सोमवार, 22 अगस्त 2011

श्रीखण्ड महादेव वापसी (भीमडवार-रामपुर) भाग 9


आज तो सब के सब बडॆ खुश थे, बात ही ऐसी थी, यहाँ से सही-सलामत वापस जो जा रहे थे। विपिन गौरनीरज जाट जी के मन की तो मुझे नहीं पता, लेकिन मैं अपने मन की कहता हूँ कि यहाँ दुबारा फ़िर आना है, वो भी अपने परिवार के साथ, बाकि भोले नाथ की इच्छा। तीनों मस्त बंदे, किसी को कोई थकान नहीं, कोई परेशानी नही, कोई भय नहीं, तीनों अपनी-अपनी  मर्जी के मालिक जब जी करा चल पडे, जब जी करा रुक गये। टैंट वाले का हिसाब किताब किया। उससे पहले आज भी सुबह-सुबह उठकर दो-दो पराठे खा कर चले थे, ताकि किसी को खचेडू से पहले भूख तंग ना करे, वैसे मुझे भूख कुछ कम ही तंग करती है, अरे अपनी सहनशक्ति भी इन तीनों से कई गुणा बढकर है, वो चाहे किसी भी तरह की हो। मैं किसी भी यात्रा पर जाने से पहले पूरी तरह मानसिक व शारीरिक दोनों रुप से पूरा तैयार होकर ही घर से बाहर जाता हूँ।
लो जी हम श्रीखण्ड महादेव से वापस आ रहे है, ये भक्त अभी जा रहे है।
                                          इस यात्रा का असली आनन्द लेना है तो शुरु से पढो

तीनों कुछ अलग किस्म के है, ये तो सब को पता चल ही गया होगा। अपने आलसी छोटे जाट सुबह उठने में कुछ नखरे दिखाते थे, उसका इलाज मैंने ये निकाला था कि भाई हम तो जा रहे है, तुम आते रहना, ये शब्द सुनते ही छोटे जाट तुरन्त तैयार होने लगते थे। सुबह के पौने सात बजने वाले थे नीरज अभी जूते पहन ही रहा था कि हम आगे वापसी के लिये चल दिये थे, वैसे भी आज नीरज का दिन था, मतलब आज उतराई थी, लेकिन कल शाम को पार्वती बाग से उतरते समय फ़िसलकर जो धडाम से नीरज गिरा था, उसके बाद अब उतराई में नीरज की वो शताब्दी वाली चाल नजर नहीं आ रही थी। जिससे वो हमें पछाड सके, नीरज को जब भी हम देखते तो वो हमें 100-150 मीटर पीछे ही नजर आता था, मार्ग का पूरा मजा लेते हुए हम, तीनों चले आ रहे थे, यहाँ पीने के पानी की कोई समस्या नहीं थी, हर आधा किलोमीटर के आसपास पानी का स्रोत आ ही जाता था। मैं प्यास लगते ही पानी पी लेता था। विपिन को मैंने बोल दिया था कि आज उतराई ज्यादा है, अत: आज नीरज हमसे तेज चलेगा, इसलिये आज नीरज को दिखाना है कि हम भी तेजी से उतरना जानते है, बस ये बात उसे बताना मत। कही हमारे से आगे निकलने के चक्कर में कल की तरह फ़िर से ना गिर पडे।
बर्फ़ के बीच में खडॆ हो या बैठ कर फ़ोटो खिचवाना अच्छा लगता है।



सुबह-सुबह पत्तों पर वर्षा की बून्दे।
घास के तिनकों पर भी पानी की बूंदों का कैसा प्यारा नजारा है।

