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शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

श्रीखण्ड महादेव की ओर भाग 1, SRIKHAND MAHADEV

चंडाल चौकडी का सबसे पहला फ़ोटो यहाँ पर जाकर हुआ।

मैं श्रीखण्ड जाना चाहता था, सोच रहा था कि कोई और भी साथ हो जाये तो, ज्यादा अच्छा रहेगा, इसलिए मैंने अपने ब्लॉग पर आगामी भ्रमण में लिख दिया था कि कोई और जाने का इच्छुक हो तो बता दे। नीरज जाट से तो हाँ पहले ही हो गयी थी, अब मेरी बाइक व उस पर सवारी भी साथ में, देखना ये था कि कोई और भी जायेगा कि नहीं, कि चलने से दस दिन पहले एक ईमेल मेरे पास आया जिसमें लिखा था कि संदीप भाई क्या मैं भी आपके साथ इस यात्रा पर चल सकता हूँ। मैंने कहा कि भाई पहले अपने बारे में थोडा विस्तार से बताओ कि अब तक कहाँ-कहाँ घूम चुके हो क्योंकि मेरे साथ अगर कोई पहली बार जाता है तो उसे मेरी कुछ बाते ऊँट-पटाँग लगती है, जैसे सुबह जल्दी उठना-चलना, खाना सुबह आठ बजे के बाद ही खाना, व शाम को जल्दी रुक जाना।
ईमेल भेजने वाले बंदे का नाम है पण्डित विपिन जी, इन्होंने अपने बारे में विस्तार से बताया कि मैं यहाँ-वहाँ तक घूम चुका हूँ, सुन कर बडी खुशी हूई, व इन्हे साथ चलने की हरी झण्डी दे दी। लेकिन विपिन को बाइक चलानी नहीं आती थी, अत: ऐसा बंदा चाहिए था जिसके पास बाइक हो व हमारे जैसा सिरफ़िरा हो, दो बाइक वालों ने मुझसे सम्पर्क किया व तीसरे ने नीरज के साथ, पहले संतोष तिडके नांदेड वाले, दूसरे सिद्धांत नीरज के जानने वाले, व तीसरे नितिन जाट।
पीठ पीछे ढाबा है, नीरज बिस्कुट से काम चला रहा है। सफ़ेद कमीज वाला नितिन व गुलाबी वाला विपिन है



लेकिन जैसे-जैसे जाने का समय नजदीक आता गया, प्रतिदिन दूसरी बाइक साथ में कौन सी जायेगी, इस पर सस्पेंस बना रहा, तीन दिन पहले  संतोष तिडके ने मना कर दी, कि मैं तो रामेश्वरम जा रहा हूँ, सिद्धांत का कहना था कि उसके घर वाले मना कर रहे है, अब बचा नितिन मैंने कहा कि अरे भाई दो तो गये काम से तु अपनी बता, तो नितिन बोला, मैं दो सौ प्रतिशत जाऊँगा। नितिन व विपिन एक बाइक पर पक्के हो गये, मैं व नीरज तो एक बाइक पर पहले से पक्कम-पक्के थे ही।

दो पक्के बाइक चालक, नहीं मिलेगा इनके जैसा।

चलने से पहली रात को सबने आपस में बात की, व दिल्ली से पानीपत जाने वाले मार्ग पर मुकरबा चौक फ़्लाईओवर (जो कि बाईपास के नाम से जाना जाता है) पर सुबह ठीक पाँच बजे से पहले सभी के मिलने का समय तय हुआ, नितिन मेरे घर के पास ही रहता है। विपिन सेवा नगर में रहता है। नीरज की रात की डयूटी थी, अत: नीरज ने रात में तीन बजे मुझे फ़ोन कर दिया, और बोला कि "उठे हो या सो रहे हो", मैंने अलार्म तो सवा तीन का लगाया था, अब सोना किसे था, नितिन को फ़ोन किया तो बंदे ने पहली ही घंटी में कॉल रिसिव कर ली, और बोला कि मुझे तो दो बजे के बाद नींद ही नहीं आयी है।
टोल टैक्स के सामने जाकर

