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रविवार, 10 जुलाई 2011

काशी (बनारस)/ सारनाथ से घर वापसी,SARNATH, VARANASHI TO DELHI

प्रयाग काशी पद यात्रा-
इस सफ़र में सारा कुछ जो भी घर से सोच कर आये थे, प्रयाग, शहीद चन्द्रशेखर पार्क, आनन्द भवन, संगम तट, व काशी तक का पैदल मार्ग, काशी के सारे घाट, सारनाथ अब कुछ नहीं बचा था। दोनों खत्म समय भी, व देखने लायक जगह भी, अत: अब बारी थी घर की ओर कूच करने की,
इसके बाद हम यहाँ से एकदम फ़्री हो गये थे। शाम के चार बजने वाले थे। पता चला, कि यहाँ का रेलवे स्टेशन आधा किलोमीटर दूरी पर ही हैतो रेलवे स्टेशन देखने के लिये चल दिये। जब स्टेशन पहुँचे, तो देखा कि एक ट्रेन खडी थीपता किया तो मालूम हुआ कि कि ये ट्रेन काशी/बनारस/वाराणसी, हण्डिया होते हुएइलाहाबाद तक जायेगी। बस फ़िर क्या थाले लिये तीन-तीन रुपये के तीन टिकट और जा बैठे ट्रेन के अंदर डिब्बे मेंडिब्बे के अंदर से ही स्टेशन के नाम वाला फ़ोटो भी खींचा था। दस पंद्रह मिनट बाद ही ट्रेन चल पडी। कोई आधा घंटा लिया होगाहमें वाराणसी सिटी तक लाने मेंवाराणसी सिटी पर जब ट्रेन को खडे हुए डेढ घंटा हो गया तो सब्र खत्म होने लगा, बातों बातों में मालूम हुआ कि यह ट्रेन यहाँ पर तीन-चार घंटे तक खडी रहती है, फ़िर भी हम छ: बजे तक इस ट्रेन के चलने का इंतजार कियाइसके बाद हम आटो से अगले स्टेशन जो कि वाराणसी कैण्ट के नाम से हैजा पहुँचे।
ये फ़ोटो ट्रेन के डिब्बे के अन्दर से लिया था



जब ट्रेन इस स्टेशन पर खडी थी तो अपने पास ढेर सा समय था, फ़ोटो लेने के लिये

सुबह से खाना भी भर पेट नहीं खाया था। भूख जोर की लगी थी। हमारे प्रेमसिंह ने कहा कि "खाना खाना है या नहीं" सुबह से ही खाने के नाम पर गुस्सा थामैंने कहा मुझे भूख नहीं हैमैं तो सिर्फ़ ये सामने बिक रहा लिट्टी-चोखा ही खाऊँगानरेश ने भी मेरी हाँ में हाँ मिलायी। प्रेमसिंह फ़िर नाराज कि ये क्या पेट भरने की चीज हैये केवल स्वाद चखने की चीज है। नरेश चुपमैं बोला कि चल यार रोटी खाते है। सामने सडक पार करते ही भोजनालय थे वो भी दो-दो एक साथ। मैं सडक पार करउन दोनों के बीचों-बीच जाकर खडा हो गयातो प्रेमसिंह ने कहा कि कौन सी दुकान में जाकर खाना हैमैं बोला "जिसमें तुम्हे अच्छा लगेउस में चलो" मुझे तो लिट्टी-चोखा ही खाना हैखाना नहीं खानाभैया बिगड गयी बात प्रेमसिंह नाराज और वहाँ से सीधा स्टेशन की ओर कूच कर दियामैंने व नरेश ने फ़िर भी लिट्टी-चोखा का मजा उठा ही लियाव प्रेम सिंह के साथ जा पहुँचे प्लेटफ़ार्म पर। 
एक ये वाला भी