कोई एक घन्टा ही चले थे कि मार्ग में बादलों का कोहरा चारों ओर से घिर आया जिससे, हमें तो इस घनघोर कोहरे में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, जो मार्ग आते समय हमें डरा रहा था, वापसी में तो उसका पता ही नहीं चला, वो तीनों पाताललोक की चढाई व उतराई का तो पता ही जब चलता, जब उस पर आधा चढ जाते थे। फ़ूल, पौधे, भॆड, आदि जो पास में थे वो ही नजर आते थे, थोडी सी दूर का कोई भी नजर नहीं आता था। मेरे पास ना घडी थी, ना मोबाइल, समय का भी पता नहीं चल पाता था। 
एक पहाडी रखवाला दिन में आराम करता हुआ, रात भर भेडों की रखवाली करता है।
भेडों को देखो, बादलों की धुन्ध में आराम कर रही है।
यहाँ हर जगह ऐसे प्यारे फ़ूल भरे पडे है।
ये देखो, एक ऐसा पौधा जैसे कि शरीर की नसे हो।
एक पेड पर लटके फ़ूल है।
ऐसे ही पेडों की जडों से होकर चढना पडता है।

हम आज अपनी चाल से ज्यादा तेज चल रहे थे, जब बहुत ज्यादा ही खडी ढलान आती थी तो तभी हम सावधान होकर उतरते थे। नहीं तो दे दना दन उतरते जा रहे थे, हमें वो जगह तो नजर आयी, जहाँ काली कुन्ड में लोग स्नान करते है। लेकिन इसके बाद हमें काली घाटी की चढाई का भी पता नहीं चला, और हम इस घाटी की दो-तीन किलोमीटर की कठिन चढाई आराम से चढ गये थे, जब एक जगह एक रपटा आता है तब मैं चौंक गया था कि यार ये तो काली घाटी से चलते ही आ जाता है, और सच में, था भी वैसा ही, रपटा पार करते ही काली घाटी आ गयी थी, इस पूरे 15 किलोमीटर के सफ़र में आज पहली बार ऐसा था कि हम तीनों मे से कोई भी कहीं बैठा नहीं था। जब काली घाटी आयी तो देखा कि मौसम कुछ नाराज हो रहा है, यानि हल्की-हल्की बारिश शुरु हो गयी थी। यहाँ कुछ देर बैठ कर आराम किया गया। तब तक नीरज भी चढाई पर विजय पताका फ़हराता हुआ आ गया था, इस चढाई में नीरज दस मिनट पीछे हो गया था। भीमडवार से जॉव लगभग 27 किलोमीटर है, और काली घाटी 15 के आसपास है, पूरे सवा तीन घन्टे में हम काली घाटी के मुहाने पर आ गये थे।
हम दोनों छ्तरी के नीचे वर्षा से बचते हुए। घर से लेकर गये थे फ़ोटो तो होना ही था।
काली घाटी से खचेडू की ओर जाते हुए, अब ढलान ही ढलान है।
जहाँ हम जैसे पैदल चलने में थक जाते है, वहाँ ये लोग पचास-पचास किलो वजन लेकर चलते है।

यहाँ से आगे तो अब ढलान ही ढलान थी। ये मार्ग पूरा का पूरा पहाड के ऊपर ही रहता है। जो डन्डीधार के नाम से जाना जाता है, इस मार्ग में अपना प्यारा खचेडू भी आता है, थाचडू भी कोई नाम हुआ, वैसी ही जैसे श्रीखन्ड बाबा की जगह, श्रीफ़ाडू बाबा की जय ज्यादा अच्छा लगता है। यहाँ से खचेडू तीन किलोमीटर दूर है, लेकिन उतराई ऐसी है जैसे किसी तिरछी दीवार पर सीधे उतर जाओ, एक तिरछे पहाड पर उतरना भी कम खतरनाक नहीं है, बल्कि मैं तो कहता हूँ कि पहाड पर चढना आसान है, उतरना नहीं, नीरज की बातों से लगा कि वो इसे मेरी या कहो विपिन की भी कमजोरी मान रहा था, इसलिये मैंने विपिन को सुबह ही बोल दिया था कि आज चाहे कुछ हो जाये पर आज बराटी नाले के पुल पर जाने में नीरज का नम्बर तीन आना चाहिए। काली घाटी से दो किलोमीटर उतरने के बाद पेड एक बार फ़िर अपना साथ बना लेते है। जहाँ से पेड शुरु होते है, वहाँ से खचेडू मात्र एक किलोमीटर दूर रह जाता है, धीरे-धीरे हम खचेडू भी आ गये थे, यहाँ तक मार्ग में कीचड मिलना भी शुरु हो गया था।
लो जी आ गये पेड दुबारा से, और धुन्ध अभी गयी नहीं है।
आ ही गया ये खचेडू उर्फ़ थाचडू भी

