लेह बाइक यात्रा-
बीते चार दिन लगातार हमारा सामना बर्फ़बारी से हुआ था। आज हमारी यात्रा का छ्टा दिन शुरु हो चुका था। हमारे गिरोह (डाकू बदमाशों से भी ज्यादा हिम्मत दिखाई थी) के तीन सदस्यों ने अब से पहले बर्फ़ तो बहुत देखी थी, परन्तु किसी का सामना ऐसी बर्फ़बारी से नहीं हुआ था। दो महाराष्ट्र (नान्देड) वालों ने तो बर्फ़ भी पहली बार ही देखी थी, वो भी ऐसी देखी, कि जीवन भर याद भी रहेगी और दूसरों को कहेंगे, बेटे लेह को छोड दूसरे पहाड पर मत जाना, इस पूरे सफ़र में बर्फ़ के माहौल की सबसे बुरी जगह रात में बारालाचा ला लगी व दिन की सबसे खूबसूरत जगह भी बारालाचा ला लगी।
ये रास्ता है जिन्दगी, जो थम गये वो कुछ नहीं, ऐसे ही मार्ग है,
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आज दो दिन की ढिलाई के बाद, एक-बार फिर सख्ताई अपनाई और अपने सही समय ठीक सुबह छ बजे, हम लोग आज की अपनी मंजिल कारगिल के लिए रवाना हो गये। आज चलने से पहले काफ़ी देर विचार-विमर्श हुआ कि कश्मीर घाटी में आजकल(उन दिनों पत्थरबाजी व कर्फ़्यू से) हालात काफ़ी खराब है वापसी मनाली से जाये या श्रीनगर से, अगर मनाली से गये तो अमरनाथ रह जायेगा और श्रीनगर से गये तो पत्थरबाजी व कर्फ़्यू में फ़ंसने का डर था, मैं सबसे बडा था(उस समय ३३ साल का) मेरे ऊपर छोड दिया कि जैसा आपको उचित लगे मैंने कहा कि "चलो अमरनाथ भोले के द्दार" अगर कही फ़ंसने का खतरा है तो श्रीनगर शहर में, बाईपास से निकल जायेंगे, सब आगे के हालात के लिए भोले के भरोसे छोड चल पडे। लगभग एक घंटे की यात्रा के बाद लेह के जाने-पहचाने चौराहे पर पहुँच गये।
जब हम लेह की ओर जा रहे थे तो मार्ग में वे बुलेट वाले दोनों बंदे लेह से मनाली की ओर जाते मिले जो हमारे साथ दुनिया की सबसे ऊँची सडक तक हमारे साथ गये थे। ये भी हमारे साथ अमरनाथ तक जाना चाहते थे, परन्तु घाटी के उन दिनों के हालात के कारण वापस मनाली वाले मार्ग से ही लौट गये। इस मार्ग पर हमारा कई बार आना जाना हो गया था। लेह के चौराहे से बाये हाथ की ओर मुड गये, यह मार्ग लेह के हवाई अडडे के आगे से होता हुआ जाता है।
देख लो जी टायर गया दुकान पर,ठीक इसी हवाई अडडे के गेट पर जाट देवता की बाइक के पिछ्ले पहिए में पंचर हो गया, तिडके की बाइक में दारचा के पास अगले पहिये में हुआ था। अपने औजार निकाले पहिया खोला, बाइक का फोटो खींचा व पंचर वाले की दुकान पर जा पहुँचे। अभी समय हुआ था, सुबह के सवा सात बजे और पंचर वाले का कोई पता नहीं था, आधा-पौने घंटे की बाट(इंतजार) देखने के बाद वो दुकान वाला आया, तब कहीं जाकर टायर खोला और जब टायर खोला तो देखा कि ट्यूब खराब हो गयी थी। दुकान वाले को कहा कि ट्यूब बदल दे भाई तो वो बोला "जी मेरे पास ट्यूब नहीं है", क्या करते आधा किलोमीटर वापस आये, अपने गोदाम(बैग) में से एक ट्यूब अब जा कर काम आयी। इस पूरे लफ़डे में पूरा सवा घंटा बर्बाद हो गया।
यहाँ से कुछ दूर चलते ही भारतीय वायु-सेना का अड्डा आ गया, जो कि लेह के मुख्य हवाई-अड्डे से एकदम सटा हुआ है। यहाँ जब हम पंचर की वजह से रुके हुए थे तो उस समय चार-पाँच हवाई जहाज लेह के हवाई अड्डे पर आकर उतरे थे, यहाँ का हवाई-अड्डा सिंधु नदी के किनारे पर बना हुआ है। जिस ओर से ये लोहे के उडन खटोले आ रहे थे उस ओर से ऐसा नजारा दिखाई दे रहा था, जैसे किसी सुरंग में से कोई उडने वाला बडा सा जीव-जन्तु निकल कर आ रहा हो। शायद ही भारत में(हो सकता हो दुनिया में भी) कोई और ऐसी जगह होगी, जहाँ से ऐसा खूबसूरत, शानदार, दिलकश व मनलुभावना नजारा इतनी आसानी व सुगमता से आम व्यक्ति को उपलब्ध होता हो।