समय सारणी
फ़ुट ओवर ब्रिज के ऊपर जाकर लिया गया फ़ोटो है
यही वो लोकल थी,


सात बजने वाले थेट्रेन अभी लगने वाली थी। बैठ गये एक किनारे परकुछ देर में ट्रेन आयीहम अपनी सीट पर जा पहुँचे व पसर गये। हमारे डिब्बे में अभी लाईट नहीं जली थीजिसका फ़ायदा किसी चोर ने उठा लियाहुआ यूँ कि हमारे साथ वाली सीट पर तीन चाईनीज एक मुंडा व दो मुंडी थेतथा सामने की दो वाली सीटों पर दो फ़्रांस की दो मुंडी सवार थी। अंधेरे का किसी अनजान व्यक्ति ने फ़ायदा उठाया व फ़्रांस की एक मुंडी का बैग पार कर दियापता भी जब चला जब लाईट जली। इधर देख उधर देख, पर बैग वहाँ होता तो मिलता ना। खूब हंगामा हुआबात विदॆशी महिला की थीतो तुरंत एक सिपाही जी व एक हवलदार जी मौजूद हो गयेअब शुरु हुआ असली तमाशाइन दोनों बंदी को ना तो पूरी अंग्रेजी आती थीना थोडी बहुत हिन्दी भी आती थी। इस चक्कर में ट्रेन भी आधा घंटा लेट हो गयी।
ट्रेन के पास खडे होकर लिया गया फ़ोटो है


जब एक दारोगा जी आये व ट्रेन चलने का अनुरोध कियाव कहा कि आपका बैग मिलना अभी तो मुश्किल हैआपकी एफ़ आई आर लिख ली जायेगीआप एक पत्र लिखोये बताकर दारोगा जी तो ट्रेन से गायब हो गये व फ़ंस गयेबेचारे सिपाही जी व एक हवलदार जी दोनों अंग्रेजी में अनाडीजब ये तीनों दो पुलिसवाले व एक मुंडी परेशान हो गये तो किसी ने (चाइना वालों ने) हमसे कहा कि can you solve her problem? if yes, please solve it.                          
सीधे हाथ वाली मुंडी जिसका बैग चोरी हुआ था, उल्टे हाथ चाईना वाली मुंडी,

हम तो थे, ही इंतजार में बस पहल नहीं करना चाह रहे थे। हमारी हाँ करने पर ही वे फ़्रांस की बंदी को थोडा सा राहत मिली थीकि अब कोई उनकी समस्या को समझ पायेगातब जाकर ट्रेन चल पायी। दोनों की मुख्य समस्या भाषा की थीवो हमने हल कर दी थी, लेकिन यहाँ यह स्पष्ट कर देना सही रहेगा कि मेरे हाथ पैर भी अंग्रेजी में बहुत तंग है।


ये चाईना वाली जोडी का फ़ोटो, जो उस दिन पहाडगंज में रुकने की कह रहे थे,

सिपाही ने शिकायत लिखने के लिये एक साधा पेपर दियाजिस पर थाने की स्टैम्प लगी हुई थी। उस मजबूर लडकी से उसकी समस्या लिखवायीजब उस सिपाही को बताया तो अब सिपाही परेशान कि भाई इसमें चोरी हो गया कि जगह गुम हो गया लिखवाना था। इस बात पर वो लडकी तैयार नहीं थी। इसी झंझट में कब इलाहाबाद आया पता नहीं चला। सिपाही हाथ जोडकर खडा हो गया कि भाई इनका बैग तो मिलना मुश्किल हैकम से कम हमारी समस्या तो कुछ कम करा दो। अब उस लडकी को समझाया कि आपके बैग में शुक्र है, कि कपडे ही थेआपके पासपोर्ट व पैसे तो दूसरे हैन्ड बैग में सही सलामत है। आप यहाँ इस पत्र में गुम होना लिख दोदिल्ली जाकर अपनी एम्बैसी के द्धारा पूरी बात व नई शिकायत वहीं पर लिख देना। किसी तरह मरे हुए, बुझे मन से उस बेचारी लडकी ने चोरी की जगहगुम शब्द लिखा तब जाकर सब अपनी-अपनी सीट पर सो गयेइस बीच रेलवे के खाना देने वाले आये थेजब वो हमारे पास आये थे तो मैं सीधा प्रेमसिंह की तरफ़ देखातो अब की बार प्रेमसिंह ने खाने के लिये बोल ही दियाखाना आया तीनों ने खायाव खाकर सो गये। जब आँख खुली तो देखा कि दनकौर आ गया हैअपनी-अपनी सीट पर बैठ गयेमारीपत तक आते-आते बारिश शुरु हो गयी थीजो आनन्द विहार तक रही। फ़िर अपनी मंजिल नई दिल्ली आ गयी, अब यहाँ उतर कर, अब बारी मैट्रो की सवारी की थी, जिस में सवार हो कर शाहदरा तक पहुँचे, शाहदरा से ऑटो लिया, व आ गये लोनी बार्डर पर यानि अपने घर, इस यात्रा का कुल खर्च मात्र 1300 रुपये आया था। 