खचेडू में जो मान्यवर भंडारा लगाते है, ये मणिमहेश में भी अपना भंडारा लगाते है, मैं मणिमहेश यात्रा में इन मान्यवर के भंडारे में ही ठहरा था। नाम याद नहीं आ रहा है। ये कोई इलाज भी करते है, शायद साँप के काटने का इलाज करते है। यहाँ इस दुर्गम चढाई पर अकेले दम पर भन्डारा लगाना कोई आसान काम नहीं है। भले ही यहाँ के भन्डारे में अमरनाथ की तरह पकवान ना मिले मिठाई ना मिले, लेकिन थका हुआ यात्री जब इस जगह आता है, तो उसे यहाँ मिलने वाले कडी चावल, दाल चावल व चाय भी किसी लजीज पकवान से बेहतर ही लगती होगी। यकीन ना हो तो एक बार ये आसान सी दिखाई दे रही यात्रा करके देख लो, आपको अपने आप ही पता चल जायेगा। हमने भी खचेडू में कडी चावल खाये थे। खा पी कर जब हम चलने लगे तो समय हुआ था दोपहर के ठीक 12 बजे। 
अब भी कुछ कहना है क्या?
इसे कहते है डन्डीधार की चढाई, अरे नहीं अब तो कहो कि उतराई।

खचेडू तक तो नीरज हमारे साथ ही चलता रहा था, लेकिन खचेडू से कुछ आगे जाकर नीरज की मशीनरी में कुछ रफ़्तार कम हो गयी थी, जबकि मेरी रफ़तार में कोई कमी नहीं आयी थी, अब मैं सबसे आगे था, विपिन भी नीरज के साथ ही चल रहा था। हम तीनों इतना तेज उतर रहे थे कि मैं कई बार फ़िसलते-फ़िसलते बचा, उन दोनों का पता नहीं, फ़िसलने से बचने के लिये मैंने तो कीचड से बचने की बजाय सीधे कीचड में से निकलना शुरु कर दिया था, जिससे फ़ायदा ये हुआ कि मैं अब आराम से उतर पा रहा था, लेकिन इसका नुक्सान ये हुआ कि हमारे सब के जूते व पैंट काफ़ी गन्दे हो गये थे। यहाँ नीरज व विपिन काफ़ी पीछॆ रह गये थे, अब सामने एक टोली जा रही थी। जो कि काफ़ी तेजी से नीचे उतर रही थी, थोडी देर में मैंने इन्हें भी पीछे छोड दिया, उस वक्त पता नहीं क्या भूत सा सवार हुआ था मेरे सिर पर कि मैं नीरज की शताब्दी वाली रफ़्तार को भी पीछे छोड चुका था, अब मेरी रफ़्तार बुलेट ट्रेन वाली हो गयी थी। इन दोनों ने भी मेरा पीछा करना छोड दिया या कहो कि मेरी रफ़्तार से उतर नहीं पाये थे। जब मुझे झरने के पानी की आवाज सुनाई देने लगी तो जोश और ज्यादा भर गया, लेकिन इस तेजी के चक्कर में मैं दो बार फ़िसलते-फ़िसलते भी बचा, किसी तरह हाथों के सहारे अपने आप को संम्भाल लेता था। जैसे ही बराटी नाले का पुल दिखाई दिया तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा था।
कैसे-कैसे पौधे है यहाँ पर।
ऐसी ही जगहों से होकर जाना पडता है। ये यहाँ का मुख्य मार्ग है।

