत रोमांचक यात्रा !|
जवाब देंहटाएंआपको तथा आपके परिवार को दिवाली की शुभ कामनाएं!!!!
घर बैठे रोमांचक अनुभव...
जवाब देंहटाएंसार्थक यात्रा विवरण....
बड़ी रोमांचक यात्रा है..बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएँ......
जवाब देंहटाएंShaandar , ati uttam evam sarahneey yatra !
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ...मज़ा आ गया इस नयी यात्रा का वृतांत पढ़ कर...बेहद रोमांचक लग रही है...
जवाब देंहटाएंरोचक वृतांत ! दीपवली की शुभ्कामनाएं !
जवाब देंहटाएंसंदीप जी,
जवाब देंहटाएंबड़ा ही रोचक वर्णन तथा मनमोहक छायाचित्र.
बहुत ही रोमांचक यात्रा विवरण यात्रा के अनुभव को सचित्र बनाती हुयी|
जवाब देंहटाएंसुन्दर वर्णन ,शुभकामनाएँ
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