ये रहा लोनी बार्डर का फ़ोटो जहाँ हमारा घर पास में ही है

लोनी बार्डर वाला मार्ग, यमुनोत्री मार्ग कहलाता है, यहाँ से यमुनोत्री केवल 383 किलोमीटर दूर है



ये बोर्ड आप सब के लिये लगाता हूँ।

इस बोर्ड को देखते ही अब आप समझ गये होंगे कि इस यात्रा का समापन हो गया है,


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प्रयाग काशी पद यात्रा-

32 टिप्‍पणियां:

  1. जाट देवता सुन्दर यात्रा वृतांत लिखने के लिए धन्यवाद.
    आपको बी. एच. यु. भी देखना चाहिए था . अगली यात्रा का बेसब्री से इंतजार रहेगा

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  2. बहुत अच्छा यात्रा वर्णन।
    मैं भी एक बार बनारस हो आया हूं। इसे पढ़ते समय उस यात्रा की यादें ताजा हो आईं।

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  3. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ||
    बहुत बधाई ||

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  4. क्या बात है जी आपने एक विदेशी की कुछ मदद की. बैग चोरी हुआ या गुम यह दिलचस्प है. यात्रा वर्णन व चित्र शानदार लगे.
    आखिर आप वापिस घर लौट ही आये.
    बहुत बहुत स्वागत है आपका.
    'घर आया मेरा परदेशी...'

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  5. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ||
    बनारस तो मै भी गया हूँ किन्तु कोई ख़ास नहीं लगा !
    अगली यात्रा का बेसब्री से इंतजार रहेगा!

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  6. आपकी घर वापसी की कहानी भी हमेशा की तरह बहुत ही रोचक थी ..आगे की यात्रा और यात्रा-वृतांत दोनों का इंतजार रहेगा ....धन्यवाद

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  7. Bahut sundar, photos bayan karti hai apki yatra! Padke bahut acha laga. Meri Varanasi yatra ki yaadein taaza ho gayi... Dhanyavad

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  8. भईया, यह तो बता देते कि आपने उन विदेशियों से बात कैसे करी? पांच-चार लाइनें ही लिख मारते। इतने बडे अंग्रेज तो आप भी नहीं है।मैं समझ गया कि क्या बात की होगी। हा हा हा हा

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  9. भाई नीरज,
    मजेदार घटना थी ये, उस समय,
    हम तो किसी तरह उनकी अंग्रेजी समझ/समझा पा रहे थे,
    लेकिन जब वो अपनी भाषा में बोलते थे,
    खासकर चाइना वाले तो हमें लगता था
    कि टेप का रीवन खराब हो गया है,

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  10. १३०० में इतनी लम्बी यात्रा ! इसे कहते हैं , हींग लगे न फिटकरी ---
    कुछ हिंदी चीनी जापानी फ्रेंच संवाद भी सुनाते तो और भी आनंद आता .
    हर की दूंन --आहा , याद आ गई . हम १९९४ में गए थे .

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  11. हम तो थे ही इंतजार में...
    किस बात का इंतजार? सहयोगात्मक (?)रुख प्रशंशनीय है ..
    यात्रा का अंत सुखद हुआ बहुत बहुत बधाइयाँ
    अगली यात्रा का इंतजार रहेगा..आप के साथ साथ हम भी घूम लेते हैं..

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  12. वाह कमाल की यात्रा ! मजेदार रही ! लिट्टी चोखा तो मैंने भी खायी है और वह भी वनारस में ! अच्छे लगते है ! जो नहीं खाए वे पछतायेंगे !

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  13. ..सहज सरल विवरण सीधी-सच्ची बात लेकर आता है जाट देवता संदीप .कोई लारा लप्पा नहीं .घुमाव और पेंच नहीं .चित्र खुद बोलते बतियाते चलते हैं .
    s

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  14. आपकी पोस्‍ट पढकर हर बार उत्‍साह मन में हिलोरे लेता है कि चलो कहीं घूम आए, पर ये कमबख्‍त ब्‍लॉगिंग कहीं जाने ही नहीं देती।

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    TOP HINDI BLOGS !

