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सोमवार, 8 अगस्त 2011

श्रीखण्ड महादेव की ओर (सैंज-निरमुंड-जॉव) भाग 5


अन्नी में रात बडे आराम से गुजारी, जिस कमरे में हम ठहरे हुए थे, उसमें पूरे छ: पलंग थे, हम थे चार, जिसका मतलब दो खाली थे, ये खाली वाले पलंग हमारे कपडे सुखाने के काम आये थे। कल पूरे बीस किलोमीटर के आसपास तो चल ही चुके थे। सबने अपने मोबाइल चार्ज किये, मुझे छोड कर, नीरज जाट जी व विपिन ने अपने कैमरों की बैटरी भी चार्ज की, क्योंकि आगे का पता नहीं था कि कहीं चार्ज करने का मौका भी मिलेगा या नहीं। सुबह अपनी तो नींद छ: बजे से पहले ही खुल जाती है। बस मेरी व नीरज की यही इस नींद वाली बात पर गडबड होती थी। सबको साढे छ: बजे जगाया, लेकिन नीरज सात बजे जाकर ही उठा। आज सब कुछ पेशाब-ट्टटी, नहाना धोना, दाढी बनाना, रात में ही तय कर लिया था, कि सतलुज के किनारे जाकर ही किया जायेगा। 

अपनी चाल व दाढी रोकना किसी के वश की बात नहीं है। बनारस में भुगता था, इसलिये यहाँ खुद ही बनायी जा रही है।
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नहाते समय भी लठ, अरे भाई इस नदी के पानी का कोई भरोसा नहीं है।



कल की यानि रघुपुर किले से वापस आते समय की एक बात तो बतानी तो रह ही गयी थी, वो ये है कि जब हम भटक कर वापस आ रहे थे, तो हमें घने जंगल मॆं भालू मिलने का अंदेशा था, जिसके बारे में हम चारों ने एक रणनीति बना ली थी कि अगर हमें भालू मिलता है, तो विपिन भालू के पिछले पैरों पर हमला करेगा। व तीनों सनकी जाट भालू के अगले पैरों व मुँह पर हमला करेंगे। वैसे हमें भालू नहीं मिला। बेचारे भालू ने देख लिया होगा कि चार चण्डाल है, अगर इनसे पंगा लिया तो आगे किसी और से पंगा लेने लायक नहीं छोडेंगे। कहते है कि भालू या कोई जंगली जानवर अकेले इसांन पर ही ज्यादा हमले करते है।

पहले पक्का हो जाये कि कहाँ गहरा है, फ़िर डुबकी लगेगी।


हम चारों यहाँ से चलते, उससे पहले एक घटना मैंने अपनी आँखों से देखी वो ये थी कि जिस कमरे में हम रुके हुए थे ठीक उसके पीछे की ओर तीन लोग भेड को मारकर उसका माँस व खाल निकालने में लगे हुए थे। एक भेड की गर्दन तो ठीक उसी समय एक ही वार में अलग कर दी थी जब मेरी निगाह उन पर पडी थी। मैं ठहरा एकदम शाकाहारी उस घटना को देख कर मेरा मन कई घंटे तक विचलित रहा था।

लो जी हो गयी, बल्ले-बल्ले।

यहाँ से सतलुज पन्द्रह किलोमीटर के आसपास ही है। हम 8 बजे तक यहाँ आकार नहाने धोने में लग गये, पूरा एक घंटा लिया, तीनो ने नहाये अपने-अपने कपडे भी जुराबे भी जूते भी सब कुछ साफ़ किया। यहाँ जिस जगह हम नहा रहे थे, सतलुज में एक मोड था जिससे नहाने के लिये सुरक्षित स्थान बन गया था, बाइक भी सडक से उतार कर पानी के पास ही ले गये थे। नहाना धोना, दाढी बनाना, व अन्य दैनिक जरुरी कार्य निपटाये गये, बस हमारे एक वीर जवान नीरज  ने जो कि खाने में भी पहले स्थान पर था, व उस खाये पीये को अपने पॆट में कई-कई दिन तक रोक कर रखने में भी उसे महारत हासिल है। उसने यहाँ भी अपना पेट हल्का नहीं किया। 
विपिन पानी में ज्यादा आगे जाने में डर रहा था।