यहाँ से 25 किलोमीटर आगे पत्थर साहिब गुरुद्वारा है, हम सभी ने पत्थर साहिब गुरुद्वारा में दर्शन किये, फोटो खीचे, इस गुरुद्वारे में एक बडे पत्थर पर मानव(गुरुनानक जी के) धंसने के स्पष्ट निशान है, जहाँ ये गुरुद्वारा बना है ठीक इसी जगह गुरुनानक जी तपस्या में लीन थे कि सामने वाली पहाडी से किसी दैत्य ने गुरुनानक जी पर एक बडा सा पत्थर लुढका दिया था और जब वो पत्थर गुरुनानक जी से टकराया तो, गुरुनानक जी उस पत्थर से कुचले नहीं बल्कि उस में धंस गये, क्योंकि पत्थर आटे की तरह नरम हो गया था। हम यहाँ लंगर खाना चाहते थे, लेकिन लंगर तैयार होने में अभी तीन घंटे थे, इसलिये हमने प्रसादा चखा, शीश झुकाया और पुन: आने की बोल आगे कारगिल की ओर चल दिये।
जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल, ग्यारह बार दौहराना है,
मूल मंत्र गुरु ग्रन्थ साहिब का,
बेटे ढिल्लू, वाहे गुरु का आशीष पा कर चमक रहा है, साथ में परवीन,
जाट देवता भी वाहे गुरु के चरणों में विराजमान है, साथ में विशेष मलिक,
परवीन व मलिक चाय पीते हुए,
पत्थर साहिब का पूरा ब्यौरा,
सामने लेह की ओर का मार्ग, व पूरा गुरुद्दारा,
लेह में आयी बाढ से ये गुरुद्वारा भी नहीं बच सका था, यहाँ भी तीन-चार फ़ुट तक कीचड पानी के साथ बह कर आ गया था?
इस यात्रा पर चलने से पहले लेह की चुम्बक वाली पहाडी के बारे में बहुत सुना था, आज (8-जुलाई-2010) जाकर इस विश्व प्रसिद्द चुम्बक वाली पहाडी जगह पर विराजमान हुए। बहुत सुना था, कि इस पहाडी पर ये होता है, वो होता है। हम यहाँ पूरे एक घंटा रुके, लेकिन हमें यहाँ कुछ भी ऐसा महसूस नहीं हुआ जिससे हम यह कह सके कि इस पहाडी पर चुम्बक का प्रभुत्व है, ये तो भगवान जाने कि हमारी बाइक किस लोहे से बनी थी, कि जिस पर चुम्बक वाली पहाडी का असर नहीं हो रहा था या फिर तीन-चार दिनों से बर्फ़ की मार झेलते हुए हमारी बाइक का लोहा किसी और धातु में बदल गया था। हम इस पहाडी पर ऊपर-नीचे दाँये-बाये हर तरफ़ बाइक ले जा ले जा कर देखी। लेकिन चुम्बक का बिल्कुल भी असर नही था, हम इस बोर्ड के साथ फोटो खिंचवाकर ही खुश हो लिये।
यही पास में ही वो निम्मू गाँव था, जो हमारे आने के ठीक एक महीने बाद (अगस्त 2010 में) लेह में कई जगह बादल फ़टने से आयी बाढ से तबाह हो गया था। लेह का हवाई-अडडा व कई अन्य स्थान भी बाढ की चपेट में आये थे। सैंकडों की सँख्या में लोगों की मौते भी हुई थी।
चुम्बक वाली पहाडी का बोर्डचुम्बक वाली पहाडी का बोर्ड, व तिडके
चुम्बक वाली पहाडी का बोर्ड व मलिक,
चुम्बक वाली पहाडी का बोर्ड, व परवीन,
सामने जो मार्ग है, उस पर एक काला सा बिंदु ऊपर चमक रहा है वो महेश है व उसकी बाइक
लेह से आगे एक बोर्ड के किनारे
उसी बोर्ड का दूसरे किनारे से