मैं और नितिन ठीक पौने पाँच बजे तय स्थल मुकरबा चौक फ़्लाईओवर पर जा पहुँचे, जहाँ हमें नीरज व विपिन बस स्टॉप पर बैठे मिले, साथ में चार लठ कील वाले भी लिये हुए थे, मैं समझ गया कि यात्रा में ये लठ काफ़ी मदद करेंगे। लेकिन नितिन बोला कि इन लठ का क्या करोगे। मैंने कहा रास्ते में जो हमसे उल्टा बोलेगा उसका सिर फ़ोडेंगे। बाइक पर यात्रा करते समय मेरे साथ यात्रा का पहला दिन व आखिरी दिन सबसे कठिन होता है, क्योंकि इन दो दिन सिर्फ़ जाने व आने के बारे में ही सोचा जाता है, य़ानि ज्यादा से ज्यादा सफ़र तय करना होता है। बीच के दिनों में सफ़र पूरी मस्ती भरा रहता है।
जिरकपुर से पहले ये पुल आता है।

दिल्ली से ठीक पाँच सुबह बजे हम चार लोग चंडाल-चौकडी के रुप में भोले के द्धार श्रीखण्ड महादेव की ओर चल पडे। दिल्ली को पार करते-करते उजाला हो गया था। अपनी बाइक की रफ़्तार लगभग 55-60 के आसपास ही रहती है, बस पानीपत के फ़्लाईओवर पर जाकर खुद ब खुद खाली मार्ग देख बाइक भगाने का मन कर जाता है, ये फ़्लाईओवर भी तो दस किलोमीटर के आसपास का है। मैं यहाँ आकर 80-85 के आसपास तो बाइक भगा ही देता हूँ, अगर पीछे कोई डरपोक बैठा हो तो खाली मार्ग देख कर शायद उसे भी डर कम ही लगेगा। भीड में व पहाड में गाडी भगाने खतरे से खाली नहीं रहता है।
चंढी मंदिर के पास जाकर।

पानीपत का फ़्लाईओवर पार करने के बाद टोल टैक्स आ जाता है, सबको सू-सू जोर का लगा था, उसे ढीला किया, नीरज को भूख का जोर लगा था, उसने एक बिस्कुट का पैकैट निकाला, और जेब में रख लिया, जिसे चलते हुए खाया, दो-दो बिस्कुट सभी ने भी खाये, शेष नीरज चट कर गया। नीरज को भूख व नींद दो चीजे बहुत सताती करती है, जिस पर उसका कोई बस नहीं है, अपुन को तो ऐसी कोई परेशानी नही है। अपना मस्त सफ़र चलता रहा, धीरे-धीरे हम अम्बाला भी पार कर गये, अम्बाला से आगे जाकर जिरकपुर कस्बा आता है, इस कस्बे में बने फ़्लाईओवर के ऊपर से सीधे जाने पर चडीगढ आता है, तथा इस फ़्लाई ओवर के नीचे जाने पर आधा किलोमीटर चलने पर उल्टे हाथ की ओर एक मार्ग पटियाला की ओर जाता है, जिस पर पाँच किलोमीटर जाने के बाद सीधे हाथ की मुड जाने पर रोपड होते हुए मंडी मनाली चले जाते है, यानि चडीगढ को बाय-बाय भीड से बचते हुए ये मार्ग है। लेकिन हमें जाना था, शिमला अत: हमें एक किलोमीटर आगे फ़्लाईओवर के नीचे ही सीधे हाथ पर मुडना था जहाँ से मार्ग पिंजौर, कालका, सोलन होते हुए शिमला चला जाता है।
किनारे पर चंढी मंदिर का बोर्ड भी देख लो।