बराटी नाले पर आकर मैंने अपना बैग उतार कर, एक ओर रख दिया व दोनों का इंतजार करने लगा। दस मिनट बाद विपिन आ गया, व विपिन के कुछ देर बाद नीरज भी आता दिखाई दिया। आज मन में बडी खुशी हो रही थी कि मैंने अपने घिसे हुए जूतों से शताब्दी की रफ़्तार को पीछे छोड दिया था। नीरज जब हमारे पास आया तो खुश तो दिखाई दे रहा था, लेकिन शायद सोच रहा होगा कि आज ये दोनों पहले कैसे उतर गये? लेकिन मैं बार-बार कहता हूँ कि पहाड हो या मैदान हमेशा अपनी हिम्मत के अनुसार ही चलना चाहिए, ना कि दूसरे को देखकर, एक बार विपिन मुझे देखकर तेजी से उतर रहा था तो मैने उसे कहा कि भाई अपने हिसाब से चल, अगर मुझसे तेज चल सकते हो तो आगे निकलो नहीं तो आराम से मेरे पीछे पीछे-पीछॆ आ जाना। मैं बराटी नाले के पुल पर  आराम करता मिल जाऊँगा। उस तेजी से उतरने का फ़ायदा ये हुआ कि हम दो घन्टे में खचेडू से यहाँ पर आ गये थे, जाने में इसी चढाई ने चार घन्टे लिये थे। हमने अपने जूतों की बुरी हालत के फ़ोटो लिये, हमें नहाये दो दिन हो गये थे, हमारा थोपडा भी देखने लायक था। 
लो जी आ गया है, बराटी नाले का पुल, यहाँ ये डन्डीधार की उतराई समाप्त हुई।
अब देखो कि बारिश के बाद हमारी क्या हालत हो गयी है, कीचड ही कीचड था।
बराटी लाले से आगे जाकर ये पुल किसी और जगह के लिये जाता है।

यहाँ से आगे जाते ही बराटी नाले का भन्डारा आ जाता है, लेकिन अब हमारा मन खाने का नहीं था। हम जल्द से जल्द जॉव पहुँच जाना चाहते थे। अब हमारी पैदल यात्रा मात्र 5 किलोमीटर ही रह गयी थी। आधा घन्टे में ही हम सिंहगाड आ गये थे, अब हमें ये चढाई कुछ भी नहीं लग रही थी। यहाँ आकर हमने पेट भर कर जलेबी व पकौडी खायी थी, बार-बार लाकर नीरज ने तो इतनी जलेबी रख ली थी कि आखिर जब उससे खाई ना गई तो बोला अरे भाई ये खत्म तो करवा दो, खैर किसी तरह बची खुची जलेबी खत्म कर हम आगे बढे। रफ़्तार हमारी अब भी सुपर फ़ास्ट ही थी, जिस मार्ग में आते समय हमें एक घन्टा लगा था अब उसी मार्ग का बेडापार आधा घन्टा में कर दिया था।
अब वापसी में भी पेट भर कर जलेबी खायी गयी थी।

यहाँ एक बंदा यात्रा पर आ रहे यात्रियों को एक-एक सेब बाँट रहा था, हमने भी खाया सेब और आराम से हम जॉव आ गये थे, यहाँ आकर हमने नितिन को तलाशना शुरु किया। नीचे भन्डारे में पता किया तो बताया कि ऊपर गया हुआ है, ऊपर देखा तो नजर नहीं आया, मन में ख्याल आया कि आशिक बंदा है किसी छॊरी के चक्कर में पडा होगा। जब काफ़ी तलाशने पर नहीं मिला तो उस गाजियाबाद वाले ड्राईवर से पता करना चाहा, तो देखा कि उसी की गाडी में सो रहा है।

