गौमुख का मतलब गाय का मुख/मुँह। लोग तो ऐसा ही कहते थे, लेकिन जब मैंने गंगौत्री वाला गौमुख देखा तो मुझे कहीं से भी ऐसा नहीं लगा था कि यह गाय का मुँह कैसे है? खैर छोडो लगने ना लगने वाली बात को, आपको और मुझे तो यात्रा वृतांत लिखने व पढने से मतलब है। तो चलिये आज आपको अपनी पहली गौमुख यात्रा का विवरण बता देता हूँ। यह सन 1999 के नवम्बर माह के पहले सप्ताह/या अक्टूबर माह के आखिरी सप्ताह की बात रही होगी। इतना मुझे याद है कि जब मैंने यह यात्रा करने की सोची, तब दिवाली आने में लगभग 15-20 दिन बाकि रह गये थे। कहते है ना, जिसकी किस्मत में परमात्मा ने जी भर कर यात्रा लिखी हो, फ़िर वह एक स्थल पर टिक कर कैसे बैठ सकता है? बात उस समय की है जब मेरा छोटा भाई अपनी पुलिस की ट्रेंनिग देहरादून से पूरी करने के उपरांत उतरप्रदेश प्रांत (उस समय यही था, उतराखण्ड तो बाद में हुआ है।) के पर्वतीय अंचल के उतरकाशी जनपद में अपनी पहली नियुक्ति पर रवाना हुआ था। उस समय तक मैंने भी ऋषिकेश से आगे के पहाड नहीं देखे थे। ईधर मसूरी से आगे धनौल्टी तक अपनी आखिरी रेखा खिंची हुई थी। जैसे ही छोटा भाई उतरकाशी जनपद में थाना मनेरी (एशिया का सबसे बडा थाना क्षेत्र इसके अधीन आता है) के अंतर्गत आने वाले गंगौत्री मन्दिर वाले पुलिस चैक-पोस्ट पर तैनात हुआ तो उसी समय छोटे भाई ने मुझे फ़ोन पर बता दिया था कि यदि गंगौत्री देखनी है तो आ जाओ क्योंकि मैं अभी यहाँ पन्द्रह दिन दिवाली तक रहूँगा। मैंने तुरन्त जाने की तैयारी शुरु कर दी। मैंने दो जोडी कपडे व पाँच किलो देशी घी अपने बैग में रखा व अपने घर से गंगौत्री जाने के लिये स्टॆशन पर आ पहुँचा। हमारे यहाँ लोनी से सुबह ठीक साढे दस बजे एक सवारी रेलगाडी सीधी हरिद्धार तक जाती है। इस ट्रेन से लोनी से हरिद्धार तक मेरी पहली यात्रा थी।
शुक्रवार, 31 अगस्त 2012
सोमवार, 27 अगस्त 2012
FIRST TREKKING IN MY LIFE-NEELKANTH MAHADEV TEMPLE, RISIKESH मेरे जीवन की पहली ट्रेकिंग-नीलकंठ महादेव मन्दिर, ऋषिकेश
उतर भारत में सावन का महीना भोले नाथ के नाम कर दिया जाता है, वैसे तो सम्पूर्ण भारत में ही सावन माह में भोले के भक्त चारों ओर छाये हुए रहते है, लेकिन इन सबका जोरदार तूफ़ान सावन के आखिर में चलता है। संसार में भोले के नाम से चलने वाली कांवर यात्रा विश्व की सबसे लम्बी मानव यात्रा मानी जाती है। किसी जगह मैंने पढा था कि दुनिया में कावंर यात्रा ही ऐसी एकमात्र यात्रा है जो एक बार में ही हजार किमी से भी ज्यादा लम्बाई ले लेती है। गंगौत्री या देवभूमि उतराखण्ड (हिमाचल भी देवभूमि कहलाती है) का प्रवेश दरवाजा हरिद्धार से दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, पंजाब व अन्य राज्यों में शिव भक्त कावंर रुप में गंगाजल धारण कर, सावन माह में भोलेनाथ पर अर्पण करते है। एक बार मैंने भी यह सुअवसर पाया था। जब मैंने गौमुख से केदारनाथ ज्योतिर्लिंग तक (250 किमी दूरी) गंगा जल धारण कर पैदल यात्रा (ट्रेंकिग) की थी। वह यात्रा मेरी अब तक की सबसे लम्बी पद यात्रा रही है लेकिन मुझे लगता है कि मेरा यह अभिलेख (रिकार्ड) जल्द ही धवस्त होने जा रहा है क्योंकि मैं बहुत जल्द वृंदावन क्षेत्र की चौरासी कौस (256 किमी) की पद यात्रा पर जा सकता हूँ, इसके अलावा एक पैदल यात्रा का फ़ितूर भी मेरी जाट खोपडी मे घुसा हुआ है, मेरा एक D.E.O. साथी जो दो साल पहले तक मेरे साथ कार्य करता था। आजकल उसका स्थानांतरण दूसरे क्षेत्र में हो गया है। कुछ दिन पहले उसका फ़ोन आया था कि संदीप चलो बालाजी की पद-यात्रा करके आते है। अभी तक मेरे मन में दोनों यात्रा करने की है लेकिन समय अभाव के कारण कोई एक यात्रा निकट भविष्य में सम्भव हो पायेगी। देखते है जाट देवता को मिलने के लिये अबकी बार कौन से भगवान दर्शन के लिये खाली है?
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