हम सीधे हाथ शिमला जाने वाले मार्ग पर मुड गये, ये मार्ग भी कई किलोमीटर तक फ़्लाईओवर पर ही बना है, भीडभाड से पूरा बचाव है। जहाँ भी फ़ोटो लेने का मन होता वहीं अपनी बाइक रुक जाती, फ़ोटो खींच-खांच कर ही आगे बढती थी, ऐसा किसी रेल या बस में सम्भव ही नहीं है कि जहाँ मन किया वहाँ रोक लो, मस्ती-मस्ती में पिंजौर का मशहूर गार्डन आ गया,
पिंजौर की ओर नजदीक जाते हुए।

यहाँ फ़लों की बहुत सी दुकाने है, चाय पकौडे वाले भी, नीरज भूख से परेशान था, समय हुआ था ठीक साढे दस बजे, अभी तक पकौडे तो तैयार नहीं थे। अत: नीरज खूब मोटे-मोटे पूरे 12 केले ले आया एक के हिस्से में तीन आये थे, केले इतने बडे थे कि तीन-तीन भी भारी पडते दिखाई दिये। केले खा कर अपने-अपने कील वाले लठ हमने पकौडे वाले के ठेले के नीचे रख दिये, व उसे कहा  कि भाई तु जब तक पकौडे बना, हम तब तक ये गार्डन घूम कर आते है। ठीक 11 बजे हम इस गार्डन के प्रवेश द्धार पर थे। अब अपनी चंडाल चौकडी इस गार्डन में जाने को तैयार थी
गार्डन की एक झलक।

अगले भाग में आपको इस पिंजौर गार्डन की सैर करायी जा रही है।


                    इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा









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30 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छा आगाज़ है तो अंजाम तो बहुत ही धांसू होगा.
    आपके लिए बस यही कहना है की

    हम किस किस की नजर को देखें
    हम तो सबकी नजर में रहते है.
    क्या करे दोस्त हमने तो किस्मत ही ऐसी पाई है
    कि हमेशा सफ़र में ही रहते हैं.

    आगे भी ऐसे ही जरी रखें आपकी आँखों से नीले गगन, प्रकृति का यौवन फूलों कि नाजुक कलियाँ देख कर मन प्रफुल्लित हो जाता है. आपको ढेर सारी शुभकामनायें. धन्यवाद.

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  2. बहुत अच्छे फोटो हैं..... आप बहुत अच्छी जगह जा रहे हैं... भोले बाबा को नमन

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  3. मैं पहले दिन ही दिल्ली से नारकण्डा पहुंच गया और आप बाइक होते हुए भी पिंजौर ही पहुंच सके हैं। सालों लगेंगे आपको अभी मेरी बराबरी करने में। हा हा हा
    मुझे भी बाइक चलानी सीखने दो, फिर देखना भरपूर टक्कर मिलेगी आपको और आपके जोडीदार को। लाइसेंस तो बन गया है।
    खाना और सोना मेरी कमजोरी नहीं बल्कि मेरी ताकत है। जरा एक बार इस यात्रा में से खुद को हटाकर देखो, कौन भारी पडा?
    आप को मैं अपना फिटनेस गुरू मानना चाहता हूं। अब मेट्रो में भी एस्केलेटर की जगह सीढियों का इस्तेमाल शुरू कर दिया है।
    बढिया शुरूआत। और हां, लिंक डालना भी सीखो। जहां पहली बार मेरा नाम लिखा है, वहां ब्लॉग का लिंक लगाया करो।

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  4. तस्वीर चंदाल चौकडी से शुरू हुये मगर अगली हर तस्वीर मे से एक चंडाल गायब होता रहा। सुन्दर यात्रा वृतांट। शुभकामनायें।

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  5. चित्र और सामग्री दोनों ही बहुत सुन्दर, बहुत प्रभावपूर्ण ,लगता है जैसे खुद ही यात्रा कर रहे हों , आभार