अब आगे का मार्ग (अब तक का सारा सफ़र ही) बहुत शानदार था। पहाडी रेगिस्तान अभी भी चल ही रहा था। कभी-कभार ही कोई घर या इंसान नजर आता था। हम मार्ग के नजारों का अवलोकन करते हुए आराम से चले जा रहे थे, कि एक ऐसा पुल आया जो सडक से काफ़ी नीचे बना हुआ था, यहाँ सभी प्रकार की गाडियों की ताकत का टैस्ट हो रहा था कि इंजन में जान अभी बाकि है कि नहीं, इस गहराई वाले पुल को पार कर, जब ऊपर आये तो देखा, कि एक नया पुल बनाया जा रहा है। नया पुल इस तरह बनाया जा रहा था, जिससे कि सारी उतराई-चढाई खत्म हो जायेगी।(अब तक शुरु भी हो चुका होगा)
मार्ग में हल्की-फ़ुल्की उतराई-चढाई आती-जाती रही। तीनों बाइक वालों ने ये तय किया हुआ था कि आगे कि बाइक तेज चला सकते हो लेकिन आखिरी दोनों बाइक एक-साथ रहेगी, जिससे कोई समस्या हो तो आगे वाले तो मिल जायेगी और पीछे कोई इंतजार के लिए नहीं रहेगी। इस नियम का फ़ायदा कई बार हुआ। चलते-चलते जब सिंधु नदी एक बार फिर सडक के पास में आ गयी, जो पता नहीं ३०-४० से किलोमीटर कहाँ गायब थी।
नुरला, ससपोल होते हुए खल्तसा नामक स्थान आया, और भी आये थे नाम याद नहीं, यहाँ से आगे जाने पर दो रास्ते आ गये, बोर्ड था नहीं क्या करते, कुछ देर में एक ट्रक आया उसने आगे का मार्ग बताया। अपना मस्त सफ़र चलता रहा बस एक जगह पुलिस का बैरियर आया यहाँ अपनी-अपनी बाइक व ड्राईविंग लाइसेंस के नम्बर दर्ज करा कराने पडते है, फोटो लिये, यहाँ से दो मार्ग हो जाते है लेकिन शुक्र है कि बोर्ड है, वो भी दो-दो। यहाँ से एक मार्ग बटालिक सेक्टर चला जाता है, दूसरा लामायूरु, फ़ोतूला टाप, मुलबेक होता कारगिल की ओर चला जाता है। हम आगे उल्टे हाथ वाले इसी मार्ग से गये।
पुलिस चौकी के पास का बोर्ड
कहाँ जाना है?उल्टे हाथ फोतूला व सीधे हाथ बटालिक
दारचा से शुरु हुआ रेगिस्तान अभी समाप्त नहीं हुआ था, सिंधु पार करने के कुछ देर बाद एक छोटा सा पुल आया, इसे पार करने पर एक बार फिर बिना बोर्ड का वाई मोड आ गया। हम सामने की नई सडक देख उस ओर हो लिये कि तभी एक मजदूर ने हमें रोका और कहा कि ये लामायूरु वाली सडक फ़ोटूला टाप जाने के लिये अभी पूरी त्तैयार नही है, दो महीने बाद शुरु हो जायेगी, इसलिए आप पुराने वाले मार्ग से जाओ हम बोले भाई हमारे लिये सारे मार्ग नये ही है हम पहली बार आये है। उसके बताये मार्ग पर बस ट्रक जा रहे थे हम भी चल दिये कि दो तीन किलोमीटर बाद ही एक मोड पर सबकी नजर ऊपर क्या गयी कि सबकी हवा खराब हो गयी सबने अपनी-अपनी बाइक एक किनारे लगा दी। सामने था ही ऐसा खतरनाक नजारा?
हाय ये सुनसान रेगिस्तान कब समाप्त होगा?
अगले लेख में खतरनाक नज़ारे के फोटो, फोतूला टॉप, पाकितानी सेना की गोली का डर जिस कारण सू सू भी 20-25 किलोमीटर आगे जाकर किया?
इस यात्रा को आगे भाग 7 पढने के लिये यहाँ क्लिक करे
लेह वाली इस बाइक यात्रा के जिस लेख को पढ़ना चाहते है नीचे उसी लिंक पर क्लिक करे।
भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
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he jaat devta aap dhanya hai jo in manoram per durgam vaadiyon ka jikra itani sahajta se kar lete hain...aur usase bhi bhali baat hai ki apani rochak bhasha aur picture dwara yatra ka pura aanand pathakon ke saath baante hain...badhaaiyan...
जवाब देंहटाएंसुन्दर शैली में रोचक विवरण।
जवाब देंहटाएंआभार।
भई वाह. मैं तो ऐसी यात्राओं से वंचित ही रह जाऊंगा.. छोटे साहब के जन्मदिन की बधाई.. देरी से ही सही..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने ऐसी रोमांचक यात्रा के लिए धन्यवाद आपका..