समय 4:30 बज चुके थे, हम यहाँ से रामपुर तक जाना चाहते थे, अत: सबने अपना-अपना बैग लिया व अपनी-अपनी बाइक पर सवार हो चल दिये। जॉव से बागीपुल तक कच्चा मार्ग है, जिससे हमें उतराई में भी आराम-आराम से चलना पडा था, 6 किलोमीटर को तय करने में बीस मिनट लग गये थे। बागीपुल आते ही शानदार सडक थी, अब हमारी बाइक हवा से बाते कर रही थी।  एक घन्टा बाद हम उसी पुल पर थे, जहाँ से हमने सतलुज पार की थी, शिमला से रामपुर जाते समय रामपुर से तीन किलोमीटर पहले रोड से उल्टे हाथ पर ये पुल आया था। 
ये वो पुल है जिससे हम रामपुर से पहले उल्टे हाथ की ओर बागीपुल के लिये मुड गये थे।

रात रामपुर में ही रुकने का पहले से ही तय था। अत: कई होटल पर देखने के बाद किसी ने बताया कि आप लोग नीचे की ओर पंचायती गेस्ट हाऊस में जाओ आपको वहाँ अच्छा कमरा मिल जायेगा। कमरों का पहरेदार वहाँ नहीं था, उससे फ़ोन पर बात की तो तब उसने बताया कि मैं आधे घंटे बाद आऊँगा। जब वो आया, हमने अपना सामान कमरे में रखा, नहाये व आराम से सो गये। अगले दिन हमें चकराता जाना था। कमरे मात्र 250 रुपये में मिल गये थे, बस अगर कोई जाये तो ये कहना कि सरकारी काम से आये है।
एक नींद का सताया प्राणी, मौज लेता हुआ, देखा है कहीं पर?


इस यात्रा के तीन धुरंधर है,     संदीप पवॉर,           नीरज जाट जी,               विपिन गौर  

इस यात्रा पर उनके विचार


आगे  रोहडू होते हुए, चकराता व पॉवटा सहिब भी।
                 इस यात्रा का आगे का भाग देखने के लिये     यहाँ क्लिक करना        होगा


                    इस यात्रा का जो भाग देखना चाहते हो उसके लिये यहाँ नीचे क्लिक करना होगा

भाग-01-दिल्ली से पिंजौर गार्ड़न तक।
भाग-02-पिंजौर का भव्य गार्ड़न
भाग-03-पिंजौर से जलोड़ी जोत/जलोढ़ी दर्रा

भाग-04-सरोलसर झील व रघुपुर किले के अवशेष
भाग-05-सैंज से निरमुन्ड़ होते हुए जॉव तक
भाग-06-सिंहगाड़ से ड़न्ड़ाधार की खड़ी चढ़ाई कर, थाचडू होते हुए काली घाटी तक


भाग-07-काली घाटी से भीमद्धार/भीमडवार तक
भाग-08-पार्वती बाग, नैन सरोवर होते हुए, श्रीखण्ड़ महादेव शिला के दर्शन
भाग-09-वापसी श्रीखन्ड़ से भीमड़वार होते हुए, रामपुर बुशैहर तक


भाग-10-रामपुर से रोहड़ होते हुए चकराता तक।
भाग-11-चकराता  का टाईगर फ़ॉल/झरना
भाग-12-सम्राट अशोक कालीन शिलालेख, कालसी में


भाग-13-पौंटा-साहिब गुरुद्धारा
भाग-14-पौंटा-साहिब से सहारनपुर-शामली होते हुए दिल्ली तक।
भाग-15-श्रीखन्ड़ यात्रा पर जाने के लिये महत्वपूर्ण बाते।

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29 टिप्‍पणियां:

डॉ टी एस दराल ने कहा…

पहाड़ी यात्रा के साथ आपका फोटोग्राफी का शौक भी अच्छा है ।
दुर्गम स्थानों के खूबसूरत फोटो देखकर आत्म विभोर हो रहे हैं ।
शानदार यात्रा विवरण ।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

