लेह-लद्दाख यात्रा-
मोटर बाईक से लाल किला से लेह-लद्दाख यात्रा सुनने में ही कठिन लगने वाला शब्द वास्तव में हकीकत में साकार हो गया। जब हम छ बन्दे तीन बाइक पर लाल किले से लेह तक घूम कर आये। लाल किले से लेह तक जाने वाले एक साल में 50 से ज्यादा सनकी(लोग) नहीं होते। लाल-किला से लेह की दूरी वाया मनाली लगभग 1025 किलोमीटर है। लाल-किला से लेह की दूरी वाया श्रीनगर लगभग 1425 किलोमीटर है। हमने दोनों मार्गो का प्रयोग किया।
विशेष मलिक, गजानंद, संतोष तिडके
बचपन से लम्बी दूरी की बाईक सवारी की बड़ी इच्छा थी। मैं पहले भी 7 बार दिल्ली से गंगोत्री बाईक पर जा चुका हूँ। दो बार बाईक से उतराखन्ड के चारों धाम जा चुका हूँ। ऐसी ही एक चार-धाम यात्रा में हम भू-स्खलन की वजह से चार दिन फंस गए थे। चार-धाम यात्रा फिर कभी होगी अभी तो सिर्फ लेह-लद्दाख यात्रा के बारे में विस्तार से पढ़िए।
पहाड में कोई झील नजर आ रही थी।
पहाड़ में घुसते ही मस्ती शुरु हो जाती है।
3 जुलाई 2010 का दिन तय हुआ। सुबह के चार बजे, छ:बन्दे, तीन बाईक पर दिल्ली लोनी बोर्डर के बस डिपो पर मिलने की तय कर 3 जुलाई का इंतज़ार करने लगे। तीन में से एक बाईक महाराष्ट्र से आने वाली थी जो की नांदेड के पास एक गाँव है, कुरून्दा जिसका ताल्लुका है, बसमत और दिल्ली से दूरी है 1524 किलोमीटर के आसपास वाया इंदोर से। कुरून्दा से संतोष तिडके अपने एक और दोस्त गजानंद के साथ तय समय से दो दिन पहले ही एक जुलाई को लोनी-बोर्डर दिल्ली आ गए। दोनों ने 1524 की दूरी केवल दो दिन में तय की।
पहाड़ में घुसते ही फोटो खिचवाने की याद आती है।
दो जुलाई को तीनो बाईक के छ: बन्दे, एक साथ मिले और यात्रा की तैयारी पूरी की। नांदेड से ही दो और दोस्त बाबूराव और कैलाश देशमुख का भी फ़ोन आया कि हम भी कल सुबह चल देंगे और आपको अमरनाथ में मिलेंगे।
यही वो दुकान है जहा से एक मार्ग नैना देवी को जाता है।
3 जुलाई को सब सुबह 4 बजे, तय स्थान पर लोनी-बोर्डर बस डिपो के सामने आ पहुंचे। हमारी सवारी रोशनी होने तक दिल्ली को पीछे छोड़ चुकी थी। पानीपत, करनाल होते हुए सुबह के सवा आठ बजे हम अम्बाला के फ़्लाईओवर पर डेरा जमा चुके थे। कुछ देर आराम कर आगे का रास्ता पकड़ना शुरु किया। यही कही पर सबने सु-सु-सासु भी किया जो की बड़ी जोर से लगा था, उससे भी छुटकारा पाया।
देख लो क्या लिखा है।
चंडीगढ़ तक पहुंचते ही जोरदार बारिश ने हमारा स्वागत किया। अपनी-अपनी बाईक किनारे लगा, हम लोग, अजी हम लोग क्या सड़क पर चलने वाले सब के सब लोग जिसे जहाँ जगह मिली, वो वहां घुस गया। पानी भी झमा-झम जो बरसा था बारिश ने हमारा एक घंटा जरुर बर्बाद किया।
मनाली से पहले एक बोर्ड के नीचे।
बारिश से कुछ भीगते, कुछ बचते-बचाते हुए, हम छ बन्दे चंडीगढ की बडी-बडी सडको पर बिल्कुल राज्य-मार्गों की तरह तेजी से रोपड पहुँचे। यहाँ सबने दोपहर का खाना खाया। आगे बढते हुए बिलासपुर जा पहुंचे। रास्ते में चाय पीने वाले बन्दों ने चाय पी, जिस दुकान पर हमने चाय पी थी, ठीक उसी जगह बाये हाथ से एक मार्ग नैना देवी मंदिर की ओर जाता है, तथा यहां से दूरी है, मात्र 16 किलोमीट ही है, लेकिन नैना देवी को यही से नमस्कार कर लिया तथा फिर कभी आने की बोल कर हम नैना देवी मंदिर की ओर ना जा कर सीधे सुंदरनगर पहुंचे, यहां पर नदी का पानी रोक बांध बनाकर एक झील बनाई हुई है, जिससे बिजली बनाई जाती है, हम यहां रुके फोटो खीचें व आगे बढते हुए मंडी शहर जा पहुंचे।
