शनिवार, 16 जुलाई 2011

CIVIC CENTRE सिविक सेन्टर

दिल्ली नगर निगम का मुख्यालय "सिविक सेन्टर" मात्र नाम नहीं है, बल्कि एक पहचान है, जिस पर दिल्ली को इसकी शानौ-शौकत पर नाज है, ये दिल्ली की सबसे विशाल व ऊंची इमारत है। यह इमारत मात्र अठाईस मंजिल जमीन से ऊपर है, व तीन मंजिल जमीन के नीचे भी है, जिसमें जमीन के नीचे केवल पार्किंग है, 101 मी ऊँची इमारत है। यह इमारत नई दिल्ली रेलवे व मेट्रो स्टेशन के पास ही है। 


सडक से लिया गया फ़ोटो है।

ये कहना तो बेकार है कि ये कहाँ-कहाँ से दिखाई दे जाती है, अगर मौसम साफ़ है तो आप दिल्ली के लगभग सौ किलोमीटर लम्बे रिंग रोड पर, बनी किसी भी ऊंची बिल्डिंग से इसे देख सकते हो, ये इमारत पूरे पाँच साल में बन कर तैयार हुई है, और इसका बजट था, केवल 600 सौ करोड रुपये बनाने का, दिल्ली नगर निगम को तीन भागों में विभाजित करने का कार्य प्रगति पर है, उसके बाद देखते है, कि यह स्थल किसका कार्यालय बना रहता है।  इस इमारत पर दिल्ली सरकार की नजर लगी हुई है, और भविष्य में सम्भव भी है, कि यह दिल्ली सरकार के मुख्यालय में बदल जाये।

 इस ईमारत में छोटे-छोटे कमरे ना होकर, बडॆ-बडे विशाल हॉल है, जिनमें बैंक की तरह, कार्य करने के स्थल बनाये हुए है। पूरी इमारत ही पूर्णतय: वातानुकूलित है, चाहे लिफ़्ट हो या गैलरी, हर कही मौसम की मार से बचे रहते है। दिल्ली नगर निगम में कुल सवा लाख कर्मचारी कार्य करते है, जिस कारण यह विश्व का सबसे बडा नगर निगम भी है।


ये वाला भी,

रविवार, 10 जुलाई 2011

काशी (बनारस)/ सारनाथ से घर वापसी,SARNATH, VARANASHI TO DELHI

प्रयाग काशी पद यात्रा-
इस सफ़र में सारा कुछ जो भी घर से सोच कर आये थे, प्रयाग, शहीद चन्द्रशेखर पार्क, आनन्द भवन, संगम तट, व काशी तक का पैदल मार्ग, काशी के सारे घाट, सारनाथ अब कुछ नहीं बचा था। दोनों खत्म समय भी, व देखने लायक जगह भी, अत: अब बारी थी घर की ओर कूच करने की,
इसके बाद हम यहाँ से एकदम फ़्री हो गये थे। शाम के चार बजने वाले थे। पता चला, कि यहाँ का रेलवे स्टेशन आधा किलोमीटर दूरी पर ही हैतो रेलवे स्टेशन देखने के लिये चल दिये। जब स्टेशन पहुँचे, तो देखा कि एक ट्रेन खडी थीपता किया तो मालूम हुआ कि कि ये ट्रेन काशी/बनारस/वाराणसी, हण्डिया होते हुएइलाहाबाद तक जायेगी। बस फ़िर क्या थाले लिये तीन-तीन रुपये के तीन टिकट और जा बैठे ट्रेन के अंदर डिब्बे मेंडिब्बे के अंदर से ही स्टेशन के नाम वाला फ़ोटो भी खींचा था। दस पंद्रह मिनट बाद ही ट्रेन चल पडी। कोई आधा घंटा लिया होगाहमें वाराणसी सिटी तक लाने मेंवाराणसी सिटी पर जब ट्रेन को खडे हुए डेढ घंटा हो गया तो सब्र खत्म होने लगा, बातों बातों में मालूम हुआ कि यह ट्रेन यहाँ पर तीन-चार घंटे तक खडी रहती है, फ़िर भी हम छ: बजे तक इस ट्रेन के चलने का इंतजार कियाइसके बाद हम आटो से अगले स्टेशन जो कि वाराणसी कैण्ट के नाम से हैजा पहुँचे।
ये फ़ोटो ट्रेन के डिब्बे के अन्दर से लिया था

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