यहाँ सतलुज से निपट कर आगे बढे तो कुछ ही दूर जाकर एक पुल आता है जो कि सतलुज के ऊपर बना हुआ है, उस जगह पर एक बोर्ड पर लिखा था कि निरमुंड 92 किलोमीटर, एक से मालूम किया तो जानकारी मिली कि ये मार्ग ऊपर पहाडों से घूमघाम कर नुरमुंड पहुँचता है, आप सीधे सैंज से आगे रामपुर होते हुए जाओ। अगर कोई बंदा शिमला से सीधे श्रीखण्ड जाना चाहता है, तो उसे जलोडी जोत जाने की आवश्यकता नहीं है। कभी मेरा लेख देखकर कोई जलोडी जोत पहुँच जाये और वहाँ जाकर किसी से पूछे कि श्रीखण्ड कितनी दूर है, वैसे आपने पिछले वाले लेख से ये तो देख ही लिया है कि ये जलोडी जोत व इसके आसपास कुदरत ने कितनी हसीन दुनिया बनाई हुई है।

बस अब एकदम से गहरा खडड है।
लो जी हो गया स्नान भी।
अपनी तो बिना लुट-लुटी के बात ना बने।
यहाँ तो खरबूजे को देख कर रंग बदला जा रहा है।
अपने शेर सिंह नहाने तो दूर, हाथ मुँह भी नहीं धोया था।
समुन्द्र की तरह लहरे भी आती है।

सैंज से जलोडी पूरे 50 किलोमीटर है, आपको आना-जाना पूरे 100 किलोमीटर पडेगा, एक दिन अलग से भी चाहिए। ऐसी हसीन जगह के लिये दो-तीन दिन भी लगा दो तो मजा कई गुणा बढ जायेगा। कुल्लू से श्रीखण्ड आने के लिये जलोडी जोत से होकर ही आना होता है।
नोगली के पास जाकर लिया गया चित्र है।

हाँ तो मैं आपको बता रहा था कि शिमला से श्रीखण्ड जाने के लिये थियोग होते हुए (जहाँ से हमने पैट्रोल लिया था), नारकंडा, सैंज, नीरथ (यहाँ हमने एक पंजाबी ढाबे का बोर्ड देख खाना खाया  था, ढाबा क्या एक छोटी सी घर में बनी दुकान थी, नीरज के पसंदीदा परांठे, बस अंतर ये था कि यहाँ प्याज के स्वादिष्ठ परांठे मिले थे, सबने कई-कई सटक लिये थे।) नोगली,(यहाँ से एक मार्ग रोहडू जाता है), व रामपुर से तीन-चार किलोमीटर पहले ही उल्टे हाथ पर बने पुल से, सतलुज को पार करना पडता है। सतलुज पार करने के बाद भी उल्टे हाथ की ओर वाली सडक पर ही जाना होता है। अब तक तो ढलान व मस्त सडक थी, यहाँ से निरमुंड तक चढाई वाला मार्ग है, दूरी है 17-18 किलोमीटर , यहाँ पर जिन भाईयों की फ़टी हुई थी, उन्होंने अपनी-अपनी फ़टी हुई सिलवा ली थी, वो भी टेलर से। मैंने व नीरज ने सबके लिये 250 ग्राम वाले चार पैकेट ग्लूकोज के ले लिये थे, जिसकी पैदल मार्ग में बहुत जरुरत पडती है। 
ये वाला भी, नोगली के पास लिया गया चित्र है।
अपना सबसे युवा वीर जवान मुंडा।
आशिक की माशूक नाराज है शायद।