मंडी पार करने पर एक रास्ता नदी का पुल बाये हाथ की ओर से पार करने पर पठानकोट की ओर जाता है। पठानकोट यहां से कुल 208 किलोमीटर की दूरी पर है। चंडीगढ से मंडी की दूरी 200 किलोमीटर की है। मंडी पार करने पर 15 किलोमीटर दूर पण्डोह नामक जगह आती है। यहां भी एक बांध है, जिसका नजारा बडा सुंदर है। बांध का नजारा देखने के बाद आगे बढे, 5-6 किलोमीटर आगे हणोगी माता का मंदिर आता है। हणोगी माता के मंदिर में रात में रुकने का अच्छा प्रबंध है, कमरा 150 में हाल में 20 रु का खर्च आता है। हम यहां 4 बजे पहुंच गये थे, इसलिए हमने माता को प्रणाम किया व आगे बढ गये। आखिरी बार जब हम यहाँ आये थे तो मनाली आते व जाते वक्त यही रुके थे।
झरने का सुंदर दृश्य, असली में देखने में बहुत मजा आता है
हणोगी माता मंदिर से लगभग 6 किलोमीटर के बाद एक सुरंग आती है, जो कि पौने तीन किलोमीटर लम्बाई की है। सुरंग पार कर आगे एक रास्ता कुल्लू व एक रास्ता मणिकर्ण की ओर जाता है। मणिकर्ण हम पहले हो कर आये थे इसलिये हम कुल्लू होते हुए मनाली जाने वाले रास्ते पर चल दिए। कुल्लू से मनाली जाने के लिए नदी के दोनों तरफ रास्ते है, सीधे हाथ वाले रास्ते के नज़ारे बहुत खुबसूरत है, इसलिए हम सीधे हाथ वाले मार्ग से नज़ारे देखते हुए गये। मनाली से पहले एक धनुष आकार का पुल बड़ा शानदार है।
हणोगी माता का मंदिर यहाँ रात में रुकने का प्रबंध है।
हणोगी माता का असली मंदिर नदी के पार है।
कुल्लू से पहले ये सुरंग है, फोटो ऐसा जैसे की सीमेंट फैक्ट्री के अन्दर हो।
मनाली के पास ही ये धनुष के आकार का पुल है।
शाम सात बजे मनाली जा पहुंचे, अँधेरा होने वाला था। यही पर रात्रि विश्राम किया गया। हम मनाली में सरकारी आवास में रुके, जिसका डोरमेट्री किराया एक बेड का टैक्स सहित 110 रु था। ये हमारा पहला दिन था। सब काफी थके हुए थे, पूरे 525 किलोमीटर की छोटी सी यात्रा ही तो की थी।
उसी पुल के सामने। दो जाट खोपडी के बीच एक मराठा।
मनाली में मंदिर।
अगले लेख में रोहतांग व आगे बारालाचा की बर्फबारी में फंसने के बारे में
आगे की यात्रा भाग दो के लिए यहाँ क्लिक करे
लेह वाली इस बाइक यात्रा के जिस लेख को पढ़ना चाहते है नीचे उसी लिंक पर क्लिक करे।
भाग-01-दिल्ली से चड़ीगढ़, मन्ड़ी, कुल्लू होते मनाली तक।
भाग-02-मनाली, रोहतांग दर्रा पार करके बारालाचा ला/दर्रा तक
भाग-03-बारालाचा पार कर, सरचू, गाटा लूप, होते हुए पाँग से आगे तक।
भाग-04-तंगलंगला दर्रा, उपशी होते हुए, लेह में दुनिया की सबसे ऊँची सड़क तक।
भाग-05-चाँग ला/दर्रा होते हुए, पैंन्गोंग तुसू लेक/झील तक।
भाग-06-चुम्बक वाली पहाड़ी व पत्थर साहिब गुरुद्धारा होते हुए।
भाग-07-फ़ोतूला टॉप की जलेबी बैंड़ वाली चढ़ाई व कारगिल होते हुए द्रास तक।
भाग-08-जोजिला पास/दर्रा से बालटाल होकर अमरनाथ यात्रा करते हुए।
भाग-09-श्रीनगर की ड़लझील व जवाहर सुरंग पार करते हुए।
भाग-10-पत्नी टॉप व वैष्णौ देवी दर्शन करते हुए।
भाग-11-कटरा से दिल्ली तक व इस यात्रा के लिये महत्वपूर्ण जानकारी।
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बहुत खूब .. अच्छा लेख
जवाब देंहटाएंकभी समय मिले तो http://shiva12877.blogspot.com ब्लॉग पर भी अपनी एक नज़र डालें .