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  15. Sandip ji, aap yoon hee Hindustan kee sair karate rahen aur ham maja lete rahen yahee shubhkamnayen.

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  16. रोचक यात्रा वर्णन...हम लोग कब सुधरेंगे...अपने देश में आये मेहमानों का सामान चोरी कर लेते हैं वो लोग हमारे देश के बारे में क्या सोचेंगे...पता नहीं...दुःख होता है ये सबकुछ पढ़ कर.

    नीरज

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  17. बहुत अच्छा यात्रा वर्णन।

    बहुत बधाई ||

    अगली यात्रा का बेसब्री से इंतजार रहेगा!

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  18. दादा कोंडके की फ़िल्म में एक बोर्ड दिखता है ’नमस्ते जी’ वाला, वो देखकर हँसी आती थी। इस पोस्ट के लास्ट में ’धन्यवाद’ का बोर्ड देखकर याद आ गई। भाई, धन्यवाद तो हमें कहना चाहिये जो इतनी शानदार यात्रा विवरणी पढ़ने को मिली।
    बोर्ड घुमाकर पढ़ लेना:)

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  19. सुन्दर यात्रा वृतांत , अगली यात्रा का इंतजार रहेगा,
    आभार,
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  20. वाराणसी से घर वापस आने का वर्णन चित्रों के साथ बहुत ही सुन्दर और शानदार रहा! प्रशंग्सनीय प्रस्तुती!

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  21. दो बाते आप को बताऊ | सारनाथ के जिस पेड़ के नीचे बुद्ध जी ने उपदेश दिया था ये वो पेड़ नहीं है ( पिछली पोस्ट में ) असल में बोधगया का वो पेड़ जहा उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ को एक रानी ने ( राजा रानी का नाम अभी याद नहीं आ रहा है अशोक के वंश के थे ) कटवा दिया क्योकि राजा हर समय बौद्ध धर्म के प्रचार में लगे रहते थे | तब राजा ने श्री लंका से उस पेड़ के दो कलम मंगवाये जिसको अशोक ने गया के मूल पेड़ से कलम निकाल के अपने पुत्र और पुत्री के हाथो श्रीलंका भेजा था | वहा से पेड़ के दो कलम आये जिनमे से एक को बोध गया में लगाया गया दूसरा सारनाथ में | दोनों ही पेड़ मूल ना हो कर असली पेड़ के कलम है |
    दूसरे आप ने काशी के दर्शन किये क्या आप भारत माता मंदिर नहीं गये थे जो वाराणसी कैंट स्टेशन के पास ही है | वहा पर अविभाज्य भारत ( पाकिस्तान बंगलादेश सहित )का नक्शा जमीन पर बना है पुरा नक्शा पूरी तरह से वैज्ञानिक तौर पर बनाया गया है बिकुल उसी पैमाने पर जिस पैमाने पर नदिया पहाड़ आदि है | साथ ही दीवारों पर भारत के पुरातन से पुरातन नक़्शे भी बने है जहा उनका समय काल भी लिखा है |

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  22. संदीप भाई आप की यात्रा बहूत अच्छी रही हमें भी बहुत मजा आया पर भाई आपने उस ट्रक मे क्या जा रहा था वो अभी तक नहीं बताया और जब तक दुनिया है जब तक चोर भी इसी दुनिया में रहेगें उनको किसी के परेशान होने या न होने से कोई मतलब नहीं होता ये उनका पेशा है ...

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  23. संदीप भाई आपकी यात्रायें पढकर बहुत मजा आता है और इस बार भी बहुत मजा आया आपने उस ट्रक मे क्या जा रहा था बताया नहीं और जिसको मज़ा आता हो चोरी में उसे किसी की परेशानी से क्या मतलब उसके लिए देशी क्या और परदेशी क्या .....

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  24. बहुत अच्छा यात्रा वर्णन।.. सुन्दर प्रस्तुति ||

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  25. बढिया यात्रा रही, घिसी हुई रिबन चलाने वाला प्लेयर थारे धोरे ही था :)

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  26. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ||
    बहुत बधाई ||

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  27. जाट देवता मज़ा आ गया यह यात्रा विरतांत पढ़ कर.
    सबसे अच्छा यह लगा की आपने विदेशियों की मदद की.

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