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  6. उत्तरी सड़को पर धौंकती फटफटिया उतरी।

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  7. सुन्दर तस्वीरों के साथ बड़े शानदार रूप से यात्रा का वर्णन किया है आपने !बहुत ही अच्छी जगह जा रहे हैं! जय बाबा भोलेनाथ!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://seawave-babli.blogspot.com
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

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  8. jat ji bahut sundar laga tasvir aur safr
    aap caro masti ki
    suruvath hi hai ,
    entajar hai pure kahani ki

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  9. श्रीखंड महादेव के बारे में बहुत सुना किन्तु देखने की तमन्ना मन में है. शायद अगली बार जाना हो पायेगा.
    आपकी यात्रा मंगलमय हो भाई संदीप जी.

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  10. aapke saath bhaai humne bhi safar shuru kar diya.picture aur varnan dono majedar hain.aage ka intjaar hai.

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  11. श्रीखंड की यात्रा कठिन है, जो आप लोगों ने सफलता पूर्वक पूरी की!! सहस के धनी आप जैसे लोग चंडाल चौकड़ी न होकर "स्वर्णिम चतुर्भुज" है!!

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  12. संदीप भाई राम राम.. बहुत ही अच्छा यात्रा विवरण तीन-चार दिन से आपकी पोस्ट का इंतजार कर रहा था अब जाके मन को शांति मिली धन्यवाद् .....

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  13. बहुत सुन्दर फोटो हैं ...
    धन्यवाद

    सफ़र हैं सुहाना
    http://safarhainsuhana.blogspot.com/2011/07/1.html

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  14. हमेशा की तरह बहुत ही रोचक और दिलचस्प लगी आपकी कथा -यात्रा .अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा

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  15. संदीप जाट भाई बहुत सुन्दर प्रस्तुति .नीरज भाई के ब्लॉग पर भी यह वृत्तांत पढ़ा .आपका अंदाज़ -ए -बयाँ आपका अपना शानदार नज़रिया प्रस्तुत करता है .

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  16. वाह! सुन्दर चित्रों के साथ रोचक यात्रा संस्मरण.

    गजब की शैली है आपकी.यात्रा जीवंत हो उठती है.

    अगली कड़ी का इंतजार है.

    मेरा ब्लॉग आपके दर्शन को तरस रहा है संदीप भाई.

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  17. चित्र और सामग्री दोनों ही बहुत सुन्दर, बहुत प्रभावपूर्ण

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  18. बढ़िया यात्रा वृत्तांत. बिण मांग्या सुझाव सै- बाद में इसे संपादित करके पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित कर दें.

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  19. बहुत खूब दोस्त .ब्लॉग पर आके कृतार्थ किया महादेव दर्शन के तो कहने ही क्या वह भी भाव राग और चित्र सहित .

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  20. भाई ये लट्ठ लेकर यात्रा तो जाट ही कर सकते हैं ।
    बहुत दिलचस्प ।

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  21. वाह क्या बात है...एक कहानी ख़तम तो दूजी शुरू हो गयी मामू...

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  22. मेरे घुमंतू भाई ,ब्लॉग पर आपकी दस्तक सदैव ही उल्लसित करती है अकसर बौनी आप करवातें हैं .कृपया इसे भी बांचें -http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/

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  23. उल्टा पढ़ते आ रहे हैं...शुरुवात मस्त रही...

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  24. पिंजोर गार्डन मैने देखा हैं ..अपनी शिमला यात्रा में ...हम भी साथ हैं संदीप ..

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  25. आभार इस प्रस्तुति और आपकी महत्वपूर्ण ब्लॉग दस्तक की .यात्रा का हर पड़ाव आलीशान और बाँधने वाला रहा है .आभार .

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  26. behatarin sachitra yatra britant..sandeep ji anand aa gaya..journey trip plan nahi karna padega..hardik badhayee ke sath

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