bhaee sandeep, yatra vritant jari rakhen. yah majedar hai.
जवाब देंहटाएंhallo bhai apke yatra kafi majadar hote hai or sabhi net uger ko ma bata do jo koi bhi yatra karna ka sok rakta hai vo ak bar sandeep bahi sa jaror mila apko milkar kafi maja ayaga kyoke ya banda sal ma kam sa kam 3 month yatra karna ma lagata hai or inka sat karcha kafi bajat ma ata hai kyoke ma bhi ak bar inka sat kawar la kar aya ho gangotri sa kadarnath ji tak total injoy bhai yatra apni hamesa chalo rakna ok bay
जवाब देंहटाएंजाट देवता जी,ये सब जाट धुमक्कड़ ही क्यों होते है भाई !नीरज जाट तो थे ही पक्के धुमक्कड़ आज वाहेगुरु ने आपसे मिला दिया --
जवाब देंहटाएंसारी पोस्ट पढ़कर ही टिपण्णी दुगी --मिलते है !
जाट देवता जी,आप लेबल लगाए और १-२ -३ भाग ऐसे लिखे पढने में सुविधा रहती है जेसे मैने लिखा है--टाइम सेट करना आ नही रहा है प्लीज आप बताए !
जवाब देंहटाएंहा,आपके चित्र देखकर मेरी मनाली ,कुल्लू ,सुन्दर नगर , मंडी,मणिकर्ण यानी सारी यादे ताजा हो गई-
यात्रा का विवरण रोचकता से भरपूर रहना चाहिए वरना पड़ने वाला बोर हो जाता है आपमें वो खासियत है
जल्दी ही आपकी ३ री पोस्ट मिलेगी --धन्यवाद !
लेह जाने की बहुत हसरत है पर इस उम्र में ,क्या वहा जाना ठीक रहेगा --आपने अनुभव किया है जरुर बताए ..केसे वहा जा सकते है ?कहा ठहरे ? वहा के बारे में ?खान पान सब अगली पोस्ट में लिखे ..
जवाब देंहटाएंऔर यदि आप नेपाल जा रहे है और पटना से जाएगे तो मेरी पोस्ट पटना साहेब (फरवरी ) जरुर पढ़े --
श्रीमान संदीप पवार जी नमस्कार! आपके ब्लॉग पे आ कर बहुत अच्छा लगा. आपके साहस को दाद देना पड़ेगा इस तरह की यात्रा करना बड़ा ही मुश्किल काम है.बहुत रोचक तरीके से बताया है आपने.
जवाब देंहटाएंआपको मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं.
आप मेरे ब्लॉग पे आये और मेरा उत्साह बढाया इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद. आशा है इसी तरह आगे भी मेरा मार्ग दर्शन करते रहेंगे
कृपया दर्शन कौर जी के ब्लॉग पे भी विज़िट करें बहुत अच्छी जानकारी देती हैं ये !
जवाब देंहटाएंआनंद आ गया आप की यात्रा देख कर..चलो हम जा नहीं पाए कोई बात नहीं मगर आप के ब्लॉग के माध्यम से भ्रमण हो गया..
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार..
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आशुतोष की कलम से....: मनमोहन जी विश्वकप में भारत की इज्जत लुटवाने की अग्रिम बधाइयाँ
हिन्दी ब्लॉगजगत के स्नेही परिवार में इस नये ब्लॉग का और आपका मैं संजय भास्कर हार्दिक स्वागत करता हूँ.
जवाब देंहटाएंNice bro
जवाब देंहटाएंGreat post, thank you for sharing such post. Visit :
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