आज कुशल कूटनीतिज्ञ योगेश्वर श्री किसन जी का जन्मदिवस जन्माष्टमी है, किसन जी ने धर्म का साथ देकर कौरवों के कुशासन का अंत किया था। इतिहास गवाह है कि जब-जब कुशासन के प्रजा त्राहि त्राहि करती है तब कोई एक नेतृत्व उभरता है और अत्याचार से मुक्ति दिलाता है। आज इतिहास अपने को फ़िर दोहरा रहा है। एक और किसन (बाबु राव हजारे) भ्रष्ट्राचार के खात्मे के लिए कौरवों के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ है। आम आदमी लोकपाल को नहीं जानता पर, भ्रष्ट्राचार शब्द से अच्छी तरह परिचित है, उसे भ्रष्ट्राचार से मुक्ति चाहिए। सभी को जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं एवं हार्दिक बधाई।

बढिया यात्रा वृतांत के लिए आभार

Bharat Bhushan ने कहा…

सुना है कि ध्यान सिंह की हाकी टीम अपना स्टेमिना बढ़ाने के लिए दूध में डाल कर जलेबी खाती थी. यही है आपके स्टेमिना का राज़. धुरंदर के धक्कड़ फोटो. मान गए उस्ताद.

virendra sharma ने कहा…

रमादान (रमजान ,रमझान )मुबारक ,क्रष्ण जन्म मुबारक .संदीप जी वो पेड़ से लटके फूल ,कर्ण -फूल ,कानों के कुंडल से लगते थे ,प्रकृति नटी के दुर्गम नजारों में खिलते जंगली फूल ,घास की नौक पर इतराती ,इठलाती बुंदियाँ देखने के लिए एक पारखी आँख चाहिए .बहुत खूब नज़ारे परोसें हैं आपकी आँख ने ..
जय अन्ना ,जय भारत . . रविवार, २१ अगस्त २०११
गाली गुफ्तार में सिद्धस्त तोते .......
http://veerubhai1947.blogspot.com/2011/08/blog-post_7845.html

Saturday, August 20, 2011
प्रधान मंत्री जी कह रहें हैं .....
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
गर्भावस्था और धुम्रपान! (Smoking in pregnancy linked to serious birth defects)
http://sb.samwaad.com/

रविवार, २१ अगस्त २०११
सरकारी "हाथ "डिसपोज़ेबिल दस्ताना ".

http://veerubhai1947.blogspot.com/

Suresh kumar ने कहा…

संदीप भाई बहुत ही मजेदार और रोमांचक यात्रा है ....

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा है आपने ! सुन्दर चित्र के साथ शानदार प्रस्तुती!
आपको एवं आपके परिवार को जन्माष्टमी की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनायें !
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/

Vidhan Chandra ने कहा…

एक बात तो तय है की आप लोग यात्रा का मजा नहीं लेते हैं , रिकार्ड बनाने की "धुन" में रहते है!! नीरज भी कोई भगवान नहीं है ! इन्सान ही है, उसे पछाड़ने के चक्कर में अगर आप कहीं (भगवान न करे ) गिर जाते या आप को कुछ हो जाता तो? हम घुमक्कड़ हैं और उसका आनंन्द स्वयं के लिए लेते हैं , वो अलग बात है कि ब्लॉग के जरिये अपनी भावनाएं दूसरों से शेयर कर लेते हैं. बीस मिनट लेट ही सही नीरज पहुंचा न आप के पास अगर मैं होता तो एक घंटा लेट होता! अगर हमें जल्दी नहीं है तो बिना बात जल्दी क्यों करें संदीप जी !! आपके फोटो अच्छे हैं , नीरज कि सलाह मानकर फोटो वाटरमार्क नहीं किये इसके लिए धन्यवाद!!

Vaanbhatt ने कहा…

क्या भैया...अभी थके नहीं...एक ही झटके में सब कवर कर लिया...बहुत ही शानदार सफ़र रहा...एक-एक पल का मज़ा लिया और चित्रों ने पूरा समां बाँध दिया...