निरमुंड से आगे बागीपुल तक भी सडक अच्छी ही थी। बागीपुल से पहले कभी पैदल यात्रा शुरु होती थी, अब यहाँ से छ: किलोमीटर आगे जॉव तक कच्ची सडक बन गयी है, अरे सडक भी कैसी पूरे छ: किलोमीटर बाइक पहले गियर में ही रही, जब भी दूसरा गियर लगाया, बाइक बन्द होने को हो जाती थी। पीछे बैठा नीरज तो यही कह रहा था कि भाई बाइक आगे से उठ तो नहीं जायेगी घोडे की तरह। खैर किसी तरह 15-20 की चाल से चलते हुए ये 6 किलोमीटर पार किये थे। और लो जी आ गया अपना बाइक को एक तरफ़ खडी करने का स्थान जॉव।
ये आ गये जी, बागीपुल पार करने के बाद।

पूरे हिमाचल में एक बात अच्छी लगी वो ये कि यहाँ पर बसों की सुविधा थोडे-थोडे समय के अंतराल पर हर जगह के लिये उपलब्ध है। ऐसा कश्मीर व उतराँचल में मैंने नहीं देखा है। उन जगहों पर आपको निजी वाहन जीप आदि पर ज्यादा निर्भर रहना पडता है। दिल्ली से रामपुर तक तो सीधी बस सेवा है ही, हो सकता है, कि बागीपुल तक भी सीधी बस सेवा मिल जाये। नीरज जैसे नींद की झप्पी लेने वाले बंदे को बस से अच्छा कुछ और नहीं लगेगा, और मुझ जैसे सिरफ़िरे को तो बाइक या कार यानि अपना वाहन ही ज्यादा सुविधाजनक लगता है,जिसमें आप अपनी मर्जी से जब चाहो जहाँ चाहो जैसे चाहो रुक या चल सकते हो।
कुछ नहीं है, चीड के पेड की पत्तियाँ जैसी है।
बागीपुल पार करने के बाद आया था ये वाला पुल।
लो जी शुरु हो ही गयी, श्री खण्ड महादेव की पैदल चढाई, यही से होती है।

हमने अपनी बाइक एक भण्डारे के ऊपर बने लेंटर पर पार्किंग स्थल पर लगा दी थी। ज्यादातर वाहन लावारिस ही खडे थे। उसके बाद हमने नीचे बने भण्डारे में खीर व चीले जैसी रोटी का प्रसाद ग्रहण किया, व उस दिन सोमवार का दिन समय दोपहर एक या दो का समय हुआ था। जय भोले का जयकारा बोल कर सब आगे की यात्रा पर चल दिये थे।
एक किलोमीटर जाने के बाद ये खेतों की नाली आयी थी।
अभी तो शुरु ही हुआ है, उबड-खाबड मार्ग।

अपने आशिक मुंडे का ध्यान मार्ग पर कम व मोबाइल पर ज्यादा रहता था, जिसका खामियाजा वो रघुपुर किले में तीस फ़ुट लुढकर भुगत चुका था, उसने उस घटना से कोई सबक नहीं सीखा, इस पैदल यात्रा के शुरु होते ही बंदा एक दो इंच ऊपर निकले पत्थर से ठोकर खाकर ऐसा गिरा कि उसके पैर में दर्द शुरु हो गया, लेकिन बंदे ने फ़िर भी यात्रा जारी रखी। छोरियाँ भी दीवानी थी, शादीशुदा बंदे के पीछे, वो भी दो बच्चों के बाप के साथ।
ऐसे नजारे भी आते है राह में।
ये आया मजा, अब देखो, आगे-आगे ऐसे मजे कम से कम 200-250 आने है।
ये सिंहगाड का पंजीकरण स्थल है।
इस इलाके में शिला पर काफ़ी मंदिर पाये जाते है।

यहाँ से आगे की यात्रा जो कि आपको बडे आराम से बतायी जायेगी वो भी साँस ले-ले के बैठ-बैठ के तब तक के लिये ..................................



                    इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा

भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा

भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक


भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक


भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता  का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में


भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।

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24 टिप्‍पणियां:

  1. नदी में नहाने का आनन्द अलग ही है, लठ्ठ लेकर चलें यदि तैरना नहीं आता है।

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  2. बहुत ही मजेदार वर्णन..चित्र के साथ...अब आएगा मज़ा...आगे की यात्रा टफ होती जा रही है...