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभ कामनाएं !!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ऐसी रोमांचक यात्रा के लिए धन्यवाद आपका..
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभ कामनाएं !!
बहुत सुन्दर लिखा है आपने ऐसी रोमांचक यात्रा के लिए धन्यवाद आपका..
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभ कामनाएं !!
टिप्पणी करने की भी हिम्मत नहीं हो रही है।
जवाब देंहटाएंअगली कडी का इंतजार
जै भोले की
सच कहा अंतर सोहिल जी ने टिपण्णी करने की भी हिम्मत नही हो रही है --
जवाब देंहटाएंआँखों देखा हाल पढ़ कर मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए---
पर पत्थर साहेब के दर्शन करके मै तो धन्य हो गई --संदीप जी --जल्दी दूसरी किस्त लिखे !
लगता है टिल्लू जी अब मस्त है !
जवाब देंहटाएंरोचक विवरण!
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Bhaaisahib ham bhi aapke safar ke sakshi bane ,hamaaraa saubhaagya .bahut sajeev yaatraa -vritaant hai ,shaili bhi aupanyaasik .
जवाब देंहटाएंbadhaai .
photography kaa kamaal hai ,aapkaa hauslaa hai ,yaatraa hausle se ki jaati hai aur hauslaa aapme be -shumaar ,be -inthaa, hai .
badhaai !
veerubhai,43309,Silver Wood Dr.,Canton ,MI,48 188(USA)
doordhvani :001 -734 -446 -5451.
(Virendra sharma ,HES-1,Retd .)
वानभट्ट जी, डा० दिव्या जी,
जवाब देंहटाएंमदन शर्मा जी, विवेक जैन जी, वीरु भाई जी,
मैंने ये जो भी लिखा है शत-प्रतिशत हमारे साथ बीता हुआ लिखा है, अपने को तो लिखना-विखना ना आता, जै राम जी की।
भारतीय नागरिक जी, अन्तर सोहिल जी, दर्शन कौर धनोए जी
मेरी आप से विनती है कि अपना डर मन से निकाल कर ऐसी ही जोरदार यात्रा किजीए, चाहे वाहन कोई भी हो? रही बात हम जैसों कि, हम तो दीवाने है, दीवानों का कुछ नहीं हो सकता है?
जै राम जी की।
बहुत सुंदर विवरण जी ओर सरल शेली मे, मजा आगया पढ कर, अगले भाग का इंतजार, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंयात्रा की यात्रा और चलते चलते पूजा का पुण्य भी। भै वाह !!!
जवाब देंहटाएंअमरनाथ जी की यात्रा तो कई बार की है पर लेह नहीं जा पाई....आपने वो भी यात्रा करवा दी...चित्र भी बहुत खूबसूरत हैं...
जवाब देंहटाएंज़बरदस्त चल रहा है आपका ट्रिप तो ....... शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक अन्दाज़ में लिखा है .....आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत चित्र
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ला-जवाब" जबर्दस्त!!
............. यात्रा विवरण
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
जवाब देंहटाएंनशे से नफरत है बहुत अच्छा भाई अपनी विरादरी के हो जहाँ आप घुमे हम भी जम्मू से श्रीनगर रोज ही घूमते थे पहले -पहले पता चला होता तो आप से उधमपुर से श्रीनगर तक कहीं मिल भी लेते ये संदीप जी -ये मलिक को कहीं देखा भी है लगता है -जो भी हो मजा आ गया -फोटोग्राफर हो तभी तो गुलाब व् मोर अच्छा लगा -
जवाब देंहटाएंसुरेन्द्र शुक्ल भ्रमर५
अभिनन्दन है जाट देवता आप का हमारे ब्लॉग पर और तीनो ब्लॉग पर पधारें अपना सुझाव व् समर्थन भी दें
अच्छा लगा ये सुन की गुलाब और मोर पसंद आये पर रचना कैसी ??
जाट देवता क्यों?? नाम क्यों नही ??
शुक्लभ्रमर ५
वाह भाई न्यू लागे है जिस तारिया मैं थारे साथ ही गुमण लाग रया हू |
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आये
jatdevtaji chalange mat karana ..kaunki ham bhi hai MHARATA ..aap satpuste ke bareme likha hai ..ham ho lagatar sat bar wahi yatra karne ke liye tayear hai..chalo kab chalate ho ...Santosh tidake maharastra 09970242570
जवाब देंहटाएंNice information��
जवाब देंहटाएंa href="https://www.factzon.in/">मैग्नेटिक हिल्स के अनसुलझे रहस्य/a>