शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

NAUKUCHIATAL LAKE नौकुचियाताल झील


भीमताल देखने के लिये यहाँ चटका लगाये।
भीमताल देखने के बाद अब "नौकुचियाताल" की ओर चलते है, भीमताल के मुख्य बिन्दु के ठीक सामने से ही एक मार्ग भीमताल के विपरीत दिशा यानि कि पूर्व की ओर जाता हुआ दिखाई देता है यहाँ एक बोर्ड भी लगा हुआ है जिस पर नौकुचियाताल की दिशा में तीर बना कर जाने के बारे में लिखा हुआ भी है। यहाँ से यह ताल 5 किमी के आसपास है। भीमताल से चलते ही लगभग 100 मी की ठीक-ठाक चढाई आ जाती है। इसके बाद आगे का मार्ग साधारण सा ही है जिस पर वाहनों की रेलमपेल भी कोई खास नहीं थी। मार्ग के एक तरफ़ यानि उल्टे हाथ की ओर पहाड थे जबकि सीधे हाथ की ओर ढलान थी। मार्ग में जगह-जगह नये भवनों का निर्माण कार्य चल रहा था एक जगह तो बोर्ड भी मजेदार लगा हुआ था कि यह आम रास्ता नहीं है। बीच में एक जगह जाकर मार्ग में काफ़ी ढलान थी जिस पर वापसी में चढने में काफ़ी जोर भी लगाना पडता है। मार्ग के दोनों ओर अच्छी हरियाली थी जिसे देखता हुआ मैं अपनी मस्ती भरी चाल से आगे बढता जा रहा था। ताल से कोई दो किमी पहले एक बोर्ड नजर आया था जिस पर ताल की खूबियाँ आदि लिखी हुई थी मैं समझा कि ताल नजदीक ही है लेकिन काफ़ी दूर चलने पर भी ताल तो दिखाई नहीं दी बल्कि हनुमान जी की एक विशाल  मूर्ति दिखाई दी।
यह बोर्ड आम लोगों के लिये चेतावनी है।

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

"SAMPLA BLOGGER MEET साँपला ब्लॉगर मिलन समापन किस्त "


सांपला सम्मेलन का पहला भाग देखना चाहते हो तो यहाँ क्लिक करे

हॉल में सभी अपना परिचय देते हुए।

तीन बजे तक लगभग सभी मिलन समारोह स्थल पर आ चुके थे जो दो चार लेट-लतीफ़ थे बस वहीं रह गये थे। जो पहले ही समय से आ गये थे उनमें खूब विचार विमर्श हुआ। जो देरी से आये उनको सिर्फ़ जरुरी विचार विमर्श से काम चलाना पडा था। ठीक एक बजे चाय के साथ पनीर वाले ब्रेड, बिस्कुट का प्रबन्ध किया गया था जिसका वहाँ उपस्थित बंधुओं ने पूरा लुत्फ़ उठाया था। इसके बाद अन्दर विशाल हॉल में सबका एक दूसरे से परिचय हुआ। सबने अपना परिचय स्वयं दिया था। नाम से हम सभी को जानते ही थे चेहरे से भी सभी को जाना-पहचाना, कईयों को तो मैं तो पहचान ही नहीं पाया था। जितनी महिला ब्लॉगर वहाँ आयी हुई थी उनमें सबसे अच्छी आदत मुझे ईन्दु पुरी जी की लगी। ईन्दु जी में अपनापन झलक ही नहीं रहा था बल्कि उनका व्यवहार  माँ बहन सरीखा ही था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि किसी महिला से मैं या कोई और पहली बार मिल रहा हूँ। जिस समय मैंने अपना परिचय दिया कि मैं हूँ जाट देवता तो उस समय ईन्दु जी के चेहरे की आश्चर्य जनक खुशी देखने लायक थी। यहाँ से पहले मैं संजय अनेजा जी, बाबा जी, संजय भास्कर जी, केवल राम जी, अन्तर सोहिल जी से मिल चुका था। लेकिन यहाँ एक बार फ़िर सबसे मिलकर बेहद खुशी हुई है। यहाँ एक गडबड हो गयी कि मैं राकेश कुमार जी को नहीं पहचान पाया जब राकेश जी ने कहा और भई जाट देवता क्या मौज हो रही है? तब दिमाग पर जोर डालकर याद आया कि अरे यह तो अपने जिले के ही रहने वाले राकेश कुमार जी है। इसके बाद तो मैं खुशी से राकेश जी के गले लग गया था। 
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