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  3. यात्रा की रोचकता बढती ही जा रही है लगता है नीरज भाई 'जल का दर्शन ही स्नान है' के सिद्धांत पर अमल करते हुए चल रहे हैं. प्रकृति अपने अंतर में तमाम प्रकार के अनछुए दृश्यों को समेटे हुए है. आपकी आँखों से देखने पर मन आत्मविभोर हो जा रहा है.
    मानो प्रकृति कह रही हो की 'आवो साजन, अब तक कहाँ थे मैं कब से सज-धज के आपका इंतजार कर रही थी.'
    लगे रहो ......................

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  4. आपने एक जगह लिखा है कि शिमला से जलोडी पास 50 किलोमीटर दूर है जोकि गलत है। सही यह है कि जलोडी सैंज से 50 किलोमीटर है।
    इस बार आपका वृत्तान्त का स्टाइल काफी कुछ बदला हुआ है। चलो कम से कम आपने बस का जिक्र तो किया।
    जरा उस बन्दे का नाम भी उघाड देते जो खूब खाता पीता रहने के बावजूद भी उसे स्टोर करने में भरोसा रखता है।
    और हां, आप तो बताओगे नहीं मैं ही बता देता हूं कि नितिन यानी आशिक महाराज जी पिछले कई सालों से शादीशुदा हैं और दो बच्चों के पापा भी हैं।

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  5. aare ye keya dar poke jeyese nahane chale
    nadi may teyarna nahi aatha to keyu ?
    bahut hi sundar post aur photo nice
    fully real

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  6. आनंद और सूचना से भरपूर यात्रा ! मजेदार

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  7. संदीप भाई क्या कंहू बस यूँ समझ लीजिये की बहुत ही मजा आ रहा है मै तो ये कहता हूँ की आगे की भी यात्रायें आप और नीरज भाई दोनों इक्कठे करे तो और भी बहुत मजा आएगा धन्यवाद् ...

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  8. 'काफी रोचक वर्णन था....आगे का सफर तो कठिन मालूम होता है ...ध्यान रखिये .वैसे तो आपलोग बहुत बहादुर और हिम्मतवाले हैं अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा..

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  9. सारी मौज मस्ती देख ली . आनंद आ गया .
    बढ़िया तस्वीरें .

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  10. बहुत ही रोचक वर्णन. लठ लेके चलने के कितने लाभ हैं इसका भी पता चला. मुहावरे का सुंदर रूप देखा कि "शेरों के मुँह किसने धोए".
    आनंद आ गया.

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  11. लठ तो बड़े काम की चीज है, सदा साथ ही रखना चाहिए।

    वैसे नीरज ने बहुत कुछ उघाड़ दिया।
    बढिया वृतांत चल रहा है।
    मजा आ रहा है।

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  12. मजेदार वर्णन सुन्दर चित्र....

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  13. कितने सुंदर दृश्य देखने को मिल रहे हैं हम सबको..... शुभकामनायें आपको...

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  14. बहुत ही बिंदास अंदाज़ .लाठी में गुण बहुत हैं सदा राखिये संग ,बड़े कलेवर और कैनवास की जानदार पोस्ट . http://veerubhai1947.blogspot.com/
    सोमवार, ८ अगस्त २०११
    What the Yuck: Can PMS change your boob size?

    http://sb.samwaad.com/
    ...क्‍या भारतीयों तक पहुंच सकेगी जैव शव-दाह की यह नवीन चेतना ?
    Posted by veerubhai on Monday, August ८

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  15. बहुत मजा आ रहा है. स्वयं को आप लोगों के साथ पा रहे हैं. तस्वीरें तो गजब की हैं.

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  16. बढ़िया चल रहा है...आगे चला जाये!!

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  17. जोरदार यात्रा चल रही है संदीप ..एकसाथ पढने का मजा ही निराला हैं ...बहुत सुंदर जगह हैं ...मेरे शिव का बसेरा ही भव्य जगहों पर होता हैं ..
    नीरज बिना नहाए भी ज्यादा फ्रेश दिख रहा है ...खुशबु यहाँ तक अ रही हैं ?

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Thank you for giving time to read post comment on Jat Devta Ka Safar.
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