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

श्रीखण्ड महादेव यात्रा का वर्णन एक दोस्त से कई साल पहले सुना था, लेकिन इस मस्तमौला अंदाज में पढ़ना और साथ में तस्वीरें देखना वाकई सुखद है। आज एक साथ सभी भाग पढ़े हैं, लेकिन पता नहीं क्यों आज ऐसा लगा जैसे बीच में यात्रा विवरण कुछ छूट गया है। फ़िर भी बहुत आनंद दायक रहा पढ़ना।

संजय @ मो सम कौन... ने कहा…

सॉरी भाई, एक साथ पढ़ने के चक्कर में एक एक पोस्ट नहीं पढ़ी थी, यूँ समझ लो नीरज की तरह रपट गया था:)
अब एक एक पोस्ट पढ़नी पड़ेगी, लेकिन मन में उल्लास है कि पूरी तफ़सील से चौकड़ी की घुमक्कड़ी समझने को मिलेगी।

Chaitanyaa Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर फोटो हैं सारे ......जन्माष्टमी की शुभकामनायें

कुमार राधारमण ने कहा…

सावन में बाबा बर्फानी के दर्शन। क्या कहने!

Udan Tashtari ने कहा…

अद्बुत,,,,हमें आनन्द देने का आभार!!

Arti ने कहा…

Bahut sundar Vyakhyan...
Pahadi ilake mein ghumne ka mazaa kuch aur hi hota hai...
Badhiya chitra.

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

नयनाभिराम चित्रों ने यात्रा को जीवंत कर दिया.

virendra sharma ने कहा…

संदीप भाई शुक्रिया .आपको तो आज आना था ?
Wednesday, August 24, 2011
योग्य उत्तराधिकारी की तलाश ./
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html

बुधवार, २४ अगस्त २०११
मुस्लिम समाज में भी है पाप और पुण्य की अवधारणा .
http://veerubhai1947.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.htm

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य।

virendra sharma ने कहा…

संदीप भाई आपकी ब्लोगिया दस्तक और मुख़्तसर सी यादगार मुलाक़ात याद रहेगी .आभार आपका इस कर्म के लिए .
अन्ना ,अन्ना ,अन्ना
मैं भी अन्ना ,
तू भी अन्ना ,
वो भी अन्ना ,
हम सब अन्ना !

sm ने कहा…

आगे निकलने के चक्कर में कल की तरह फ़िर से ना गिर पडे
well said
like the pics

Tarun Goel ने कहा…

bahut achhe!

नीरज मुसाफ़िर ने कहा…

फोटो पर वाटरमार्क नहीं किये, बडी खुशी हुई
बाकी बातें फिर बताऊंगा, अभी कुछ दिक्कत चल रही है

Maheshwari kaneri ने कहा…

सुन्दर चित्रों के साथ रोचक यात्रा विवरण...शुभकामनायँ...

Vibha Rani ने कहा…

बहुत रुचिकर है आपका अपना परिचय. घुमक्कडी के मजे. वाह!

Teamgsquare ने कहा…

lovely pics and wonderful description . amazing place .....

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

बेहद खतरनाक यात्रा ..दोनों शेरो की ...लाजबाब ! फोटू देखने काबिल....लेकिन यात्रा मुझ जैसो के काबिल नहीं ?

Ram Swaroop Verma ने कहा…

भैया आपकी घुमक्कड़ी के तो हम कायल हो गए आपको बहुत 2 मु्बारक हो

vikas ने कहा…

bhot khood jaato bhot khoob maine shrikhand ka naam apne ek dost se suna tha wo sayad 10july 2012 ko ja rha h to maine bi socha dekhta hu ye shrikhand kaise jagah h or search krte hue muje aap mil gye or aapka pura safar maine padha bhot accha lga or ab to mera man bi kr rha h shrikhand baba k darshan krne ka agr muje jindgi me kabi bi mouka mila to m bi jarur jaunga.... or aapka safar padh kr aapse kuch dil sa lag gya h sahi btao to aankhe nam ho gyi h pta ni kyu...
BOLO SHRIKHAND MAHADEV BABA KI JAI......

vikas ने कहा…

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BOLA SHRIKHAND MAHADEV KI JAI

vikas ने कहा…

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